‘समीर लाल जी आपकी फरमाइश’
जब भी कभी टूर से वापस लौटता तो अकसर दोस्त-यार मुझसे पूछते हैं कि क्यों कैसा रहा? हमेशा की तरह जवाब होता, बस दुआ है। पर इस बार हाल पूछने पर, ना मालूम मेरे मुंह में इन शब्दों का अकाल क्यों पड़ गया? हर बार इस जवाब को मैं टालता जा रहा था, पर जब मेरे अपनों ने मेरे दिल में छुपी आवाज़ को बाहर निकालने के लिए आवाज़ लगाई तो सोचा कि जुबानी नहीं, अल्फाज के जरिए सब को बता दूं कि आखिर मेरे अंदर कि वो आवाज़ किस तरह जख्मी पड़ी है, जो मुझे लगातार, हर वक्त, मुझे खुद से जुदा किए जा रही है।
आजमगढ़, बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आतंक की इस जमीन को तलाशने के लिए मैं आजमगढ़ पहुंचा। नाम ले-लेकर कहा जा रहा था कि ये सारे आतंकी आजमगढ़ की ही मिट्टी ने उगले हैं। जब आजमगढ़ पहुंचा तो कुछ चाहने वालों ने कहा, ‘शम्स भाई यहां तक तो ठीक है पर हो सके तो सरायमीर या सनजरपुर नहीं जाना, दो दिन पहले ही कुछ पत्रकारों को पीट चुके हैं और कुछ को तो कई घंटे तक बंधक बना कर रखा, लोगों के अंदर बेइंत्हा गुस्सा है’। जाहिर है मंजिल के इतने करीब पहुंचकर मकसद से भटक मैं सकता नहीं था। आजमगढ़ के अपने साथी राजीव कुमार को साथ लेकर मैं मंजिल की तरफ निकल पड़ा।
आजमगढ़ से करीब तीस किलोमीटर दूर सरायमीर हमारा पहला पड़ाव था। गाड़ी से उतरते ही एक भाई ने दुआ-सलाम के बाद सड़क किनारे दवा की दुकान के बाहर कुर्सी दे दी। अभी हम वहां के ताजा हालात पर बात कर ही रहे थे कि तभी एक लड़का चाय और पानी ले आया। राजीव और हमारे ड्राइवर को ग्लास देने के बाद वो मेरी तरफ बढ़ा। मेरा हाथ मेरी जांघ से उठकर ग्लास की तरफ बढ़ता इस से पहले ही तिफलू भाई बोल पड़े-‘अरे शम्स भाई को मत देना इनका रोजा होगा। क्यों शम्स भाई रोजे से तो हैं ना आप?’ इतना सुनते ही मैं मन मसोस कर और हाथ मल कर मैं रह गया।
तिफलू भाई का इलाके में अच्छा रौब था और वहां के हालात को देखते हुए अब आगे के सफर में उनको अपने साथ रखना एक दानिशमंदाना फैसला था। सबसे पहले हमने रुख किया गुजरात बम धमाकों के मास्टरमाइंड कहे जाने वाले अबू बशर के गांव बीना पाड़ा का। गांव के प्रधान को पहले ही तिफलू भाई से खबर लग चुकी थी। जब हम पहुंचे तो सीधे अबू बशर के घर के दरवाजे के बाहर ही चारपाई बिछा दी गई थी।
अब हम जिस घर के सामने थे वो था एक आतंकवादी का घर, गुजरात धमाकों के मास्टरमाइंड अबू बशर का घर।
कुछ पल के बाद ही हमें एक बुजुर्ग से मिलवाया गया। शम्स, ये हैं बाकर साहब, अबू बशर के वालिद। उन्हें एक तरफ से फालिज ने मार रखा था। इधर-उधर की बातों के दौरान जितना अबू बशर को उसके वालिद के जरिए टटोल सकता था मैं टटोलने लगा। पर मगर बातचीत के दौरान ही एक ऐसा हादसा हुआ जिसे कि मैं अब भी जेहन से निकाल नहीं पा रहा हूं। बाकर साहब की पीठ उनकी घर की तरफ थी जबकि मेरा मुंह ठीक उनके घर के सदर दरवाजे की तरफ था। बातचीत के दौरान अचानक १४-१५ साल का एक लड़का अबू बशर के घर का दरवाजा खोलता है और फिर बाहर निकलते के साथ ही उस दरवाजे को वापस बंद कर देता है। सिर्फ पांच सेकेंड के लिए घर के अंदर का जो मंजर मैंने देखा तो उसे करीब से देखने के लिए मैं अंदर जाने को आतुर हो गया। पर सवाल ये था कि जाऊं कैसे? इस सवाल के हल के लिए मैंने तुरंत तिफलू भाई को अलग से बुलाकर अपनी ख्वाहिश बता दी।
