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Friday, January 1, 2010

नव वर्ष मुबारक हो, नए साल पर वापसी


29 सितंबर के बाद से कुछ यूं व्यस्त हुआ कि ब्लॉग पर तब से वापसी संभव ही नहीं हो सकी। काफी दिन से सोच रहा था कि कुछ लिखूं पर लिख नहीं पा रहा था, ना जाने क्यों? सोचता था कि काफी बातें हैं जहन में जिनका वक्ता आ चुका है बिखर कर छप जाने का। तो, चलो वापसी की जाए और फिर से ये संवाद शुरू किया जाए।

आज के दिन से बेहतर और कोई दिन वापसी के लिए लगा नहीं या यूं कहूं कि हो नहीं सका। तो, नए साल के अवसर पर ब्लॉगजगत में वापसी कर रहा हूं। पूरे तीन महीने एक दिन के अंतराल के बाद। ठहर क्यों गया था वहां पर या क्यों नहीं लिखा, कुछ इस बारे में ठीक से नहीं कह सकता। व्यस्त था पर कुछ और भी था मन में जो रोकता रहा हाथों को, ये जानता हूं मैं। अब वक्त है जाते हुए साल के साथ-साथ पुरानी बातों को छोड़कर नए साल के साथ कदम से कदम मिलाया जाए। ये ही बेहतर है और ये ही मैं कर रहा हूं।

नव वर्ष के मौके पर सभी को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई।

आपका अपना
नीतीश राज 






Monday, September 28, 2009

ब्लॉगवाणी बंद नहीं हो सकता!


ब्लॉगवाणी बंद होगया। सुनो ब्लॉगवाणी बंद होगया।
नहीं...नहीं ये नहीं हो सकता।
नहीं, ये हो गया है देखो ये पूरा एक पन्ने का लव लैटर। जिसमें पसंद को लेकर बवाल की बात कही गई है। उस कारण से ये बंद किया गया है।

बेगम के ये कहने की देर थी कि तुरंत उठकर पूरा पन्ना एक सांस में पढ़ दिया। विश्वास ही नहीं हुआ कि हिंदी ब्लॉग का एग्रीगेटर ब्लॉगवाणी बंद होगया। क्या ये बंद हो सकता है? और क्या सिर्फ पसंद के कारण ही ऐसा किया गया है? क्या हिंदी ब्लॉग को इतनी जल्दी नजर लग जाएगी?

ब्लॉगवाणी के अनुसार कि
.....अब ब्लागवाणी को पीछे छोड़कर आगे जाने का समय आ गया है।
विदा दीजिये ब्लागवाणी को, टीम ब्लागवाणी


मैथिली जी,
मैं जब चाहता था तब आप से बात कर लेता था। जब भी कुछ दिक्कत हुई तो सीधे फोन उठाया और घुमा दिया। काफी दिन बाद किया तो अपने ब्लॉग का हवाला दिया और आपने फट से पहचान लिया। यदि कभी हेडर में कुछ गलती हो जाती थी तो आप खुद ठीक कर के बता देते थे। इसका मतलब कि आप हमारा ख्याल रखते थे। अब वो कौन रखेगा?

माना कि दुकान आपकी है। आप जब चाहें बंद कर दें और जब चाहें खोल दें। भई सिस्टम अपग्रेड करना है तो ये तो काम चलते-चलते भी हो जाएगा। इसके लिए अलविदा कहने की क्या जरूरत?

उस दुकान पर जिसके मालिक आप लोग हैं उस पर हम ब्लॉगर भाइयों का छटाक भर अधिकार तो बनता ही है। इसलिए एक इल्तजा है कि इसे चालू रखें और धीरे-धीरे अपने सिस्टम को अपग्रेड करने की जरूरत आपको महसूस होती है तो करते रहें।

यूं चंद सवालों के खड़े होजाने पर पीछे ना हटें। ये आपकी नहीं हिंदी ब्लॉग जगत और ब्लॉगवाणी की हार होगी। एग्रीगेटर को बंद करना कोई हल नहीं हुआ। और वो भी उस दिन जिस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। नहीं...आपको बदलना होगा अपना फैसला।


