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Saturday, September 5, 2009

बेगम और बेटे ने मिलकर मेरे इस ‘खास’ दिन को बेहद ‘खास’ बना दिया।

रात के बारह बजने वाले थे घर में हम सब बैठे हुए थे। मैं कंप्यूटर पर आर्टिकल लिखने में मशगूल था। बेगम बेटे के साथ पढ़ने में लगीं हुई थी। मैं बार-बार बेटे से कह रहा था कि सो जाओ कल सुबह स्कूल जाना है। पर दूसरे दिनों की तरह आज पता नहीं क्यों बेटा सोने की बात पर खुश नहीं हो रहा था।


पापा सो जाऊंगा पहले ये पेंटिंग पूरी तो कर लूं

अरे कल पूरी कर लेना फिर सुबह स्कूल जाने के लिए उठने में ना नुकुर करते हो।

ठीक है, ये पेंटिंग पूरी कर लूं फिर सो जाऊंगा।

वहीं बेगम की किताब भी आज बंद होने का नाम नहीं ले रही थी। वहीं मैं अपने काम में फिर से लग गया।


ठीक बारह बजे बेटे ने अपने हाथों से बना ग्रीटिंग कार्ड मुझे दिया और मुझे विश रके याद दिलाया की आज मेरा जन्मदिन है। मेरी आंखें आश्चर्य में खुल गई कि आंखों में नींद छुपाए बेटा इस इंतजार में था कि कब बारह बजें और वो मुझे अपने हाथों से गिफ्ट दे सके। मैंने उसे गले लगा लिया उस ग्रीटिंग कार्ड पर क्या बना हुआ था और क्या लिखा हुआ था वो आप चित्रों में देख सकते हैं।



ये कलाकारी मेरे बेटे की है। इस बार नवरात्र के पहले दिन वो पांच साल का पूरा हो जाएगा। वहीं दूसरी तरफ मेरी बेगम मुग्ध-मुग्ध मुस्कुरा रहीं थीं। उन्होंने भी मुझे विश किया और फिर मैंने कंप्यूटर बंद किया और बेटा मेरे गल लगकर सो गया।


सुबह उठा तो पाया की बीच-बीच में मोबाइल बज रहा है और कुछ संदेश रात के भी थे तो अपने मित्रों की बधाई का जवाब देने लग गया। फिर फोन कॉल्स का सिलसिला शुरू हो गया। माताजी-पिताजी-भैयाजी सब से बात करने के बाद मैं सुबह के कामों को निपटा कर पूजा-पाठ किया।

मुझे सुबह क्या रात से ही लग रहा था कि आज मेरा स्पेशल दिन है। बेगम और बेटा दोनों मेरे को ये एहसास कराने में लगे हुए थे कि आज मेरा जन्मदिन है। स्कूल से आते के साथ ही बेटा जितना बार मुझे मिलता तो सिर्फ एक बात कहता पापा हैप्पी बर्थ डे


अब सरप्राइज देने की बारी बेगम की थी। जैसा कि उन्हें पता है कि बच्पन में शायद मैं चार-पांच साल का था तो किसी ने कुछ कह दिया था तो फिर पापाजी कभी केक लेकर नहीं आए। तो इस बार बेगम की तरफ से ये थी भेंट।

फिर एक शर्ट जैसी कि कभी कॉलेज टाइम में मैं पहना करता था। अंदर राउंड नैक टी-शर्ट और फिर नीचे के दो-तीन बटन लगी कॉटन की शर्ट। दोपहर को मेरा मनपसंदीदा खाना उसी तर्ज पर जिस तरह मुझे पसंद है (अब भी मुंह में पानी आ रहा है, पेट भरा हुआ है पर.....।) फिर शाम को एक चैक शर्ट दी जिस तरह की शर्ट मैं काफी दिन से सोच रहा था लेने की। इतने सरप्राइज बहुत बढ़िया, सुभानअल्लाह।

मैं इतने सरप्राइज पाकर अपने आपको किसी वीवीआईपी से कम नहीं समझ रहा था। बेगम ने अपना काम कर दिया था। मैं चने के झाड़ में चढ़ चुका था। मैंने बोला अब शाम का डिनर तुम दोनों को मैं कराऊंगा। डिनर से ज्यादा तो जो डिनर के पहले और बाद में मंगाया जाता है उसके कारण जेब ज्यादा ढीली होती है। ऐसे मौकों पर यूं जाना जरा अच्छा लगता है.....

