बहुत सोचने के बाद तकरीबन दो दिन सोचने के बाद मैंने ये फैसला किया कि इस बात को सब के साथ शेयर करूं।
हमारे देश की किस्मत ही है कि यहां रहने वाले ही उसकी पीठ में खंजर भोंकते हैं। ये हमारे देश में रहने वाले कुछ लोगों की फितरत है कि जिस थाली में खाते हैं वो उसी थाली में छेद करते हैं।
याद आता है कुछ साल पहले तक जब भारत-पाकिस्तान का मैच हुआ करता था तो सड़कें खाली हो जाया करती थीं। लोग घरों में टीवी, रेडियो से चिपककर बैठ जाया करते थे कि भारत-पाक का मैच आ रहा है। सब दिल, जज्बे और ना जाने क्या-क्या दांव पर लगा देते थे। पर इमरान खान की टीम कपिल देव और सुनील गावस्कर की टीम पर अधिकतर भारी पड़ती थी। हमारी हार होती थी तो लोगों के घरों में खाना नहीं बनता था, टीवी फोड़ दिए जाते थे, कुछ को दिल का दौरा पड़ जाया करता था, कोई खुदकुशी कर लेता था। ये सारी घटनाएं तो मैंने देखी और सुनी हैं।
याद आता है कि जब भारत की हार होती थी तो दूर-दूर तक सन्नाटा छा जाता था। कॉलोनियां-बस्तियां-गांव सब चुप हो जाते थे। पर तब भी कुछ जगह पर कुछ ऐसे लोग होते थे जिनके कदम से हर एक भारतीय आगबबूला हो जाता था।
यहां भारत हारी और कुछ इलाकों से जहां पर भी उनकी बहुलता होती थी वहां से पटाखे फोड़ने की आवाज़ें आती थी। जीत को मनाने और सब को बताने का साधन पटाखों से बेहतर कुछ नहीं होता। पर ये क्या भारत में रहकर भी कुछ लोग हैं जो कि पाकिस्तान की तरफ हैं और भारत की हार पर जश्न मना रहे हैं।
26 को भारत-पाक का मैच हुआ। मैच को पाकिस्तान की तरफ से जंग की तरह ही खेला गया और जिस बात का दावा पाक टीम के कप्तान ने किया वो कर भी दिया। अपनी गलती हो या फिर जज्बे की कमी हो जो भी मानें पर हम हार गए। मैदान में किसी एक टीम की हार और जीत तो होगी ही। कभी हम कभी वो ये सिलसिला तो बदस्तूर चलता ही रहेगा। 26 को जब भारत पाक से मैच हारा तो हमारे घर के पास ही कुछ लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े और अपनी खुशी का इजहार किया। जिससे मैं हैरान-परेशान हूं।
क्या हर एक भारतीय को उस पाकिस्तानी की ललकार का जवाब देने के लिए नहीं खड़ा होना चाहिए। यदि मुट्ठी में कोई भी उंगली कम बंद हो तो वो मुट्ठी मजबूत नहीं रह जाती। वैसे ही गर एक भी भारतीय पाकिस्तानियों की तरह सोचता है तो मुट्ठी बंध ही नहीं पाएगी। और अगर कोई सोचता है तो बेहतर है कि वो भारत को घुन की तरह ना खाए जाकर पाकिस्तान में ही बसे ’अपने भाइयों के बीच’।
हर बार मुस्लिम होने पर परीक्षा क्यों देनी होगी? बहुत लोग ये सवाल पूछते हैं। हम तो कभी उनको पराया नहीं समझते, हम हर उस शख्स को पराया समझते हैं जो कि हमारे देश के खिलाफ हो फिर चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, अंग्रेज हो, ईसाई हो, सिख हो। क्यों कुछ लोग ऐसे हैं जो कि भारत की हार पर खुश होते हैं? तो उन खुश होने वाले लोगों पर तो प्रश्नचिन्ह बिल्कुल जायज है।
ऐसे लोग मेरे देश मे गर हैं तो बेहतर है कि वो निकल जाएं और गर नहीं जा सकते तो बेहतरी इसी में है कि दशहरे के मौके पर रावण के साथ अपने दुर्भाव जला दें। यदि नहीं जला सकते तो रावण के साथ खुद जल जाएं। क्योंकि कोई भी भारतीय भारत की हार पर पटाखे बर्दाश्त नहीं कर सकता।
आपका अपना
नीतीश राज