आपका ब्लॉगर दोस्त और शुभचिंतक,
नीतीश राज।

ब्लॉगवाणी की पूरी टीम और सभी ब्लॉग भाइयों को--

हेप्पी दशहरा।।

Saturday, September 5, 2009

बेगम और बेटे ने मिलकर मेरे इस ‘खास’ दिन को बेहद ‘खास’ बना दिया।

रात के बारह बजने वाले थे घर में हम सब बैठे हुए थे। मैं कंप्यूटर पर आर्टिकल लिखने में मशगूल था। बेगम बेटे के साथ पढ़ने में लगीं हुई थी। मैं बार-बार बेटे से कह रहा था कि सो जाओ कल सुबह स्कूल जाना है। पर दूसरे दिनों की तरह आज पता नहीं क्यों बेटा सोने की बात पर खुश नहीं हो रहा था।


पापा सो जाऊंगा पहले ये पेंटिंग पूरी तो कर लूं

अरे कल पूरी कर लेना फिर सुबह स्कूल जाने के लिए उठने में ना नुकुर करते हो।

ठीक है, ये पेंटिंग पूरी कर लूं फिर सो जाऊंगा।

वहीं बेगम की किताब भी आज बंद होने का नाम नहीं ले रही थी। वहीं मैं अपने काम में फिर से लग गया।


ठीक बारह बजे बेटे ने अपने हाथों से बना ग्रीटिंग कार्ड मुझे दिया और मुझे विश रके याद दिलाया की आज मेरा जन्मदिन है। मेरी आंखें आश्चर्य में खुल गई कि आंखों में नींद छुपाए बेटा इस इंतजार में था कि कब बारह बजें और वो मुझे अपने हाथों से गिफ्ट दे सके। मैंने उसे गले लगा लिया उस ग्रीटिंग कार्ड पर क्या बना हुआ था और क्या लिखा हुआ था वो आप चित्रों में देख सकते हैं।



ये कलाकारी मेरे बेटे की है। इस बार नवरात्र के पहले दिन वो पांच साल का पूरा हो जाएगा। वहीं दूसरी तरफ मेरी बेगम मुग्ध-मुग्ध मुस्कुरा रहीं थीं। उन्होंने भी मुझे विश किया और फिर मैंने कंप्यूटर बंद किया और बेटा मेरे गल लगकर सो गया।


सुबह उठा तो पाया की बीच-बीच में मोबाइल बज रहा है और कुछ संदेश रात के भी थे तो अपने मित्रों की बधाई का जवाब देने लग गया। फिर फोन कॉल्स का सिलसिला शुरू हो गया। माताजी-पिताजी-भैयाजी सब से बात करने के बाद मैं सुबह के कामों को निपटा कर पूजा-पाठ किया।

मुझे सुबह क्या रात से ही लग रहा था कि आज मेरा स्पेशल दिन है। बेगम और बेटा दोनों मेरे को ये एहसास कराने में लगे हुए थे कि आज मेरा जन्मदिन है। स्कूल से आते के साथ ही बेटा जितना बार मुझे मिलता तो सिर्फ एक बात कहता पापा हैप्पी बर्थ डे


अब सरप्राइज देने की बारी बेगम की थी। जैसा कि उन्हें पता है कि बच्पन में शायद मैं चार-पांच साल का था तो किसी ने कुछ कह दिया था तो फिर पापाजी कभी केक लेकर नहीं आए। तो इस बार बेगम की तरफ से ये थी भेंट।

फिर एक शर्ट जैसी कि कभी कॉलेज टाइम में मैं पहना करता था। अंदर राउंड नैक टी-शर्ट और फिर नीचे के दो-तीन बटन लगी कॉटन की शर्ट। दोपहर को मेरा मनपसंदीदा खाना उसी तर्ज पर जिस तरह मुझे पसंद है (अब भी मुंह में पानी आ रहा है, पेट भरा हुआ है पर.....।) फिर शाम को एक चैक शर्ट दी जिस तरह की शर्ट मैं काफी दिन से सोच रहा था लेने की। इतने सरप्राइज बहुत बढ़िया, सुभानअल्लाह।

मैं इतने सरप्राइज पाकर अपने आपको किसी वीवीआईपी से कम नहीं समझ रहा था। बेगम ने अपना काम कर दिया था। मैं चने के झाड़ में चढ़ चुका था। मैंने बोला अब शाम का डिनर तुम दोनों को मैं कराऊंगा। डिनर से ज्यादा तो जो डिनर के पहले और बाद में मंगाया जाता है उसके कारण जेब ज्यादा ढीली होती है। ऐसे मौकों पर यूं जाना जरा अच्छा लगता है.....

