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Thursday, January 28, 2010

पैसे के लिए कुछ भी करेगा। कभी ख़फा होगा, कभी खुद मान जाएगा, पर पैसा तो नहीं छोड़ेगा।


आजकल ये बहुत देखने में आ रहा है कि लोग पैसे के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं। कुछ भी मतलब कुछ भी, शायद सब समझ गए होंगे कि इस कुछ भी का क्या मतलब होता है। पहले मैं सोचता था कि ये पैसा तो सिर्फ कॉरपोरेट कल्चर वालों को ही अपने इशारे पर नचाता है। पर धीर-धीरे मेरी जानकारी में इजाफा हुआ कि नहीं ये तो हर जगह बॉस है। चाहे फिर वो राजनीति हो, मीडिया हो, बॉलीवुड या फिर खेल।

अब देखिए हाल ही में कितना बवाल मचा था आईपीएल की बोली पर। क्यों पाकिस्तानी खिलाड़ी नहीं लिए गए, चैंपियनों को दर किनार कर दिया, वगैरा वगैरा। पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा (बकौल पाकिस्तानी मीडिया और क्रिकेटर) सब की जुबान सिर्फ दो को ही कोस रही थी, एक आईपीएल(बकौल उनके कि जिसे भारत सरकार चला रही है) और दूसरा ललित मोदी। दहाड़े मार-मार कर कहा जा रहा था कि पाकिस्तानी आवाम, पाक सरकार, और खुद पाकिस्तानी क्रिकेटर और पड़ोसी देश को आघात पहुंचा है। कभी भी भारत के साथ कोई भी संबंध बढ़ाने की बात तो दूर संबंध रखा भी नहीं जाएगा (बात बेसर पैर की)।  

पर अब देखिए चार दिन बाद पैसे ने अपना जलवा दिखाया और फिर उन्हीं खिलाड़ियों के मुंह से अलग शब्दों की बौछार होने लगी है जो अब तक अपना अपमान मान कर भारत में ना खेलने का दम भर रहे थे। पीसीबी की माली हालत कितनी मजबूत है ये सारा क्रिकेट जगत जानता है। खाने के लिए दाने नहीं है और बातें गड़े हुए मुर्दे की कब्र के सामान खोखली, है कुछ नहीं पर घमंड में आंच ना आए।

एक बार बेइज्जती कराने के बाद भी ये नहीं सुधरे हैं। अब क्यों आफरीदी और तनवीर की जुबान पर ये जुमला आने लगा है कि ”we will forgive and play”। दिखादी ना अपनी औकात इन्होंने सिर्फ पैसे के लिए। क्योंकि वो बेहतर जानते हैं कि पैसा आईपीएल में बहुत है। इनके लिए ना बेइज्जती बड़ी है और ना ही देश। पैसा इनके लिए सबसे बड़ा है। और हमें इसे दोस्ताना समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, January 23, 2010

’मेरी मर्जी’


सर, मेरे पास भी वो ही सामान है जो कि उस स्टॉल पर है। आपने मेरा सामान देखा, मुझसे बात की और फिर दूसरे स्टॉल पर जाकर सामान खरीद लिया। जबकि मेरा सामान उसके सामान से क्वालिटी में बेहतर है, फिर भी आपने ऐसा किया। आपने जानबूझकर मेरे साथ ये बुरा व्यवहार किया है। आप नहीं चाहते कि मैं ऊपर उठूं। आपने उस दुकान से ही ये सामान क्यों लिया, आपको मेरे से ही सामान लेना होगा, नहीं लोगे तो मैं ट्रेड फेयर के मालिकों से और अपनी सरकार से आपकी शिकायत करूंगा। आपने मेरे साथ गलत किया है?’
मेरी मर्जी, मेरा पैसा मैं चाहे किसी से सामान खरीदूं, तुम कौन? मेरी मर्जी!’

ऐसा वाक्या आपके साथ भी हुआ होगा, कई बार ऐसा होता है। पर इसका ये मतलब नहीं कि दाना-पानी लेकर कोई दूसरे के ऊपर चढ़ जाए। पर कुछ ऐसा ही आजकल देखने में आ रहा है स्पोर्टसमैनशिप के नाम पर आईपीएल में।

पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल 3 के लिए यदि नहीं लिया गया तो इसमें कहां से आगई दुश्मनी की बात। क्यों बार-बार सरहद के पार से ये बयान आ रहा है कि पाक खिलाड़ियों पर बोली ना लगाकर उनकी बेइज्जती की गई है। अब तो हर पाकिस्तानी का मानना है कि इसमें हिंदुस्तान का षडयंत्र है। भारत सरकार ही नहीं चाहती कि पाकिस्तानी खिलाड़ी भारत में आकर खेलें और पैसा कमाएं।

अब बात मैं तर्कों से करता हूं।

सबसे पहला तर्क, ऑस्ट्रेलिया खिलाड़ियों को भी नहीं लिया गया, उनकी बोली नहीं लगी तो क्या ऑस्ट्रेलियन भी ये बोलने लगें कि ये भारत सरकार की करनी धरनी है? ऑस्ट्रेलिया में भारतियों पर हमला होने के कारण टेनिस सितारों ने नाम वापस ले लिया। तो ये भी सरकार का ही फैसला होगा? जबकि हाल में जो शिवसेना ने धमकी दी उसके बाद ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ी ऐसा मानते हैं कि भारत में खेलने में कोई हर्ज नहीं है। पर भारतीयों पर हो रहे हमले पर भारतीयों की प्रतिक्रिया को क्या ऑस्ट्रेलियन नहीं समझते होंगे। जब एक देश समझ रहा है तो दूसरा देश हमारा पड़ोसी मुल्क समझने में कोताही क्यों बरत रहा है। क्या पाकिस्तान के लोगों को ये पता नहीं होता कि भारत की राजनीति में क्या चल रहा है?

इसमें कोई दो राय नहीं है कि 20-20 के चैंपियनों की बेइज्जती हुई है। पर ये बेइज्जती की किसने है? मेरा जवाब है खुद पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने अपनी बेइज्जती करवाई है?
क्या पाकिस्तानी खिलाड़ी या वहां कि आवाम ये नहीं जानती कि 26/11 का घाव अभी भी हरा है। फिर कैसे कोई भी फ्रेन्चाइजी ओनर उसी ट्राइडेंट होटल में बैठकर उन्हीं पाकिस्तानियों की बोली लगाता जिसके देश से आए लोगों ने इसी होटल को कुछ समय पहले कब्रगाह बना दिया था।

आईपीएल एक प्राइवेट संस्था है वो किसको रखेगी कब वेन्यू चेंज करेगी इसमें सरकार का कोई भी हस्ताक्षेप नहीं है। यदि ये छोटी सी बात पाकिस्तानियों की मोटी बुद्धि(जो कि उनके पास नहीं है) में नहीं आती तो इसमें कोई भी कुछ नहीं कर सकता। मेरी मर्जी मैं आपको लूं या ना लूं। इतना बड़ा आईपीएल सीजन है उसमें से कोई मजबूत खिलाड़ी नहीं पहुंचे तो उस टीम पर कितना फर्क पड़ेगा ये शायद दूर से हाथ सेकने वाले नहीं समझ सकते। उनको तो पैसा मिल जाता और फिर जो भी नुकसान होता फ्रेन्चाइजी को होता। क्या कोई भी पाकिस्तानी ये आश्वासन दे सकता है कि मार्च 13 तक भारत पर आतंकी हमला नहीं होगा। शायद कोई नहीं उनके हुक्मरान तक नहीं।

बिना किसी से पूछे आईपीएल ने अपना पहले मैच का वेन्यू चेंज कर दिया। क्या इसमें भी साजिश है नहीं। ये दिमाग है, दूरदर्शिता है।

तो क्यों वो खिलाड़ी इन सब कारणों को जानते हुए भारत में अपनी बेइज्जती करवाने आए? क्यों उन्होंने और पीसीबी ने एक बार भी नहीं सोचा कि ऐसा हो सकता है पर शायद मुझे लगता है कि उनकी बेइज्जती नहीं हुई उन्हें तो बख्स दिया गया वर्ना उन्हें तो इस से भी ज्यादा जल्लात सहनी पड़ती।

अंत में मेरी राय तो ये है कि जब तक संवाद ठीक नहीं हो जाते तब तक पाकिस्तानियों को भारत में आने से पहले सोचना चाहिए क्योंकि यहां पर कुछ भी उनके साथ घट सकता है और हो सके तो अभी नहीं आए तो बेहतर।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, September 14, 2009

क्यों नहीं 26/11 मुंबई हमले पर पाक मंत्री की ललकार के जवाब में वन-टू-वन करते पी चिदंबरम।


हाल ही में पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने इस्लामाबाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलेआम भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम को ओपन डिबेट के लिए ललकारा। मुंबई हमलों पर बोलते हुए रहमान मलिक ने साफ तौर पर ये कहा कि 26/11 के मसले पर भारत पाकिस्तान पर दोष मढ़ना बंद करे। सबसे बड़ी बात उसमें ये कही गई कि भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम के साथ वो भारत में कहीं पर भी, पाकिस्तान या फिर किसी भी मुल्क में ये डिबेट कर सकते हैं।

चिदंबरम को चैलेज देने के अलावा भी रहमान मलिक सच से पर्दा उठाते ही रहे। जैसे, भारत ने मुंबई हमलों पर 9 फरवरी को भेजी हमारी दरख्वास्त का जवाब 20 जून को जाकर दिया जो कि बहुत देर से था और जवाब मराठी में भेजा। (कोई भी राष्ट्र किसी को जवाब अपनी क्षेत्रिय भाषा में क्यों देगा, ये इल्जाम कितना सच है ये तो मलिक जी ही बेहतर जानते हैं।) भारत ने चार्जशीट दाखिल करने में 90 दिन से भी ज्यादा का वक्त लिया वहीं हमने महज 76 दिन में इस कवायद को पूरा कर लिया। भारत कभी किसी को मास्टरमाइंड बताता है तो कभी किसी और को। हमने जकीउर रहमान लखवी को गिरफ्तार किया तो भारत हाफिज सईद को मास्टरमाइंड बताने लग गया। (क्योंकि दोनों ही इस साजिश में शामिल थे।) वहीं भारत समझौता एक्सप्रेस मामले पर सबूत साझा नहीं कर रहा जो कि बहुत अहम है। आप हमारे कोर्ट का सम्मान करो और हम आपके कोर्ट का सम्मान तो करते ही हैं। इस पर कितना सच था और कितनी बातों पर सच का पर्दा पड़ा रहा, ये हम सब बेहतर जानते हैं।

ये सारी बातें तब कही गई हैं जब कि भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम अमेरिका दौरे पर थे और अमेरिका को पाक की नियत से रूबरू कर रहे थे। पाक मीडिया ने दोनों खबरों को खूब उछाला और साथ ही भारतीय मीडिया ने भी इन खबरों को दिखाया। फिर क्या वजह है कि इस बारे में पी चिदंबरम की तरफ से या फिर भारत की तरफ से कोई भी जवाब नहीं आया। क्यों?