फिर अगले ही मिनट मैं गुजरात धमाकों के मास्टरमाइंड और सिमी के सबसे खूंखार आतंकवादी अबू बशर के घर के अंदर था। दरवाजे से घुसते ही सामने एक ओसारा था, जिसके नीचे लकड़ी की एक चौकी पड़ी थी। चौकी के दो पांव को ईटों से सहारा दिया गया था। चौकी के सिरहाने(सर की तरफ) बेहद पुराना बिस्तर पड़ा था। जबकि चौकी की बाईं तरफ बगैर गैस के खाली गैस स्टोव करीब आठ ईटों पर रखा हुआ था। स्टोव और ईटों के बीच कुछ साबुत और कुछ अधजली लकड़ियां पड़ी थी। वहीं बराबर में कालिख हो चुके पांच बर्तनों के बराबर में मिट्टी का एक घड़ा रखा था।
उस घर में सिर्फ एक कमरा था। हम उस कमरे को भी देखना चाहते थे पर झिझक थी कि कहीं अंदर कोई महिला ना हो। तिफलू भाई ने हमारी वो परेशानी भी हल कर दो और हमें अंदर लेगए। उस कमरे में सिर्फ अबू बशर की मां ही थी। कमर या फिर कूल्हे पर उन्हें कुछ ऐसी परेशानी है जिसकी वजह से वो चल-फिर नहीं सकतीं। जितनी उनकी उम्र उस से भी उम्रदराज चारपाई पर वो एक मटमैली चादर पर लेटी हुईं थी।
कमरे को चारों तरफ से जब ध्यान से देखा तो लोहे के दो पुराने बक्से और एक ब्रीफकेस के अलावा अंदर कुछ नहीं था। पिता को फालिज और मां का ये दर्द। अबू बशर के दोनों छोटे भाई ही घर का सारा काम-काज करते हैं और साथ ही उन चार बर्तनों में खाना भी वो ही बनाते हैं। तिफलू भाई ने घर से बाहर निकलते वक्त घर के सदर दरवाजे पर नीले रंग का एक सरकारी निशान भी हमें दिखाया। ये निशान गांव के उन घरों के बाहर लगाया गया है जो गरीबी रेखा के नीचे हैं।
दुआ-सलाम के बाद हम वहां से अपने अगले पड़ाव की तरफ बढ़ गए। अगले पड़ावों पर कुछ लोग ऐस मिले जो की सिर्फ मीडिया पर ही दोष मड़ते नज़र आए। वहां पर काफी लोग इस बात से नाराज थे कि हम आजमगढ़ को आतंक की नर्सरी कैसे कह रहे हैं? मैंने विश्वास दिलाया और तत्काल प्रभाव से उस शब्द को कहीं दूर फिकवा दिया। अबू बशर के घर को तो हम बहुत पीछे छोड़ आए थे पर ना मालूम क्यों अब भी अबू बशर का घर मेरा पीछा ही नहीं छोड़ पा रहा?
शम्स ताहिर खान
(एंकर और क्राइम हेड, आजतक)
(समीर लाल जी की इच्छा थी कि वो ‘आतंकवादी का घर’ पढ़ना चाहते थे। साथ ही मैं अपने सहयोगी शिवेंद्र श्रीवास्तव और सुप्रतिम बनर्जी का शुक्रिया अदा करता हूं जिन्होंने शम्स ताहिर खान के ये जज्बात छापने की इज्जात दी।)
****इस स्क्रिप्ट में थोड़ा फेरबदल किया गया है।
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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Wednesday, April 8, 2009
Thursday, November 20, 2008
‘लिफ्ट याने मदद, पर ऐसी घटना से लगता है ना करो मदद’
ऑफिस की भागदौड़ के बाद जब हम ऑफिस से निकले तो रात के ११ बजने को थे। वैसे भी शाम को कुछ काम और काम से बड़ा उसको सही ढंग से ऑनएयर करने का प्रेशर कुछ ज्यादा ही रहता है। मैं और मेरे सहयोगी एक साथ हम नीचे उतरे सोचा कि चलो कहीं चलकर कुछ खा लें, फिर दोनों घर की तरफ रुखस्त हों। वैसे भी हम दोनों के रास्ते जुदा हैं एक पूर्व रहता है और दूसरा पश्चिम।
सहयोगी ने ऑफर किया कि चलो पहाड़गंज में एक अच्छा होटल है चलो वहीं चलकर कुछ खा पी लेते हैं, और फिर वो मुझे वापिस ऑफिस छोड़ कर घर चले जाएंगे। भूख के कारण मुझे भी ये फैसला उचित लगा। दोनों की हालत लगभगा एक जैसी थी, दोनों ने जल्दी-जल्दी ड्रिंक और खाना खत्म किया और फिर दोनों घर की तरफ निकल लिए।