अंत में चलते-चलते प्रीती जी (मेरा सागर) को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मुझे इस खास मौके पर इतनी अच्छी कविता भेंट की। मैंने तो सोचा ही नहीं था कि कोई भी ब्लॉग में मेरे जन्मदिन को यूं मना सकता है। साथ ही बी एस पाबला जी को भी धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने मेरे इस खास दिन को मेरे लिए इतना अहम बना दिया और मैंने इस बार काफी ब्लॉगर दोस्तों से बधाई पाई। आप सब का एक बार फिर से धन्यवाद कहना चाहूंगा।


आपका अपना

नीतीश राज

Friday, July 17, 2009

साहित्य की तरफ एक कदम है ब्लॉग।

हाल फिलहाल में कई बार इस पर चर्चा होती आई है कि ब्लॉग आखिर है क्या? अपनी बात कहने का एक मंच, अपनी बात को अपने अंदाज में रखने का एक मंच मतलब अपने अनुभव या फिर अपनी निजी डायरी। अपनी कुंठा निकालने का एक मंच या उन लोगों की एक संगठित जगह जिन्हें लिखने की अभिलाषा है पर कहीं लिख नहीं पाते तो यहां पर हाथ साफ करते हैं या फिर ये एक ऐसा मंच है जो कि हमें साहित्य की तरफ ले जाने का एक जरिया बन रहा है। अभी ये पढ़ने को मिला कि कुछ चुनिंदा लोग तो इसे किसी भी तरह का मंच नहीं मानते। वो कहते हैं कि ये ना तो साहित्यिक मंच है और ना ही निजी डायरी। पर हां, इसके विपरीत अधिकतर लोग ये मानते हैं कि ये एक मंच जरूर है। जहां तक खुद की बात करूं तो मैंने यहां पर ऐसे-ऐसे आर्टिकल पढ़े जो कि बाहर की दुनिया की किताबों में भी नहीं पढ़े। तो आखिर ये ब्लॉग है क्या?

बात कहने का एक मंच या फिर अपने अंदाज को रखने का एक मंच मतलब अनुभव


ब्लॉग लिखने वालों में कई ऐसे हैं जो कि इसे अखबार कि तरह मानते हैं। जो ब्लॉग पर नियमित हैं और हर प्रकार की ख़बरों को अपने ब्लॉग पर छापते हैं और साथ ही उनका विश्लेषण भी करते हैं। कई इसे सिर्फ अपनी बात को कहने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। याने की अपनी बात बस कह दी और कुछ नहीं।

कई हैं अपने अनुभवों को दूसरे के सामने रखते हैं अपने ही अंदाज में जो कि सबसे जुदा और सबसे अलग होता है। थोड़ा रोचक अंदाज में अपने अनुभव या फिर अपनी सोच। उन ब्लॉगर में आते हैं समीर लाल, डॉ अनुराग, शिवकुमार और ज्ञानदत्त, जितेंद्र भगत, अब अनिल कांत और भी बहुत हैं, सबका एक साथ ध्यान नहीं आ रहा।

निजी डायरी या ट्रैबल गाइड


क्या ब्लॉग एक निजी डायरी का रूप ले सकता है? यदि कोई राज भाटिया या फिर प्रीती बड़थ्वाल की वो सीरीज पढ़े तो शायद ये कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि ब्लॉग एक निजी डायरी हो सकता है। जो कि आप अपने निजी और बहुत ही संवेदनशील और पर्सनल अनुभवों को पन्ने पर उड़ेल देते हैं जो कि आप किसी को भी बता सकते हैं। साथ ही कई बार ये बात भी सामने आई कि ब्लॉग पर ये अच्छा नहीं कि आप अपनी पर्सनल बातें शेयर करें।