सबसे ज्यादा बात जो खल रही है कि एक तरफ तो कोई ये कह रहा है कि कहीं भी बात करने के लिए तैयार हैं और हम उस पर प्रतिक्रिया भी नहीं दे रहे। क्यों? कब तक पाकिस्तान गलती करते हुए भी हर बात पर हेकड़ी जमाता रहेगा। गलती करके हमें ही ललकारता रहेगा और हम शांत रहकर उन बातों का जवाब बहुत गहन विचार करके ही देते रहेंगे। कब तक इन मामलों पर भी राजनीति होती रहेगी। क्यों सामने आकर कोई भी इस बारे में जवाब नहीं दे रहा है।
अभी थोड़े दिन पहले ही भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भारत को पाकिस्तानी तालिबान की तरफ से मुंबई हमलों की तर्ज पर हमले की आशंका से आगाह किया था। उस पर रहमान मलिक का जवाब था,
"There was a statement from the PM of India that they knew there might be Bombay-like attacks replicated in India by the Pakistani Taliban. Prime Minister Sir, you are the chief executive, whatever information you have, it must have come from your Intelligence agencies, why didn't you share it with us? Why were you holding this information before the Bombay attacks? Why didn't you tell us? We are two countries we could have investigated it together. I am still ready, let’s meet."

रहमान मलिक की इतनी बातों के बाद कोई भी ये सोचने पर मजबूर हो सकता है कि भारत सिर्फ इल्जाम लगाता रहता है लेकिन कार्रवाई करने से बचता है। इसका मतलब ये हुआ कि भारत गुमराह करने की पॉलिसी अपना रहा है। पर ये पूर्ण सत्य नहीं है।

भारत कैसे अपने इंटैलिजेंस सीक्रेट किसी दूसरे देश और वो भी पाकिस्तान जैसे दुश्मन राष्ट्र के साथ शेयर कर सकता है। कैसे-कैसे करके हमारी इंटैलिजेंस एजेंसी खबरों को इक्ट्ठा करती हैं उस पर यदि भारत ये बात भी शेयर करने लग गया तो शायद जो लोग इस काम में लगे हुए हैं उनकी जान सलामत नहीं रहे। लेकिन हां, भारत ये कर सकता था कि उस तथ्यों के पुलिंदों में से कुछ तथ्यों को पाकिस्तान भेज कर ये साबित जरूर कर सकता था कि हां हमारे पास एविडेंस है, सबूत हैं।

जानते हैं कि पाक उस पर कार्रवाई नहीं करता और गर करता भी तो पहले से ही वहां से आतंकी संगठनों को हटा दिया गया जाता। आतंकवादियों को हटाने या पकड़ने के लिए पाक का एक भी सिपाही मारा नहीं जाता। आर्मी इधर होती है तो बम उधर फटता है। क्या इस के पीछे की नीतियां समझ में नहीं आती?

चीन से मिलकर पाकिस्तान की भारत के ऊपर अपना रुतबा कायम करने की कोशिश असर नहीं दिखा पाएगी। माना कि भारत हथियारों और ताकत के मामले में चीन से पीछे है पर हथियारों कि गुणवत्ता में पीछे नहीं है। भारत के पास लेटेस्ट तकनीक के हथियार हैं और वही चीन के पास हथियारों की तादाद ज्यादा है पर वो बहुत पुराने हैं। भारत का एक हथियार उनके चार के बराबर है। पर ये सत्य है कि कई जगहों पर हम चीन के पासंग भी नहीं है। जहां तक पाकिस्तान की बात की जाए तो भारत उनसे हर क्षेत्र में कहीं ज्यादा आगे है।

ध्यान तो इस बात का रखना है कि भारत में मौजूद गद्दार भारत की जमीन को नुकसान नहीं पहुंचा सकें। साथ ही उन अलगाववादियों को भी ये सोचना चाहिए कि चाहे चीन दागे या फिर पाकिस्तान, गोली, बारूद और बम की आंखें नहीं होती वो दोस्त और दुश्मन में फर्क करना नहीं जानती। यदि भारत की जमीं पर बम फटेगा तो यहां मौजूद दोस्त-दुश्मन सब के शरीर छलनी होंगे। बेहतर है कि भारत को एकजुट रहने दो और खुद भी मिल कर रहो और दुश्मनों का मिलकर मुकाबला करो।

आपका अपना
नीतीश राज

Sunday, July 19, 2009

अंग्रेजों की नीति अपना रहा है अमेरिका, भारत-पाक को लड़ाकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है।

किसी भी देश का कोई प्रतिनिधि यदि किसी देश का दौरा करता है तो सबसे पहले माना ये जाता है कि दोनों देशों के बीच संबंध मधुर होंगे और साथ ही कुछ नई राह खुलेंगी। कुछ समझौतों भी हो सकते हैं साथ ही कुछ नए प्रोजेक्ट पर भी चर्चा होगी। और यदि वो देश आतंकवाद का शिकार रहा है तो फिर आतंक से निपटने की बात भी होगी।

जब अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भारत के दौरे पर मुंबई पहुंची तो लगा कि भारत-अमेरीका के रिश्तों में ये एक अच्छी शुरूआत होगी। अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति के पद से चूक चुकीं हिलेरी ने भारत में आकर रिश्तों को आगे तो बढ़ाया पर इस रिश्ते पर सवाल भी खड़ा कर दिया।

हिलेरी क्लिंटन ने मुंबई में 26/11 आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी साथ ही उसकी तुलना अमेरिका में हुए 9/11 हमलों से कर दी। ताज होटल के कर्मचारियों के जज्बे की तारीफ और बहादुरी की तारीफ की “....मैं आपके जज्बे को सैल्यूट करती हूं...मैं सलाम करती हूं मुंबई के साहस को ...”। हिलेरी वहां मौजूद थी जहां आंतकवादियों ने क़हर बरपाया था। ताज होटल की लॉबी में वो उस जगह पर मौजूद थीं, जहां 26/11 की याद में 'ट्री ऑफ लाइफ' बनाया गया था।

एक तरफ तो हिलेरी ने देशवासियों को ये याद दिला दिया कि अमेरिका भारत के साथ है आतंकवाद की लड़ाई में। पर दूसरी तरफ ट्री ऑफ लाइफ के पास खड़ीं हिलेरी ने पाकिस्तान की तारीफ में कसीदे भी पढ़ दिए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी आतंकवाद को खत्म करने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। सिर्फ वो यहीं पर नहीं रुकी उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठा रहा है। यहां इस बात का हवाला देने का क्या मतलब। क्या वो यहां पर पाक की पैरोकार बन कर आईं हैं। शायद नहीं क्योंकि उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कह दिया था कि वो सिर्फ भारत-अमेरिका के रिश्तों पर ही बात करेंगी। तो फिर पाकिस्तान की तारीफ करने का क्या मतलब? या वो भारत में अमेरिका का स्टेंड साफ कर रहीं थी कि अमेरिका क्या सोचता है?

हाल ही में जरदारी ने कहा था कि अमेरिका पर 9/11 हमलों के बाद पाकिस्तान के लिए ही पाक टुकड़ों पर पलने वाले आतंकवादी खतरे का सबब बन चुके हैं। हिलेरी जी को शायद ये नहीं पता कि पाकिस्तान भारत सियालकोट सीमा पर अपने बंकर खड़े कर रहा है। यदि अफ्गानिस्तान का मामला या यूं कहें कि गृह युद्ध की नौबत नहीं होती स्वात, बलुचिस्तान, लाहौर में तो पाकिस्तान अपनी सीमा से सेना कम नहीं करता

इस सब बातों को देखकर लगता है कि अमेरिका फिर दोतरफा चाल चल रहा है। एक तरफ तो भारत के साथ मिलकर आतंकवाद खत्म करने की बात कर रहा है वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान को भी क्लीन चिट देने में लगा हुआ है। इस कूटनीति को भारत को समझना चाहिए और हो सके तो कुछ मुद्दों पर अमेरिका का हस्ताक्षेप बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, June 4, 2009

