Friday, October 31, 2008

राज ठाकरे, तुम्हारे कारण ही तो पैदा हुए हैं राहुल राज जैसे हमलावर

मुंबई में जब सभी की निगाहें अटकी पड़ी थी कि शुक्रवार के काले दिन के बाद बाजार किस करवट बैठेगा तब मुंबई की एक बेस्ट बस में 23 साल का एक युवक चढ़ा और चंद मिनटों में सारी बस पर हावी हो गया। क्या सोच कर आया था वो युवक राहुल राज, क्या चाहता था वो, किसी को तब तक पता नहीं चल पा रहा था। आवाज और भाषा से लग रहा था कि वो मराठी नहीं है, और उसके हाथ में हथियार लहरा रहा था। बेस्ट की डबल डेकर बस में वो बार-बार चिल्ला रहा था कि उसे राज ठाकरे से मिलना है। कोई उस की बात पुलिस और मीडिया से कराए। बार-बार सिर्फ एक ही बात कि उसे राज ठाकरे से मिलवाओ, फोन पर पुलिस और मीडिया से बात कराओ। बताया जाता है वो राज ठाकरे के खिलाफ नारे भी लगा रहा था।

राहुल राज एक अनाड़ी हमलावर

राहुल राज ने सभी को ये बताया कि वो किसी को कोईं भी हानि नहीं पहुंचाएगा। कंडेक्टर को उसने पकड़ा कि मोबाइल से पुलिस और राज ठाकरे से बात कराओ। युवक बेचैनी में कभी इधर तो कभी उधर जा रहा था। बस के सारे यात्री डर और सहम चुके थे। फिर बाद में उसने अधिकतर यात्रियों को बस से जाने दिया। इस बीच कंडेक्टर ने पुलिस को सूचित किया। करीब 50 मीटर दूर पर ही था थाना, पुलिस तुरंत मौके पर पहुंच गई। पुलिस के सामने उसने 10 और 50 के नोट पर लिख कर संदेश दिया कि वो राज ठाकरे से मिलना चाहता है। कई जगह ये बात भी सामने आई कि उस पर लिखा था कि वो पटना से आया है राज ठाकरे को मारने लेकिन इस की असलियत क्या है किसी को पता नहीं चल पाई है, पर हां, वो राज ठाकरे से मिलना जरूर चाहता था। पुलिस अपने काम पर लग चुकी थी। पुलिस ने पूरी बस को घेर लिया और जब राहुल बस के अगले हिस्से में जाता तो पुलिस पीछे से चढ़ने की कोशिश करती और जब वो पीछे आता तो आगे से चढ़ती। राहुल राज दूसरी स्टोरी पर चला गया। इस बीच उसने पुलिस को डराने के लिए और ये दिखाने के लिए की उसके पास असली हथियार है उसने जमीन पर एक फायर किया। जब तक राहुल बस के ऊपरी हिस्से तक पहुंचता तब तक पुलिस ने हवा में दो फायर किए। जवाब में राहुल ने भी दो फायर हवा में किए। पुलिस बस के अंदर घुस चुकी थी लेकिन तभी हड़बड़ाए राहुल से एक गोली चली जो कि एक यात्री के पैर में लग गई। पुलिस ने फायर खोल दिया। राहुल को तीन गोली लगी और पुलिस का ये अभियान खत्म हुआ। बेस्ट की एक बस को अगवा करने की कोशिश को नाकाम कर दिया गया।

पुलिस की अपनी थ्यौरी

पूरे मामले में महाराष्ट्र पुलिस की पीठ ठोंकी गई और साथ ही पूरे मामले पर सियासत भी शुरू होगई। पुलिस ने अपने काम को सराहया और अपने कदम को सही भी ठहराया। पुलिस का कहना था कि यदि किसी भी कारण से उस शख्स की बंदूक से निकली गोली किसी भी यात्री को मार डालती तो पूरी दुनिया एक सुर में ये इल्जाम लगाती कि पुलिस को पहले ही उस शख्स को गोली मार देनी चाहिए थी। तो यदि पुलिस कुछ सही भी करती है तो भी उस पर इल्जाम लग जाता है। वैसे, पुलिस को आतंकवाद से लड़ने के लिए महाराष्ट्र में ये हिदायत है कि यदि कोई भी बंदुक से जवाब दे तो पुलिस भी फिर गोली का जवाब गोली से दे सकती है, और ये ही काम पुलिस ने भी किया। किसी के चेहरे पर ये नहीं लिखा है कि वो आतंकवादी नहीं है।

दो मंत्रियों की सोच में अंतर

वहीं महाराष्ट्र के गृहमंत्री का मानना है कि पुलिस ने जो भी किया वो ठीक है। जो भी नियम और कानून तोड़ेगा उसको हम ऐसे ही सबक सिखाएंगे। पर राज ठाकरे और एमएनएस के मामले में शायद वो ये सब भूल जाते हैं। राज ठाकरे ने पाबंदी के बावजूद मीडिया में अपनी सुरक्षा को कम किए जाने पर इंटरव्यू दिया है। वहीं, इस घटना के बाद सरकार ने राज ठाकरे को जेड श्रेणी की सिक्योरिटी वापस दे दी है। पर क्या महाराष्ट्र के ये बड़बोले गृहमंत्री और उप मुख्यमंत्री राज ठाकरे की जमानत रद्द करवाएंगे, या फिर कुछ भी कार्रवाई होगी। शायद नहीं। वहीं दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री का कहना है कि यदि पुलिस चाहती तो राहुल राज को पकड़ा जा सकता था। लेकिन ये मुंबई पुलिस की नाकामी है कि वो ऐसा करने में नाकाम रही और राहुल को मार गिराया। ये बातें दो मंत्रियों ने कहीं हैं और दोनों ही ऊंचे पद पर आसीन हैं। तो क्या कारण है कि दो मंत्रियों की राय एक नहीं हो पा रही है?

एनकाउंटर पर सियासत

राहुल राज के एनकाउंटर पर राजनीति भी गरमा गई, सब सियासत चमकाने लगे। एक के बाद एक दल ने राज्य सरकार पर साधा निशाना। सभी एक सुर में राज ठाकरे और उसकी पार्टी पर पाबंदी लगाने की मांग करने लगे। राज्य सरकार पर भी इसी बहाने निशाना साधा गया। अब तो शिवसेना को भी लगने लगा कि आखिर मुंबई में ये क्या हो रहा है। इस प्रकरण के बाद से शिवसेना बैकफुट पर दिखी। दो दिन तक राहुल राज के घर पर आने जाने वाले नेताओं का जमघट लगा रहा। कभी सीबीआई से जांच की मांग की जाती तो कोई जांच आयोग गठित करने की मांग करता। राहुल राज के घर के बाहर दिन भर लोगों को तांता लगा रहा, वहां नारेबाजी चलती रही। इसी बहाने अमर सिंह अमिताभ और राज ठाकरे का मसला फिर से उछालने से बाज नहीं आए। अमर सिंह ने लालू यादव और पासवान पर निशाना साधा। कुछ नेताओं ने राष्ट्रपति शासन की मांग भी कर दी महाराष्ट्र में।

एनकाउंटर या हत्या?

राहुल राज का एनकाउंटर हुआ है या हत्या? इस बारे में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। गर पुलिस चाहती तो उस नौसिखिए हमलावर को थोड़ी देर में ही पकड़ भी सकती थी। लेकिन शायद पुलिस ने ये कोशिश नहीं की। 15 मिनट के इस ड्रामे में क्या पुलिस को कोई भी मौका नहीं मिला कि वो राहुल के पिस्तौल वाले हाथ पर निशाना लगा सकें। क्या पुलिस उस के पैरों पर गोली नहीं चला सकती थी। क्या जरूरत पड़ी थी कि उसके शरीर पर एक साथ तीन गोलियां मारने की, क्या एक गोली से काम नहीं चल सकता था। उसके दोनों हाथ पर गोली मारी जा सकती थी। या पुलिस बिहारी या उत्तर भारतियों से इतना ज्यादा कुपित होगई है कि इस एपिसोड को खत्म करने के लिए उसने एक नौजवान की गोली मारकर हत्या कर दी। क्यों नहीं ये ही रणनीति ये आतंकवादी या किसी डॉन के साथ करते।

चिता जली पर सवाल बाकी

इस से दुखद पहलु क्या हो सकता है कि एक जवान बेटे का शव बाप के कंधे पर शमशान जा रहा हो। जिस दिन पूरे देश में दीए जलाकर रोशनी की जा रही थी उस दिन राहुल की चिता जली और उस बाप के ऊपर क्या बीती होगी जब दीवाली के रोज उसने अपने जवान बेटे की चिता को मुखाग्नि दी होगी। चिता तो जल गई है पर सवाल अभी बाकी हैं। मुंह बाए खड़े हैं कुछ सवाल जिनके जवाब कुछ तो राहुल की चिता के साथ जल गए और कुछ उस चिता की चिंगारियों से उठ खड़े हुए हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

ये क्षेत्रवाद की आग है, जो राजनीतिक गलियारे से लेकर आम लोगों तक डर और नफरत का रूप ले चुकी है

कहां जा रहे हैं आप लोग? जी, घर जा रहे हैं। घर? कहां रहते हैं आप लोग, यहां क्या काम के सिलसिले में आना हुआ था या काम करते हैं। जी, हम सभी यूपी के हैं और गोरखपुर जा रहे है। यहां काम करने के लिए आए थे, पर अब घर जा रहे हैं।
ये सुनने के बाद तुरंत सीन बदल जाता है। तकरीबन १०-१२ लड़के धुनाई करने लगते हैं चारों की। चारों कभी हाथ जोड़ते हैं कभी माफी मांगते हैं मुंबई में आने की, लेकिन वो लोग नहीं मानते। वो चारों इस बात का भी वास्ता देते हैं कि अब जो हम जा रहे हैं तो वापिस नहीं आएंगे। अपने और भाईयों से भी कह देंगे कि मुंबई से वापिस चले आओ, सभी को बोलेंगे कि मुंबई नहीं जाना है।
पर कोई इस बात से पिंघलने वाला नहीं था। मारा-पीटा गया सभी को मुर्गा बनाया गया काफी देर तक ये नाटक चलता रहा। इस बीच धर्मदेव को काफी चोट लग चुकी थी। वो तीनों उन से गुहार लगाने लगे कि हमें छोड़ दो नहीं तो इस की मौत हो जाएगी। लेकिन उन दरिंदों ने एक नहीं सुनी और उनको छोड़ने की जगह और यातना देने लगे।
धर्मदेव तो मर गया लेकिन उसके उन तीनों साथियों को पुलिस अपने साथ थाने ले गई। तीनों को बैठाकर रखा गया। एक दम से पूरे देश में जैसे कि इस खबर ने हड़कंप मचाना शुरू कर दिया। मायावती ने केंद्र से हस्ताक्षेप की मांग की औऱ मुआवजे का एलान भी कर दिया। वहीं मुलायम सिंह और अमर सिंह ने अपने-अपने पासे फेंक दिए। केंद्र ने अफरातफरी में महाराष्ट्र सरकार से इस हादसे की रिपोर्ट मांगी। तुरंत जवाब भेजा गया “ये कोई भी प्रांतीय या क्षेत्रवाद का मुद्दा नहीं है, सीट को लेकर दो गुटों में कहासुनी के बाद मारापीटी हुई और जिसमें एक की जान चली गई”।
क्या ये जवाब सच लगता है? दीवाली की रात को मुंबई में कौन सी ऐसी लोकल थी जिसमें कि इतने ज्यादा यात्री थे कि सीट को लेकर मार पिटाई हो गई? इतनी देर तक ये ड्रामा चलता रहा, तो कहां थी रेलवे पुलिस? इस सवालों को उठाते पर तभी हमें भी इस खबर को ‘टोन डाउन’ करने के लिए कहा गया। इसके पीछे सोच ये थी कि कहीं इन खबरों से कुछ चुनिंदा लोगों को तो फायदा होता है लेकिन नुकसान पूरे देश का होता है। तुरंत उत्तर भारतीय शब्द को हटा दिया गया। कहीं पर भी इस बात का जिक्र नहीं किया गया कि धर्मदेव कहां का रहने वाला है।
पर तभी खबर आई कि धर्मदेव के भाई को शव नहीं सौंपा गया और फिर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया पुलिस के द्वारा। पहले की मार ही नहीं भूले थे उसके साथी और दोस्तों को इस अत्याचार ने और डरा दिया। दोस्तों और साथियों ने कह दिया कि इस से तो बेहतर है थोड़ा कम कमाएंगे लेकिन रहेंगे अपने मुल्क में। धर्मदेव के पिता ने २० लाख के मुआवजे की रकम लेने से मना कर दिया और कहा कि मैं ‘२० लाख देता हूं मुझे राज ठाकरे दे दो’। इस बात से पता चलता है कि उत्तर भारतीयों के मन में भी राज ठाकरे ने घृणा की राजनीति आखिरकार भर ही दी है। ये नफरत की आग सब झुलसा देगी। ये एक बाप की आह थी जो राज ठाकरे को कहीं का भी नहीं छोड़ेगी।
उसके एक साथी शिव ने तो रोते-रोते कह दिया कि वो सब इस हादसे के बाद वापस अपने ‘मुल्क’ चले जाएंगे। इस मुल्क शब्द ने मुझे थोड़ा झकझोर दिया। क्या मुंबई गैर मुल्क हो गया है?
धर्मदेव की मौत हो गई।
धर्मदेव तो चला गया पीछे छोड़ गया वो दहशत जो कि हर उत्तर भारतीय के मन में पैदा होगई है। हर उस गैर परांतीय के मन में एक अनजाना डर बैठा गई है उसकी मौत, जो कि शायद दूर होने के लिए काफी वक्त की दरकार करे।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, October 27, 2008