यहां पर ये भी कहना चाहूंगा कि मैं अमिताभ बच्चन के ब्लॉग को इसी श्रेणी में रखता हूं।

अभी तक सबसे अच्छा इस्तेमाल यदि ब्लॉग का हुआ है तो वो ट्रेबल गाइड के रूप में। लोगों को घर बैठे-बैठे उन जगहों की जानकारी मिल जाती है जहां वो जाना चाहते हैं। कई ब्लॉग ने तो पिछले दिनों इतने अच्छे ढंग से किसी जगह का ब्यौरा और जानकारी दी कि कोई भी उस जानकारियों का इस्तेमाल करके उस जगह पर जा सकता। जितेंद्र, महेंद्र और ममता (...और भी हैं) ने कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश की थी। यदि अंग्रेजी ब्लॉग की बात करें तो आप जिस जगह के बारे में सर्च करेंगे तो कई बार गूगल आपकी सर्च को ब्लॉग तक ले जाता है।

अपनी कुंठा निकालने का मंच या लिखने की अभिलाषा

मेरे एक साथी को पता चला कि मैं भी उसी की तरह ब्लॉग लिखता हूं और शायद मुझे ब्लॉग लिखने का सबसे ज्यादा दुख सिर्फ इसी बात का हुआ था कि उसे पता चला। क्यों? उसके पीछे का कारण भी है। उसने कहा था कि अपनी कुंठा को निकालने का सबसे बढ़िया जरिया यदि है तो ये ही है। साथ ही जो बात सबसे बुरी लगी वो ये थी कि उसने मुस्कुराते हुए कहा था, कि यार ये जो ब्लॉग है ना वो है अपने हाथ ज...., जब चाहो जितना चाहो करो। वो आज भी ब्लॉग लिखता है।

....या साहित्यिक मंच


काफी लोगों की तरफ से आया कि अमिताभ बच्चन का ब्लॉग साहित्य की सीमा में आता है। मैं पूछना चाहता हूं कैसे आप उसे साहित्य मान सकते हैं। सवाल के ऊपर सवाल ना दागिए जवाब दीजिए। हो सकता है कि कल वो पढ़ा जाएगा तो सिर्फ इसी कारण से आप उसे साहित्य मानेंगे।

मैं जानता हूं कि बहुत लोगों ने कुरु कुरु स्वाहा, गोली, कसप, अवारा मसीहा पढ़ी होगी, मेरे को उसी श्रेणी में कई ब्लॉगर की लेखनी लगती है। इसमें मैं लिखना चाहूंगा कि क्या किसी ने मौदगिल साहब की कविता, नीरज जी की रचनाओं को पढ़ा है। यदि पढ़ा है तो इन रचनाकारों पर कोई मेरे से प्रश्न नहीं पूछेगा। रंजना भाटिया, मीत की गजलें, प्रीती बड़थ्वाल की कविता पढ़ी हैं(चंद नाम दे रहा हूं यहां)। रंजना जी की यहीं पर कविता कि पुस्तक छपी, योगेंद्र जी तो अपने में ही नायाब हैं। क्या इनके द्वारा लिखी गई रचनाएं साहित्य की तरफ हमको नहीं लेजाती। मैं तो ये मानता हूं कि लेजाती हैं।

कल किसने देखा है पर ये एक पहल है आज जैसे हम पिछले पन्नों को पलट कर देखते हैं उसी तरह ब्लॉग के कुछ चुनिंदा पन्ने यदि ब्लॉग बचा रहता है तो जरूर देखे जाएंगे। पर अभी बड़ी कठिन है डगर पनघट की.......।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, October 8, 2008

आखिरकार टिप्पणियों के बहाने निकाली सबने दिल की भड़ास, डॉ अनुराग आपकी टिप्पणी ने हिला दिया।