भारत ने पाकिस्तान को धो डाला, 20-20 में जमाई पाक पर जीत की हैट्रिक

पूर्व टी-20 चैंपियन भारत अपना पहला अभ्यास मैच न्यूजीलैंड से हार चुका था। लेकिन दूसरे अभ्यास मैच में अभ्यास अच्छा हुआ। पाकिस्तान के साथ इस अभ्यास मैच में फील्डिंग छोड़ कर भारत का स्तर एक चैंपियन की तरह ही दिखा।
पाकिस्तान ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। मैच की शुरुआत में तो लगा कि पाकिस्तान इस बार कुछ गजब कर के ही मानेगा। लेकिन पहले ही ओवर में प्रवीण कुमार ने ओपनर हसन को बिना खाता खोले क्लीन बोल्ड कर दिया। भारत के प्रशंसकों में खुसी की लहर दौड़ गई। पर दूसरे ओवर से चौथे ओवर तक खुश होना पाकिस्तान के खेमे में लिखा था। कामरान अकमल के साथ 17 साल के अहमद शहजाद ने हर ओवर की गेंदों को बाउंडरी पार पहुंचाना शुरू कर दिया। देखते-देखते महज चार ओवर में पाक का स्कोर 45 पहुंच गया।
अब खुश होने की बारी भारत की थी। कामरान अकमल को रैना ने शानदार फील्डिंग का नमूना दिखाते हुए रन आउट कर दिया। पांचवें ओवर में ही ईशांत की आखरी गेंद पर शहजाद ने लंबी शॉट खेलने में चूक कर दी और फिर रैना ने एक आसमान चूमती गेंद को लपककर पाक खेमें में सनसनी फैला दी। पर अभी तो कहर बाकी था। अगले ओवर में पठान की पहली ही गेंद पर कप्तान धोनी ने शानदार कैच लपककर शाहिद आफरीदी को बिना खाता खोले पवैलियन लौटा दिया।
कप्तान यूनिस खान और शोहेब मलिक ने टीम को संभालने की कोशिश की पर मलिक ने ओझा की एक गेंद में चूक कर दी और धोनी ने कोई गलती नहीं की। यूनिस खान ने कुछ शानदार शॉट खेले पर हरभजन सिंह की फिरकी में फंस कर वो क्रीज से नहीं निकलना चाहते हुए भी आगे निकल आए और धोनी ने वापसी का मौका नहीं दिया। मिसबाह और यासिर अराफात ने मिलकर स्कोर को 113 से 158 तक पहुंचा दिया वो भी सिर्फ 25 गेंदों में। भारत के सामने जीत का लक्ष्य था 159।
भारत बिना सहवाग के खेल रही थी। तो ओपनिंग की बागडोर संभाली रोहित शर्मा और गंभीर ने। शुरूआत से ही दोनों ने हाथ दिखाने शुरू कर दिए। गेंदबाज ये समझने में दिक्कत महसूस करने लगे कि गेंद डालें तो कहां? इस मैच में रोहित शर्मा ने ही गेंद को हवा में बाऊंड्री के पार पहुंचाया। रोहित ने महज 53 गेंदों में 80 रन बनाए जिसमें 9 चौके और दो शानदार छक्के शामिल थे। आमेर ने शहजाद के हाथों 16वें ओवर में भारत के 140 के आंकड़े पर रोहित को कैच आउट करवा दिया। तब भारत को जीत के लिए 18 रन की दरकार थी। जिसे गंभीर और धोनी ने मिलकर 18 गेंद रहते ही हासिल कर लिया। गंभीर ने 5 चौकों की मदद से 47 गेंद पर 52 रन बनाए और वो धोनी के साथ अंत तक नाबाद रहे। आखिर एक ओपनर तो फॉर्म में लौटा।
20-20 फॉर्मेट में ये भारत की पाकिस्तान पर लगातार तीसरी जीत थी।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, May 11, 2009

फिर वहीं आगए-अब करो या मरो

मलेशिया में अजलान शाह कप में भारत ने पाकिस्तान को 2-1 से हराकर फाइनल में जगह बनाई थी। वहीं मलेशिया में ही एशिया कप में तीन बार की चैंपियन पाकिस्तान ने उसका बदला उतारते हुए पिछली एशिया चैंपियन भारत को पहले ही मैच में 3-2 से मात दे कर अचरज में डाल दिया। अब भारत को चीन से किसी भी हाल में जीत दर्ज करनी ही होगी वर्ना सेमीफाइनल में जगह नहीं हाथ से निकल जाएगी। भारत की हॉकी टीम के लिए फिर स्थति करो या मरो की होगी। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान से पहले मैच में बराबर पर चुकी चीन के लिए मैच को ड्रॉ करने से भी काम चल जाएगा और वो ड्रॉ के साथ भी सेमीफाइनल में जगह बना जाएगी।

भारत-पाकिस्तान का मैच हमेशा से ही बड़ा कांटे का होता है। और इस बार मुकाबला था दो दिग्गजों का। दुनिया के दो सर्वश्रेष्ठ पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट भारत की तरफ से संदीप सिंह और पाकिस्तान की तरफ से सोहेल अब्बास। अजलान शाह में भारत की तरफ से किए 11 गोलों में से 8 गोल संदीप सिंह ने किए थे। पर इस बार हार संदीप सिंह के हाथ लगी और जीत सोहेल अब्बास के।

शुरुआत से ही मैच में दोनों टीमों ने एक दूसरे पर हमले करने शुरु कर दिए। गेंद कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में। मैच देख रहे लोगों को मैच की रफ्तार ने रोमांच से भर दिया। दोनों टीमों से आज भी रफ्तार के मामले में कोई बाजी नहीं मार सकता। पर मैच में शुरू से ही पाकिस्तान का पलड़ा भारी रहा। चौथे(4) मिनट में ही पाकिस्तान की तरफ से गोल दाग दिया गया। अंपायर ने गोल को गलत ठहराते हुए गोल को नकार दिया और फैसला भारत के पक्ष में दिया। 15वें मिनट में ही प्रभजोत सिंह ने भारत को बढ़त दिला दी। पर हसीम खान ने 33वें और रेहान बट्ट ने ३६वें मिनट में पाक को 2-1 की लीड दिला दी। फिर भारत की तरफ से राजपाल सिंह ने 45वें मिनट में गोल दागकर स्कोर बराबर कर लिया। मैच खत्म होने से 16 मिनट पहले पाकिस्तान के ड्रेग फ्लिकर सोहेल अब्बास ने गोल दागकर अपनी टीम को 3-2 से जीत दिला दी। अंत के 10 मिनट में भारत को 3 पेनल्टी कॉर्नर मिले पर संदीप सिंह अपना जादू नहीं बिखेर पाए।

इसी के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच जीत का फासला और भी बढ़ गया। अभी तक दोनों देशों के बीच 139 मैच हुए हैं और पाकिस्तान ने 73 और भारत ने 43 मुकाबले जीते हैं वहीं 23 में कोई भी नतीजा नहीं निकला है।

अब मंगलवार को दोपहर 3 बजे भारत को एशिया कप में बने रहने के लिए चीन को मात देनी ही होगी। हमारी दुआ टीम के साथ है।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, March 4, 2009

पाकिस्तान के लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि हमने ‘26/11-मुंबई हमलों’ का बदला लिया है।

मंगलवार की सुबह जब देर से उठा तो इल्म हुआ कि हां, रात देर से सोया था। अभी चाय के प्याले को मुंह तक लगा भी नहीं पाया था कि अल्साते मन को याद आया कि मैच भी है आज। टीवी खोलकर आंखें मलता हुआ स्कोर पढ़ा तो देखा कि अभी कुल 7-8 ओवर हुए थे सचिन-वीरू दोनों क्रीज पर थे। एक-दो चौकों के बाद लग रहा था कि सचिन आज शायद उतनी फॉर्म में नहीं हैं पर फिर भी इतने तो हैं कि नेपियर में अपना सर्वाधिक बना देंगे और जैसे मैंने सवाल पूछा था कि क्या सचिन अपने चाहने वालों का अरमान पूरा कर पाओगे? चाहने वालों को जवाब मिल गया, दो चौके मारने के बाद सचिन बाहर जाती बॉल को स्लिप के रास्ते चार रन तक पहुंचाने की कोशिश में बॉल से चकमा खा गए और कीपर को एक आसान सा कैच थमा बैठे।
हमने तुरंत मैच से यूं ही न्यूज की तरफ ऱुख किया। आंख फटी की फटी रह गई। अरे, ये क्या? कहां हुआ हमला, किसने किया, किनपर किया? ये तो पाकिस्तान है, तो क्या पाक टीम पर हमला हुआ है नहीं ये तो श्रीलंका की टीम आतंक की शिकार बनी है। बेहद दुख हुआ और नहीं जानता कि आलस कहां गायब हो गया तकरीबन 3-4 घंटे तक लगातार यूं ही चैनल खंगालता रहा। कई बार तो गुस्से ने दिमाग के सभी तारों को झनझना दिया।