वेतन तो पूर्णमासी का चांद और 'बोनस' अमावस्या में निकला चांद-अंतिम

यारों, एक-दो फरमाइशें हो तो कुछ पूरी भी हों परंतु ये क्या जो प्रेम-पत्र रूपी फरमाइशों का पूरा चिट्ठा ही थमा दिया गया है, लगता है कि अगली दीवाली तक पूरा हो ही जाएगा। और इस चिट्ठे की फरमाइशों को पूरा करने के लिए तो हर महीने बोनस मिलना चाहिए। हमारी इकलौती पत्नी जी के आदेशानुसार ये प्रेम-पत्र सिर्फ इसी दीवाली तक सीमित है। हमने जेट-किंगफिशर का हवाला दिया, साथ ही अमेरिका के एक के बाद एक हो रहे १६वें बैंक के दीवालियापन का भी वास्ता दिया। पर ये आदेश हमारी बेगम का है, पूरा तो करना ही होगा। बेगम को याद दिलाया कि इस महीने चार बच्चों का जन्मदिन भी पड़ चुका है। साथ ही तुम्हारे भाई(जो कि दूर वाले नाना के मोसेरे भाई के बेटे की बहन का लड़का है) की भी शादी, कुछ तो रहम करो। वैसे ही बजट का बंटा धार हो चुका है।
महंगाई ने तो पहले ही मार रखा है और साले की शादी ने हाल ऐसा कर दिया कि करेला वो भी नीम चढ़ा। साले साहब से पूछा था कि एक ही महीने में सगाई और शादी क्यों कर रहे हो। थोड़े दिन और जी लो, कुछ और मस्ती कर लो, कहीं और घूम लो वर्ना शादी के बाद तो सिर्फ याद रह जाएगी हर महीने की १ तारीख। सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे कारण दूसरों के घर के बजट की वॉट लग जाती है। दूसरे के घर के वित्तिय स्थिती पर भी निगाह डालो, वो तो पाकिस्तान की तरह दीवालिया होने की कगार पर खड़ा है और एक तुम हो जो कि सगाई और शादी एक ही महीने में रचाने चले हो। शादी कर लो फिर तुम भी कहीं पर कुछ यूं ही बोनस के बारे में तड़पते नज़र आओगे।
साले साहब को समझाने की कोशिश करूंगा कि यार देखो बे-हय्या(भै-य्या) तुम को कुछ दिन और ऐश करनी चाहिए, यार मेरी सलाह मानो और कुछ मेरा भी ख्याल करो। सगाई इस बोनस में निपटा दो और फिर ऐश करो और फिर ऐसा भी नहीं है कि बोनस की प्रक्रिया ख़त्म थोड़ी ही हो जाएगी, अगले बोनस में तुम्हारे हाथ पीले करवा देंगे। तब तक ऐश करो। लेकिन वो भी तो अपनी बहन पर ही गया होगा समझाओ कुछ और समझेगा कुछ। साला...। वो भी कहां मानने वाला है करेगा वो ही जो उसकी बहन कहेगी। कटेगी तो मेरी ही जेब।
श्रीमति जी का कहना कम आदेश ज्यादा हो चुका है, सगाई और शादी में एक ही तरह की बनारसी साड़ी नहीं पहनूगी और साथ में गले की रौनक भी अलग होनी चाहिए और ना जाने कितनी रस्में होती हैं, आखिर लड़के की बड़ी बहन हूं। मेरे पास साड़ियां हैं ही कहां, ‘सच में’। ऐसे सुरीले सच पर कौन ना मर जाए। सोचता हूं कि उठकर उनकों उनकी अलमारी और दो ट्रंक का नजारा करवा दूं। याद दिला दूं कि जब भी मायके से आती हैं तभी साड़ियों का भंडार साथ होता है। पर मैं घर की शांति बनाए रखना चाहता हूं। वैसे भी गृहमंत्री को रुष्ट किया तो गद्दी कभी भी छिन सकती है।
सोचा था इस बार अपना वो चश्मा बनवाऊंगा जो कि पिछले महीने में महंगाई के भूत और साथ में पेट्रोल, गैस आदि के रेट बढ़ने की कवायद के चलते पूर्व कल्पना से इस महीने की आवभगत में निकल गया। परंतु इस बोनस की मृतसइय्या पहले ही बन चुकी है। यह तो अब अगले महीने दो पहिया वाहन को छोड़कर बसों में धक्के खाकर, बचत के माध्यम से ही पूरा हो सकता है।
अब समझ में आता है हमारे पांडे जी, जो कि हमसे उम्र में काफी सीढ़ियां आगे जा चुके हैं दो बातें कहते हैं। पहली, आमदनी बढ़ने से खर्चों की जगह अपने आप बन जाती है। दूसरी, जो बात बताने जा रहा हूं वो उनके दिल से निकलती है, कि शादी के बाद आदमी भौं-भौं रूपी जानवर हो जाता है। यह बात सिर्फ और सिर्फ शादीशुदा आदमी ही समझ सकता है और कोई इस खाए हुए लड्डू की कल्पना भी नहीं कर सकता। और जिसे बोनस ना मिलता हो तो वो फिर कल्पना कर ही नहीं सकता।

आपका अपना
नीतीश राज



(सभी को दीवाली की शुभकामना)

Sunday, October 26, 2008

वेतन तो पूर्णमासी का चांद और 'बोनस' अमावस्या में निकला चांद

‘वेतन तो बेटा पूर्णमासी के चांद की तरह है जो कि महीने में एक बार दिखता है....’। याद आई ये लाइनें। प्रेमचंद का ‘नमक का दरोगा’ तो पढ़ा ही होगा सबने। ये लाइनें एक पिता की थी जो कि अपने दरोगा बेटे को ऊपरी कमाई के लिए ज्ञान के रूप में दी जा रहीं थी। बेटा मासिक वेतन से तो घर का खर्च भी नहीं चलता, सही होगा कि कुछ ऊपरी कमाई के बारे में सोचो। इसके आगे का कथन इसलिए नहीं लिखा क्योंकि उस कथन का सरोकार सिर्फ और सिर्फ पुलिसिया विभाग के लोगों की ज्ञानवृद्धि के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। अभी उस कथन का जिक्र नहीं करना चाहूंगा, नहीं तो पुलिस वालों की ज्यादा ज्ञानवृद्धि हो गई तो फिर हम सबकी दीवाली का सत्यानाश निश्चित ही समझिए।
पूर्णमासी का चांद महीने में एक बार दिखता है, उसी तरह वेतन भी एक तारीख को अपना सुंदर सलोना मुखड़ा किसी सुंदरी की तरह दिखाकर पूरे एक महीने के अज्ञातवास पर चला जाता है। महीने के मध्य से ही उसकी याद आने लग जाती है और महीने के अंतिम दिनों में तो बेसब्र याद जाती ही नहीं। शरीर में जान फूंकने के लिए उस एक दिन की याद से ही काम चलाना पड़ता है।
पूरे साल में दीवाली वाला ही महीना ऐसा होता है जब कि वेतन का छोटा भाई या फिर छोटी बहन जो भी कहना चाहें कह सकते हैं वो मिलता है। याने कि चांद धीरे धीरे फिर से बड़ा होने लगता है। वेतन का छोटा रूप 'बोनस' मिलता है। वैसे तो हमें वो भी नसीब नहीं होता पर कुछ को तो मिलता ही है। बोनस की राह तो पूरा जमाना बड़ी ही बेचारगी से महीने की शुरूआत से ही तकता है। साल में एक बार मिलने की वजह से इस पर उस दूध वाला(जो लिफ्ट ना चलते हुए भी इस महीने तो सांतवी मंजिल से नीचे नहीं बुलाता, खुद ही सीढ़ियों के रास्ते डोलू लेकर चला आता है), धोबी वाला, डाकिया, प्रेसवाला, कामवाली बाई, बच्चे, श्रीमति जी के साथ-साथ यहां तक कि खुद वेतनभोगी की भी निगाहें टिकी रहती हैं। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि इस महीने की शुरूआत से ही कैशियर बाबू को, पूरा का पूरा ऑफिस का स्टाफ दुआ सलाम करके निकलता है जो कि वैसे तो महीने के अंतिम दिनों में शुरू हुआ करता था। इस महीने तो कैशियर बाबू का इतना ध्यान रखा जाता है कि खांसें तो लगता है कि पूरे ऑफिस में भुकंप के झटके महसूस किए जा रहे हों। तिमारदारी ऐसे की जाती है जैसे कि लीलावती में अमिताभ बच्चन की डॉक्टर और नर्सें करती हैं।
महीने की शुरुआत से ही बोनस के ऊपर सपने संजोए हमारे बच्चे और उन नन्हों से भी चार हाथ आगे पहुंचती हमारी इकलौती बेगम। पिछले साल बोनस पर बच्चों की जिद्द पूरी नहीं हो सकी थी जो कि इस बार महंगाई दर की तरह अवश्य ही बढ़ भी चुकी होगी। नन्हों की नन्हीं ख्वाहिशें या मांगे तो नन्ही रकम से पूरी हो जाएगी। पर उन नन्हों की मां की बड़ी-बड़ी मांगों को कौन समझाएगा। गृहमंत्रालय को तो कोई भी रुष्ट नहीं करता प्रधानमंत्री तक भी नहीं। जानते हैं कि यदि रुष्ट किया तो गृहयुद्ध छिड़ सकता है। तो हम भी अपने गृहमंत्री को कैसे रुष्ट कर सकते हैं।

जारी है..

(और क्या होगा उस बोनस के साथ, अगली पोस्ट में)

आपका अपना
नीतीश राज


(सभी को धनतेरस और दीवाली की शुभकामना)

Friday, October 24, 2008

मुसलमान की शादी में जाने को आतुर क्यों हो? क्यों?

