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Thursday, November 6, 2008

मेरी नजर से, कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें

मेरी नजर से कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें हैं जो कि मैं हमेशा ही याद रखना चाहूंगा। वैसे तो हाल ही में मैंने अपने एक आर्टिकल में मोहाली टेस्ट के बाद ही ये कह दिया था कि अब कुंबले को हम भूलने लगे हैं और बेहतर हो कि कुंबले संन्यास ले लें। सारी दुनिया ये जानती है कि वो ढीले फील्डर के रूप में जाने जाते रहे हैं चाहे उन्होंने ६० कैच ही क्यों ना पकड़े हों। अनिल बल्लेबाजी भी कुछ खास नहीं माने जाते रहे, भले ही उन्होंने एक शतक वो भी नाबाद और पांच अर्द्धशतक लगाए हों जबकि वो अंतिम पायदान पर ही आते थे। शुरुआत में गेंदबाजी में विभिन्नता(वैरिएशन) के कारण जाने जाते रहे जबकि वो बॉल उतना घुमा नहीं पाते थे। हां, लेकिन उनकी रफ्तार किसी भी मध्यम तेज गेदबाज की तरह होती थी। कोई भी नहीं कहता था कि ये इंजीनियर कम गेंदबाज इतना सफल हो पाएगा।

चश्मा पहनें वो शांत, गंभीर, लंबा, इंजीनियर लड़का

चश्मा पहने एक लंबा लड़का, जिसकी टांगें उसको एक अलग शख्स के रूप में दिखाती थी। कोई भी ये नहीं कहता कि ये लड़का क्रिकेट की दुनिया में चल भी पाएगा। पर अपने जुझारूपन के कारण उसने अपने करियर की शुरूआत की और फिर जो शुरुआत की तब से कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। इंग्लैंड के खिलाफ ९ अगस्त १९९० में मैनचेस्टर में कुंबले ने अपनी पारी की शुरूआत की। इक्तेफाक देखिए १९९० में पहले ही मैच में कुंबले ने तीन विकेट लिए थे और अपनी आखिरी पारी कोटला में भी उन्होंने तीन विकेट ही लिए। वो मैच भी ड्रॉ हुआ था और ये मैच भी ड्रॉ हुआ। उस समय की टीम में नरेंद्र हिरवानी जैसे दिग्गज हुआ करते थे, जिन्होंने एक मैच में १६ विकेट लेने का करिश्मा दिखाया था, पर गायब कब हुए पता ही नहीं चला। लेकिन धीरे-धीरे इस खिलाड़ी ने टीम में जगह पक्की कर ली, कभी फिलिपर गेंद डालकर तो कभी मीडियम पेसर की रफ्तार से गेंद डालकर।

१९९९ में फिरोजशाह कोटला में कीर्तिमान

स्कोरबोर्ड पर १०१ रन बन चुके थे और एक भी विकेट पाकिस्तान का गिरा नहीं था। प्रसाद और श्रीनाथ दोनों गेंदबाजों को कामयाबी नहीं मिली थी। पहले सत्र में तो सभी गेंदबाजों को अनवर-आफरीदी की जोड़ी ने खूब ठोंका। लेकिन दूसरे सत्र की शुरूआत में ही कुंबले ने आफरीदी को मोंगिया के हाथों कैच आउट करवा दिया। फिर अगली ही गेंद पर इजाज अहमद को चलता कर दिया। ऑन द हैट्रिक थे कुंबले पर हैट्रिक ले नहीं पाए। दो ओवर के बाद ही इंजमाम ने एक लेजी सॉट खेली और गेंद खुद स्टंप को चूम गई। इस ओवर की पांचवीं गेंद पर यूसुफ योहाना को भी कुंबले ने अपना शिकार बना दिया। आफरीदी और युहाना दोनों ही इस बात से संतुष्ट नजर नहीं आए थे। जबकि आफरीदी तो साफ कॉट बिहाइंड थे और युहाना तो स्टंप के सामने ही पगबाधा हुए थे। फिर मोइन खान का स्लिप पर गांगुली ने शानदार कैच लपका। साथ ही सईद अनवर का कैच लक्ष्मण ने लपका। फिर भारत के सामने थे सिर्फ सलीम मलिक और कप्तान वसीम अकरम। कुंबले कहते हैं कि, ‘यदि इनको आउट कर दें तो फिर समझो कि मैच हमारे कब्जे में, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं दिख रहा था’। एक साल पुराने भी नहीं हुए हरभजन सिंह की गेंद पर वसीम ने जमकर चौकों की बरसात शुरू कर दी। पर तुरंत ही सलीम मलिक को कुंबले ने क्लीन बोल्ड कर दिया। मुस्ताक अहमद और सकलेन मुश्ताक को दो लगातार गेंदों पर आउट कर दिया। फिर कुंबले ऑन द हैट्रिक थे लेकिन ओवर खत्म हो चुका था। और ये किसी को भी पता नहीं था कि अगले ओवर में ये जोड़ी टिकी रहेगी। तभी श्रीनाथ को गेंदबाजी सौंपी गई और वहां कुंबले मैदान में भगवान से ये दुआ करने लग गए कि ये आखिरी विकेट भी कुंबले को ही मिले। श्रीनाथ ने सारी गेंदें बाहर फेंकी इस कारण दो गेंद वाइड भी हो गई। कोई विकेट लेना नहीं चाहता था। फिर कुंबले के हाथ में गेंद आई और वसीम अकरम को सिली पाइंट पर लक्ष्मण को कैच आउट करवा दिया और लिख दिया इतिहास जो कभी टूट नहीं सकता। इस रिकॉर्ड की बराबरी हो सकती है पर कोई तोड़ नहीं सकता।

