जो भी न्यूज़ देखता है उनसे पूछा जाए कि न्यूज़ चैनल के लिए क्या जरूरी है खबर या टीआरपी, तो अधिकतर कहेंगे ‘खबर’, पर न्यूज चैनल टीआरपी पसंद करते हैं और अब न्यूज़ कहां। लेकिन कुछ दिनों से ये देखा जा रहा है कि न्यूज़ चैनलों पर न्यूज़ वापस लौटी है। वर्ना पहले न्यूज़ के सिवा हमारे देश के न्यूज़ चैनलों पर सब कुछ होता था। नाग-नागिन, भूत, ज्योतिष, भ्रम फैलाने वाली ख़बरें और इन पर होने वाले लंबी-लंबी चर्चा, एक ही तस्वीर बार-बार दिखाई जाती थी। पर नहीं बदली तो खेल की खबरें पहले भी सिर्फ क्रिकेट होता था और अब भी सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट ही होता है, किसी और खेल को जगह नहीं मिल पाती। क्यों? क्योंकि भारत में क्रिकेट के सिवा कुछ नहीं ‘बिकता’। कुछ अंग्रेजी चैनल खेल की खबरों में सभी खेलों को जगह देते दिख जाएंगे पर हिंदी न्यूज चैनलों पर तो सिर्फ ढाक के तीन पात याने क्रिकेट। दूसरे खेलों के हाल का अंदाजा हम इससे लगा सकते हैं कि पुलेला गोपीचंद को खेल मंत्री एम एस गिल ने नहीं पहचाना था, जबकि गुपीचंद की शागिर्द सायना नेहवाल के कंधे पर हाथ रख कर मंत्री जी खड़े थे। शायद मंत्री जी भी हिंदी न्यूज चैनल ही देखते होंगे।
वहीं गर दूसरे शब्दों में कहें, कि क्या हमारी न्यूज इंडस्ट्री इतनी परिपक्व हो गई है जितने की पश्चिमी देशों की न्यूज़ इंडस्ट्री? हमारे लिए न्यूज़ क्या है? यदि हम ये सवाल अपने आप से पूछें तो हमारे जहन में सबसे पहले ख्याल क्या आएगा? हमारी खबरों का दायरा सिर्फ और सिर्फ हमारे इर्द गिर्द ही घूमता है, आस पास की क्षेत्रीय हलचल पर हम ज्यादा ध्यान देते हैं। देश में क्या चल रहा है राजनीति के स्तर पर थोड़ा बहुत लोग पढ़ भी लेते हैं या जान लेने के इच्छुक होते हैं वर्ना दूसरे प्रदेश, या देश या फिर सात समंदर की खबरों को जानने के इच्छुक हम बहुत ही कम होते हैं।
मुंबई हमलों के दौरान बीबीसी पर पूरे दिन-रात सिर्फ और सिर्फ मुंबई की ख़बरें ही छाई रहीं। क्या ब्रिटेन में २६ से २९ तक कुछ भी ऐसा नहीं घट रहा था कि वो बीबीसी चैनल पर एयर टाइम ले पाता। हमारे देश में तो बहुत से रिएलिटी शो हैं जिन पर हर दिन दो-तीन घंटे आराम से निकल जाते हैं। बीबीसी पर पूरे समय मुंबई हमलों का क़हर ही चलता रहा। सेटेलाइट फोन के जरिए तस्वीरें दिखाई जा रहीं थी। साथ ही विदेशी मीडिया इस बात का भी ध्यान रख रहा था कि कहीं भी विचलित करने वाली तस्वीरें ना दिखाई जाएं, क्षत विक्षप्त शरीर नहीं दिखे या फिर सेना की मूवमेंट भी नहीं दिखाई जा रही थी। बीबीसी पर ब्लॉगर छाए रहे, जो अपने ब्लॉग पर कोई जानकारी दे रहे थे, उनसे वो फोन पर बात भी कर रहे थे।
अब जब कि बहुत हद तक साफ हो गया है कि मुंबई हमलों में पाकिस्तान में मौजूद लश्कर-ए-तैयबा का हाथ है। साथ ही कसाब को भी पाकिस्तानी मान लिया गया है। लेकिन मुंबई हमला भारतीय मीडिया के लिए एक नया अनुभव साबित हुआ। क्या रोल हो मीडिया का इस बारे में बात अगली बार। इस तरह की कमांडों कार्रवाई पहली बार हमारी मीडिया ने देखी। यदि गौर करें तो श्रीनगर या फिर बोर्डर एरिया को छोड़कर कहां पर हमें याद आता है कि कमांडो कार्रवाई की गई जिसे इतने बड़े पैमाने पर कवर किया गया। अमृतसर