मेरे एक सहयोगी की हाल ही में शादी थी। शादी में जाने का पूरा प्लान मैंने बना लिया था। जब छुट्टी की बात आई तो जैसे की सभी के ऊपर दायित्व होते हैं वैसे ही मेरे ऊपर भी हैं। ऑफिस के साथ-साथ मैं अपनी सोसायटी में भी काफी एकटिव हूं। ऑफिस की बात बाद में पहले सोसायटी की बात करता हूं। जिस दिन मेरे सहयोगी की शादी थी उस दिन सोसायटी में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। तो मेरा वहां पर भी होना जरूरी था। मैंने अपनी बात सभी सोसायटी मैंबर्स के सामने रखी। इस बार मेरे बिना ही ये आयोजन करना होगा। और ऐसा भी नहीं था कि मेरी अनुपस्थिती में इतने बड़े आयोजन में कोई भी व्यवधान या दिक्कत आ सकती थी। सोसायटी के एक एक्टिव मैंबर ने मुझसे जाने का सबब पूछा कि आखिर जाना कहां हो रहा है। मैं टाल गया। फिर बात आई कि दो दिन बाद बिजली विभाग के कमर्चारियों के साथ मीटिंग है। तो उस मीटिंग की अगुवाई मेरे को करनी है। मैं बैकफुट पर था मैंने तुरंत मना कर दिया क्योंकि जिस सहयोगी की शादी में मुझे जाना था उस सहयोगी का रिसेप्शन शादी के दो दिन बाद रखा गया था और ऑफिस के कुछ सहयोगियों के साथ मेरा पहले ही प्लान इन दो दिनों के लिए तय हो चुका था। मेरा इनकार करना वाजिव था। मैंने अपनी बात दोहराई कि इन दो दिन तो मैं उपलब्ध नहीं हूं।
उसी मैंबर ने जिसने की पहले पूछा था कि क्य़ा काम है फिर से सवाल दोहरा दिया। इस बार मैंने बिना झिझक के ये बता दिया कि ऑफिस में मेरे एक सहयोगी.........(नाम) की शादी है। जो नाम मैंने लिया जिसको कि मैं यहां बता नहीं रहा हूं सुनकर उन सब के कान खड़े हो गए। तुरंत जो रिएक्शन था वो मुझे बहुत ही आपत्तिजनक लगा। क्यों जाना चाहते हो यार, हमें तो लगता है कि कोई जरूरी तो होगा नहीं तुम्हारा जाना, ना भी जाओगे तो चलेगा। मैंने बोला ये आपने कैसे सोच लिया। जवाब था, अरे उस शख्स का धर्म अलग है तो हम ये तो कह ही सकते हैं कि वो आपका भाई-बंधु तो है नहीं, तो सोसायटी के इस आयोजन में तो आपकी तरफ से भागीदारी हो ही सकती है।
मैं चुपचाप सुनता रहा। सब के अपने-अपने तर्क थे। कोई कुछ बता के मुझे रोकना चाह रहा था कोई कुछ बता के। मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि ये लोग मुझे काम के कारण रोकना चाहते हैं या कि कोई और वजह है। मैंने जानने के लिए एक सवाल दोहराया। अरे बिना मेरे भी तो कार्यक्रम आयोजित हो सकता है और फिर ऐसा कोई पहली बार तो हो नहीं रहा है। मैंने पिछले आयोजन का हवाला देते हुए बताया कि काफी मैंबर्स पिछली बार नहीं थे। एक-दो बिना तर्क के कुतर्क सामने रखे गए। तभी एक ने बोला एक मुसलमान की शादी में जाने को इतना आतुर क्यों हो? पहली बार तो मुझे लगा कि ना जाने ये इन्होंने क्या कह दिया? भई, मेरे सहयोगी की शादी और इसमें भी धर्म को सामने रखकर क्यों देखा जा रहा है।
वैसे ये पहली बार ही नहीं था जब कि किसी ने हाल के दिनों में मेरे से ये सवाल पूछा हो। ऑफिस और ऑफिस के बाहर भी इन सवालों से दो चार हो चुका था। लेकिन मैंने कभी भी इन सवालों पर तबज्जो नहीं दी। हाल ही में ऑफिस में ही एक सहयोगी ने ही ये सवाल उठाया था। तब मेरा जवाब था कि यदि वो शख्स तुमको कैफे से कॉफी पिलाता है तो तुम दौड़े-दौड़े चले जाओगे। फिर यदि सवाल उस शख्स की शादी का आता है तब तुम पीछे क्यों हट जाते हो। पहली बात तो वो हमारा साथी है फिर बाद में आता है कि शादी कहां है। उसके बाद भी मेरे ख्याल से तो ये सवाल आता ही नहीं है कि शादी किस धर्म के शख्स की है। और क्या शादी में जाने से दूसरा शख्स उस धर्म का हो जाता है।
अफसोस ये रहा कि जिस दिन उसकी शादी थी उस दिन खबर इतनी ज्यादा आगई कि ऑफिस से हम कई शख्स जा भी नहीं सके। पर रिसेप्शन में हम सभी गए। और इतने लोग गए कि दूल्हे ने पूरा वक्त हमारे साथ ही बिताया और साथ में वो बहुत खुश हुआ। ये एक ऐसी शादी थी कि जिसमें हम सभी धर्म के लोग गए और खूब मजा किया। सवाल करने वालों के मुंह पर ये ऐसा तमाचा था कि फिर अभी तक कोई सामने नहीं पड़ता है मेरे। जब भी मेरी सोसायटी के उन लोगों में से कोई मिलता है तो मैं उन्हें शादी की बात बताना नहीं भूलता और वो वहां से कन्नी काटना नहीं भूलते। ऑफिस में भी बढ़ा चढ़ा कर बताता हूं कि अच्छा है जलने वालों को और जलाओ।
रिसेप्शन का काफी अच्छा इंतजाम किया गया था। हम सबने साथ बैठकर खाना खाया। जो नॉन वेज नहीं खाते थे उनके लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन की भी व्यवस्था थी, और वो भी अलग से। वहां देख कर के लगा कि ऐसा नहीं है कि सभी लोग नॉन वेज खाते हैं, बहुत थे जो कि शाकाहारी थे। उसने हम सब का शुक्रिया किया कि हम लोग इतनी दूर उसके यहां पर हाजरी लगाने पहुंच गए थे। लेकिन कुछ भी हो सवालों के बीच इस रिसेप्शन में जाने का आनंद ही कुछ और आया।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, October 23, 2008

राज्य सरकार ने राज ठाकरे को पिटने से बचाने के लिए खेला ये खेल

राज ठाकरे को पुलिस ने पकड़ा, किसके कहने पर सरकार के कहने पर। सरकार ने पहल करके ये बताना चाहा कि बहुत हो चुका अब इस बड़बोले शख्स को जेल की हवा खिलानी ही होगी। कानून ने एक तरफ तो न्याय का चाबुक चलाया और दूसरी तरफ चाबुक शरीर पर लगने से पहले ही पकड़ भी लिया। वहीं दूसरी तरफ कानून की वो देवी जो कि आंखों पर पट्टी बांधे रखती है वो फिर किसी तरह से जागी और फिर चाबुक चमड़ी उधेड़ने के लिए उठा लेकिन शरीर पर पड़ने से पहले ही चाबुक पकड़ लिया। हिम्मत के आगे कानून जीता, हिम्मत हारी।
ये कोई पहेली नहीं है ये है कल्याण कोर्ट की कहानी। राज ठाकरे के खिलाफ सरकार ने जो प्लान बनाया था वो काफी अच्छा था। पर सरकार भी ये जानती थी कि यदि इस शख्स को लोगों तक पहुंचने दिया तो ये राज्य सरकार के लिए ठीक नहीं होगा। तो खेल खेला गया। एक ऐसा खेल जिससे दिखाने के लिए काम भी हो जाए और राज ठाकरे भी पिटने से भी बच जाए।
सरकार को राज ठाकरे ने रत्नागिरी में चैलेंज किया था कि अगर हिम्मत है तो पकड़ के दिखाओ और फिर देखना कि महाराष्ट्र कैसे जलता है। राज्य सरकार काफी दिनों से ये धमकियां सुन रही थी। और इस बार तो दबाव भी केंद्र से बन गया था(सीएम देशमुख ने कहा कि राज्य सरकार पर कोई दबाव नहीं था, वहीं शिवराज पाटील ने कहा है कि गृहमंत्रालय ने चिट्ठी लिखी थी और फोन पर खुद उन्होंने बात की थी। सच्चा कौन?)।
तभी राज्य सरकार को पता चला, राज ठाकरे के खिलाफ जारी हो चुका है एक गैर जमानती वारंट। राज्य सरकार तुरंत हरकत में आगई। यदि जमशेदपुर पुलिस राज ठाकरे को अपने साथ ले गई तो फिर राज्य में राजनीति कौन करेगा। कौन मारेगा-पीटेगा उत्तर भारतीयों को, जिनकी तादाद मुंबई-ठाणे में ज्यादा हैं। पता नहीं कहीं जमशेदपुर ले जाते हुए कोई भी सुरक्षा में चूक होगई और राज ठाकरे को बिहारियों के साथ झारखंडियों ने मिलकर पीट दिया या फिर कुछ ऊंच-नीच हो गई तो फिर अलगाव को नहीं रोका जा सकेगा। राज्य सरकार ने घोड़े दौड़ाए और ३००-३५० किलोमीटर दूर बैठे राज ठाकरे को रात के २.३० बजे के करीब गिरफ्तार कर लिया गया।
खबर फैली हर जगह उत्पात होना ही था और हुआ भी। लेकिन इस बार सिर्फ महाराष्ट्र में ही उत्पात नहीं हुआ। इस चिंगारी की आग पटना तक गई। वहां पर स्टेशन पर तोड़फोड़ की गई। बहरहाल ये बात बाद में।
कोर्ट में राज की पेशी होती है। सुरक्षा कारणों से देरी होती है और फिर बांद्रा कोर्ट से राज को जमानत मिल जाती है। पर राज्य सरकार ने पूरा इंतजाम कर रखा था। अब बारी थी कल्याण कोर्ट की। कल्याण कोर्ट में एक दूसरे मामले में राज को पेश किया जाना था पर देरी की वजह से एक पूरी रात मानपाड़ा थाने की हवालात में काटनी पड़ती है राज ठाकरे को। हर पुलिसकर्मी जेल में बैठे उस ढ़ोंगी के वक्तव्य सुनता रहता है और जी हुजूरी करता रहता है। रात कट जाती है फिर सुबह पेश किया जाता है पर अदालत में खड़ी उस देवी के आंखें में पट्टी है साथ ही वो पट्टी कान के ऊपर से निकलती है इसलिए ना वो किसी का दर्द सुन सकती है और ना देख सकती है। अदालत ने अपना काम किया इतना तेज चाबुक मारा, कि दीवाली भी जेल में काटने का इंतजाम कर दिया, ५ नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। फिर शरीर पर लगने से पहले ही पकड़ भी लिया, कोर्ट ने सिर्फ १५००० के निजी मुचलके पर जमानत भी दे दी। साथ ही देखा कि रेलवे पुलिस खड़ी है राज ठाकरे को पकड़ कर लेजाने के लिए और इतनी देर हो चुकी है कि वकील चाहे कुछ भी करें तब भी रात तो हवालात में काटनी ही होगी। और राज ठाकरे कमजोर भी दिख रहे हैं। तुरंत २४ तक हर मामले में अदालत ने राज ठाकरे को अंतरिम राहत दे दी। यानि की अब जब भी कार्रवाई होगी वो होगी २५ को याने कि जमशेदपुर कोर्ट से जारी वारंट का इलाज मिल गया। और शनिवार को कोर्ट में इस याचिका के खिलाफ पहले ही अर्जी डाली जा चुकी है। तो राज ठाकरे राज्य सरकार की राजनीति की वजह से राजशाही ठाठबाट पाते रहेंगे।
राजनीति इसे ही कहते हैं मेरे दोस्त। राज्य सरकार ने अपना उल्लू भी सीधा कर दिया और साथ ही राज की मुश्किल भी हल कर दी। वर्ना यदि राज ठाकरे को महाराष्ट्र छोड़कर जाना पड़ता तो क्या होता राज ठाकरे का इसका अनुमान सब लगा सकते हैं।

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नीतीश राज

मोहाली में मन्नत पूरी

मोहाली टेस्ट जीतने के बाद ये तो साबित होगया कि कंगारुओं को उनकी औकात दिखाने का हौसला यदि कोई टीम रखती है तो वो है टीम इंडिया। पर साथ ही ये भी साफ होगया कि किसी भी जीत के लिए ठोस नीव की जरूरत होती है। और हमारे बूढ़ों याने की फेब फोर ने अच्छा काम किया। और वहीं दूसरी तरफ तीन साल के भीतर भारत से दूसरी बार ऑस्ट्रेलिया को हार का मुंह देखना पड़ा है। ऑस्ट्रेलिया में पंटर(पॉन्टिंग)को पड़ने लगे हैं हंटर। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व खिलाड़ी ये मांग करने लगे हैं कि शेन वॉर्न और साइमंडस को वापस टीम में लिया जाए। कंगारुओं की करारी हार के लिए पूर्व खिलाड़ी टीम के नए चेहरे, अनुभव के अभाव और टीम में स्पिनर का ना होना मानते हैं। हमें भी ये जरूर सोचना होगा कि क्या वक्त आगया है कि फेब फाइव को टीम से विदा कर दिया जाए या अभी विकल्प ढूंढने बाकी हैं। पर चाहे जो भी हो मोहाली में भारत ने बाजी मारी और साथ ही कई रिकॉर्ड भी बने। टीम ने भी बनाया और साथ ही कई खिलाड़ियों के लिए ये मैदान बहुत ही भाग्यशाली रहा और साथ ही यादगार भी।