२००२ में टूटे जबड़े से भी जीवट प्रदर्शन

मैंने अपने एक आर्टिकल में इस बात का पहले ही जिक्र किया हुआ है। टूटे जबड़े से भी कुंबले ने जुझारुपन दिखाते हुए लारा को आउट कर अपना काम कर दिया था। इतनी चोट लगने के बावजूद भी कुंबले ने १४ ओवर फेंके थे। भारत वेस्टइंडीज से वो मैच ड्रॉ करने में कामयाब रहा था।

ग्रेग चैपल का ख़ौफ़

ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि काफी समय तक सब कुछ सिर्फ और सिर्फ चैपल तक ही सिमट कर रह गया। जितने भी सीनियर खिलाड़ी थे उन सब पर चैपल ने निशाना साधा। सबसे पहले गांगुली, फिर द्रविड़ को अपने साथ मिलाकर गांगुली और द्रविड़ को भिड़ाना। शायद ये अध्याय भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए काला अध्याय था। फिर इस समय के महान खिलाड़ी सचिन पर भी साधा निशाना। कुंबले और लक्ष्मण दोनों ऐसे खिलाड़ी थे जो कि कभी भी बाहर का रास्ता देख सकते थे। कई बार कुंबले ने द्रविड़ के साथ इस बारे में बात भी की। द्रविड़ हमेशा ही समझाते कि अभी तो कुछ नहीं होने जा रहा है। फिर एक बार सचिन के साथ बात करते हुए कुंबले ने संन्यास की बात भी कही थी। सचिन का जवाब था कि बस परफोर्म करते रहो और यदि फिर भी कुछ होता है तो पहले निशाने पर मैं हूं उसके बाद किसी और का नंबर आएगा। उस समय सचिन की फॉर्म पर सवालिया निशान तो लग ही रहे थे। चैपल ने यहां तक कह दिया था कि सचिन सिर्फ अपने लिए खेलते हैं। कुंबले उस दौर को अपने क्रिकेट जीवन का सबसे कठिन समय मानते थे। इस दौरान ही एक-दो बार कुंबले ने पूरी टीम को अपने घर पर दावत भी दी। एयरपोर्ट से कुंबले के घर सचिन सीधे चले आते थे बिना झिझक के। इस समय में चाहे कुंबले पहले से भी कम बोलने लगे थे। वो ख़ौफ़ का वक्त था, जो वक्त निकल गया।

कप्तानी के साथ कोटला से विदाई

अपने ३७वें जन्मदिन के मौके से कुछ दिनों पहले ही कुंबले को कप्तानी की कमान सौंपी गई थी। कोई भी नहीं जानता था कि
पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में कुंबले को कप्तान बनाया जाएगा। २७ साल के बाद पाकिस्तान को हराने में कामयाब रहे। फिर सबसे विवादास्पद सीरीज जिसे की खुद कुंबले भी कठिन सीरीज मानते हैं। २-१ से भारत सीरीज हार गया था। साउथ अफ्रीका के खिलाफ से कुंबले की कप्तानी, गेंदबाजी, फील्डिंग पर असर दिखने लगा। श्रीलंका में तो जिस टीम से टेस्ट टीम हार कर आई थी उसी श्रीलंकाई टीम को हमारी वन डे टीम ने धो दिया था। इस सीरीज में तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। सही समय पर, सही अंदाज में कुंबले ने संन्यास ले लिया।

नागपुर टेस्ट और अंतिम बार ड्रेसिंग रूम में कुंबले

कोटला में ही कह दिया था कुंबले ने कि वो नागपुर में भी ड्रेसिंग रूम का हिस्सा जरूर होना चाहेंगे। कहीं ना कहीं ये जरूर लगता ही है कि यदि चोट नहीं लगी होती तो नागपुर टेस्ट ही कुंबले का आखिरी टेस्ट होता। पर कुंबले ने अच्छा किया कि कोटला में संन्यास ले लिया। सारा ध्यान ठीक तरीके से कुंबले पर ही रहा वर्ना शायद वो बंट जाता और फिर शायद कहीं पर कुंबले की अपनी बात भी दब जाती।
नागपुर टेस्ट काफी अहम टेस्ट है। सौरव गांगुली इस टेस्ट के बाद ही संन्यास लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। साथ ही पहले टेस्ट में गांगुली ने शतक जमाया था क्या जाते हुए आखिरी टेस्ट में भी गांगुली ये करिश्मा दिखा पाएंगे। वहीं वीवीएस लक्ष्मण अपना १०० वां टेस्ट मैच खेलेंगे। १००वें टेस्ट में क्या वो सैंकड़ा लगा कर छठे खिलाड़ी बन पाएंगे। वैसे सिर्फ रिकी पॉन्टिंग ही एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो कि अपने १००वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमा चुके हैं। साथ ही हरभजन सिंह को दरकार है सिर्फ एक विकेट की, फिर वो भी ३०० क्लब में शामिल हो जाएंगे।
लेकिन ये तो पक्का है कि हां, जंबो और दादा की कमी टीम इंडिया को खलेगी जरूर, याद बहुत आएंगे। सच एक युग और अध्याय को विराम लग जाएगा। एक तरफ सबसे ज्यादा मैच जीताने वाले गेंदबाज और दूसरी तरफ भारत के सबसे सफल कप्तान। इन्हें एक युग तो कहेंगे ही।


आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”