अरे, क्या पागल होगए हैं पाकिस्तान के अधिकारी। जितने भी बयान किसी आला अफसर की तरफ से आ रहे थे उनमें से कुछ और साथ ही कई पत्रकारों के सवाल के निशाने पर कहीं ना कहीं भारत था। कई पाकिस्तानी न्यूज चैनलों पर ये साफ चला कि ये आतंकवादी बाघा बार्डर के रास्ते आए थे। मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था कि पहले तो सुरक्षा में इतनी भारी चूक और उसपर तुर्रा देखिए कि अभी हालात को सामान्य करने की बजाय लगे हैं निशाना साधने पर।
इस पूरे हमले पर कई और कहां-कहां सवाल खड़े होते हैं पाकिस्तान के लिए----
1) कैसे हुई श्रीलंका की टीम की सुरक्षा में चूक? जब कि श्रीलंका की टीम को मिलती है ग्रेड ए यानी कि किसी दूसरे देश से आए हुए किसी भी राष्ट्राध्यक्ष जैसी सुरक्षा। श्रीलंका टीम के काफिले की सुरक्षा के लिए करीब 70 पुलिसवाले दिए गए थे। तो सवाल ये उठता है कि कहां गए 70 पुलिसकर्मी? यदि 70 पुलिसकर्मी वहां पर मौजूद थे तो 12 आतंकी उनको चकमा देने में कैसे कामयाब होगए, कैसे फरार हो गए सभी के सभी और वो भी 5-6 पुलिसवालों को मारकर?
2) गद्दाफी स्टेडियम तक जाने के कई रास्ते हैं। ऐसा बताया गया है कि टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक हर रोज दूसरे रास्ते से ले जाया जाता हैं। तो ये चूक कहां से हुई कि आतंकवादी जान गए वो रास्ता जिस रास्ते से आज टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक पहुंचना था?
3) दूसरे टेस्ट के दूसरे दिन जिस रास्ते का इस्तेमाल किया गया था टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक लाने के लिए, तीसरे दिन भी उसी रास्ते का इस्तेमाल क्यों किया गया? रूट में हमेशा की तरह बदलाव क्यों नहीं किया गया?
4) पहले से ही सरकार को आगाह किया जा रहा था कि नवाज शरीफ और उनके भाई को पंजाब प्रांत से चुनाव ना लड़ने देने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। पंजाब सूबे में नवाज शरीफ का जो रुतबा है वो पूरे पाकिस्तान के किसी भी प्रांत में जरदारी या फिर गिलानी का नहीं होगा। पंजाब सूबे के लोग नवाज के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
5) 12 आतंकवादी ये प्लान बनाते हैं कि मेहमान टीम पर हमला करना है। इस बात का मतलब ये है कि आतंकी काफी दिनों से इस योजना को अंजाम देने की कोशिश में जुटे हुए थे। तो क्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी सो रही थी?
6) स्वात पर तालिबान का कब्जा हो गया है और वहां पर पाकिस्तान का नहीं तालिबान का फरमान चलता है और ये धमकी पहले से ही दी जा रही थी कि सिर्फ स्वात के बाद निशाना पूरे पाकिस्तान पर है, और खासतौर पर इस प्रांत।
7) पाकिस्तान के अधिकारी कह रहे हैं कि ये हमला पूरी तरह से देखने पर लगता है कि जैसे मुंबई हमलों को अंजाम दिया गया था बिल्कुल उसी तरह इस का प्लान लाहौर में भी किया गया। याने कि वो हमला भी पाकिस्तान में प्लान किया गया था और ये हमला भी अंदर के लोगों ने ही प्लान किया है।
8) अभी तक जो माना गया है कि ये अटैक सुनियोजित था और 12 के 12 आतंकवादी अपने में पूरे ट्रेनेंड थे। शायद वो पूरी श्रीलंका की टीम को बंदी बनाना चाहते थे। पर देखने से जो लगा कि उनके पास अस्ला, बारूद, सामान काफी था पर फिर भी उसके बाद सवाल ये उठता है कि यदि वो सब ट्रेनेंड थे तो फिर सवाल ये कि मास्क पहन कर हमला करना और फिर मास्क फैंक देना, क्यों? जिस बैग को आप हमेशा अपने साथ, पीठ पर लादे रख रहे थे फिर उनको छोड़कर भागने का औचित्य क्या? गन, ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर इन सब को यूंही छोड़ कर क्यों भाग गए आतंकवादी? या फिर ये भी पहले से ही प्लान्ड था कि इनको छोड़ना था। बस पर इतने पास से रॉकेट दागा जाता है पर उसका निशाना चूक जाता है? बस के सामने से आकर बस पर ग्रेनेड फेंकने की कोशिश की जाती है और वो आतंकी के हाथ से छूटकर दूर गिर जाता है? क्या ऐसी ही ट्रेनेंड आतंकी थे जिन्होंने मुंबई पर हमला किया था?
9) सबसे बड़ा सवाल कि पाकिस्तान के इतने भरे-पूरे इलाके में 12 लोग हमला करते हैं और फिर मौका-ए-वारदात से गायब हो जाते हैं। एनकाउंटर तो दूर की बात लगभग 15 मिनट तक वो गोलीबारी करते हैं और फिर फरार हो जाते हैं और वहां कि पुलिस किसी को दबोचना तो दूर की बात उनका पता तक नहीं लगा पाती कि वो गए कहां। कोई भी वहां का निवासी ये बताने को राज़ी नहीं है कि आखिरकार वो किस तरफ गए हैं या उनको कहां देखा गया है। वैसे लाहौर के मॉडल टाउन इलाके से संदिग्ध 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, और इस मामले पर अब तक 60 लोगों को हिरासत में लिया गया।
10) दूसरी तरफ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरे हमले के पीछे वहीं पाकिस्तान की अंदरूनी रंजिश हो। किसी भी आतंकी का ना तो पकड़ा जाना और ना ही घायल होना, दाल को कहीं ना कहीं काला जरूर बनाता है।
तो ये सब सवाल खड़े हैं अपना मुंह खोले कि क्या कोई दे पाएगा इनका जवाब। लाहौर से बाघा बॉर्डर महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है। तो कई की आशंका है कि वो सारे आतंकवादी वहां से भागकर सबसे सुरक्षित स्थान भारत में दाखिल हो सकते हैं। तो फिर यदि देखा जाए तो कोई भी सुरक्षित नहीं है। ना इस पार के ना उस पार के। पाकिस्तानियों को ये समझना चाहिए कि ये हमला उनके देश में बैठे कुछ नापाक दहश्तगर्दों ने करवाया है। हम मुंबई हमलों के लिए किसी को माफ नहीं कर सकते, लेकिन अपनी पर आजाएं तो उसकी कीमत चुकाने की औकात इस जमाने में नहीं।

हम तो शुक्रगुजार हैं भगवान के उस बंदे का जो श्रीलंका टीम की बस का ड्राइवर था जिसने हिम्मत दिखाते हुए टीम को सकुशल गद्दाफी तक पहुंचा दिया। जिसके सामने वाले शीशे पर गोलियां टकरा रहीं थी और उसने एक्सीलेटर और अपने पैर पर विश्वास करके पाकिस्तान, क्रिकेट और आईसीसी के साथ-साथ दुनिया को शर्मिंदगी उठाने से बचा लिया और अकेले आतंक को मात देने में कामयाब रहा।

आपका अपना
नीतीश राज

(फोटो साभार-क्रिक इन्फो)

न्यूजीलैंड में भारत जीता, पाकिस्तान में क्रिकेट हारा।

ट्वेंटी-20 सीरीज हारने के बाद धोनी और धोनी की टीम के लिए पहला वन डे बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने था। धोनी के लिए फिर टॉस अच्छा रहा, और टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला। ओपनर के रूप में जैसा कि सोचा जा रहा था वो ही हुआ सहवाग के साथ गंभीर नहीं सचिन ही थे। सचिन से लोगों को काफी उम्मीदें, सचिन ने जमने की कोशिश की। वहीं दूसरी तरफ सहवाग अपने रंग में आ चुके थे। जहां सहवाग अर्ध शतक के नजदीक थे वहीं सचिन अभी डबल फिगर को छू ही पाए थे।

सचिन ने भी अपने हाथ दिखाए और दो शानदार चौके लगाए। एक-दो चौकों के बाद लग रहा था कि सचिन शायद उतनी फॉर्म में नहीं हैं, फिर भी इतने तो हैं कि नेपियर में अपना सर्वाधिक बना देंगे और जैसे मैंने सचिन से सवाल पूछा था कि क्या सचिन अपने चाहने वालों का अरमान पूरा कर पाओगे? चाहने वालों को जवाब मिल गया, दो चौके मारने के बाद सचिन बाहर जाती बॉल को स्लिप के रास्ते चार रन तक पहुंचाने की कोशिश में बॉल की रफ्तार और हवा से चकमा खा गए और कीपर को एक आसान सा कैच थमा बैठे।
जिसकी उम्मीद थी बिल्कुल उससे हटके हुआ। जहां लोग सोच रहे थे कि लेफ्ट-राइट का कॉम्बिनेशन देने के लिए कोई लेफ्टी आएगा याने कि सबसे सफल जोड़ी फिर होगी क्रीज पर, पर ऐसा हुआ नहीं। लोगों और मीडिया की खरी-खरी सुनने के बाद अपना पसंदीदा नंबर 7 छोड़ कप्तान धोनी 3 नंबर पर बैटिंग करने पहुंचे। अपने इस निर्णय को साबित करने के लिए धोनी ने धीमे और सधी शुरुआत करी। वहां वीरू का बल्ला बोल रहा था। अब तक वीरू 56 गेंदों पर 11 चौके और 1 छक्के की मदद से 77 रन बना चुके थे। विटोरी की गेंद पर एक लाजवाब शॉट सहवाग ने खेली और सर्कल के अंदर खड़े टेलर ने उससे भी शानदार कैच लपक वीरू की शानदार पारी पर ब्रेक लगा दी। चौथे नंबर पर टीम के युवराज आए और
कप्तान के साथ दूसरे रन के फेर में पड़कर पवैलियन की राह पर निकल लिए। अब टी-20 के स्टार सुरेश रैना की बारी थी। 20-20 के क्रम को आगे बढ़ाते हुए रैना ने मैदान के हर कोने में बॉल पहुंचाई और शानदार 4 छक्के और 5 चौंकों की मदद से महज 39 गेंदों पर 66 रन बनाकर छक्के मारने के प्रयास में एलिट की गेंद पर ब्रायन को कैच थमा बैठे। वहीं दूसरे छोर पर कप्तान ने पारी संभाल रखी थी। अब धोनी का साथ देने क्रीज पर आए यूसुफ पठान आए और 10 गेंदों पर 1 छक्के और 2 चौकों की मदद से 20 रन बनाए। धोनी की इस समझदारी भरी पारी में सिर्फ ६ चौकों की मदद से 89 गेंदों पर 84 रन बनाए। न्यूजीलैंड के सामने 7.20 की औसत के साथ लक्ष्य 38 ओवरों में 274 रहा।
वैसे, इस बीच न्यूजीलैंड में झमाझम बारिश होने लगी और पाकिस्तान में श्रीलंका टीम की बस पर दनादन फायरिंग। पाकिस्तान में दूसरे टेस्ट के साथ-साथ दौरा भी खटाई में पड़ गया। खेल और क्रिकेट के इतिहास का काला दिन। वहीं दूसरी तरफ न्यूजीलैंड में बारिश के कारण पहला वन डे के ओवर कम कर दिए गए, मैच 38-38 ओवरों का हो गया।
इरफान की जगह टीम में आए प्रवीण कुमार ने बिना खाता खोले न्यूजीलैंड को दूसरे ओवर में ही पहला झटका मैक्कुलम के रूप में दिया। न्यूजीलैंड की तरफ से टी-20 का सितारा अस्त हो गया था। दूसरा विकेट भी प्रवीण कुमार की झोली में गया। गुप्टिल और टेलर जब खेल रहे थे तो लग रहा था कि औसर रन रेट तो बढ़ता जा रहा है पर फिर भी यदि ये दोनों टिके रहे तो मैच को कभी भी पलटने की काब्लियत रखते हैं। १६वें ओवर में यूसुफ पठान ने घातक होते टेलर को सचिन के हाथों कैच करवाकर न्यूजीलैंड की मुसीबत और बढ़ा दी। एलिट को सहवाग के सपाट थ्रू ने रन आउट कर दिया और बारिश शुरू हो गई।
डकवर्थ लुईस नियम को लागू किया गया और फिर जो टार्गेट न्यूजीलैंड के सामने था वो लगभग नामुमकिन सा ही था। 43 गेंद पर 111 रन। जब चौथा विकेट गिरा था तो न्यूजीलैंड को 102 गेंद पर 163 रन चाहिए थे और उनके हाथ में 6 खिलाड़ी थे।
जब मैच शुरू हुआ तो स्कोर को आगे बढ़ाने के कारण ओरम युवराज का शिकार बने। अब लगने लगा कि यदि गुप्टिल का विकेट भारत कैसे भी झटक ले तो फिर पूरी तरह मैच भारत के पक्ष में हो जाएगा। और हुआ भी कुछ यूं ही, पर अब बारी थी भज्जी की। चार गेंद पर भज्जी ने 3 विकेट झटक लिए। सबसे पहले गुप्टिल, फिर ब्रूम और फिर मिल्स को आउट कर न्यूजीलैंड की हार में चारों तरफ कील ठोंक दी। कहां एक समय 132 पर 5 विकेट थे वहीं 9 विकेट भी होगए। अब बस खानापूर्ति ही शेष रह गई थी। और भारत ने पहला वन डे 53 रन से डकवर्थ लुईस नियम से जीत लिया। मैन ऑफ द मैच चुने गए टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी।