१) टीम इंडिया ने टेस्ट इतिहास में सबसे बड़ी रनों से जीत दर्ज की है। पारी की जीत को छोड़ दें तो टीम इंडिया ने विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को 320 रन से मात देकर मोहाली में नया कीर्तिमान रच दिया।
२) मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने सबसे पहले तो ब्रायन लारा के रिकॉर्ड को तोड़ा और फिर 12000 रन के शिखर को भी छू लिया जहां पर अभी तक कोई भी नहीं पहुंचा है। और जो अभी खेल रहे हैं वो इस आंकड़े से लगभग 1700 रन पीछे हैं। और वो हैं राहुल द्रविड़।
३) सचिन ने अर्द्धशतकों की भी हाफ सेंचुरी पूरी कर ली है। विश्व के वो तीसरे नंबर पर हैं उनसे ज्यादा अर्द्धशतक राहुल द्रविड़(53) और एलन बोर्डर(63) के हैं। यदि सचिन एक कैच और पकड़ लेते तो भारत की तरफ से 5वें खिलाड़ी बन जाते जिन्होंने कैच पकड़ने की शतकीय पारी खेली है।
४) अपनी अंतिम सीरीज में दादा सौरव गांगुली ने 7000 रन पूरे कर लिए और साथ ही 16वां शतक जड़ कर अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।
५) महेंद्र सिंह धोनी ने पहले ही टेस्ट में कप्तानी करते हुए जीत हासिल की।
६) अमित मिश्रा जिन्हें पांच साल के बाद मौका मिला और अपने पहले ही टेस्ट में 5 विकेट लेकर दूसरी टीम की नींव को इतना कमजोर कर दिया कि हार ही उनको नसीब हुई।
७) हरभजन सिंह बस एक विकेट से चूक गए वर्ना 300 विकेट लेने वाले तीसरे भारतीय खिलाड़ी हो जाते। अनिल कुंबले और कपिल देव के बाद अगले मैच में एक विकेट लेते ही वो तीसरे भारतीय हो जाएंगे जो कि तीन सौ के क्लब में शामिल हो जाएंगे।

ये तो बात होगई कुछ रिकॉर्डस की जो बन भी पाए और कुछ सिर्फ 1 के हेर फेर से चूक गए। पर यहां पर सौरव गांगुली के बाद अब अनिल कुंबले के ऊपर संन्यास के बादल मंडराने लगे हैं। दुनिया में तीसरे नंबर के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं जंबो जिनके भारत में सबसे ज्यादा विकेट हैं 616 और इनके आस पास दुनिया का अभी तो कोई भी गेंदबाज दिखाई नहीं देता। खेलने वाले गेंदबाजों में श्रीलंका के चमंडा वास है जिन्होंने 348 विकेट लिए हैं। जंबो ने 35 बार 5 विकेट और 8 बार 10 विकेट लिए हैं।

यहां पर एक घटना जंबो की बताना चाहूंगा। 2002 में एंटिगुआ में वेस्टइंडीज के खिलाफ जब जबड़े की हड्डी टूट गई थी तब टीम को बचाने के लिए अपने चेहरे पर पट्टी बांधकर वो बॉलिंग करने आए थे और तब सबसे घातक बल्लेबाज ब्रायन लारा को सस्ते में एलबीडब्ल्यू आउट किया था। शायद हमें वो पल जरूर याद होगा पर अब कंधे की चोट शायद जंबो को इसी सीरीज में संन्यास लेने के लिए मजबूर कर सकती है।

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नीतीश राज

Tuesday, October 21, 2008

सरकार ने दिखाई हिम्मत, राज ठाकरे गिरफ्तार

राज ठाकरे को गिरफ्तार कर लिया गया। रत्नागिरी में एक गेस्ट हाउस से हुई गिरफ्तारी। रात के ढाई बजे पुलिस ने उनको गिरफ्तार किया। वैसे रात में राज ठाकरे ने कहा था कि उन्हें पता नहीं है कि गिरफ्तारी कब होगी और पुलिस का प्लान ऑफ एक्शन क्या है। लेकिन अब उन्हें मुंबई लेकर आया जा रहा है और आज सुबह 11 बजे बांद्रा कोर्ट में उनकी पेशी होगी। और जहां तक उम्मीद जताई जा रही है उसमें तुरंत उनको जमानत भी मिल जाएगी। मुंबई के खेरवाड़ी पुलिस स्टेशन में राज ठाकरे के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। रविवार को खेरवाड़ी के चेतना कॉलेज में एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने जमकर उत्पात मचाया था और रेलवे की परीक्षा देने आए उत्तर भारतीय परिक्षार्थियों की जमकर पिटाई की थी। कुछ उत्तरभारतीय छात्रों ने खेरवाड़ी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था। उसी के चलते राज ठाकरे की गिरफ्तारी की गई है।
वैसे यहां पर सरकार ने थोड़ी हिम्मत तो दिखा ही दी। माना तो ये भी जा रहा है कि जमशेदपुर कोर्ट के गैरजमानती वारंट के बाद ही मुंबई सरकार जागी है। अब इसके पीछे क्या कारण है कहा नहीं जासकता कहीं राज ठाकरे को रांची की अदालत में जाने से रोकने के कारण ये गिरफ्तारी तो नहीं की गई। बहरहाल,राज ठाकरे ने रत्नागिरी में सरकार को चुनौती दी थी कि है हिम्मत तो कर लो गिरफ्तार, और फिर देखना महाराष्ट्र कैसे जलता है। सरकार ने ये हौसला तो दिखा दिया और राज ठाकरे को गिरफ्तार कर भी लिया। साथ ही गिरफ्तारी से पहले 1100 समर्थकों को भी पकड़ लिया था। पुणे से भी 50 कार्यकर्ताओं को पकड़ा गया। लेकिन गिरफ्तारी के बाद कार्यकर्ता भड़क उठे और फिर शुरू हुआ मुंबई की सड़कों पर उत्पात। कई गाड़ियों को फूंक दिया गया, कई टैक्सियों को तोड़ा दिया गया साथ ही ऑटो रिक्शे भी तोड़े गए। संजय निरुपम के दफ्तर पर भी हमला किया गया। सुबह-सुबह भी सोलापुर-पुणे हाईवे पर तीन ट्रक को आग के हवाले कर दिया गया। ये ही एमएनएस की राजनीति पक्ष-विपक्ष दोनों में वो सिर्फ तोड़फोड़ करना ही जानते हैं।

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नीतीश राज

“है हिम्मत, तो पकड़ लो मुझे, फिर देखना, कैसे पूरा महाराष्ट्र जलता है”

संसद में भी उत्तर भारतियों की पिटाई की गूंज सुनाई दी। पूरे दिन जमकर हंगामा हुआ। पिटाई के बाद ही सभी उत्तर भारतीय नेताओं ने राज ठाकरे के गुंडाराज को आड़े हाथों लिया। कई नेताओं ने मांग की थी कि राज ठाकरे पर लगाम लगे। जैसे लालू ने तो उन्हें मानसिक रोगी करार दे दिया। साथ ही कांग्रेस की सरकार को भी आड़े हाथों लिया। सीएम विलासराव देशमुख तो यहां तक कह गए कि प्रशासन की ही जिम्मेदारी होती है लोगों की सुरक्षा करना और प्रशासन इसमें पूरी तरह नाकाम रहा है, खासकर की एमएनएस की गुंडागर्दी को रोकने में।
लेकिन कांग्रेस की भी इसमें चाल है। इतनी लाचार तो कोई भी सरकार हो नहीं सकती। कांग्रेस जानती है कि शिवसेना की ४० साल पुरानी जातीय राजनीति के नए खेवनहार या कि उत्तराधिकारी के रूप में सामने आ रहे हैं राज ठाकरे। शिवसेना का वोट बैंक राज की झोली में जाएगा। लेकिन महाराष्ट्र में जहां भी उत्तर भारतीय है वो अपने बचाव के लिए कांग्रेस को वोट देंगे। और ऐसे कांग्रेस का फायदा होगा। लेकिन ये तभी संभव है कि जब राज ठाकरे की दादागीरी यूं ही चलती रहे और साथ ही शिवसेना भी उनसे यूं ही भिड़ी रहे। ये कांग्रेस की दीर्घकालीन परियोजना का हिस्सा है।
अब जमशेदपुर कोर्ट ने भड़काऊ भाषण और आपत्तिजनक टिप्पणियों, तोड़फोड़ के लिए राज ठाकरे के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया। मुंबई पुलिस को ये मिल भी गया है। मुंबई पुलिस ने दोपहर से ही एमएनएस कार्यकर्ता जो कि दंगा फैला सकते हैं उनकी धरपकड़ तेज कर दी और अबतक ११०० से ज्यादा लोगों को सलाखों के पीछे भेज चुके हैं।
राज ठाकरे की गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है। राज ठाकरे इस समय रत्नागिरी में हैं। मुंबई पुलिस रत्नागिरी पहुंच चुकी है। वहीं राज ठाकरे के वकीलों ने पहल कर दी है इस वारंट के खिलाफ। उन्होंने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी है जिस पर की शनिवार को फैसला होगा। लेकिन राज ठाकरे के ऊपर गिरफ्तारी के बादल मंडरा रहे हैं।
वहीं राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दी है कि ‘है हिम्मत तो पकड़ लो मुझे और फिर देखो कैसे पूरा महाराष्ट्र आग की लपटों में जलता है’।

तो ये हैं राज ठाकरे जो कि कभी पुलिस को कहते हैं कि वर्दी उतार के सड़क पर आओ तो बताते हैं कि ये मुंबई किसकी है। कभी सरकार को उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती देते हैं और फिर पकड़ने पर अंजाम भुगतने की धमकी भी दे देते हैं। ये हैं आज के नेता राज ठाकरे। फिर भी कई महाराष्ट्र के लोग हैं जो कि इस पागल और मानसिक रोगी के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। बेहतर होगा कि उन लोगों को राज ठाकरे की ही क्षेणी में ही रखा जाए। उनको भी हम मानसिक रोगी कह सकते हैं।