अगले दिन जब ऑफिस पहुंचे तो फिर काम में हम दोनों जुट चुके थे। बीच में एक ख़बर आई कि लिफ्ट के बहाने दो लड़कियों ने एक आदमी को हजारों का नहीं लाखों का चूना लगा दिया। पैसे, घड़ी, सोने की चेन, सोने की दो अंगूठी, कार सब लेकर गायब होगई। अब वो आदमी पुलिस के धक्के खा रहा था। मेरा सहयोगी कुछ देर तक अपने दोनों हाथ सर के पीछे करके बैठ गया। मैंने पूछा क्या हुआ। वो खबर की तरफ ज्यादा मुखातिब था, मेरी बात शायद उसने ठीक से सुनी नहीं। मैंने दोबारा पूछा। उसने बताया कि ब्रेक पर बताऊंगा।
ब्रेक में उसने बताया कि कल जब वो मुझे छोड़ कर घर जा रहा था तो दो लड़कियों ने उससे भी लिफ्ट मांगी थी। उसने सोचा कि चलो सलवार सूट में सीधी-साधी लड़कियां हैं। उन दोनों लड़कियों को भी वहीं तक जाना था जहां पर मेरे सहयोगी को जाना था। दोनों को लिफ्ट दे दी, यूं ही तीनों में आपस में बात होने लगी। फिर एक लड़की ने पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। मेरे सहयोगी ने हां में सर हिलाते हुए जवाब के साथ सवाल पूछ लिया कि और आप लोगों ने? दोनों ने ना में सर हिला दिया। फिर लड़कियों ने एक रेस्त्रां में जा कर कुछ खाने की बात कही। सहयोगी को उस रेस्त्रां की पूरी हिस्ट्री पता थी उस को समझने में देर नहीं लगी कि वो शायद किसी जाल में फंसता जा रहा है। क्योंकि उस जगह पर कॉर्ल गर्ल और शराब दोनों देर रात तक आसानी से मुहैया होते हैं।
अब मेरे सहयोगी ने अपना पीछा उन दोनों से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी और फिर पता चली वो असलियत जिस के लिए मेरे सहयोगी ने अपने आप को तैयार कर लिया था। यदि आप खाना नहीं खा सकते तो दो-दो ड्रिंक ही कर लीजिए। हमें आपकी मनपसंद जगह पर भी जाने से एतराज नहीं हैं। हमसे सस्ते रेट आपको नहीं मिलेंगे। यदि आपके पास जगह नहीं है तो हमारे पास है लेकिन उसका एक्सट्रा लगेगा, पर आपके लिए हम उसमें भी डिस्काउंट करवा देंगे। यदि पैसे कम है तो आप अपने दोस्तों को भी बुला सकते हैं हम उन्हें भी सर्विस दे देंगे पर दाम फिक्स हैं। यदि कहीं नहीं जाना तो हम अपनी सर्विस आपको आपकी कार में भी दे सकते हैं। लंबी और बड़ी गाड़ी में हमको भी दिक्कत नहीं होगी।
मेरे सहयोगी ने दोनों को बड़े ही प्यार से बहला फुसलाकर वहां से चलता किया पर उसको एक काम जरूर करना पड़ा कि जहां से उनको बैठाया था वहां पर वापस छोड़ना पड़ा। क्योंकि पुलिस की धमकी से मेरा दोस्त खुद फंस सकता था और लड़कियों की एक आवाज से सहयोगी अस्पताल और हवालात दोनों जगह बड़े ही आराम से घूम कर आसकता था। सच मेरे सहयोगी ने बहुत ही अक्लमंदी का परिचय देते हुए दोनों से पीछा छुड़ाया।
बाद में उसने बताया कि, वो इन सब बातों के दौरान सिर्फ उन दोनों लड़कियों की शक्ल देख रहा था। और सोच रहा था कि क्यों उस समय भगवान ने ये अक्ल दे दी कि भली समझकर लिफ्ट दे दी। सभी राहगीरों पर से उठते अपने विश्वास को अपने अंदर कहीं टूटता हुआ महसूस कर रहा था। और शायद कहीं किसी जगह छोटे से कोने में ये सच भी हमारे अंदर पनप रहा है।
आपका अपना
नीतीश राज