अमर सिंह और उनके पागल बयानों पर जिसमें कहा गया है कि बाटला एनकाउंटर कहीं फर्जी तो नहीं है उस पर मैंने दो आर्टिकल लिखे। अमर सिंह तुम पागल हो गए हो और अमर सिंह ने बाटला हाउस वालों पर ठेला अपना दोष, कहा, मुझे तो बाटला वालों ने बरगलाया। इस पूरे मामले पर मुझे तरह-तरह की टिप्पणियां मिलीं। डॉ अनुराग ने दिल से एक टिप्पणी लिखी जो मुझे अंदर तक हिला गई। डॉ अनुराग ने कहा-
“मूर्ख थे शर्मा, जो इस देश पर शहीद हुए,रिश्वत लेते,ऐ.सी गाड़ी में घुमते ओर अपने बच्चो को डोनेशन देकर अच्छे कालेजो में भेजते....लेकिन उन्हें शहीद होने का शौक था वो भी ऐसे देश में जहाँ शाहदत पर सवाल वो उठाते है जिनका अपना कोई चरित्र नही है .तो क्या कल इस देश में भगत सिंह को सिख ,बोस को बंगाली का अश्फुल्लाह खान को मुसलमान बाँट लेगे ?क्या गांधी ओर आजाद पूरे देश के शहीद नही थे ? क्या वास्तव में इस देश में नैतिक तौर पर इतना दिवालिया- पन आ गया है? क्या कारण है कि एक हम इतने असवेदंशील हो गये है ?क्या इस देश में अब राज ठाकरे ,अमर सिंह जैसे लोग कुछ भी बोलेगे ओर हम अनसुना कर देगे ?क्या अपने देश से प्यार भी अब अपराध है ?क्या अब लगता है आपको कोई पुलिस वाला हम आपके लिए लड़ने को तैयार होगा ?कम से कम ईमानदार लोगो को तो इस देश में चैन से मरने दो अगर जीने नही दे सकते ! मैं शर्मसार हूं की मैं इस देश में पैदा हुआ जहां शहीदों की वक़्त नहीं है .....”
अब इस टिप्पणी को पढ़ कर कोई क्यों और कैसे ना अचकचा जाए। मैंने जवाब दिया-
“डॉ अनुराग जी आपने बहुत बड़ी बात कही है। इससे बुरा और क्या हो सकता है कि हमें इस देश में जन्म लेने पर ही शर्म आने लगे। सॉरी अनुराग जी। एक बात लेकिन कहना चाहूंगा कि ये मेरा और आप का देश है और इसमें वो लोग भी हैं जो अपने शहीद बेटे पर आंच आने पर उस नेता का चेक वापस भी कर देते हैं”।
सिर्फ एक बात जो नहीं लिख पाया था वो यहां पर लिख रहा हूं। और इसलिए ये आर्टिकल लिख भी रहा हूं कि मैं ये कबूल करता हूं कि इतना सब सोच कर तो मैंने भी नहीं लिखी थी पोस्ट, जितना कि डॉ साहब ने दिल पर लेकर के पढ़ी। फिर भी आपको या किसी को भी शर्मसार होना पड़े इन वाक्यों या तथ्यों से तो सच लानत हम पर ही है उन नेताओं पर नहीं जो कि अनाप-शनाप बक करके अपना उल्लू सीधा करते हैं और फिर भी हम इनकी राजनीति में आकर के इनको वोट देकर फिर उसी जगह पहुंचा देते हैं जहां से फिर ये गेम खेलने के काबिल होजाते हैं। जागो इंडिया जागो।
मैं आभारी हूं सभी टिप्पणीकारों का और सोचता हूं कि कुछ लोग और भी हैं जो कि इस देश के बारे में सोचते हैं, शायद इस दौड़ में बहुत हैं। कुछ टिप्पणी यहां पर सभी के साथ बांटना चाहता हूं, दूसरे अन्यथा ना लें।
नीरज गोस्वामी भी डॉ अनुराग की ही तरह सोचते हैं-क्या कहें इसे? देश का दुर्भाग्य जो हमें ऐसे नेता मिले हैं जिन्हें हर अवसर पर सिर्फ़ अपनी रोटी सेकनी की फ़िक्र रहती है।
जब भी ऐसे आर्टिकल लिखो तो बेनामी टिप्पणी आती ही हैं तो इस बार भी आईं और ताऊ रामपुरिया ने इनका जवाब भी दिया। एक बार नहीं कई बार।
@ anonymous :- महाराज आपको ज्ञान ही लेना है तो ज़रा सामने आकर अपनी बात स्पष्ट करिए। यहाँ अमरसिंघ से किसी का निजी लेन देन बाक़ी नही है। अगर सार्वजनिक जीवन के यही मूल्य हैं तो फ़िर क्या कहने? क्या हम यही उम्मीद करे की ये ही हमारे भाग्य विधाता बनेगे? भले गठजोड़ किसी के साथ भी बने। ताऊ फिर गरजे-- @ Anonymous भाई ज्ञान हम नही बघार रहे हैं।शायद ये कोशीश दबे छुपे आप कर रहे हैं, हम तो सब अपनी पहचान के साथ मौजूद हैं। हमारे एक साथी चिठ्ठाकार ने एक बात कही और हम उनसे सहमत हैं तो सहमति जता रहे हैं और कई बार सहमत नही भी होते तो असहमति भी जताते हैं।पर पहचान तो नही छुपाते।ये तो विचारों की सहमति या असहमति का मंच है। आपको असहमति है तो बिल्कुल होना चाहिए।आप कायदे से आइये और अपनी बात रखिये। हो सकता है आप की बात में वजन हो तो आपसे भी सहमति बन सकती है। इस तरह से कमेन्ट करने में आपकी बात का वजन नही पडेगा ! और यकीन मानिए किसी को भी मजा नही आयेगा। और आपकी बात हम सुनना चाहेंगे की इतने सारे टिपणीकारो के विचार के विरुद्ध आपका तर्क क्या है ? अब ताऊ जी ने गुस्सा थूका और कहा, बेनामी अब तुम भाड़ में जाओ-@ Anonymous . पर अब Anonymous कमेन्ट पर कम से कम मैं तो ध्यान नही दूंगा सो आप अगर कुछ कायदे की बात चाहते हैं तो अपनी पहचान के साथ आएं।