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नीतीश राज

Sunday, October 19, 2008

पहले पिटाई, फिर प्रदर्शन, और अब धरपकड़

अभी तो फिल्म बाकी है मेरे दोस्त। यदि देखा जाए तो महाराष्ट्र में नौकरी को लेकर उत्तरभारतियों की पिटाई तो सिर्फ टेलर भर थी। ये पिटाई मराठी बनाम गैरमराठी की है। ये लड़ाई सिर्फ अब एमएनएस की नहीं रह गई है। इस लड़ाई में वोटों की राजनीति है। हर पार्टी अब इस मुद्दे पर वोट का खेल खेलना चाहती है। तभी इस बार एमएनएस के साथ-साथ शिवसेना भी मारपीट की राजनीति में कूद पड़ी, जो कि वो पिछले ४० साल से कर रही है। वो ऐसे कूदी कि पूरे महाराष्ट्र में गुंडागर्दी देखने को मिली। कल्याण, ठाणे, सोलापुर, नेरूला, भांडूप, भायंदर, डोंबीवली सभी इलाकों में इनका क़हर बरपा।
अब महाराष्ट्र में सभी दल ये कहने लगे हैं कि ये किसी पार्टी विशेष की लड़ाई नहीं है ये तो स्थानीय लोगों की लड़ाई है। एक दम से सभी दल के नेताओं को हो क्या गया, कि स्थानीय लोगों की याद दूसरी पार्टी के कारण आने लगी। सीधे-सीधे ये नेतागण कहना चाहते हैं कि ये एमएनएस की लड़ाई नहीं है ये लड़ाई तो हम सब की है, हमने ही तो शुरू की है। मतलब कि वोट हममें भी बटें। सिर्फ कुछ मुट्ठी भर लोग, कुछ चुनिंदा लोग अब पूरे महाराष्ट्र के लोगों की किस्मत का फैसला करेंगे। ये जो गंदी राजनीति चल रही है ये महाराष्ट्र के सभी लोगों की सोच है? मैं तो ऐसा नहीं मानता,ये पूरे महाराष्ट्र की राय नहीं हो सकती।
इस बार इनके निशाने पर थे रेलवे भर्ती बोर्ड की परीक्षा देने आए उत्तर भारतीय छात्र। देर रात से लेकर सुबह तक जहां पर भी उत्तर भारतीयों को देखा गया वहां पर उनकी शामत आगई। मुंबई में शिवसेना के लोगों ने कोहराम मचाया तो महाराष्ट्र के अलग-अलग हिस्सों में एमएनएस के गुंडों ने। सोलापुर में एमएनएस के गुंडों की भी धुनाई की ये एक नई बात जरूर देखने को मिली और उसी समय 20 कार्यकर्ता गिरफ्तार भी किए गए। शिवसेना के 10 कार्यकर्ता भी पकड़े गए। और अब राज ठाकरे को पकड़ने के लिए 1100 एमएनएस कार्यकर्ता पकड़े गए हैं।
सारे हंगामे की जड़ ये है कि सभी नेता ऐसा सोचते हैं या यूं कहें की मांग करते है कि रेलवे की नौकरी में स्थानीय लोगों को ज्यादा भागीदारी मिले। खासकर चतुर्थ श्रेणी की नौकरी पूरी तरह स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित हों। सिर्फ इसी के चलते यहां पर राजनीति इतनी गरमाई हुई है। तो क्या हमें हमारे देश में ही इस तरह एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर यूं बुरी तरीके से जलील होना पड़ेगा।
जैसे कि मैंने पहले लिखा है कि फिल्म तो अभी बाकी है मेरे दोस्त। राज की गिरफ्तारी को लेकर जो ड्रामा शुरू होगा वो तो फिल्म का इंटरवेल होगा और फिर शुरू होगी वो फिल्म जिसकी शूटिंग छठ पूजा के बाद तक चलेगी। लालू प्रासाद यादव ने इस बार छठ पूजा मुंबई में मनाने का एलान किया है। साथ ही राज्य सरकार ने सुरक्षा का पूरा वादा भी किया है। तो फिल्म का क्लाइमैक्स तो अभी बाकी है, सो, फिल्म तो अभी बाकी है... मेरे दोस्त....।

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नीतीश राज

Saturday, October 18, 2008

एक घर की राजनीति, राहुल गांधी और सोनिया गांधी, 'बड़ा कौन'?

उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों पहले एक बात देखने को मिली। एक मां और बेटे के बीच लोकप्रियता का अंतर। उत्तरप्रदेश में सोनिया गांधी को ज्यादा जाना जाता है या फिर राहुल गांधी को? ये सवाल काफी दिनों से खड़ा हो रहा था जब से पिछली बार राहुल का नाम कांग्रेस के कुछ चाटुकारों ने प्रधानमंत्री के पद के लिए सुझाया था। कई बार एक और नाम सामने आया वो था प्रियंका गांधी का। कई बार तो ये लगता रहा कि प्रियंका गांधी यदि पार्टी की बागडोर संभाल लें तो राहुल का क्या होगा? शायद लोग राहुल को उस नेता के चश्में से ना देखें या फिर भावी प्रधानमंत्री के रूप में उनको ना भी सोचें। लोगों को राहुल गांधी को याद रख पाने में भी दिक्कत हो 'शायद'। यदि प्रियंका राजनीति में उतर जाएं तो कहीं राहुल का हाल क्यूबा के नए राष्ट्रपति राउल कास्त्रो जैसा ना हो जाए। सारी दुनिया जानती है कि राउल कास्त्रो में बहुत गुण थे लेकिन अपने बड़े भाई फिदेल कास्त्रो के सानिध्य में रहकर उनकी पूछ उतनी नहीं हुई जितनी की होनी चाहिए थी। राउल कास्त्रो की ही कई नीतियों के कारण ही क्यूबा को कई राजनीतिक फायदे हुए। राउल और फिदेल की रणनीतियों में बहुत अंतर था। राउल नई सोच का समर्थन करते थे जबकि फिदेल परंपरावादी थे। शायद इसलिए प्रियंका गांधी राजनीति में अभी तो नहीं आ रही हैं।
तो क्या राहुल को लोग अभी तक अपने जहन में नहीं बैठा पाए हैं या राहुल की पहुंच लोगों तक अभी हो ही नहीं पाई है। जबकि राहुल गांधी जहां भी जाते हैं सुरक्षा को धत्ता बैठाते हुए कहीं पर भी, किसी से भी मिलने लगते हैं।
रायबरेली में होने वाली जनसभा के कारण ये तो पता चल गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी में कौन कितने पानी में है। कांग्रेस की अध्यक्ष और महासचिव के अंतर के बारे में जानने का लोगों को मौका भी मिला। माना ये भी कि सोनिया गांधी के मुकाबले अभी लोग राहुल गांधी को सचमुच नहीं पहचानते और ना ही उतना जानते। जबकि राहुल गांधी पिछले कई सालों से भारत खोज में जुटे हुए हैं और जगह-जगह जाकर अपनी हाजिरी लगा रहे हैं। बावजूद इसके राहुल गांधी को लोग अभी उतना नहीं पहचानते हैं।
जहां एक तरफ माया ने अपनी माया दिखाते हुए धारा १४४ लगवा दी, वहीं सोनिया से मिलने लालगंज में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसा पहली बार हुआ है कि सोनिया का इतना असर देखने को मिला। इससे पहले कभी भी इतना तो असर नहीं ही देखा गया। वहीं यदि नजर डालें तो हाल ही में राहुल गांधी अपने परिवार के द्वारा उत्तर प्रदेश में गोद लिए हुए गांव में गए। हर जगह काफी चर्चा हुई राहुल की मेहनत की। राहुल ने वहां जाकर मजदूरी की, मिट्टी ढोई। बच्चों से हाथ मिलाए, लोगों से मिलते रहे, बात करते रहे, उनके साथ खाना खाया, चाय पी, लोगों की कुटिया में घुसकर लोगों से मिले और साथ ही गंदे कुर्ते में ही पूरे दिन रहे। लेकिन तभी गांव की एक महिला सामने आती है और लोगों से पूछती है कि ये गोरा सा लड़का कौन है? एक तरफ तो वो लोगों से मिल रहे थे। ऐसा भी नहीं कि पिछले दिनों उस गांव में चर्चा नहीं रही होगी कि कौन आ रहा है। फिर भी उस ग्रामीण महिला के सवाल से बहुत कुछ जाहिर होता है। उस महिला से लोगों ने पूछा, कि क्या इंदिरा गांधी को जानती हो, वो बोली हां। सोनिया गांधी को जानती हो, वो बोली हां, तो ये उसी सोनिया गांधी के लड़के हैं, राहुल गांधी । तो ये अंतर है राहुल और सोनिया में। उस ग्रामीण महिला को भी पता है कि सोनिया कौन है। शायद ये कहा जा सकता है कि राहुल को जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए हैं राजनीति में राजनीतिन करते हुए और सोनिया पुरानी खिलाड़ी हो चली हैं इस फील्ड की।
ऐसा नहीं है कि इंदिरा गांधी की तरह पूरी पावर ना पाते हुए भी पीछे से ही सही उस ‘पावर’ का उपयोग करती सोनिया गांधी ने कई चाल ऐसी चली कि जो इस चुनाव में कांग्रेस के लिए हार का सबब बन सकती हैं। जैसे देश की अंदरुनी सुरक्षा, सबसे कमजोर गृहमंत्री को बचाना, नटवर सिंह को विदेश मंत्रालय देना, ए के एंटनी को रक्षा मंत्री बनाना जो कि देर से निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं(जैसा कि हाल ही में स्टोल्ट वेलोर जहाज में फंसे भारतीय के मामले में) महंगाई पर रोक ना लगा पाना, आदि। ऐसे कई मुद्दे हैं जिसके कारण वो घिरी हुई हैं। कई को तो वो ठीक कर सकतीं थी पर कई मुद्दों को उन्होंने ठीक किया ही नहीं।
शायद लोगों को बहू ज्यादा याद है पोते से। या यूं कहें कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर जो राजनीतिक चाल चली थी वो इतनी कामयाब हो गई कि लोग उस अवसर को आज भी अपने जहन में बैठाए हुए हैं। उस चाल ने उनका कद बढ़ा दिया और लोग ये मानने लगे हैं कि सोनिया गांधी वो ही महिला हैं जो कि एक ऐसे पद को ठुकरा चुकी है जिसके लिए हर पार्टी के लोग दल बदल करते रहते हैं और सब के सामने लड़ने से भी नहीं हिचकते।

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नीतीश राज

रनों के शिखर पर सरताज "सचिन"


सचिन ने जैसे ही ऑस्ट्रेलिया के मध्यम गति के गेंदबाज पीटर मैथ्यु सीडल की बॉल को थर्ड मैन के लिए खेला वहीं सचिन ने वो कामयाबी अपने 152 वें टेस्ट में हासिल कर ली जिसका इंतजार सभी को श्रीलंका सीरीज से था। सचिन वन डे क्रिकेट में तो सबसे ज्यादा रन बनाने वाले पहले ही बन चुके हैं और आज ये कामयाबी उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भी पूरी कर ली। इक्तफाक देखिए कि सचिन ने भी वर्ल्ड रिकॉर्ड उसी टीम के खिलाफ बनाया जिसके खिलाफ ब्रायन लारा ने ये मुकाम हासिल किया था। ब्रायन लारा ने एलन बोर्डर के 11174 का रिकॉर्ड 2005 में एडिलेड टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ही तोड़ा था। अब तक सिर्फ तीन खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने 11000 रन के आंकड़ें को छुआ है। एलन बोर्डर, ब्रायन लारा और सचिन तेंदुलकर। अब सचिन के रिकॉर्ड तो गर अभी कोई पहुंच सकता है तो वो हैं उनके पीछे चलने वाले राहुल द्रविड़ जो कि 10302 रन बना चुके हैं जिसमें आज के 39 रन भी शामिल हैं। और दूसरे हैं जो कि राहुल का पीछा करते हुए चल रहे हैं, ऑस्ट्रेलिया टीम के कप्तान रिकी पॉन्टिंग जिन्होंने 10239 रन बनाए हुए हैं। वैसे सबसे ज्यादा रन बनाने वालों की बात करें खेलने वालों में, तो पहले दो नंबर पर दोनों खिलाड़ी भारत के ही हैं।
मोहाली में खेले जा रहे दूसरे टेस्ट में सभी को उम्मीद थी कि मास्टर ब्लास्टर सचिन रमेश तेंदुलकर का बल्ला चलेगा और वो रिकॉर्ड को अपनी मुट्ठी में जरूर कर लेंगे। और हुआ भी वैसा ही। दूसरे टेस्ट में कुंबले की जगह अमित मिश्रा को जगह मिली और भारत की तरफ से पहली बार कप्तानी कर रहे एम एस धोनी ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। क्युरेटर के मुताबिक ये पिच तेज गेंदेबाजों को पूरा साथ देगी लेकिन गंभीर और सहवाग ने धुंआंधार शुरुआत की। लेकिन 35 के निजी स्कोर पर सहवाग जॉनसन का शिकार बने। द्रविड़ ने आते के साथ ही आक्रामक शॉट्स खेले और अपनी इच्छा जाहिर कर दी। लेकिन 39 के निजी स्कोर पर ली ने उन्हें प्ले डाउन करते हुए क्लीन बोल्ड कर दिया। अब बारी थी रिकॉर्ड प्लेयर की। पर तभी टीम का स्कोर जब 146 था तभी गंभीर भी आउट होगए। 146 पर दो झटके के बाद लक्ष्मण साथ देने पहुंचे और सचिन को इस दबाव के पलों में अपने करियर का बेस्ट भी देना था।