जब टीम इंडिया बैटिंग कर रही थी तब ये खबर फैल चुकी थी कि श्रीलंका की टीम पर हमला हो गया है। और दोनों टीमों ने हाथ पर काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया। धोनी ने कहा कि अच्छा हुआ कि भारतीय टीम ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया और शायद ही अब कोई भी खिलाड़ी पाकिस्तान में जाकर खेलना पसंद करेगा।
पर सच तो ये है कि पाक में पनपे आतंक के सच से खुद पाकिस्तानियों को लड़ना होगा और क्रिकेट को जिंदा रखने के लिए तालिबानी ताकतों के सामने घुटने नहीं टेकने होंगे। फिल्म के बाद अब इन दहशतगर्दों के निशाने पर है क्रिकेट पर आतंक से तो लड़ना होगा ही।

आपका अपना
नीतीश राज

(फोटो साभार-क्रिक इन्फो)

पाकिस्तान में श्रीलंका टीम पर हमला, पाक में आतंक के आगे हारा क्रिकेट।

पाकिस्तान में श्रीलंका टीम पर हमला हुआ। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब कि विदेशी दौरे पर गई किसी टीम पर आतंकवादी हमला किया गया हो। श्रीलंका की टीम की जगह वो भारत की भी टीम हो सकती थी। जनवरी-फरवरी में भारत को पाकिस्तान का दौरा भी करना था। ऑस्ट्रेलिया और भारत के मना करने के बाद श्रीलंका ने दो फेज में पाकिस्तान का दौरा करना कबूला। जनवरी में वन डे और फरवरी-मार्च में दो टेस्ट।

दूसरे टेस्ट का तीसरा दिन, श्रीलंकाई टीम की बस होटल से गद्दाफी स्टेडियम जहां पर दूसरा टेस्ट खेला जा रहा था वहां के लिए रवाना हुई। साथ में आगे पीछे सुरक्षा दस्ता। सब ठीक चल रहा था, श्रीलंका की टीम इस पर हल्की चर्चा करने में मश्गूल थी कि कैसे गेंदबाजी करनी है। पाकिस्तान के समय अनुसार सुबह 8.40 पर टीम की बस गद्दाफी स्टेडियम के पास लिबर्टी चौक के पास पहुंची। जैसे ही राउंडअबॉयुट याने गोलचक्कर पर घूमी, चारों तरफ से बस और बस को सुरक्षा दे रहे पुलिस के दस्ते पर हमला कर दिया गया। 12 आतंकवादी बस पर अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे जिसमें श्रीलंका की क्रिकेट टीम बैठी थी।
सामने से आ रही गोलियों से बच पाना बस के आगे चल रहे पुलिस दस्ते के लिए मुमकिन नहीं था। 7 पुलिसवाले मौके पर ही ढेर हो गए। बस पर ताबड़तोड़ गोलियां लग रहीं थी, और इधर खिलाड़ियों की चीख निकलने लगी।
6 खिलाड़ियों को गोलियां लगी।
फायरिंग की आवाज़ सुनते के साथ ही खिलाड़ियों ने झुकना शुरू कर दिया। चमिंडा वास ने बताया कि, फायरिंग के समय यदि वो झुके नहीं होते तो गोली लग सकती थी, गोली ठीक उनके ऊपर से गई थी। श्रीलंकाई बस के ड्राइवर मेहर मोहम्मद ने बताया कि गोली की आवाज़ के बाद पहले तो लगा कि कोईं पटाखे चला रहा है पर तुरंत पीछे बैठे किसी खिलाड़ी ने पीछे से आवाज़ लगाई कि ‘चलो, जल्दी चलो(go)’। ड्राइवर ने समझदारी का काम किया एक्सीलेटर पर रखा पैर और बस को गद्दाफी स्टेडियम के अंदर पर पहुंचाकर ही दम लिया। जो खिलाड़ी घायल हुए----

--कप्तान महेला जयवर्द्धने के पांव में टखना(ankle) में हल्का सा कट लगा, याने कोई खतरा नहीं।
--उप कप्तान कुमार संगकार के कंधे में गोली लगी, खतरे से बाहर।
--अजंथा मेंडिस-पीठ पर किसी चीज के गहरा घाव।
--थरंगा परनाविथाना-सीने में लगी गोलीघाव।
--थीलाना समरवीरा-जांघ में लगी गोली, खतरे से बाहर पर पूरी तरह नहीं। समरवीरा टीम के टॉप के बल्लेबाज जिसने पिछले टेस्ट और दूसरे टेस्ट की पहली पारी में दोहरा शतक जड़ा था।
--पॉल फरबरेस-श्रीलंकाई टीम के सहायक कोच के हाथ में गहरा घाव।

श्रीलंकाई टीम की बस के पीछे एलिट अंपायर की वैन भी आ रही थी। 5 अंपायरों के इस काफिले पर भी आतंकवादियों ने निशाना साधा और इसमें रिजर्व अंपायर एहसान रज़ा गंभीर रूप से घायल हो गए। अभी भी एहसान रज़ा अस्पताल में भर्ती हैं पर अभी-अभी पता चला है कि वो ख़तरे से बाहर हैं। लेकिन इस वैन को जो ड्राइवर थे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस की तफ्तीश के बाद पता चला कि 12 आतंकवादियों का ये काम था और उन्होंने हमले में ऑटोमैटिक गन, हैंड ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर और स्टार डायमंड पिस्टल का इस्तेमाल किया। कुछ का कहना ये है कि ये अटैक पूरा 26/11 मुंबई हमलों की तर्ज पर किया गया है।
वैसे ही पाकिस्तान में कोई भी खिलाड़ी जाकर नहीं खेलना चाहता। 2008 में ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पाक का दौरा रद्द किया था। उसके बाद चैंपियंस ट्रॉफी रद्द की गई। फिर भारत ने मुंबई हमलों के बाद दौरा रद्द कर दिया, जिसे की आज पूरा विश्व सही ठहरा रहा है। जब ये फैसला लिया गया था तो मुझे याद है कि दुनिया और कुछ पाक के खिलाड़ी जैसे आफरीदी ने काफी कुछ उल्टा सीधा कहा था। श्रीलंका की टीम ने हौसला दिखाया और उसके इस निर्णय पर कई सवाल भी उठे थे।

इस हमले के तुरंत बाद श्रीलंकाई टीम का पाकिस्तान दौरा रद्द कर दिया गया। कोई भी खिलाड़ी इलाज कराने के लिए भी पाक में नहीं रुकना चाहता था। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ये हुआ होगा कि किसी टीम को मैदान से ही हेलिकॉप्टर से दूसरे देश ले जाया गया और फिर वहां से वो रात तक वापिस अपने देश में पहुंच जाएंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Tuesday, January 6, 2009

क्यों हमारे देश भीख मांगने आ रहे हो मुशर्रफ?