अंत में चलते-चलते प्रीती जी (मेरा सागर) को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मुझे इस खास मौके पर इतनी अच्छी कविता भेंट की। मैंने तो सोचा ही नहीं था कि कोई भी ब्लॉग में मेरे जन्मदिन को यूं मना सकता है। साथ ही बी एस पाबला जी को भी धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मेरे इस खास दिन को मेरे लिए इतना अहम बना दिया और मैंने इस बार काफी ब्लॉगर दोस्तों से बधाई पाई। आप सब का एक बार फिर से धन्यवाद कहना चाहूंगा।


आपका अपना

नीतीश राज

Wednesday, August 6, 2008

मां की बेटे से फरियाद घर आजा, बेटा बोला, 'बापू की सेवा में हूं...नहीं आऊंगा'

एक मां का दर्द है उसका ही अपना बेटा। 14 साल से बेटे का मुंह नहीं देखा है मां ने। 14 साल से है इंतजार अपने बेटे का। मां का आरोप है कि आसाराम बापू ने उसके बेटे को कैद कर रखा है। मां कहती है कि उसके बेटे को बहला फुसला कर आसाराम बापू ने अहमदाबाद में रखा हुआ है। वो मां चाहती है कि उसका बेटा घर आजाए। लेकिन चाहने और असलियत में बहुत अंतर होता है।
उस मां का लड़का अजय शर्मा, नहीं मिलना चाहता अपनी मां से। वो तो अपनी मां को मां से भी नहीं पुकारता, लेता है तो सिर्फ उनका नाम। एक मां का दर्द बढ़ जाता है जब उसके जिगर का टुकड़ा उसे मां कहकर नहीं पुकारता। अजय तो बापू की धुन में धुनी रमाए बैठा है। वो कहता है कि मैं यहां खुश हूं और जब मेरी मां के पास एक और बेटा है ही, तो मुझे क्यों बुलातीं है। ये जवाब है उस बेटे का जिसे की पढ़ा लिखा कर उस मां ने चार्टड एकाउंटेंट बनाया। पति का साया तो 20 साल पहले ही साथ छोड़कर चला गया था आज बेटा भी जुदा-जुदा होगया है। मां पुकार-पुकार के कहती है मेरा बेटा मुझे लौटा दो। लेकिन बेटा बालिग है। ये भी कोई साबित नहीं कर सकता कि बेटे का दिमाग चला हुआ है। तो कानून की तरफ से कोई मदद नहीं हो मिल सकती।
जो बेटा 25 साल तक अपनी मां का मां मानता रहा आज ऐसा क्या होगया है कि वो मां को मां कहने को तैयार नहीं। 14 साल का समय बहुत होता है। क्या आसाराम बापू उसे ये ही शिक्षा दे रहे हैं कि दुनिया की मोह माया छोड़कर मेरे पास रहो और अपनी बूढ़ी मां को छोड़ दो। मां तो मोह-माया नहीं होती। क्या आसाराम बापू उसे नहीं समझा सकते कि जाओ अपने घर जाओ, मां की सेवा करो। बेटा कहता है कि उसे करनी है गुरू की सेवा। क्या ये लड़ाई मां की ममता और एक गुरु की आस्था की है?
मां अपने बेटे को पाने के लिए दर दर की ठोकरें खाती रहती है। कई बार अहमदाबाद और सूरत के चक्कर काटे लेकिन हर बार वो नाकाम ही रही।
हर बार मां असफल रही। आस्था और ममता की इस लड़ाई में हमेशा ही आस्था का पलड़ा भारी रहा। लेकिन क्या करे वो मां जिसका जवान बेटा उसे छोड़ किसी जंग के मैदान में नहीं है, एक संत के दर पर आस्था में डूबा हुआ है। सब को अपनी जिंदगी जीने का हक है अपनी तरह से, जैसे जी में आए वैसे जिंदगी जिए। लेकिन ये तो ना भूले कि उसके कुछ फर्ज हैं और दूसरों के उससे जुड़े कुछ हक जिन्हें कि उसको पूरा करना है। क्या आसाराम बापू के प्रवचनों उस बेटे को कुछ शिक्षा नहीं देते। खुद आसाराम बापू माता-पिता की सेवा का उपदेश देते रहते हैं क्या इस शिक्षा से उस बेअकल को अकल नहीं आरही है। यदि नहीं आ रही है तो आसाराम बापू को ये कदम उठाना चाहिए कि उसे घर का रास्ता दिखाएं और यदि नहीं तो फिर उसे अपने आश्रम से निकाल दें। यदि वो ऐसा नहीं करते हैं तो सवालों के घेरे में आसाराम बापू खुद हैं। (वैसे भी उनके बेटे नारायणस्वामी पर 7 साल तक आश्रम में रहे पूर्व कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि वो तंत्र साधना करता है। लेकिन ये तो जांच का विष्य है पर आश्रम पर शक गहराता जा रहा है।)

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”