बेनाम भाई पर मैं भी कुपित होगया। ---
बेनामी टिप्पणी के महाराज पहली बात तो आप खुद फर्जी एनकाउंटर कर रहे हैं और दूसरी तरफ ताऊ जी ने बात सही कही है यदि कुछ कहना या सुनना है तो बेहतर है सामने आओ बात कहो। यहां तो चार लोग इस बात पर सहमत हैं और यदि वोट डलवालो तो ९० फीसदी इस बात से सहमत होंगे। रही आपकी बात तो बेहतर ये होगा कि आप अमर सिंह ना बनें सामने आएं हैसियत बताएं और बात करें। वरना बेहतर है आपको पढ़ने की भी जरूरत नहीं है मैं गद्दारों के लिए नहीं लिखता हूं।
रंजन राजन ने रही सही कसर भी पूरी कर दी, अमर सिंह को स्टेपनी बता दिया।
"सही कहा आपने, इनके बड़े भईया की सुलह राज ठाकरे और शाहरुख खान दोनों से हो गई है। तो अब राजनीति चमकाने के लिए कुछ तो होना चाहिए ना।....बड़का भैया के इस छोटका भैया से यूपी के भाई लोगों ने तो सत्ता की चाबी छीन ली थी। लेकिन किसी ने ऐसे थोड़े ही कहा है, समय बलवान तो गधा पहलवान। छोटका भैया की किस्मत से केंद्र की गाड़ी पंक्चर हो गई और ये बन गए स्टेपनी।"
एक बेनामी टिप्पणी की गई जो बात तो सही कह रहे थे पर थे वो बेनाम ही-- IN AMAR SINGH KE JAB GHAR BOMB FUTEGA TAB DEKHEGE KYA KAHTE HAI?
KAL KISI SO CALLEED BADE BLOGAAR NE APNE BLOG PE AISE HALAT PESH KIYE JAISE YAHAN TO HALAT BAD SE BADTAR HAI .EK BAAT SAMAJH NAHI AATI KI BAATLA KI CHARCHA HOTE HI MUSLIM ISE APNE AGAINST KYU MAN LETE HAI ?
DOOSRA KOI MUSLIM SHARMA KO SHAHEED KYU NAHI MAANTA HAI?YE JITNE BHI CHAINAL KE PATRKAAR HAI APNE BLOG PE KUCH BOLTE HAI AOR INKA CHAINAL KUCH AOR DIKHAATA HAI ?AGAR ITNE HI IMANDAR HO TO BHAIYYA NAUKRI CHOD DO.AMAR SINGH TO AMITABH BACHHAN KE PARIVAR KE SPOKESMAN BANE RAHE TO ACHHA HAI.EK AOR BAT DEKHI HAI SARE MUSLIM BLOGAR BHI EK HI BAT KA RONA ROTE HAI KI UDISSA ME YE HUA ,VAHAN YE HUA TO USE KIS NE SAHI KAHA HAI ?KYA HAM APNE APRADH KO YE KAHKAR KAM KAREGE KI DOOSRE NE BHI KIYA HAI ?
राज भाटिया जी ने अधूरी पर पूरी बात कह दी- नाम ओर निक नाम तो इतने अच्छे, ओर कर्म जयचंद जेसा, मै तो हैरान हुं ऎसे लोग बार बार केसे जीत कर आ जाते है,ओर हमारे मुसलमान भाई लोगो को भी सोचना चाहिये कि यह उन्हे एसे लोग इस देश का नागरिक सिद्ध करना चाहते है या फ़िर एक...।
अनुनाद जी ने भी एक असलियत बोल दी-