के स्वर्णमंदिर में कमांडो कार्रवाई हुई थी पर तब कितना सजग था मीडिया। कुछ चुनिंदा अखबार हुआ करते थे लोगों के पास टीवी भी नहीं था। तो किसी शहर में वो भी मैट्रो सिटी में इस तरह आतंकवादियों का क़हर बरपाना और साथ ही सबसे आगे निकलने की होड़ ने इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से इतनी बड़ी गलती करवाई जिसका सीधे-सीधे फायद पाकिस्तान में बैठे इन आतंकवादियों के आकाओं को मिला और बिना बाहर देखे वो कमांडो की हर कार्रवाई के बार में आसानी से जान जाते और हमारी सेना को इसका काफी खामियाजा भुगतना पड़ता। लगता तो ये है कि सबसे पहले और आगे निकलने की होड़ ने हमारी इलैक्ट्रोनिक मीडिया और एजेंसियों को कभी परिपक्व ही नहीं होने दिया।
यहां पर ये गौर करने वाली बात है कि भारत-पाकिस्तान के बीच जंग जैसे हालात बन गए हैं। साथ ही दोनों देशों में साइबर वॉर छिड़ा हुआ है वहीं दूसरी तरफ मीडिया के बीच भी एक तरह की कोल्ड वॉर छिड़ गई है। ये समय होता है कि दोनों देश अपने आप में संयम बरतें पर ऐसा दिख नहीं रहा है। मीडिया की बात है तो कुछ कायदे, कानून, नियम, सरकार को बनाने ही होंगे जो कि ऐसी आपतकाल स्थितियों में मीडिया पर लागू हो। सरकार ही मीडिया को कुछ फुटेज और घंटे दर घंटे ब्रीफिंग करे और हालात से वाकिफ कराए। जब चाहे सरकार आपात स्थितियों में दुनिया के सामने जैसे चाहे हालात दिखाना चाहे वो दिखाए। याने कि जिस तरह की कवरेज से दूसरे समूह याने कि हमलावरों को फायदा नहीं पहुंचे। वैसे सरकार जल्द ही इस मामले में कुछ नियम कानून की व्यवस्था करने में जुट गई है। पर देखना तो ये होगा कि ये नियम आते कितने वक्त में हैं और न्यूज चैनल कितना इन नियमों पर अमल करते हैं। कुछ नियम एनबीए याने न्यूज ब्रॉडकास्ट एसो. ने भी बनाए हैं याने की वो संस्था जो कि मीडिया में रहकर मीडिया पर सख़्त नज़र रखती है। उनपर एक नज़र अगली बार।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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Tuesday, January 13, 2009
Thursday, September 4, 2008
एक चिट्ठी से सरकारी गलियारे में हलचल
अगर भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका करार से हट सकता है। इस बात की जानकारी
बुश प्रशासन की 9 महीने पुरानी चिट्ठी से हुई है। बुश प्रशासन ने ये चिट्ठी यूएस कांग्रेस को लिखी थी। ये चिट्ठी छपी है अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट में। चिट्ठी में लिखा है कि अगर भारत ने दोबारा परमाणु परिक्षण किया तो अमेरिका करार तोड़ देगा। यदि ऐसा अमेरिका करता है तो फिर भारत के हाथ करार पर इतना आगे बढ़ने के बाद भी खाली ही रहेंगे। ना तो भारत को परमाणु ईंधन मिलेगा और ना ही भारत को परमाणु इंधन को उपयोग करने के लिए तकनीकी मदद।
देश में हलचल तो स्वाभाविक थी। पीएम आवास पर तुरंत कांग्रेस की एक बैठक हुई। और भारत सरकार की तरफ से ये साफ किया गया कि भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु करार में कोई भी फेरबदल नहीं होगा। परमाणु परीक्षण पर भारत ने खुद ही अपनी तरफ से पाबंदी लगा रखी है। भारत पर इस मामले में कोई भी दबाव नहीं है। भारत अमेरिका के अंदरुनी मामलों में हस्ताक्षेप नहीं करता। पर सवाल उठता है कि यदि इन सब बातों की जानकारी मनमोहन सिंह को थी तो फिर आननफानन में बैठक क्यों बुलाई गई।