अभी हाल ही में ये खबर सामने आई थी कि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्ऱफ भारत आ सकते हैं। वैसे मुशर्रफ इसलिए भारत नहीं आ रहे कि मुंबई हमलों के मामले में भारत की कुछ मदद कर सकें। दरअसल मुशर्रफ भविष्य में अपनी राजनीतिक गतिविधियों के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से भारत, अमेरिका, हांगकांग, चीन, यूरोपीय देशों की यात्रा कर विशेष व्याख्यान देंगे। इन सभी देशों में जाकर वो अपने संवादों के जरिए अपना नजरिया लोगों तक पहुंचाएंगे। और वैसे भी मियां मुशर्रफ के पास अभी दो साल का वक्त भी है क्योंकि दो साल याने नवंबर २००९ से पहले वो राजनीति में नहीं उतर सकते। सत्ता छोड़ने के बाद से ही ये पाबंदी लगी हुई है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये आता है कि जहां एक तरफ तो मुशर्रफ भारत के सबूत देने के बाद भी अपना बचाव करने में लगे हुए हैं साथ ही युद्ध तक की धमकी देने से गुरेज नहीं कर रहे तो भारत आकर व्याख्यान के जरिए भारत की जनता से अपने जीवनयापन और अपने स्वार्थ के लिए भीख मांगने की जरूरत क्या है। यदि लड़ाई रखनी है तो खुल के रखो। एक तरफ तो आप पीठ में खंजर भोंक रहे हैं, भारत को अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में जलील करने से भी नहीं चूक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अपने स्वार्थ के लिए आप भारत में आकर भारत के पैसों से, भारत का निवाला खाकर भारत के खिलाफ ज़हर उगलने की तैयारी कर रहे हैं।
यदि देखता हूं तो अपनी सरकार की ही राजनीतिक अस्थिरता ज्यादा नज़र आती है। क्यों हमारे फैसले अडिग नहीं रहते? यदि किसी देश ने आपका जीना दुर्भर कर रखा है तो बेहतरी इसी में है कि कुछ समय के लिए उस देश का बहिष्कार कर दो। दूसरे देश को इस बात से कितना असर पड़ेगा इस बात की चिंता करने की हमें जरूरत नहीं है। हमें अपने कड़े कदम उठाने की जरूरत है और साथ ही दुनिया को ये भी बताने की जरूरत है कि हम ये कड़े कदम उठा रहे हैं। यदि पाकिस्तान से दोस्ती के बढ़े हाथ लाहौर बस सेवा, ट्रेन सेवा और हवाई सेवा को कुछ समय के लिए रोक दिया जाए तो पता चलता है कि हां आपने अपना रुख साफ किया है। एक तरफ तो क्रिकेट टीम, हॉकी टीम पर रोक लगा दी गई है वहीं दूसरी तरफ आतंकवादी एक देश से दूसरे देश आ-जा रहे हैं इन सेवाओं के जरिए। और यदि उस सेवाओं को बंद करने पर किसी को ऐतराज है तो बेहतर है कि वो पाकिस्तान में जाकर बस जाए मेरे देश भारत में इनके लिए जगह नहीं हैं। आतंकवाद के नाम पर अमेरिका किसी देश पर हमला कर दे तो चलेगा तो क्या हम आतंकवाद के नाम पर अपने देश की सुरक्षा के लिए कुछ कड़े कदम तो ले ही सकते हैं।
हमारी सरकार को चाहिए कि कड़े कदम उठाते हुए मियां मुशर्रफ को देश में आने से रोकें वर्ना पता नहीं वो कौन शख्स हो पर जिस बात का पता है वो है कि जूता कानपुर का ही रहेगा और यकीन मानिए चेहरा मुशर्रफ का ही होगा।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, December 25, 2008

कब तक डरपोक बने रहेंगे हम? हर दिन के मरने से तो बेहतर है कि एक बार ही मर जाएं।

जब-जब भारत पर आतंकी हमला हुआ है तब-तब भारत की सरकार ने बड़ा ही कड़ा रुख इख्तियार किया है। हर बार पाकिस्तान की तरफ ही निशाना रहा। भारत की तरफ से सबूत भी पाक सरकार को दिए गए। हर बार भारत के कड़े रुख के बाद पाक का रवैया क्या रहा? क्या पाकिस्तान ने कभी भी इस बात को स्वीकार किया कि वो आतंकवादी हमला पाकिस्तान की जमीन से किया गया। नहीं, भारत के हर कड़े रुख का जवाब पाकिस्तान ने और भी तीखे तेवरों में दिया। कोई भी कुछ कहता रहा, पर पाकिस्तान ने किसी की भी नहीं सुनी। भारत ने पूरे विश्व का समर्थन हासिल किया लेकिन पाकिस्तान का रवैया उतना ही सख्त रहा, उसने कभी नहीं माना कि आतंकियों को पाक जमीन मुहैया है।
भारत की संसद पर हमला हुआ, विमान अपहरण कांड और दिल्ली, बैंगलोर, राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, भारत के हर प्रदेश पर संकट के काले बादल अपना क़हर बरपाते रहे। भारत को सबूत के तौर पर कुछ आतंकवादी मिलते रहे लेकिन कभी भी पाकिस्तनी सरकार ने ये कबूल नहीं किया कि उनकी जमीन ही है दहशतगर्दों की पनाहगाह। पाक अधिकृत कश्मीर में तो आतंकवादियों के गढ़ के इतने पुख्ता सबूत मिले जिसे की दरकिनार नहीं किया जा सकता था पर पाकिस्तानी सरकार ने इसे कभी नहीं माना और आज भी वहां कई आतंकवादी संगठन अपना गढ़ बनाए बैठे हैं और उनकी मदद कर रहा है आईएसआई। जिसके पुख्ता सबूत बकौल भारत सरकार भारत के पास हैं और कुछ तो पाक और यूएन को भी दिए जा चुके हैं।
करगिल, क्या किसी को याद नहीं है, अभी हम नहीं भूले हैं, पाकिस्तान की सरकार पर करगिल करवाने का इल्जाम लगा। जब तक कि पाक सरकार पर काबिज नवाज शरीफ कुछ कर पाते तब तक उन्हें ही देश से ऱुखसत करवा दिया गया। आज भी नवाज शरीफ इस बात से इनकार नहीं करते कि करगिल पाकिस्तान पर काबिज समानान्तर सरकार की ही देन थी जिसे कि उस समय के जनरल परवेज मुशर्रफ चला रहे थे। वो दौर था जब कि भारत के राजनीतिक और आपसी संबंध पाकिस्तान के साथ काफी सौहार्दपूर्ण हो गए थे। लेकिन ठीक इसी दौर के बाद पाकिस्तान को एक ऐसा जनरल कम नेता मिला जो कि चाणक्य की तरह सोचता था। उसने कई मामलों में भारत के साथ ऐसी कूटनीति खेली कि भारत के चाणक्य कुछ कर नहीं सके। हमारे देश में आकर ही पाक सरकार का वो जनरल अपनी अधिकतर बातें मनवा के चला गया। आगरा वर्ता के असफल होने का ठीकरा भी भारतीय सरकार के ऊपर ही फोड़ दिया गया। जनरल परवेज मुशर्रफ ने यूएन तक में जाकर हमारे कई तथ्यों को दरकिनार कर दिया और साथ ही पीठ में छुरा भोंकने से भी वो बाज नहीं आया।
अब बात आती है कि घुसपैठ तो पहले भी भारत की लगी पाक सीमा से भारत की जमीन पर होती ही रही हैं। लेकिन इस बार मुंबई में फिदाइनों ने मासूम जनता पर क़हर बरपा दिया। इस हमले ने भारत की आर्थिक राजधानी के साथ-साथ पूरे देश को दहशत से भर दिया। २०० से ज्यादा लोग मारे गए उसमें २० से ज्यादा विदेशी भी थे। पूरे विश्व में इस हमले की निंदा हुई। लेकिन पहली बार किसी फिदाइन हमलावर को जिंदा पकड़ा जा सका। उस आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने ये कबूला कि वो पाकिस्तानी है। आतंकवादी के कबूलनामें के बाद इस समय की सरकार को बाहर से सहयोग देने वाले नवाज शरीफ ने भी ये मान लिया कि कसाब पाकिस्तानी है। पाक मीडिया की जुबानी पूरी दुनिया ने ये जाना कि खुद कसाब के पिता और उस गांव फरीदकोट के लोगों ने ये माना कि कसाब पाकिस्तानी है पर पाकिस्तान को अब भी सबूत की दरकार रही।
भारत एक तरफ डर-डर कर ये बात कहता रहा कि भारत के सारे विकल्प खुले हुए हैं। भारत के विदेश मंत्री और पीएम ने कहा कि हम तो आतंकवाद को ख़त्म करने की बात कर रहे हैं। पाकिस्तान अपनी जमीन से जितनी जल्दी हो आतंकवादियों को पनाह देना बंद करे। दूसरी तरफ पीएम ने साफ शब्दों में कहा कि भारत का मुद्दा युद्ध नहीं, आतंकवाद है। पर दूसरी तरफ पाकिस्तान डंके की चोट पर कार्रवाई करने से मना कर रहा है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज कयानी ने तो यहां तक साफ कह दिया कि
‘पाकिस्तान की आर्मी पूरी तरह तैयार है और यदि भारत कोई भी कदम उठाता है तो भारत के हर कदम का जवाब एक मिनट के अंदर दे दिया जाएगा।’
जहां भारत सूझबूझ का परिचय दे रहा है वहीं पाकिस्तान अकड़ और अड़ियल रवैया अपना रहा है। पाकिस्तान ने अपने रैंजर्स राजस्थान और गुजरात सीमा से हटा कर वहां पर फौज की तैनाती कर रहा है। जबकि पाकिस्तान के इस कदम को भारत रुटीन कार्रवाई मान कर अभी अपनी सेना की तैनाती पर विचार कर रहा है। जबकि भारत की तरफ से एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं। सेना को अलर्ट पर रख दिया गया है लेकिन सीमा पर अभी भी बीएसएफ ही है।
मुंबई हमारे देश का हिस्सा है जब मुंबई पर हमला हुआ तो बैकफुट पर भारत क्यों है। कब तक हम ये सोचते रहेंगे कि अमेरिका हस्ताक्षेप करेगा तभी कोई फैसला होगा। क्या जब सबूत हमारे पास हैं तो क्या हम कार्रवाई नहीं कर सकते। पाकिस्तान के ऊपर जब अमेरिका को शक हुआ था तो उनके घर में घुसकर अमेरिकी सेना ने कार्रवाई की थी। मुशर्रफ को पूरा सहयोग देना पड़ा था, पाक के जितने कठमुल्ला थे सब मियां मुशर्रफ के खिलाफ हो गए थे। लेकिन अमेरिका ही आकर जज की भूमिका क्यों निभाए। हम फैसले बाद में लेते हैं अब जब कि पाकिस्तान पूरे एक्शन में आ गया है तो सरकार भी अपनी सीमा पर सुरक्षा तैनात करना शुरू कर देगी। ये ही समय होता है जब कि भारत की सरजमीं पर आतंकवादी सबसे ज्यादा आते हैं उन बर्फीली चोटियों से जो कि भारत का मस्तक है।
मेरा भारत महान, हम आजाद हैं, मेरे देश की तरफ जो भी निगाह उठा कर देखेगा हम उनकी आंखें नोच लेंगे। असल मायने में हम बस कहते रहते हैं, डरपोक हैं हम, डरते हैं हम, हर दिन हम जीते हैं पर डरते हुए, कब कोई गोली हमें मौत के आगोश में डाल दे। मौत से भरी जिंदगी से हमें शिकवा नहीं पर एक दिन में ये फैसला नहीं कर सकते कि इस जिल्लत से भरी जिंदगी नहीं चाहिए। अरे आज हम खुश नहीं हैं कल हमारे बच्चे खुश नहीं रहेंगे परसों उनके बच्चे। क्या करना है इस बात का फैसला भी हम अपने अनुसार नहीं लेते। क्यों आखिर क्यों? हम दूसरों की तरफ नजरें गड़ाए बैठे रहते हैं कि या तो वो आकर फैसला कर दे या फिर जब तक दूसरा कोई हरकत नहीं करेगा तब तक हम कोई हल्ला नहीं बोलेंगे। और जब हल्ला बोलेंगे और पैर पर गिरकर माफी मांगने लगेगा तो फिर हमसे बड़ा दानवीर इस धरती पर कोई नहीं। १९७१ में यदि बांग्लादेश बना तो हमारे कारण लेकिन पाकिस्तानियों के घर में घुसकर उन्हें हमने औकात दिखाई थी। पर जंग जीतने के बाद भी भारत ने क्या किया। वो जो भारत और पाकिस्तान के बीच की जड़ थी उस को खत्म नहीं किया। हम जंग जीत चुके थे तब भी हमने पीओके वापस नहीं लिया। क्यों, क्यों नहीं लिया आज वहां पर आतंकवादियों ने हमारी ही जमीन पर आतंक के कैंप लगा रखे हैं। अरे, मुंबई मेरा अपना है, मेरे देश का हिस्सा है, करगिल हमारा है, उसपर किसी ने आंखें उठाई थी, तुमने आंखें तो नोच ली पर ये क्या साथ में उन आंखों को ठीक करने के लिए दवा दारू सब कुछ खुद मुहैया करा दिया। मैंने देखी थी लाशें, जब जवानों को ताबूत में से निकाला जाता था और पूरा गांव दहाड़ें मार मारकर रोता था उस सफेद पाउडर से लिपे बिना हरकत के जिस्म को।
भारत के साथ-साथ अमेरिका तक ने भी ये कह दिया कि पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादी वारदातें बंद करे। सख्त बात कोई भी देश नहीं कर रहा है। साथ ही विश्व ये चाहता है कि ये पड़ोसी देशों का आपसी मामला है और हो सके तो दोनों देश ही मिलकर इस मसले को सुलझाएं। सभी ये जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु सक्षम देश हैं और यदि लड़ाई हुई तो नुकसान विश्व का होगा। इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान ये गेम खेलता है, जब भी पाक पर आतंकियों को पनाह देने की बात आती है तब ही वो सीमा पर ऐसा माहौल बना देता है कि जिससे लगे कि तनावपूर्ण स्थति बन चुकी है। ये भारत को समझना होगा कि पाकिस्तान हर बार इसी गेम प्लान के अंतर्गत काम करता है। भारत अब तक बहुत संयम का परिचय दे चुका है लेकिन हमारे संयमपन को हमारी कायरता ना समझा जाए, हम बार-बार ये बात कह चुके हैं लेकिन हमने कभी भी ये दिखाया नहीं है। देश का हर बाशिंदा इस खौफ के साए से अपने आप को निकालना चाहता है। हमारा साथ हमारी सरकार के साथ है, हम एक जुबान में कहते हैं कि अब कहने का नहीं करने का वक्त आ गया है।

