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Saturday, May 2, 2009

जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा, समझे वरुण

5 मार्च को पीलीभीत में वरुण गांधी ने एक ऐसा भाषण दिया था जिसने उन्हें एक बार में ही पहचान दिला दी। वर्ना संजय गांधी के नाम की छाप और फिर मेनका गांधी की छाया वरुण के नाम पर हमेशा हावी रही। वरुण गांधी के बारे में पिछले पांच साल में तो कोई किस्सा या कोई भी खबर सुनी नहीं गई थी। वहीं यदि गौर करें तो राहुल गांधी पूरे पांच साल के दौरान कई बार सुर्खियों में आए। उसके पीछे सत्ता में होना भी माना जा सकता है। पर फिर भी बीजेपी ने राहुल के तोड़ के रूप में वरुण को ही चुना। दोनों एक ही परिवार से, दोनों में एक जैसा जोश। पर यहां पर ये जोश थोड़ा अलग, एक में जोश थोड़ा ठहराव लेकर और दूसरे का जोश थोड़ा उबाल लेकर। बीजेपी ने इस उबाल को पहचाना और वरुण को खड़ा करने की कोशिश की राहुल के खिलाफ।

पर उस वक्त बीजेपी और वरुण दोनों धड़ाम से गिर पड़े जब पीलीभीत में ही एक सभा के दौरान कुछ अन्य नेताओं के साथ वरुण का मंच गिर पड़ा। जो जहां था वहीं सहम कर रह गया। कुछ देर तक तो लोगों को ये समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? पर वरुण को समझते देर नहीं लगी। जमीन पर पैर लगते ही जेल से लौटने वाले वरुण नाम के इस नेता को ये एहसास हो गया कि वो मंच से गिर पड़ा हैं। वरुण ने तुरंत अपने को संभाला और फिर चढ़ गया मंच के उस हिस्से पर जो अभी दुर्रुसत था। साथ के लोगों को और फिर जनता को भी संभाल लिया। कुछ भी हो मार्च से मई तक के उतार चढ़ाव, जेल, कोर्ट ने वरुण को नेता बना दिया।

क्या कहेंगे इसको किस्मत। जिस जगह ने उसे सराखों पर बैठाया उसी जगह पर वरुण धड़ाम से गिर पड़े। वरुण ने भी कभी सोचा नहीं था पर ये हुआ और शायद ये एहसास भी हुआ हो कि जो जैसा बोता है वैसा ही काटता भी है, चाहे आज या फिर कल।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”