सचिन ने आते के साथ ही बड़े ही सधे तरीके से खेलना शुरू किया। और उस कीर्तिमान पर पहुंच गए जहां का सपना शायद सब भारतियों ने देखा था। ब्रायन लारा के रिकॉर्ड को तोड़ते के साथ ही सबसे पहले हमेशा की तरह सचिन ने अपने सिर को ऊपर की तरफ उठा कर आसमान को देखा और भगवान और अपने पिता को धन्यवाद किया। पूरा स्टेडियम खड़े होकर सचिन को सम्मान दे रहा था। सचिन की तरफ पूरी ऑस्ट्रेलिया टीम हाथ आगे किए हुए बढ़ी चली आ रही थी। सभी ने सचिन को बधाई दी। टीम इंडिया ने भी सचिन को खड़े होकर तालियों के साथ बधाई दी। फिर तो सचिन को देश-विदेश से बधाइयों का तांता ही लग गया। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, लता मंगेश्कर, सुनील गावस्कर, कपिल देव सभी ने बधाई संदेश भेजा। हमारी तरफ से भी सचिन को बधाई।
साथ ही ने अपने 152वें मैच में कई खिताब अपने नाम किए। 12000 रन बनाने वाले विश्व के पहले खिलाड़ी बने। साथ ही आज के अर्द्धशतक के साथ ही टेस्ट में सचिन के 50 अर्द्धशतक हो गए हैं। अर्द्धशतकों के मामले में बॉर्डर के ६३ अर्द्धशतक हैं। जो कि सचिन से आगे हैं। साथ ही सचिन यदि 2 कैच लपक लें इस मैच में तो 100 कैच लपक लेंगे। और सबसे ज्यादा रन बनाने का कीर्तिमान तो है ही। वन डे में सचिन के 16361 रन हैं और 42 शतक जो अपने में ही एक विश्व रिकॉर्ड है।
सचिन ने 16 साल की उम्र में पाकिस्तान के कराची में 1989 में टेस्ट करियर की शुरुआत की थी। पहले ही टेस्ट में वकार यूनुस ने मुंह पर बाउंसर मार कर खून से लबरेज कर दिया था। पर सचिन बावजूद इसके उसी खून में रंगी शर्ट पहनकर खेलते रहे। उसके बाद का जलवा तो फिर पूरे विश्व ने देखा। वहीं, अपने आप को गुगली का बादशाह कहने वाले अब्दुल कादिर ने जब सचिन को दूध पीकर आने की सलाह दी तो फिर सचिन ने छक्के पे छक्के मारकर कादिर को उनकी गलती का एहसास करा दिया साथ ही स्टेडियम में मोजूद लोगों को भी। ऐसे ही खिलाड़ी इस मुकाम पर पहुंचते हैं। ऐसे खिलाड़ी को सलाम।


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नीतीश राज
(फोटो साभार-गूगल)

Wednesday, October 15, 2008

कानपुर में ब्लास्ट, पर आतंकवाद पर गृहमंत्री जी ने ठोंकी अपनी पीठ

कानपुर में ब्लास्ट की ख़बर से हड़कंप मच गया। सभी जगह दहशत का आलम छा गया। ऑफिस में जैसे ही ये खबर आई तो सभी के चेहरे पर एक किस्म का डर, झुंझलाहट साफ देखी जा सकती थी। शायद हर चेहरा दूसरे चेहरे से बिना पूछे ही सवाल कर रहा था कि हमारे देश में ये क्या हो रहा है। हर जगह से एक ही सवाल हो रहा था कि कहीं ये आतंकवादी वारदात तो नहीं? पुलिस का पूरा महकमा तुरंत हरकत में आया और फटाफट बात को रफादफा करने में लग गए सभी आला अधिकारी। पहले डीएम से बात हुई, उन्होंने इस घटना के बाबत बताया कि कुछ नहीं हुआ है ये एक देसी बम था जो कि फटा है। और इस ब्लास्ट में सिर्फ चार लोगों को मामूली सी खरोंचें आई हैं। जब एसएसपी से बात की तो नई बात पता चली कि विस्फोटक साइकिल पर रखा हुआ था और साइकिल किराए की थी। उस साइकिल का नंबर 12 था। तफ्तीश पर टालमटोल रवैया दिखा एसएसपी साहब का। ठीक-ठीक बता नहीं पा रहे थे कि साइकिल वहां पर किसने रखी। साइकिल कहां से आई और किसकी थी। क्या साइकिल के मालिक से पूछताछ की गई है। कोई भी शख्स इतना विस्फोटक लेकर कहां जा रहा था उसकी क्या मंशा थी। इन सब सवालों पर वो चुप्पी साध गए। टालते हुए जवाब मिला कि ये सब तो तफ्तीश के बाद ही पता चलेगा। तो फिर ये कैसे अनुमान लगा लिया गया कि ये कोई वारदात नहीं थी। क्या ये किसी की गलत मंशा नहीं हो सकती थी। बाद में पुलिस ने इस बात से इनकार नहीं किया कि इस के पीछे कुछ शरारती तत्वों का हाथ भी हो सकता है।
पुराने कानपुर में करीब शाम साढ़े 6 बजे के करीब बजरिया के पुरानी शराब गद्दी इलाके में विस्फोट हुआ। साइकिल पर रखे थैले के अंदर रखा हुआ था विस्फोटक। इस धमाके में 7 लोग जख्मी हुए हैं और जिनमें 3 बच्चे भी शामिल हैं। 6 घायलों को उपचार के बाद छोड़ दिया गया है लेकिन एक बच्ची को अभी भी अस्पताल में ही रखा हुआ है जिसकी हालत थोड़ी नाजुक बताई जाती है। चश्मदीदों के मुताबिक एक शख्स दुकान के सामने साइकिल खड़ी करके जैसे ही थोड़ी दूर गया उसी वक्त साइकिल पर रखे झोले में धमाका हो गया। स्थानीय प्रशासन इसे आतंकी कार्रवाई नहीं करार दे रही है। पुलिस ने पूछताछ के लिए एक दुकानदार और उसके भतीजे को हिरासत में ले लिया है। विस्फोटक किस तरह का था इसकी पड़ताल की जा रही है। लेकिन हाल के दिनों में हुए धमाकों को यदि ध्यान में रखें तो ये वारदात संदेह के घेरे में तो जरूर है।
पर ठीक उसी समय एक कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटील आतंकवाद के मुद्दे पर अपनी पीठ ठोंकने में लगे हुए थे। वो कह रहे थे,
"In last 4 and half years time the total no. of terrorist incident that have taken place in India is near about 25000 and the incident took place before that is 36000. If the number has come down from 36000 to 25000 it means that the terrorism is not eliminated, it means terrorism is continuing but it means terrorism is reduce. Terrorist activites are reduce, control, it means that. The no. of casuality that occured in this 5 year time is near about 6000 and the number of casuality that happen in previous 4 and half year time is 11000. when the number has come down from 11000 to 6000 and from 36000 to 25000 we can say that police and all who are involved in it have done better..... I am just giving you the statistics not to defend myself."

अब क्या कहें गृहमंत्री जी को। आप चाहे कितने भी आंकड़ें दे लें लेकिन लोगों का विश्ववास जो आपने खो दिया है उसे अब तो आप हासिल नहीं कर सकते। और ये हम भी जानते हैं कि आप अपने आप को डिफेंड नहीं कर रहे क्योंकि वो आप कर भी नहीं सकते। आने वाले चुनावों में देश की सुरक्षा का मुद्दा कांग्रेस के लिए ताबूत में कील का काम कर सकता हैं। गृहमंत्री जी आतंकवादी आपकी नाक के नीचे धमाके करके चले जाते हैं और आप कुछ कर भी नहीं पाते हैं। उल्टा आप के सहयोगी नेता दुहाई देने लग जाते हैं कि हर आदमी की सुरक्षा में पुलिस तो लगाई नहीं जा सकती। वो वक्त नहीं होता कि इस तरह के बयान दिए जाएं। और जो कुछ आप कहते या करते हैं गृहमंत्री जी उस पर इतने सवाल खड़े हो जाते हैं कि जवाब देने तक से बाद में आप खुद कतराने लगते हैं। आपके कहे में से कुछ सवाल आज भी मुंह बाए खड़े हुए हैं और लोग चाह रहे हैं कि आप अपनी पीठ ठोंकना छोड़ कर उन सवालों के जवाब देंगे। पर आप तो उन सवालों के जवाब दे ही नहीं सकते।
त्यौहार का महीना चल रहा है सारा देश इस समय तो किसी भी तरह के धमाके नहीं चाहता। चाहे आप अपनी पीठ ठोंकें चाहे किसी और की, पर हर कोई चाहता है कि त्यौहार के समय किसी भी घर में मातम ना रहे, सभी के घर रोशन रहें।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, October 8, 2008

आखिरकार टिप्पणियों के बहाने निकाली सबने दिल की भड़ास, डॉ अनुराग आपकी टिप्पणी ने हिला दिया।

अमर सिंह और उनके पागल बयानों पर जिसमें कहा गया है कि बाटला एनकाउंटर कहीं फर्जी तो नहीं है उस पर मैंने दो आर्टिकल लिखे। अमर सिंह तुम पागल हो गए हो और अमर सिंह ने बाटला हाउस वालों पर ठेला अपना दोष, कहा, मुझे तो बाटला वालों ने बरगलाया। इस पूरे मामले पर मुझे तरह-तरह की टिप्पणियां मिलीं। डॉ अनुराग ने दिल से एक टिप्पणी लिखी जो मुझे अंदर तक हिला गई। डॉ अनुराग ने कहा-
“मूर्ख थे शर्मा, जो इस देश पर शहीद हुए,रिश्वत लेते,ऐ.सी गाड़ी में घुमते ओर अपने बच्चो को डोनेशन देकर अच्छे कालेजो में भेजते....लेकिन उन्हें शहीद होने का शौक था वो भी ऐसे देश में जहाँ शाहदत पर सवाल वो उठाते है जिनका अपना कोई चरित्र नही है .तो क्या कल इस देश में भगत सिंह को सिख ,बोस को बंगाली का अश्फुल्लाह खान को मुसलमान बाँट लेगे ?क्या गांधी ओर आजाद पूरे देश के शहीद नही थे ? क्या वास्तव में इस देश में नैतिक तौर पर इतना दिवालिया- पन आ गया है? क्या कारण है कि एक हम इतने असवेदंशील हो गये है ?क्या इस देश में अब राज ठाकरे ,अमर सिंह जैसे लोग कुछ भी बोलेगे ओर हम अनसुना कर देगे ?क्या अपने देश से प्यार भी अब अपराध है ?क्या अब लगता है आपको कोई पुलिस वाला हम आपके लिए लड़ने को तैयार होगा ?कम से कम ईमानदार लोगो को तो इस देश में चैन से मरने दो अगर जीने नही दे सकते ! मैं शर्मसार हूं की मैं इस देश में पैदा हुआ जहां शहीदों की वक़्त नहीं है .....”
अब इस टिप्पणी को पढ़ कर कोई क्यों और कैसे ना अचकचा जाए। मैंने जवाब दिया-
“डॉ अनुराग जी आपने बहुत बड़ी बात कही है। इससे बुरा और क्या हो सकता है कि हमें इस देश में जन्म लेने पर ही शर्म आने लगे। सॉरी अनुराग जी। एक बात लेकिन कहना चाहूंगा कि ये मेरा और आप का देश है और इसमें वो लोग भी हैं जो अपने शहीद बेटे पर आंच आने पर उस नेता का चेक वापस भी कर देते हैं”।
सिर्फ एक बात जो नहीं लिख पाया था वो यहां पर लिख रहा हूं। और इसलिए ये आर्टिकल लिख भी रहा हूं कि मैं ये कबूल करता हूं कि इतना सब सोच कर तो मैंने भी नहीं लिखी थी पोस्ट, जितना कि डॉ साहब ने दिल पर लेकर के पढ़ी। फिर भी आपको या किसी को भी शर्मसार होना पड़े इन वाक्यों या तथ्यों से तो सच लानत हम पर ही है उन नेताओं पर नहीं जो कि अनाप-शनाप बक करके अपना उल्लू सीधा करते हैं और फिर भी हम इनकी राजनीति में आकर के इनको वोट देकर फिर उसी जगह पहुंचा देते हैं जहां से फिर ये गेम खेलने के काबिल होजाते हैं। जागो इंडिया जागो।
मैं आभारी हूं सभी टिप्पणीकारों का और सोचता हूं कि कुछ लोग और भी हैं जो कि इस देश के बारे में सोचते हैं, शायद इस दौड़ में बहुत हैं। कुछ टिप्पणी यहां पर सभी के साथ बांटना चाहता हूं, दूसरे अन्यथा ना लें।
नीरज गोस्वामी भी डॉ अनुराग की ही तरह सोचते हैं-क्या कहें इसे? देश का दुर्भाग्य जो हमें ऐसे नेता मिले हैं जिन्हें हर अवसर पर सिर्फ़ अपनी रोटी सेकनी की फ़िक्र रहती है।
जब भी ऐसे आर्टिकल लिखो तो बेनामी टिप्पणी आती ही हैं तो इस बार भी आईं और ताऊ रामपुरिया ने इनका जवाब भी दिया। एक बार नहीं कई बार।
@ anonymous :- महाराज आपको ज्ञान ही लेना है तो ज़रा सामने आकर अपनी बात स्पष्ट करिए। यहाँ अमरसिंघ से किसी का निजी लेन देन बाक़ी नही है। अगर सार्वजनिक जीवन के यही मूल्य हैं तो फ़िर क्या कहने? क्या हम यही उम्मीद करे की ये ही हमारे भाग्य विधाता बनेगे? भले गठजोड़ किसी के साथ भी बने। ताऊ फिर गरजे-- @ Anonymous भाई ज्ञान हम नही बघार रहे हैं।शायद ये कोशीश दबे छुपे आप कर रहे हैं, हम तो सब अपनी पहचान के साथ मौजूद हैं। हमारे एक साथी चिठ्ठाकार ने एक बात कही और हम उनसे सहमत हैं तो सहमति जता रहे हैं और कई बार सहमत नही भी होते तो असहमति भी जताते हैं।पर पहचान तो नही छुपाते।ये तो विचारों की सहमति या असहमति का मंच है। आपको असहमति है तो बिल्कुल होना चाहिए।आप कायदे से आइये और अपनी बात रखिये। हो सकता है आप की बात में वजन हो तो आपसे भी सहमति बन सकती है। इस तरह से कमेन्ट करने में आपकी बात का वजन नही पडेगा ! और यकीन मानिए किसी को भी मजा नही आयेगा। और आपकी बात हम सुनना चाहेंगे की इतने सारे टिपणीकारो के विचार के विरुद्ध आपका तर्क क्या है ? अब ताऊ जी ने गुस्सा थूका और कहा, बेनामी अब तुम भाड़ में जाओ-@ Anonymous . पर अब Anonymous कमेन्ट पर कम से कम मैं तो ध्यान नही दूंगा सो आप अगर कुछ कायदे की बात चाहते हैं तो अपनी पहचान के साथ आएं।