कांग्रेस मुसलमानों को रिझाने के लिए ७०० करोड़ रूपये का घूस दे रही है तो कुछ नहीं और अमर सिंह ने उनके वोट भेड़ के भाव खरीदने के लिए झूठी गवाही दे दी तो कौन सा 'अपराध' कर दिया?
श्रीकांत पारासर जी भड़के हुए थे तो पूरी भड़ास निकाल दी-- amarsingh apne aap ko bhale hi singh is king samjhen parantu congress ki rajniti ki chopad par ve ek mamuli pyade hain.doodh men padi makkhi wali halat unki honi hi hai.Vaise ve pahle bhi congress se apni fajihat karwa chuke hain. votr bank ki rajniti karne walon ki har jagah fajihat honi chahiye, tabhi ek na ek din is desh ki halat sudhregi. वो फिर आए- Nitishji, man nahin bhara mera,isliye phirse likh raha hun. Bhai anil pusadkarji ne unke tatha arjun singh ke liye jyada sateek sabdon ka istemal kiya hai. anya doston ne bhi achha likha hai. yah vyakti bina pende ka muradabadi lota hai aur avval no. ka notankibaj
boss, baat yah hai ki yahan ke logon ko bhi yahi pasand hai, aakhir jaychand jaise logon ki auladen hain ham-comman man
उड़ते उड़ते उड़नतस्तरी और भूतनाथ जी ने मुझ से ही सवाल पूछ लिया- अमर सिंग से यह पूछना कि क्या तुम पागल हो गये हो क्या??पागल से ये कैसा प्रश्न??
Anil Pusadkar जी ने एक और असलियत सामने लाई- अमर सिंह को गद्दार कहना गद्दारों का अपमान होगा।वो तो उनसे भी गया गुजरा हैं। ना भैय्याजी का है और ना भाभीजी का है।
ज्ञानदत जी भी बोले, अमर सिंह जी की हाइट क्या है? लगता है उससे ज्यादा अहमियत मिली है उनको राजनीति में।
सुरेश चंद्र जी अमर सिंह को कुत्ता ही मानते हैं- अमर सिंह के अपने शब्दों में पिछली बार कांग्रेस ने उन्हें कुत्ते की तरह ट्रीट किया था. आज भी कांग्रेस उन्हें कुत्ते की तरह ही ट्रीट कर रही है।
सभी के साथ से मुझे ये लगता है कि एक बात से तो सहमत हैं कि अमर सिंह और राज ठाकरे जैसे लोग अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश ज्यादा करते हैं चाहे देश गर्क में क्यों ना चला जाए। क्या करें हम कि इन जैसे दलालों से छुटकारा मिल जाए। अगले साल चुनाव हैं, इन जैसे नेता जो कि हर पार्टी में हैं और साथ ही हर प्रदेश में भी हैं वो सत्ता की ड्योढ़ी ना चढ़ सकें।
आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”