Saturday, February 6, 2010

राहुल और शाहरुख जैसे और दो-तीन जवाब शिवसेना की मुंबई में कब्र बना देगा।


उत्तरभारतीयों के पीछे राज ठाकरे...खान से खुन्नस निकालती शिवसेना....शिवसेना के पीछे बीजेपी-आरएसएस...और अब इनके पीछे युवराज यानी राहुल गांधी। पर कुछ भी हो हार तो यहां बाल ठाकरे और उनके मुद्दे की हुई है।

ठाकरे के परिवार की अब वो हैसियत नहीं रह गई है जो कि पहले हुआ करती थी। ये हाल में देखने को मिल गया। कुछ साल पहले तक बाल ठाकरे की छत्रछाया पाने के लिए मुंबई पहुंचा हर बड़े से बड़ा शख्स आतुर रहता था। बाल ठाकरे को मुंबई का शेर माना जाता था पर जान पड़ता है कि धीरे-धीर शेर बूढ़ा हो चला है।

जब मुंबई में 1993 के बम धमाके हुए तब बाल ठाकरे का राजनीतिक कैरियर पूरे शवाब पर था। याद है कि मराठी मानुष की राजनीति करते-करते 1995 विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने 73 सीटों पर कब्जा किया था और उस समय कांग्रेस ही महज 9 सीटों से शिवसेना से आगे थी।

शिवसेना में अंतर कलह और उद्धव ठाकरे को ज्यादा तवज्जो देने से पार्टी के वरिष्ठ नेता ठाकरे खानदान से बगावत करके उनके सामने खड़े होने लगे। नारायण राणे, संजय निरुपम, और फिर शिवसेना को सबसे बड़ा आघात। घर का सदस्य राज ठाकरे घर छोड़ आंख से आंख मिलाने निकल पड़ा।

शिवसेना का वर्चस्व धीर-धीरे अपने अंत की तरफ जाता दिखाई दे रहा था। बाल ठाकरे की तबीयत नासाज रहने लगी थी। सारी बागडोर उद्धव ठाकरे के हाथों में आ गई और शिवसेना की नैय्या बीच में कहीं फंसकर रह गई। शिवसेना का सूरज डूबने लगा। वहीं, दूसरी तरफ राज ठाकरे नाम का सूरज आसमान पर चमकना शुरू कर चुका था। राज ने अपने चाचा के नक्सेकदम पर चलते हुए बांटों और राज करो की नीति अपनाई साथ ही कहीं पीछे दब चुके मराठी मानुष को जिंदा कर दिया।

2004 में शिवसेना के हाथ लगी थीं 62 सीटें, मुंबई में पिछड़ चुकी थी शिवसेना। अब 2009 में एमएनएस भी अपने पैर जमा चुकी थी। तो यहां पर 13 सीटों के साथ एमएनएस ने खाता खोला तो वहीं शिवसेना टूट गई और महज 45 सीटों से ही उसे संतोष करना पड़ा।

बाल ठाकरे ने सामने से वार करने के लिए रुख सामना का किया। अपने मुखपत्र से दिन-ब-दिन हस्तियों को निशाना बनाना शुरू किया। अमिताभ बच्चन से लेकर सचिन तेंदुलकर, मुकेश अंबानी, आमिर खान और अब शाहरुख खान।

अपने मुद्दे को छिनता देख बाल ठाकरे खुल कर सामने तो आ गए तब तक उनका सामना करने के लिए एक पूरी फौज ही तैयार हो चुकी थी। किंग खान कहे जाने वाले शाहरुख खान ने कह दिया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा कि जिसकी वजह से वो शिवसेना से माफी मांगें और शाहरुख खान किसी से नहीं डरता। सचिन और आमिर ने भी अपने तेवर पहले ही साफ कर दिए थे। अब तो शाहरुख के समर्थन में अभिषेक बच्चन और सलमान खान भी उतर आए हैं। शिवसेना की दोगली नीति अब सामने आने लगी। कुछ को सहारा और कुछ को लताड़ने का क्रम लोग समझने लग गए हैं।

राहुल गांधी ने पहले संदेशा पहुंचवाया और फिर वो मुंबई आए। पर मुंबई में इस बार लगा कि शिवसेना खत्म हो चुकी है। यदि पुलिस मदद नहीं करती तो शायद काले झंडे देखने के लिए मीडिया वाले तरस जाते। राहुल का कुछ भी बाल ठाकरे नहीं उखाड़ पाए। ये सभी जानते हैं कि बाल ठाकरे सिर्फ और सिर्फ सुबह सामना में ही अपनी झुझलाहट उतारेंगे।