बेनाम भाई पर मैं भी कुपित होगया। ---
बेनामी टिप्पणी के महाराज पहली बात तो आप खुद फर्जी एनकाउंटर कर रहे हैं और दूसरी तरफ ताऊ जी ने बात सही कही है यदि कुछ कहना या सुनना है तो बेहतर है सामने आओ बात कहो। यहां तो चार लोग इस बात पर सहमत हैं और यदि वोट डलवालो तो ९० फीसदी इस बात से सहमत होंगे। रही आपकी बात तो बेहतर ये होगा कि आप अमर सिंह ना बनें सामने आएं हैसियत बताएं और बात करें। वरना बेहतर है आपको पढ़ने की भी जरूरत नहीं है मैं गद्दारों के लिए नहीं लिखता हूं।
रंजन राजन ने रही सही कसर भी पूरी कर दी, अमर सिंह को स्टेपनी बता दिया।
"सही कहा आपने, इनके बड़े भईया की सुलह राज ठाकरे और शाहरुख खान दोनों से हो गई है। तो अब राजनीति चमकाने के लिए कुछ तो होना चाहिए ना।....बड़का भैया के इस छोटका भैया से यूपी के भाई लोगों ने तो सत्ता की चाबी छीन ली थी। लेकिन किसी ने ऐसे थोड़े ही कहा है, समय बलवान तो गधा पहलवान। छोटका भैया की किस्मत से केंद्र की गाड़ी पंक्चर हो गई और ये बन गए स्टेपनी।"
एक बेनामी टिप्पणी की गई जो बात तो सही कह रहे थे पर थे वो बेनाम ही-- IN AMAR SINGH KE JAB GHAR BOMB FUTEGA TAB DEKHEGE KYA KAHTE HAI?
KAL KISI SO CALLEED BADE BLOGAAR NE APNE BLOG PE AISE HALAT PESH KIYE JAISE YAHAN TO HALAT BAD SE BADTAR HAI .EK BAAT SAMAJH NAHI AATI KI BAATLA KI CHARCHA HOTE HI MUSLIM ISE APNE AGAINST KYU MAN LETE HAI ?
DOOSRA KOI MUSLIM SHARMA KO SHAHEED KYU NAHI MAANTA HAI?YE JITNE BHI CHAINAL KE PATRKAAR HAI APNE BLOG PE KUCH BOLTE HAI AOR INKA CHAINAL KUCH AOR DIKHAATA HAI ?AGAR ITNE HI IMANDAR HO TO BHAIYYA NAUKRI CHOD DO.AMAR SINGH TO AMITABH BACHHAN KE PARIVAR KE SPOKESMAN BANE RAHE TO ACHHA HAI.EK AOR BAT DEKHI HAI SARE MUSLIM BLOGAR BHI EK HI BAT KA RONA ROTE HAI KI UDISSA ME YE HUA ,VAHAN YE HUA TO USE KIS NE SAHI KAHA HAI ?KYA HAM APNE APRADH KO YE KAHKAR KAM KAREGE KI DOOSRE NE BHI KIYA HAI ?
राज भाटिया जी ने अधूरी पर पूरी बात कह दी- नाम ओर निक नाम तो इतने अच्छे, ओर कर्म जयचंद जेसा, मै तो हैरान हुं ऎसे लोग बार बार केसे जीत कर आ जाते है,ओर हमारे मुसलमान भाई लोगो को भी सोचना चाहिये कि यह उन्हे एसे लोग इस देश का नागरिक सिद्ध करना चाहते है या फ़िर एक...।
अनुनाद जी ने भी एक असलियत बोल दी-
कांग्रेस मुसलमानों को रिझाने के लिए ७०० करोड़ रूपये का घूस दे रही है तो कुछ नहीं और अमर सिंह ने उनके वोट भेड़ के भाव खरीदने के लिए झूठी गवाही दे दी तो कौन सा 'अपराध' कर दिया?
श्रीकांत पारासर जी भड़के हुए थे तो पूरी भड़ास निकाल दी-- amarsingh apne aap ko bhale hi singh is king samjhen parantu congress ki rajniti ki chopad par ve ek mamuli pyade hain.doodh men padi makkhi wali halat unki honi hi hai.Vaise ve pahle bhi congress se apni fajihat karwa chuke hain. votr bank ki rajniti karne walon ki har jagah fajihat honi chahiye, tabhi ek na ek din is desh ki halat sudhregi. वो फिर आए- Nitishji, man nahin bhara mera,isliye phirse likh raha hun. Bhai anil pusadkarji ne unke tatha arjun singh ke liye jyada sateek sabdon ka istemal kiya hai. anya doston ne bhi achha likha hai. yah vyakti bina pende ka muradabadi lota hai aur avval no. ka notankibaj
boss, baat yah hai ki yahan ke logon ko bhi yahi pasand hai, aakhir jaychand jaise logon ki auladen hain ham-comman man
उड़ते उड़ते उड़नतस्तरी और भूतनाथ जी ने मुझ से ही सवाल पूछ लिया- अमर सिंग से यह पूछना कि क्या तुम पागल हो गये हो क्या??पागल से ये कैसा प्रश्न??
Anil Pusadkar जी ने एक और असलियत सामने लाई- अमर सिंह को गद्दार कहना गद्दारों का अपमान होगा।वो तो उनसे भी गया गुजरा हैं। ना भैय्याजी का है और ना भाभीजी का है।
ज्ञानदत जी भी बोले, अमर सिंह जी की हाइट क्या है? लगता है उससे ज्यादा अहमियत मिली है उनको राजनीति में।
सुरेश चंद्र जी अमर सिंह को कुत्ता ही मानते हैं- अमर सिंह के अपने शब्दों में पिछली बार कांग्रेस ने उन्हें कुत्ते की तरह ट्रीट किया था. आज भी कांग्रेस उन्हें कुत्ते की तरह ही ट्रीट कर रही है।
सभी के साथ से मुझे ये लगता है कि एक बात से तो सहमत हैं कि अमर सिंह और राज ठाकरे जैसे लोग अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश ज्यादा करते हैं चाहे देश गर्क में क्यों ना चला जाए। क्या करें हम कि इन जैसे दलालों से छुटकारा मिल जाए। अगले साल चुनाव हैं, इन जैसे नेता जो कि हर पार्टी में हैं और साथ ही हर प्रदेश में भी हैं वो सत्ता की ड्योढ़ी ना चढ़ सकें।
आपका अपना
नीतीश राज

Monday, October 6, 2008

“अमर सिंह ने बाटला वालों पर ठेला अपना दोष, कहा, मुझे तो बाटला वालों ने बरगलाया”

“वर्दी पहने हुए जो भी मरा है और ‘अगर’ वो शहीद है चाह आतंकवादी की गोली से मरा हो चाहे पुलिस वालों ने अपनी गोली से उसे अपनी जान बचाने के लिए मार दिया हो। संदेह इस लिए होता है कि पांच दिन पहले उसे उसके पद से हटा दिया गया था। हमने उसके परिवार के लिए भी 10 लाख रुपये देने की घोषणा की है और वो हम दे भी रहे हैं”।

सहारनपुर में एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के महासचिव ने अपना मुंह खोला और फिर वो ही राग अलापा जो कि बाटला जाकर अलापा था। अमर सिंह को इस शहादत पर सियासत चमकाने में बड़ा ही रास आ रहा है। लेकिन पूरे देश को ये समझ में नहीं आ रहा कि अमर सिंह को इस शहादत में सियासत क्यों दिखती है।
अमर सिंह ने ये बात कही कि इंस्पेक्टर शर्मा को पद से हटा दिया गया था। वैसे ये बात वो कह तो गए लेकिन शायद भूल गए कि तबादले को पद से हटाना नहीं कहते। बहरहाल दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता राजन भगत ने तुरंत बयान दिया,
“औपचारिक रूप से हम ये बताते हैं कि इंस्पेक्टर शर्मा का तबादला नहीं हुआ था, ये कोरी बकवास है”।

यहां पर दिल्ली पुलिस ने भी गलत किया कि जब पहले दिन से ये बयान आ रहा था तो तब ही इस पर क्यों नहीं साफ कर दिया गया।
अब अमर सिंह जी का क्या जवाब होता। ये जानने के लिए तुरंत अमर सिंह से फोन पर बात की गई कि आखिर अब आप क्या कहते हैं। दिल्ली पुलिस खुद कह रही है कि नहीं, ऐसी, कोई भी बात नहीं है, सब बकवास है तबादला हुआ ही नहीं।
अमर सिंह ने तुरंत पलटी मारी, पल भर में अपना रंग बदला और जो कहा वो बताता है कि ये राजनेता किसी गैर के क्या, अपनों के भी नहीं होते।
“मुझे बाटला हाउस पहुंचने पर वहीं के लोकल लोगों ने ही ये जानकारी दी थी कि शहीद इंस्पेक्टर शर्मा जी का तबादला हो चुका था”....लेकिन मैंने जब भी कुछ कहा है तो ‘अगर’ शब्द का इस्तेमाल जरूर किया है।

क्या अमर सिंह को शर्म नहीं आनी चाहिए। बिना सोचे समझे कैसे ये सवाल खड़े कर सकते हैं? ये जानते हुए भी कि ये एक ऐसा विषय है जो कभी भी एक चिंगारी के कारण बवंडर मचा सकता है। सच, अब लगने लगा है कि किसी को भी हम वोट करें पर इन जैसे नेताओं की जमात को तो कतई नहीं। तुरंत ही बाटला हाउस वालों का साथ छोड़ दिया। साफ-साफ कह दिया कि बाटला हाउस वालों ने ही तो बताया था और मुझे क्या पता। एक दिन पहले जाकर मरहम लगाते हैं और दूसरे दिन कुरेद देते हैं ऐसे लोगो में से एक हैं अमर सिंह।
सहारनपुर में ही एक बात दोहराने से अमर सिंह नहीं भूले कि, ‘10 लाख का चेक हमने भेज दिया है शर्मा जी के परिवार को’। शायद याद दिलाना पड़ेगा कि वो चेक वापस हो चुका है। क्योंकि चेक के अंकों में दस लाख की जगह पर एक शून्य छूट गया था और वो एक लाख बन गया था पर शब्दों में दस लाख ही लिखा हुआ था। क्या किसी ने भी ये गौर करने, या फिर रीचैक करने की कोशिश नहीं की। जब कि मामला ऐसा हो तब भी। एक पार्टी के महासचिव से ऐसी तो उम्मीद नहीं की जा सकती। यहां बात और, कि जब आप इस शहादत पर सवाल उठा ही रहे हैं तो १० लाख का चेक देने की ये नौटंकी क्यों की जा रही है?
अंत में, अमर सिंह से ये पूछना चाहता हूं, कि क्या आतंकवादियों का कोई धर्म होता है? दूसरा, क्या ये काफी नहीं है कि आतंकवादी, सिर्फ और सिर्फ आतंकवादी ही होता है? क्यों हम मजहब की दीवार को खड़ा करते हैं जब भी ऐसा कोई वाक्या होता है? देश की सुरक्षा किसी भी मजहब से क्या बड़ी होती है? इन सवालों का जवाब शायद ही किसी नेता के पास हो।

