ऑफिस में काम पूरा करके दफ्तर के साथियों के साथ गप्पे मारते हुए नीचे उतरा। रात आधी से ज्यादा निकल चुकी थी पर हमारे लिए काफी बाकी थी। रास्ते में एक सहयोगी के फोन की घंटी बजी और उसका जवाब था ‘आ रहा हूं,। क्या हुआ। कोई खबर है, चलता हूं। जाओ, मैने जवाब दिया।
मैं कुछ कदम आगे बढ़ा ही था कि तभी उस सहयोगी का फोन आ गया। यार रामलीला मैदान में महाभारत हो गई है। और फिर काम की व्यस्तता की वजह से उसे फोन काटना पड़ा। मैंने सोचा कि दो दिन से सोच रहा था कि रामलीला मैदान जाऊंगा पर जा नहीं पाया चलो गाड़ी उधर घुमा लेता हूं। वहीं दूसरे ख्याल ने कदम रोक दिए कि ऑफिस को इस वक्त मेरी जरूरत ज्यादा होगी, चलो ऑफिस का रुख करो।
कंधे से उतर कर बाबा रामदेव मंच पर आकर बैठ गए और बोतल से पानी पीने लगे। फिर उसी बोतल को बाबा रामदेव ने माइक समझकर अपने उत्तेजित हो रहे समर्थकों को शांत करने लगे। उस समय हर मिनट तस्वीरें बदल रही थी। उस दौरान जब भी कैमरा बाबा के ऊपर होता तो मैंने पूरे समय बाबा को समझाते हुए ही देखा। कहीं भी भावों से ऐसा नहीं लग रहा था कि वो अपने सहयोगियों, समर्थकों को उत्तेजित कर रहे थे।
मेरे एक सहयोगी ने मेरे से कहा कि यदि ये रात बाबा रामदेव निकाल गए तो कल बाबा रामदेव के लिए एक नई सुबह होगी। मैंने जवाब दिया, लाख लोग हैं और दिल्ली में इतनी पुलिस नहीं, जो लाख लोगों को खदेड़ दे। पर मैं गलत था तस्वीर बदली और नई तस्वीर में रेपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर दिखी। हम समझ गए कि ये रात बाबा के लिए जीवन की सबसे लंबी रात होने वाली है।
मंच से बोलते बाबा रामदेव को एकदम से सहयोगियों ने भीड़ में पीछे-पीछे करना शुरु किया। उनके समर्थक महिलाओं को सामने रखते हुए बाबा को मंच के पीछे ले जा रहे थे। बाबा की आवाज़ पीछे से आ रही थी पर थोड़ी देर बाद बाबा रामदेव का पता नहीं चला। पंडाल में आंसूगैस छोड़ी जाने लगी। पंडाल में लोग तितर-बितर होने लगे। डंडे, पत्थर सब चल रहे थे। पंडाल में आग लग गई और बाबा रामदेव का मंच खाली हो गया। पंडाल में गिने चुने लोग दिखने लगे। वहां मौजूद थी तो सिर्फ पुलिस और पुलिस। लोगों को उठा-उठा कर लेजाती हुई। ये सब मंजर बर्बरता दिखा रहे थे। आंखों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि रात तक भरा पूरा रामलीला मैदान दो घंटे के अंदर खाली करवाया जा चुका था।
फिर इसके बाद उस रात को क्या हुआ कितना एक लोकतांत्रिक देश के लोगों का साथ छल हुआ ये सब को पता है। बार-बार मुझे ऑस्ट्रेलिया की वो घटना याद आ रही थी। जब भारतीयों पर हमले के खिलाफ सभी भारतीय मेलबर्न की सड़कों पर इक्ट्ठा हुए थे और पुलिस ने जो कार्रवाई की थी उसकी आलोचना पूरे विश्व में हुई थी। तब ये ही हमारी सत्तारूढ़ सरकार के नेतागणों ने उसकी निंदा की थी साथ ही उच्चायुक्त को बुलाकर इसके लिए आगाह भी किया था। क्यों आज उसकी को दोहराने की ये निंदा नहीं कर पा रहे और साथ ही क्या ये तस्वीरें इनको दुख नहीं दे रही, कि अब भारत की निंदा पूरे विश्व में होगी।
इस बात का मैं साक्षी हूं कि रात 10.45 पर सुबोध कांत सहाय ने ये कहा था कि हमने अपनी मांग लीखित बाबा के पास भेज दी हैं। और दो घंटे बाद रामलीला मैदान पर पुलिस हमला कर चुकी थी।
आपका अपना
नीतीश राज
मैं कुछ कदम आगे बढ़ा ही था कि तभी उस सहयोगी का फोन आ गया। यार रामलीला मैदान में महाभारत हो गई है। और फिर काम की व्यस्तता की वजह से उसे फोन काटना पड़ा। मैंने सोचा कि दो दिन से सोच रहा था कि रामलीला मैदान जाऊंगा पर जा नहीं पाया चलो गाड़ी उधर घुमा लेता हूं। वहीं दूसरे ख्याल ने कदम रोक दिए कि ऑफिस को इस वक्त मेरी जरूरत ज्यादा होगी, चलो ऑफिस का रुख करो।
रामलीला मैदान की उस काली स्याह रात के एक-एक दृश्य, एक-एक तस्वीर दिमाग को हिला रहे थे। एकबार तो बाबा रामदेव का चहरा फक पड़ चुका था जब कि मंच पर पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुंची। पर दूसरे ही पल हिमालय की गुफाओं में किए तप और योग की शक्ति ने उनके अंदर वो जज्बा और फुर्ति पैदा कर दी कि वो अपने सहयोगियों के बीच कूद पड़े। 46 साल का कोई भी शख्स 12-14 फीट के प्लेटफॉर्म से ऐसे नहीं कूद सकता, शायद योग का कमाल था। पर ना तो वहां मौजूद बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों को इस बारे में जानकारी थी और ना ही बाबा के समर्थकों को कि दिल्ली पुलिस वो पुलिस है जो चाहने पर मुर्दे को भी जिंदा कर दे, जो अपनी पर आ जाए तो यमदूत भी रहम के लिए पनाह मांगने लगे।