सहयोगी ने ऑफर किया कि चलो पहाड़गंज में एक अच्छा होटल है चलो वहीं चलकर कुछ खा पी लेते हैं, और फिर वो मुझे वापिस ऑफिस छोड़ कर घर चले जाएंगे। भूख के कारण मुझे भी ये फैसला उचित लगा। दोनों की हालत लगभगा एक जैसी थी, दोनों ने जल्दी-जल्दी ड्रिंक और खाना खत्म किया और फिर दोनों घर की तरफ निकल लिए।
अगले दिन जब ऑफिस पहुंचे तो फिर काम में हम दोनों जुट चुके थे। बीच में एक ख़बर आई कि लिफ्ट के बहाने दो लड़कियों ने एक आदमी को हजारों का नहीं लाखों का चूना लगा दिया। पैसे, घड़ी, सोने की चेन, सोने की दो अंगूठी, कार सब लेकर गायब होगई। अब वो आदमी पुलिस के धक्के खा रहा था। मेरा सहयोगी कुछ देर तक अपने दोनों हाथ सर के पीछे करके बैठ गया। मैंने पूछा क्या हुआ। वो खबर की तरफ ज्यादा मुखातिब था, मेरी बात शायद उसने ठीक से सुनी नहीं। मैंने दोबारा पूछा। उसने बताया कि ब्रेक पर बताऊंगा।
ब्रेक में उसने बताया कि कल जब वो मुझे छोड़ कर घर जा रहा था तो दो लड़कियों ने उससे भी लिफ्ट मांगी थी। उसने सोचा कि चलो सलवार सूट में सीधी-साधी लड़कियां हैं। उन दोनों लड़कियों को भी वहीं तक जाना था जहां पर मेरे सहयोगी को जाना था। दोनों को लिफ्ट दे दी, यूं ही तीनों में आपस में बात होने लगी। फिर एक लड़की ने पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। मेरे सहयोगी ने हां में सर हिलाते हुए जवाब के साथ सवाल पूछ लिया कि और आप लोगों ने? दोनों ने ना में सर हिला दिया। फिर लड़कियों ने एक रेस्त्रां में जा कर कुछ खाने की बात कही। सहयोगी को उस रेस्त्रां की पूरी हिस्ट्री पता थी उस को समझने में देर नहीं लगी कि वो शायद किसी जाल में फंसता जा रहा है। क्योंकि उस जगह पर कॉर्ल गर्ल और शराब दोनों देर रात तक आसानी से मुहैया होते हैं।
अब मेरे सहयोगी ने अपना पीछा उन दोनों से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी और फिर पता चली वो असलियत जिस के लिए मेरे सहयोगी ने अपने आप को तैयार कर लिया था। यदि आप खाना नहीं खा सकते तो दो-दो ड्रिंक ही कर लीजिए। हमें आपकी मनपसंद जगह पर भी जाने से एतराज नहीं हैं। हमसे सस्ते रेट आपको नहीं मिलेंगे। यदि आपके पास जगह नहीं है तो हमारे पास है लेकिन उसका एक्सट्रा लगेगा, पर आपके लिए हम उसमें भी डिस्काउंट करवा देंगे। यदि पैसे कम है तो आप अपने दोस्तों को भी बुला सकते हैं हम उन्हें भी सर्विस दे देंगे पर दाम फिक्स हैं। यदि कहीं नहीं जाना तो हम अपनी सर्विस आपको आपकी कार में भी दे सकते हैं। लंबी और बड़ी गाड़ी में हमको भी दिक्कत नहीं होगी।
मेरे सहयोगी ने दोनों को बड़े ही प्यार से बहला फुसलाकर वहां से चलता किया पर उसको एक काम जरूर करना पड़ा कि जहां से उनको बैठाया था वहां पर वापस छोड़ना पड़ा। क्योंकि पुलिस की धमकी से मेरा दोस्त खुद फंस सकता था और लड़कियों की एक आवाज से सहयोगी अस्पताल और हवालात दोनों जगह बड़े ही आराम से घूम कर आसकता था। सच मेरे सहयोगी ने बहुत ही अक्लमंदी का परिचय देते हुए दोनों से पीछा छुड़ाया।
बाद में उसने बताया कि, वो इन सब बातों के दौरान सिर्फ उन दोनों लड़कियों की शक्ल देख रहा था। और सोच रहा था कि क्यों उस समय भगवान ने ये अक्ल दे दी कि भली समझकर लिफ्ट दे दी। सभी राहगीरों पर से उठते अपने विश्वास को अपने अंदर कहीं टूटता हुआ महसूस कर रहा था। और शायद कहीं किसी जगह छोटे से कोने में ये सच भी हमारे अंदर पनप रहा है।
आपका अपना
नीतीश राज
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