क्या इस चिट्ठी में जो भी लिखा है उसकी जानकारी भारत सरकार को थी। मनमोहन सिंह बार-बार ये

कहते रहे है कि इस करार से हमारी स्वतंत्रता पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा। इसका मतलब कि भारत के परमाणु कार्यक्रमों पर इस करार का कोई भी असर नहीं पड़ना। जबकि अमेरिकी राजदूत डेविड मलफर्ड का कहना है कि इस चिट्ठी के कंटेंट के बारे में भारत सरकार को पूरी जानकारी है।
यदि ऐसा है तो चिट्ठी में लिखी बातों का असर भारत और अमेरिका के संबंधों पर नहीं पड़ेगा और इस से भारत को घबराने की जरूरत भी नहीं है। बुश प्रशासन या यूं कहें कि अमेरिका को भी इतना आसान नहीं होगा इस करार से पल्ला झाड़ना। खुद अमेरिका इस करार को लेकर इतना आगे आ गया है कि इतनी आसानी से तो वो पीछे हट नहीं सकता।
पर भारत के लिए मुश्किल ये है कि ये चिट्ठी उस वक्त आई है जब कि भारत 45 देशों के न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप याने एनएसजी को परमाणु करार पर राजी कराने में जुटा है। देश में बहुमत मिल जाने से और सरकार बचा लेने से ये साबित नहीं होता कि करार होगया। अभी तो मंजिल बहुत दूर है।
आपका अपना
नीतीश राज

देश में हलचल तो स्वाभाविक थी। पीएम आवास पर तुरंत कांग्रेस की एक बैठक हुई। और भारत सरकार की तरफ से ये साफ किया गया कि भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु करार में कोई भी फेरबदल नहीं होगा। परमाणु परीक्षण पर भारत ने खुद ही अपनी तरफ से पाबंदी लगा रखी है। भारत पर इस मामले में कोई भी दबाव नहीं है। भारत अमेरिका के अंदरुनी मामलों में हस्ताक्षेप नहीं करता। पर सवाल उठता है कि यदि इन सब बातों की जानकारी मनमोहन सिंह को थी तो फिर आननफानन में बैठक क्यों बुलाई गई।
क्या इस चिट्ठी में जो भी लिखा है उसकी जानकारी भारत सरकार को थी। मनमोहन सिंह बार-बार ये

कहते रहे है कि इस करार से हमारी स्वतंत्रता पर कोई भी असर नहीं पड़ेगा। इसका मतलब कि भारत के परमाणु कार्यक्रमों पर इस करार का कोई भी असर नहीं पड़ना। जबकि अमेरिकी राजदूत डेविड मलफर्ड का कहना है कि इस चिट्ठी के कंटेंट के बारे में भारत सरकार को पूरी जानकारी है।
यदि ऐसा है तो चिट्ठी में लिखी बातों का असर भारत और अमेरिका के संबंधों पर नहीं पड़ेगा और इस से भारत को घबराने की जरूरत भी नहीं है। बुश प्रशासन या यूं कहें कि अमेरिका को भी इतना आसान नहीं होगा इस करार से पल्ला झाड़ना। खुद अमेरिका इस करार को लेकर इतना आगे आ गया है कि इतनी आसानी से तो वो पीछे हट नहीं सकता।
पर भारत के लिए मुश्किल ये है कि ये चिट्ठी उस वक्त आई है जब कि भारत 45 देशों के न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप याने एनएसजी को परमाणु करार पर राजी कराने में जुटा है। देश में बहुमत मिल जाने से और सरकार बचा लेने से ये साबित नहीं होता कि करार होगया। अभी तो मंजिल बहुत दूर है।
आपका अपना
नीतीश राज
फोटो साभार-गूगल
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मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”