कंधे से उतर कर बाबा रामदेव मंच पर आकर बैठ गए और बोतल से पानी पीने लगे। फिर उसी बोतल को बाबा रामदेव ने माइक समझकर अपने उत्तेजित हो रहे समर्थकों को शांत करने लगे। उस समय हर मिनट तस्वीरें बदल रही थी। उस दौरान जब भी कैमरा बाबा के ऊपर होता तो मैंने पूरे समय बाबा को समझाते हुए ही देखा। कहीं भी भावों से ऐसा नहीं लग रहा था कि वो अपने सहयोगियों, समर्थकों को उत्तेजित कर रहे थे।
मेरे एक सहयोगी ने मेरे से कहा कि यदि ये रात बाबा रामदेव निकाल गए तो कल बाबा रामदेव के लिए एक नई सुबह होगी। मैंने जवाब दिया, लाख लोग हैं और दिल्ली में इतनी पुलिस नहीं, जो लाख लोगों को खदेड़ दे। पर मैं गलत था तस्वीर बदली और नई तस्वीर में रेपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर दिखी। हम समझ गए कि ये रात बाबा के लिए जीवन की सबसे लंबी रात होने वाली है।
मंच से बोलते बाबा रामदेव को एकदम से सहयोगियों ने भीड़ में पीछे-पीछे करना शुरु किया। उनके समर्थक महिलाओं को सामने रखते हुए बाबा को मंच के पीछे ले जा रहे थे। बाबा की आवाज़ पीछे से आ रही थी पर थोड़ी देर बाद बाबा रामदेव का पता नहीं चला। पंडाल में आंसूगैस छोड़ी जाने लगी। पंडाल में लोग तितर-बितर होने लगे। डंडे, पत्थर सब चल रहे थे। पंडाल में आग लग गई और बाबा रामदेव का मंच खाली हो गया। पंडाल में गिने चुने लोग दिखने लगे। वहां मौजूद थी तो सिर्फ पुलिस और पुलिस। लोगों को उठा-उठा कर लेजाती हुई। ये सब मंजर बर्बरता दिखा रहे थे। आंखों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि रात तक भरा पूरा रामलीला मैदान दो घंटे के अंदर खाली करवाया जा चुका था।
फिर इसके बाद उस रात को क्या हुआ कितना एक लोकतांत्रिक देश के लोगों का साथ छल हुआ ये सब को पता है। बार-बार मुझे ऑस्ट्रेलिया की वो घटना याद आ रही थी। जब भारतीयों पर हमले के खिलाफ सभी भारतीय मेलबर्न की सड़कों पर इक्ट्ठा हुए थे और पुलिस ने जो कार्रवाई की थी उसकी आलोचना पूरे विश्व में हुई थी। तब ये ही हमारी सत्तारूढ़ सरकार के नेतागणों ने उसकी निंदा की थी साथ ही उच्चायुक्त को बुलाकर इसके लिए आगाह भी किया था। क्यों आज उसकी को दोहराने की ये निंदा नहीं कर पा रहे और साथ ही क्या ये तस्वीरें इनको दुख नहीं दे रही, कि अब भारत की निंदा पूरे विश्व में होगी।
इस बात का मैं साक्षी हूं कि रात 10.45 पर सुबोध कांत सहाय ने ये कहा था कि हमने अपनी मांग लीखित बाबा के पास भेज दी हैं। और दो घंटे बाद रामलीला मैदान पर पुलिस हमला कर चुकी थी।
पीएम के रूप में मनमोहन सिंह सबसे ज्यादा मजबूर दिखाई देते हैं। ये सिर्फ मेरी राय नहीं है कि वो अब तक सभी पीएम में सबसे कमजोर हैं। घोटालें हों या करप्शन सब में वो मजबूर हैं। ओसामा जी कहने वाले दिग्विजय सिंह की जुबान चुप कराने में भी शायद वो मजबूर हैं। रात के इस पूरे प्रकरण को दमन चक्र ही कहा जाएगा पीएम साहब। उस प्रेमलता से पूछो जिसको आपकी मजबूरी ने बिस्तर पर मजबूर बना दिया।
आपका अपना
नीतीश राज
इसका जवाब तो है मेरे पास!
ReplyDeleteदेखिए न!
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तन से हिन्दुस्तानी हूँ, लेकिन मन गोरा मम्मी जी!
इसीलिए तो उछल रहा है, चप्पल-जूता मम्मी जी!!
अपनी सभ्य-सुसंस्कृत भाषा, नहीं बोल मैं पाता हूँ
अंग्रेजों की जूठन को तो, बहुत चाव से खाता हूँ,
आँख मूँदकर, तोता बनकर रटता जाता मम्मी जी!
इसीलिए तो उछल रहा है, चप्पल-जूता मम्मी जी!!
http://uchcharan.blogspot.com/2011/06/blog-post_07.html
the mazboorest.
ReplyDeleteEverything is very open and very clear explanation of issues. It contains truly information. Your website is very useful.
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