आपका अपना
नीतीश राज

Sunday, December 21, 2008

सबूत पे सबूत मांगते हो, कार्रवाई करोगे या फिर...।

सबूत, सबूत, सबूत, सबूत मांगता है पाकिस्तान। कितने सबूत चाहिए पाकिस्तान को और किस बात के सबूत चाहिए। अब क्या आकाशवाणी होगी कि पाकिस्तान ही है जिम्मेदार। वो ही है मुंबई के २०० लोगों का हत्यारा और करोड़ों लोगों के दिल को दुखाने और दहशत भरने का जिम्मेदार। क़ातिल ने खुद मान लिया कि हां मैंने ही क़त्ल किया है। करोड़ों लोगों के सामने उसने नरसंहार किया। ऐसा नहीं कि तुम(पाक) नहीं देख रहे थे उस हत्याकांड को। पाक को भी पता चल रहा था कि हां ये उनके ही आदमी है लेकिन कबूल कर तो वो सकता ही नहीं।
मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबूत दिए साथ ही २० मोस्ट वांटेड लोगों की लिस्ट भी थमा दी। पाक ने तुरंत इस बात से मना कर दिया कि उनके देश में मोस्ट वांटेड नहीं हैं। साथ ही यदि होंगे भी तो हम भारत को नहीं सौपेंगे, जो भी करना होगा हम पाकिस्तान की अदालत में ही करेंगे। मतलब उनका भी साफ था कि पाकिस्तान फिर से अंग्रेजों के शासनकाल में लौट जाएगा जहां पर हर कानून उनका अपना होता था, जज से लेकर पैरोकार तक। भारत ने वो ही सबूत यूएन के पास भी भेजे थे। यूएन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए तुरंत पाक को आगाह किया और पाक के एक आतंकवादी संगठन पर कार्रवाई होगई। फिर पाक किस बात के सबूत मांग रहा है। जब एक तरफ तो हमारे दिए हुए सबूत पर कार्रवाई कर रहा है तो फिर किस बात के सबूत।
दूसरी तरफ जब कसाब ने ये खुद कबूल किया है कि वो पाकिस्तानी है और साथ ही पाक के फरीदकोट का रहने वाला है तो फिर भी पाकिस्तान को भरोसा नहीं हो रहा है। चलो भई कसाब को हमने और हमारी पुलिस ने खूब पीटा और फिर उससे जबर्दस्ती ये लिखवाया और बुलवाया जा रहा है तो चलो कसाब की बात भी छोड़ देते हैं।
पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला एक शख्स जो कि अपना नाम आमिर बताता है उसने बोला है कि टीवी पर दिखलाए जाने वाला आतंकवादी जिसने की मुंबई में नरसंहार किया वो उसका ही बेटा है। उस पिता ने तो यहां तक कहा कि वो कई दिन तक ये सोचते रहे कि कैसे कबूल करें कि अजमल आमिर कसाब उनकी ही औलाद है।
फरीदकोट के इस शख्स को रातों रात कहां गायब कर दिया जाता है कि पता ही नहीं चलता। दूसरी तरफ बीबीसी के संवाददाता जब वहां जाकर तहकीकात करता है तो उसे कसाब के घर सादी ड्रेस में पुलिस का पहरा दिखता है। पुलिस का पहरा क्यों? कोई जवाब देने के लिए। फिर उस रिपोर्टर को वहां से चले जाने के लिए कहा जाता है।
पाकिस्तान का नेशनल टीवी डॉन, एक स्टिंग ऑपरेशन करता है वो भी कसाब के गांव का। कैमरे पर तो नहीं पर हिडन कैमरे पर सभी लोगों ने कसाब की असलियत खोल दी।
अब पाकिस्तान की दो ऐसी शख्सियत ये बोल रही हैं कि अजमल आमिर कसाब पाकिस्तानी है। नवाज शरीफ ने एक पाक टीवी को दिए इंटरव्यू में ये साफ साफ कह दिया कि कसाब पाकिस्तानी है और जरदारी इस सच को सामने आने देना नहीं चाहते। साथ ही पाकिस्तान में इस सच को कबूल करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन सामने लाने वाला नहीं। नवाज शरीफ ने ये भी कहा कि खुद नवाज ने इस बात का पता लगाया है कि फरीदकोट का ही रहने वाला है कसाब और उसका परिवार भी वहीं रहता है और साथ ही उसके परिवार पर हर समय पेहरा है। सीधे उन्होंने ये बात कही है कि यदि कसाब पाकिस्तानी नहीं है तो फरीदकोट में इतनी सुरक्षा क्यों है।
अब पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष असमा जहांगीर ने ये माना है कि पाकिस्तान का ही है कसाब। साथ ही उन्होंने ये भी माना कि बेहतर हो कि पाकिस्तान सीधे-सीधे इस बात को मान ले और फिर क्या अब भी सबूत की जरूरत है पाकिस्तान को, ये असमा जहांगीर ने कहा।
पाकिस्तान और पाक मीडिया इस बात को कहीं और से जोड़ कर देख रहे हैं। पाक के मैरियट होटल को उड़ाने के अंदाजे से आरडीएक्स से भरा ट्रक होटल से टक्करा दिया जाता है वहां पर इस बात को भारत की तरफ से कार्रवाई माना जा रहा है। पाक मीडिया और विश्लेषक भी जरदारी राग अलापने में लगे हुए हैं। भारत को इस बार कड़ा कदम उठाना होगा।
कहीं से भी छोटी से भूल भारत-पाक को युद्ध की ओर लेजा सकती है। दोनों देशों को बचाना तो इस युद्ध से ही है क्योंकि अलगाववादी ये ही तो चाहते हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, November 6, 2008

मेरी नजर से, कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें

मेरी नजर से कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें हैं जो कि मैं हमेशा ही याद रखना चाहूंगा। वैसे तो हाल ही में मैंने अपने एक आर्टिकल में मोहाली टेस्ट के बाद ही ये कह दिया था कि अब कुंबले को हम भूलने लगे हैं और बेहतर हो कि कुंबले संन्यास ले लें। सारी दुनिया ये जानती है कि वो ढीले फील्डर के रूप में जाने जाते रहे हैं चाहे उन्होंने ६० कैच ही क्यों ना पकड़े हों। अनिल बल्लेबाजी भी कुछ खास नहीं माने जाते रहे, भले ही उन्होंने एक शतक वो भी नाबाद और पांच अर्द्धशतक लगाए हों जबकि वो अंतिम पायदान पर ही आते थे। शुरुआत में गेंदबाजी में विभिन्नता(वैरिएशन) के कारण जाने जाते रहे जबकि वो बॉल उतना घुमा नहीं पाते थे। हां, लेकिन उनकी रफ्तार किसी भी मध्यम तेज गेदबाज की तरह होती थी। कोई भी नहीं कहता था कि ये इंजीनियर कम गेंदबाज इतना सफल हो पाएगा।

