
आप एक पान बनवाने जाएं और सौ फीसदी गारंटी के साथ ऑफिस की खुफिया से खुफिया जानकारी लेकर वापस ऑफिस में लौट आएं। हम ऑफिस में काम करते हैं जो बात हमें नहीं पता होती वो उनको पता चल होती है। ऑफिस की जो जानकारी आप के पास नहीं हो वो आप उनसे जा कर ले लीजिए और फिर वो ही नमक मिर्ची बनकर ऑफिस के गलियारे में घूमती फिरती हैं। आप को जानना है कि कौन लड़की कब जाती है, किसके साथ जाती है कहां जाती है या किसके साथ कुछ चक्कर चल रहा है। तो जवाब बिना किसी लाग लपेट के हाजिर है जैसे कि एक पान का बीड़ा दे रहे हों। मर्द हो या लड़की फैशनेबल है या नहीं सब पंडित जी की आंखों में चमकते रहते हैं। इस साल किस के साथ ऑफिस में क्या खेल होने वाला है उस तरह की जानकारी के साथ पंडित जी हमेशा हाजिर रहते हैं। आपको पता हो ना हो कि फलां के साथ फलां ने क्या कर दिया लेकिन उनको पता होगा। कौन आज लिफ्ट में किस से टकरा गया। हर किस्म का और हर तरह का मसाला उनके पास होता है। अरे, आप उस लड़की की बात तो नहीं कर रहे जिसका इंजन हमेशा ही चालू रहता है। पंडित जी मतलब? अरे! वही जो खूब सिगरेट पीती हैं।
कई लड़कियों के नाम तो उन्होंने सिगरट के ब्रांड के नाम पर रख रखे हैं। वो विल्स वाली, नेवीकट वाली, मालबोरो वाली, गोल्ड फ्लेक वाली ये तो हुई सिगरेट वालियों के नाम। कोई चपरासी यदि किसी मैडम के लिए सिगरेट या फिर पान लेने आया और आप वहीं खड़े हैं तो बस फिर तो उन मैडम की पूरी हिस्ट्री सुन लीजिए हमारे पंडित जी के मुंह से। कब देखा, कहां देखा, क्या देखा, साथ में कौन था वगैरा-वगैरा।
पानवालियों के नाम भी उन्होंने रख रखे हैं। वो जो 120 नंबर का पान खाती हैं, या 300 नंबर वाली, अरे जिनके पान में यदि चूना थोड़ा भी ज्यादा लग जाए तो बाप रे, क़हर बरपा देती हैं। अरे, वो 300 नंबर पान खाने वाली को क्या होगया है। कई दिनों से देख रहा हूं कि सुबह आ जाती हैं और देर रात तक ऑफिस में रहती हैं। साथ में अब तो क्लासिक की दो -दो डिब्बी खींच जाती हैं। आखिर क्या माजरा हैं? अब इन्हें क्या बताए की आप अपनी दुकान के मालिक हैं जब चाहेंगे, दुकान बंद करेंगे, चल देंगे, कोई भी पूछने वाला नहीं। लेकिन नौकरी करने वाले को ये आज़ादी कहां? नौकरी करते हैं अपनी दुकान तो है नहीं। वैसे जब भी उनकी तरफ से सवाल उछला जाता है तो वहां खड़े लोगों में से कोई भी बात का जवाब देना पसंद नहीं करता। सभी जानते हैं कुछ भी बोलोगे तो बात यहीं पर खत्म नहीं होगी वो तो फिर पूरे ऑफिस में घूमेगी। और एक बार बात निकली तो दूर तलक जाएगी। फिर बात की खिचड़ी बनने में कितनी देर लगती है?
पंडित जी सब जानते हैं, वो ये भी जानते हैं कि आप की उन महाशय से लगती है और वो इस बात का बतंगड़ बनाने से भी नहीं चूकते। आप एक चुटकी (सुपाड़ी का एक ब्रांड) लेने पहुंचिए तो आप के साथ चुटकी लेने से भी वो नहीं चूकेंगे। उनको दूसरे की वॉट लगाने में जरा भी झिझक नहीं होती। यदि उनकी आप से ठन गई है तो फिर प्यार से बातों में खूब गुलुकंद और चटनी मिलाकर के आप के विरोधी की तारीफ करेंगे।
एक हथियार से दो वार करते हैं। एक तो आप सिगरेट से कलेजा जलाइए और फिर उनकी बातें आप को जलाएंगी।

मुझे तो हमेशा कहते हैं कि, 'यार, जब भी तुम्हें देखता हूं तो बड़ा शुकून मिलता है'।
मैं पूछता हूं 'क्यों'?
तो जवाब 5-10 मिनट बाद देते हैं। जब कि उन्हें एक-दो बार टोक नहीं दिया जाए। अरे भई, जवाब तो सुनना ही है।
पान का बीड़ा हाथ में देते हुए बोले, 'तुम मुझसे भी ज्यादा परेशान दिखते हो, बड़ा ही शुकून मिलता है, देखने से लगता है कि भगवान ने मुझसे भी ज्यादा किसी की ले रखी है।'
क्या बात कर रहे हैं। जी में आता है कि कहूं, क्या मेरे चेहरे पर लिखा है कि में 'वो' हूं। अरे, जड़ भी तो आप ही हैं। 15-20 मिनट में निगोड़ा एक पान लगाते हैं, और बात बनाते हैं वो ही पुरानी। ऑफिस की 5 दिन की पुरानी बासी खबरें देते हो, उसका फॉलोअप भी नहीं रखते। शर्म भी नहीं आती। पंडित जी, अब सब बासी होगया है। आप का खूफिया तंत्र किसी काम का नहीं रहा। अगली बार जब आऊं और आप के पास कोईं ताजा खबर नहीं हो तो दो मिनट में पान दे दीजिएगा।
आपका अपना
नीतीश राज