शिवसेना के लिए ये नाक की लड़ाई है, इस बार पीछे हटे तो पार्टी कभी आगे नहीं आ पाएगी और इसका सबसे बड़ा फायदा होगा राज ठाकरे को। अभी तक तो देखने से लगता है कि आर-पार की इस लड़ाई में शिवसेना बैकफुट पर है और जवाब देने वाले फ्रंटफुट पर। अब तो 12-13 तारीख को ही पता चलेगा कि किसमें कितना है दम।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, February 3, 2010

राहुल लोकप्रिय कम पर उनके दीवाने ज्यादा हैं।


सुना था कि लोग दीवाने होते हैं पर आज देखा कि दीवानगी क्या होती है। पहले तो मैं ये मानता था कि दीवाने सिर्फ और सिर्फ फिल्मी हस्तियों के ही होते हैं। धीरेधीरे जानकारी हुई कि फिल्मी हस्तियों से कदम ताल कर रहे हैं क्रिकेटर। पर पहली बार दिखी दीवानगी किसी राजनेता के लिए। ये दीवानगी की बात है लोकप्रियता की नहीं जैसी कि साउथ में कई राजनेताओं की है।

हाल में ही सलमान खान अपनी फिल्म वीर के प्रमोशन के लिए कहीं पर भी जाते तो वहां पर उनके दीवाने ऐसे आते जैसे कि गुड के ऊपर मक्खियां। एक मॉल में गए तो वहां पर भगदड़ मच गई, एक मैराथन में गए तो लोग दौड़ना भूल कर सिर्फ और सिर्फ उनके पीछे हो लिए। प्रोग्राम तो हो ना सका पर हां ये प्रबंधकों को जरूर पता चल गया कि सलमान छोटे कद के अभिनेता नहीं हैं उनको बुलाना हो तो प्रबंध अच्छा खासा होना चाहिए।

बहरहाल, मैं जो बात कर रहा हूं वो लोकप्रियता से जरा हटकर है। राहुल गांधी। जी हां, राहुल गांधी पटना गए तो जो तस्वीरें टीवी पर देखीं तो मैं दंग रह गया। पटना में वूमेंस कॉलेज को चुना था राहुल ने। जिसमें कॉलेज के एक हॉल में उनसे कॉलेज की महज 400 लड़कियां ही मिल सकीं, बातचीत कर सकीं, सवाल-जवाब पूछ सकीं। बाकियों को बाहर ही इंतजार करना पड़ा। पर राहुल तो राहुल हैं।

राहुल ने हॉल की लड़कियों पर पता नहीं कहां से और क्या जादू फेरा कि वो उन्हें अपना आइडल मान बैठीं। वैसे भी, ये युवा नेता आज के युवाओं का आइडल तो बन ही चुका है। जिससे भी पूछा गया सबने राहुल की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए। फिर राहुल कॉलेज के बाहर निकले तो लड़कियों का हुजूम राहुल को देखने के लिए दौड़ लगा बैठा। हर तरफ सिर्फ और सिर्फ लड़कियां दौड़ती ही नज़र आ रहीं थीं। पहले तो राहुल ने गाड़ी में बैठे- बैठे ही हाथ निकाला और लहरा दिया पीछे आती लड़कियां राहुल-राहुल चिल्लाने लगीं। अब तो राहुल से भी नहीं रुका गया। राहुल ने गाड़ी रुक वाई और दरवाजा खोलकर खड़े होगए और हाथ हिलाने लगे। फिर तो हजारों चीखने-चिल्लाने की आवाज़ चारों तरफ से आने लगीं। कुछ तो लड़कियां उनकी गाड़ी के नजदीक तक आ पहुंची। फिर क्या था राहुल ने वो काम कर दिया जो उनहें नहीं करना चाहिए था।

राहुल ने अपना सुरक्षा घेरा तोड़ा और लगे लड़कियों से हाथ मिलानें। ऐसे ही सुरक्षा घेरा तोड़ने की कीमत देश चुका चुका है और खुद राहुल भी चुका चुके हैं। फिर भी राहुल ने ऐसा ही किया। शायद जोश में राहुल होश खो बैठे। राहुल की ये आदत कहीं उन्हें ले ना डूबे।

पर पता नहीं समझ नहीं आता कि राहुल नाम के पीछे ऐसा क्या है कि जो लोग इस नाम के दीवाने हो जाते हैं। मेरे ऑफिस में भी दो राहुल हैं उन पर भी सब मरते हैं। पर जो भी है शायद राहुल लोकप्रिय कम और उनके दीवाने ज्यादा हैं।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”