चश्मा पहनें वो शांत, गंभीर, लंबा, इंजीनियर लड़का

चश्मा पहने एक लंबा लड़का, जिसकी टांगें उसको एक अलग शख्स के रूप में दिखाती थी। कोई भी ये नहीं कहता कि ये लड़का क्रिकेट की दुनिया में चल भी पाएगा। पर अपने जुझारूपन के कारण उसने अपने करियर की शुरूआत की और फिर जो शुरुआत की तब से कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। इंग्लैंड के खिलाफ ९ अगस्त १९९० में मैनचेस्टर में कुंबले ने अपनी पारी की शुरूआत की। इक्तेफाक देखिए १९९० में पहले ही मैच में कुंबले ने तीन विकेट लिए थे और अपनी आखिरी पारी कोटला में भी उन्होंने तीन विकेट ही लिए। वो मैच भी ड्रॉ हुआ था और ये मैच भी ड्रॉ हुआ। उस समय की टीम में नरेंद्र हिरवानी जैसे दिग्गज हुआ करते थे, जिन्होंने एक मैच में १६ विकेट लेने का करिश्मा दिखाया था, पर गायब कब हुए पता ही नहीं चला। लेकिन धीरे-धीरे इस खिलाड़ी ने टीम में जगह पक्की कर ली, कभी फिलिपर गेंद डालकर तो कभी मीडियम पेसर की रफ्तार से गेंद डालकर।

१९९९ में फिरोजशाह कोटला में कीर्तिमान

स्कोरबोर्ड पर १०१ रन बन चुके थे और एक भी विकेट पाकिस्तान का गिरा नहीं था। प्रसाद और श्रीनाथ दोनों गेंदबाजों को कामयाबी नहीं मिली थी। पहले सत्र में तो सभी गेंदबाजों को अनवर-आफरीदी की जोड़ी ने खूब ठोंका। लेकिन दूसरे सत्र की शुरूआत में ही कुंबले ने आफरीदी को मोंगिया के हाथों कैच आउट करवा दिया। फिर अगली ही गेंद पर इजाज अहमद को चलता कर दिया। ऑन द हैट्रिक थे कुंबले पर हैट्रिक ले नहीं पाए। दो ओवर के बाद ही इंजमाम ने एक लेजी सॉट खेली और गेंद खुद स्टंप को चूम गई। इस ओवर की पांचवीं गेंद पर यूसुफ योहाना को भी कुंबले ने अपना शिकार बना दिया। आफरीदी और युहाना दोनों ही इस बात से संतुष्ट नजर नहीं आए थे। जबकि आफरीदी तो साफ कॉट बिहाइंड थे और युहाना तो स्टंप के सामने ही पगबाधा हुए थे। फिर मोइन खान का स्लिप पर गांगुली ने शानदार कैच लपका। साथ ही सईद अनवर का कैच लक्ष्मण ने लपका। फिर भारत के सामने थे सिर्फ सलीम मलिक और कप्तान वसीम अकरम। कुंबले कहते हैं कि, ‘यदि इनको आउट कर दें तो फिर समझो कि मैच हमारे कब्जे में, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं दिख रहा था’। एक साल पुराने भी नहीं हुए हरभजन सिंह की गेंद पर वसीम ने जमकर चौकों की बरसात शुरू कर दी। पर तुरंत ही सलीम मलिक को कुंबले ने क्लीन बोल्ड कर दिया। मुस्ताक अहमद और सकलेन मुश्ताक को दो लगातार गेंदों पर आउट कर दिया। फिर कुंबले ऑन द हैट्रिक थे लेकिन ओवर खत्म हो चुका था। और ये किसी को भी पता नहीं था कि अगले ओवर में ये जोड़ी टिकी रहेगी। तभी श्रीनाथ को गेंदबाजी सौंपी गई और वहां कुंबले मैदान में भगवान से ये दुआ करने लग गए कि ये आखिरी विकेट भी कुंबले को ही मिले। श्रीनाथ ने सारी गेंदें बाहर फेंकी इस कारण दो गेंद वाइड भी हो गई। कोई विकेट लेना नहीं चाहता था। फिर कुंबले के हाथ में गेंद आई और वसीम अकरम को सिली पाइंट पर लक्ष्मण को कैच आउट करवा दिया और लिख दिया इतिहास जो कभी टूट नहीं सकता। इस रिकॉर्ड की बराबरी हो सकती है पर कोई तोड़ नहीं सकता।

२००२ में टूटे जबड़े से भी जीवट प्रदर्शन

मैंने अपने एक आर्टिकल में इस बात का पहले ही जिक्र किया हुआ है। टूटे जबड़े से भी कुंबले ने जुझारुपन दिखाते हुए लारा को आउट कर अपना काम कर दिया था। इतनी चोट लगने के बावजूद भी कुंबले ने १४ ओवर फेंके थे। भारत वेस्टइंडीज से वो मैच ड्रॉ करने में कामयाब रहा था।

ग्रेग चैपल का ख़ौफ़

ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि काफी समय तक सब कुछ सिर्फ और सिर्फ चैपल तक ही सिमट कर रह गया। जितने भी सीनियर खिलाड़ी थे उन सब पर चैपल ने निशाना साधा। सबसे पहले गांगुली, फिर द्रविड़ को अपने साथ मिलाकर गांगुली और द्रविड़ को भिड़ाना। शायद ये अध्याय भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए काला अध्याय था। फिर इस समय के महान खिलाड़ी सचिन पर भी साधा निशाना। कुंबले और लक्ष्मण दोनों ऐसे खिलाड़ी थे जो कि कभी भी बाहर का रास्ता देख सकते थे। कई बार कुंबले ने द्रविड़ के साथ इस बारे में बात भी की। द्रविड़ हमेशा ही समझाते कि अभी तो कुछ नहीं होने जा रहा है। फिर एक बार सचिन के साथ बात करते हुए कुंबले ने संन्यास की बात भी कही थी। सचिन का जवाब था कि बस परफोर्म करते रहो और यदि फिर भी कुछ होता है तो पहले निशाने पर मैं हूं उसके बाद किसी और का नंबर आएगा। उस समय सचिन की फॉर्म पर सवालिया निशान तो लग ही रहे थे। चैपल ने यहां तक कह दिया था कि सचिन सिर्फ अपने लिए खेलते हैं। कुंबले उस दौर को अपने क्रिकेट जीवन का सबसे कठिन समय मानते थे। इस दौरान ही एक-दो बार कुंबले ने पूरी टीम को अपने घर पर दावत भी दी। एयरपोर्ट से कुंबले के घर सचिन सीधे चले आते थे बिना झिझक के। इस समय में चाहे कुंबले पहले से भी कम बोलने लगे थे। वो ख़ौफ़ का वक्त था, जो वक्त निकल गया।

कप्तानी के साथ कोटला से विदाई

अपने ३७वें जन्मदिन के मौके से कुछ दिनों पहले ही कुंबले को कप्तानी की कमान सौंपी गई थी। कोई भी नहीं जानता था कि
पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में कुंबले को कप्तान बनाया जाएगा। २७ साल के बाद पाकिस्तान को हराने में कामयाब रहे। फिर सबसे विवादास्पद सीरीज जिसे की खुद कुंबले भी कठिन सीरीज मानते हैं। २-१ से भारत सीरीज हार गया था। साउथ अफ्रीका के खिलाफ से कुंबले की कप्तानी, गेंदबाजी, फील्डिंग पर असर दिखने लगा। श्रीलंका में तो जिस टीम से टेस्ट टीम हार कर आई थी उसी श्रीलंकाई टीम को हमारी वन डे टीम ने धो दिया था। इस सीरीज में तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। सही समय पर, सही अंदाज में कुंबले ने संन्यास ले लिया।

नागपुर टेस्ट और अंतिम बार ड्रेसिंग रूम में कुंबले

कोटला में ही कह दिया था कुंबले ने कि वो नागपुर में भी ड्रेसिंग रूम का हिस्सा जरूर होना चाहेंगे। कहीं ना कहीं ये जरूर लगता ही है कि यदि चोट नहीं लगी होती तो नागपुर टेस्ट ही कुंबले का आखिरी टेस्ट होता। पर कुंबले ने अच्छा किया कि कोटला में संन्यास ले लिया। सारा ध्यान ठीक तरीके से कुंबले पर ही रहा वर्ना शायद वो बंट जाता और फिर शायद कहीं पर कुंबले की अपनी बात भी दब जाती।
नागपुर टेस्ट काफी अहम टेस्ट है। सौरव गांगुली इस टेस्ट के बाद ही संन्यास लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। साथ ही पहले टेस्ट में गांगुली ने शतक जमाया था क्या जाते हुए आखिरी टेस्ट में भी गांगुली ये करिश्मा दिखा पाएंगे। वहीं वीवीएस लक्ष्मण अपना १०० वां टेस्ट मैच खेलेंगे। १००वें टेस्ट में क्या वो सैंकड़ा लगा कर छठे खिलाड़ी बन पाएंगे। वैसे सिर्फ रिकी पॉन्टिंग ही एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो कि अपने १००वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमा चुके हैं। साथ ही हरभजन सिंह को दरकार है सिर्फ एक विकेट की, फिर वो भी ३०० क्लब में शामिल हो जाएंगे।
लेकिन ये तो पक्का है कि हां, जंबो और दादा की कमी टीम इंडिया को खलेगी जरूर, याद बहुत आएंगे। सच एक युग और अध्याय को विराम लग जाएगा। एक तरफ सबसे ज्यादा मैच जीताने वाले गेंदबाज और दूसरी तरफ भारत के सबसे सफल कप्तान। इन्हें एक युग तो कहेंगे ही।


आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”