आपका अपना
नीतीश राज

Sunday, October 5, 2008

“अमर सिंह, तुम पागल हो गए हो”

समाजवार्दी पार्टी के महासचिव अमर सिंह को बाटला हाउस के बहाने अपने गढ़ पर लगी चोट सालने लगी है। इसलिए अब वो खुलकर अपने गढ़ के समर्थन में उतर आए हैं। हमेशा ही सुर्खियों में बने रहने की इच्छा के कारण इस बार जो जरिया उन्होंने चुना है वो है बाटला हाउस का L-18। दिल्ली का वो एनकाउंटर जिसमें दो आतंकवादी मारे गए थे और एक अभी पुलिस के कब्जे में है। और बाद में तीन और को भी पकड़ गया। और ये तीनों को इस बात का दुख है कि इस वारदात के बाद इतनी जल्दी वो पुलिस के हत्थे चढ़ गए।
अमर सिंह अब अपने गढ़ पर साधे गए पुलिसिया निशाने का जवाब, पुलिस पर वार करके चुका रहे हैं। समाजवादी पार्टी के महासचिव हैं अमर सिंह, तो महासचिव चलेगा तो अध्यक्ष की राह पर ही। याद दिलाना चाहूंगा कि कुछ समय पहले इस पार्टी के अध्यक्ष ने सिमी पर पाबंदी का विरोध किया था। तो अब छोटे मियां क्यों नहीं चलेगें राजनीति की चाल। एनकाउंटर के १३-१४ दिन के बाद अब उन्हें जामिया की याद आगई क्योंकि इनके बड़े भईया की सुलह राज ठाकरे और शाहरुख खान दोनों से हो गई है। तो अब राजनीति चमकाने के लिए कुछ तो होना चाहिए ना। तो बढ़ चले यूपी के मुसलमानों के बाद दिल्ली के मुसलमानों के वोट बैंक की तरफ। भई, आखिर कैंद्र में भी तो आने की इच्छा है।
बाटला हाउस पहुंचकर L-18 में हुए एनकाउंटर पर सवाल खड़ा कर दिया और साथ ही मांग की न्यायिक जांच की। साथ ही लगे हाथ केंद्र सरकार को धमकी भी दे डाली कि यदि मुठभेड़ फर्जी हुई तो सरकार के पंजे से मिलाया हाथ वो खींच लेंगे। शायद अमर सिंह ये नहीं जानते कि कांग्रेस सिर्फ करार को करने के लिए इतना सुन भी रही है। जैसे ही करार पर दस्तखत हुए तो समझ लो कि दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिए जाओगे। हद तो अमर सिंह ने तब कर दी जब मोहनचंद शर्मा की शहादत पर ही सवालिया निशान लगा दिया। दूसरों के जख्मों पर मरहम लगाने के बहाने औरों को जख्म देने का ये अंदाज अपने में ही निराला लगा। जिस शख्स को पूरा देश शहीद मान रहा है उस पर उंगली उठाने की गलती करने के कारण, क्या खुद अमर सिंह को इस देश का ‘गद्दार’ नहीं माना जाना चाहिए। एक तरफ उन आतंकवादियों की वकालत दूसरी तरफ शहीद पर सवालिया निशान।
“यहां जो मास्टरमाइंड पकड़े गए, वो गोल्ड मेडलिस्ट थे, एमबीए के स्टूडेंट थे”।

साथ ही ये भी...
“जो पुलिस का आदमी यहां मारा गया है वो शहादत के लिए भेजा गया था। जब चार-पांच दिन पहले उसका तबादला हो गया था तो वो फिर यहां पर क्यों फिर रहा था। अपना तबादला रोकने के लिए वो यहां पर आया था।”

ये दो बयान हैं अमर सिंह के ,पहले वाले में साफ वो आतंकवादियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ एक शहीद की शहादत पर सवाल उठा रहे हैं। बिना जानकारी के पुलिस पर वार कर रहे हैं। शायद ये भूल गए कि दो दिन पहले ही सागर में एक मंत्री जब सियासत चमकाने पहुंचे तो पुलिस के इतने डंडे पड़े कि अभी तक आईसीयू में भर्ती हैं। अमर सिंह जी आपको कई उपाधियों से नवाजा जा चुका है। अब आप आतंकवादी भी कहलवाना पसंद करेंगे। सिमी को इंडियन मुजाहिद्दीन और आजमगढ़ को गढ़ आप जैसों ने ही बनाया है।
अधूरी जानकारी के साथ अमर सिंह को कभी बयान नहीं देना चाहिए। दरअसल, एसीपी राजवीर के क़त्ल के बाद से दिल्ली पुलिस ने ये तय किया था कि किसी भी पुलिसवाले को एक जगह पर दस साल से ज्यादा नहीं रखा जाएगा। सितंबर के दूसरे हफ्ते में तबादले के ऑर्डर भी जारी किए गए थे, लेकिन कई अधिकारियों के बारे में ये तय नहीं किया जा सका था, कि कहां जाना है और उसी में से एक थे शहीद मोहन चंद शर्मा भी।
मामला कोर्ट में है तब ऐसे बयान देना कहां तक उचित है? साथ ही आतंकवाद से लड़ रहे उन जवानों पर इन बयानों का क्या असर होगा, ये कभी सोचा है इस बड़बोले समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने?वोट बैंक के लिए अमर सिंह इतना गिर जाएंगे ये किसी भी भारतीय ने नहीं सोचा था, पर क्या अभी अमर सिंह का और भी नीचे गर्क में गिरना बाकी है?

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, October 4, 2008

‘प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री अब तो जागो या आदत पड़ चुकी है फरियाद पर ही जागोगे’

क्या आपको पता है पीएम मनमोहन सिंह साहब और रक्षा मंत्री ए के एंटनी, की परिवार का कोई सदस्य यदि बंधक हो तो परिवार वालों पर क्या बीतती है। 19 दिन के बाद भी परिवार वालों की सुध लेने वाला सरकार की तरफ से कोई नहीं है। सिर्फ और सिर्फ आश्वासनों का दौर चल रहा है। हम अभी कार्रवाई कर रहे हैं, जल्द ही नतीजा आपके सामने होगा। अरे, क्या कार्रवाई कर रहे हैं, कब तक होगी कार्रवाई क्या आप बता सकते हैं। एक्शन लेने तक से तो आप डरते हैं। दूसरे देश अपनी नौसेना भेज रहे हैं। हमारे देश की नौसेना कह रही है कि वो बंधकों को रिहा करवाना चाहती है तो फिर कोई भी निर्णय लेने में हमारे देश की सरकार क्यों घबरा रही है। क्यो पीछे हट रहे हैं हम। अमेरिकी नौसेना वहां पर मौजूद है साथ ही रूस की तरफ से भी मदद दी जा रही है। रूस की नौसेना की टुकड़ी जिसमें कि तकरीबन 200 क्रू मैंबर हैं पहुंचने वाले हैं। यूक्रेन का भी एक जहाज इसी इलाके में बंधक खड़ा हुआ है जिसपर की अमेरिका आंखें गड़ाए बैठा है साथ ही इसमें रूस के लोग भी बंधक बने हुए हैं। जब दो देश की सेना वहां पहुंची हुई है तो फिर आप को क्या चिंता सता रही है। या तो मदद दो या फिर उनसे मदद लो लेकिन यदि अमेरिका या रूस जैसा बनना है तो फिर फैसला तो कुछ कड़ा ही लेना होगा क्योंकि कब तक कोई यूं ही हमारी मदद करता रहेगा। माना कि बंधकों में से आपका कोई भी नहीं है पर क्या जिन्होंने बंधक बनाया है वो आपके जान पहचान के हैं जो कि इतने दिन बाद भी इतनी ढिलाई बरती जा रही है।
15 सितंबर को सोमालिया कोस्ट पर एक व्यापारिक ऑयल टैंकर ‘स्टोल्ट वेलोर(Stolt valor)’ को बंधक बनाया गया था। जहाज पर 22 लोग हैं जिसमें से 18 भारतीय हैं। बाकी बचे 4 विदेशी हैं। हमारी सरकार कोई भी ठोस कदम या यूं कहें कि बल प्रयोग करने के पक्ष में नहीं है। रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है। हमारी सरकार घटना घट जाने के बाद अपने काम में लग चुकी है यानी कि अब नीति बनाई जा रही इन समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिए। वाह ! चलो सांप तो निकल गया अब लाठी मारने का काम दिखावे के लिए तो कर लें।
क्या सोमालिया कोस्ट और यमन क्षेत्र के इन समुद्री लुटेरों के बारे में हम नहीं जानते। इनकी क्या रणनीति होती है क्या हमें नहीं पता। ये जहाज भी उड़ाना या डुबाना जानते हैं। इनका क़हर बरपा हुआ है। जनवरी 2008 से लेकर अब तक 55 जहाजों को अगवा कर चुके हैं जिसमें से 11 जहाज अब भी इनके कब्जे में हैं। इन समुद्री लुटेरों ने इस जहाज को छोड़ने के एवज में 6 करोड़ की मांग की है। कई बार तो इन लुटेरों से बातचीत महीने-महीने चल जाती है, नहीं तो कम से कम 30 दिन का समय तो लगता ही है। तब तक क्या होगा इन 22 लोगों का जो कि अभी तक तो सुरक्षित हैं पर क्या आगे भी रह पाएंगे।
Stolt valor भारतीय जहाज नहीं है, इसका रजिस्ट्रेशन हांगकांग में किया गया और मालिक जापानी है। क्रू पूरा भारतीय है तो सोचना तो भारतीय सरकार को ही होगा।सबसे बड़ी अड़चन जो भारत सरकार के सामने आ रही है शायद वो है कि सोमालिया के क्षेत्र में वो ही देश कार्रवाई कर सकता है जिस देश का झंडा उस बंधक जहाज पर लगा हो और उस पर भारत का झंडा नहीं है। ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हाल ही में पारित हुआ था। लेकिन हम हाथ पर हाथ धरे उन २२ लोगों को भगवान भरोसे तो नहीं ही छोड़ सकते।
तब से अब तक 19 दिन बीत चुके हैं। परिवार वाले मारे-मारे फिर रहे हैं। मंत्रियों के दर- दर की ठोकरें खा रहे हैं। कैप्टन पी के गोयल की पत्नी सीमा गोयल और साथ में बंधक परिवार के सदस्य भी हर समय कभी इस न्यूज चैनल तो कभी दूसरे, कि सरकार कैसे तो इनकी आवाज़ सुनें, और देश के लोगों तक उनकी आवाज़ पहुंचे, और तभी सरकार कोई कारगर कदम उठाए। साथ ही सीमा गोयल और बंधकों के परिवार वाले १० जनपथ जाकर राहुल गांधी से भी गुहार लगा चुके हैं और साथ ही साउथ ब्लाक भी फरियाद करके आगए हैं। पर क्या हमारी सरकार को परिवार वालों के फरियाद और गुहार करने के बाद ही फैसले के बारे में सोचना होगा। क्यों सरकार सोती रहती है कि जब कोई फरियादी उन तक आएगा तब जाकर सरकार कोई कदम उठाएगी? ऐसा क्यों?

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, October 2, 2008

‘NO SMOKING PLEASE’



No smoking please, ये जुमला सिगरेट पीने वालों के लिए नया नहीं होगा। कई बार, कई जगह पर उनको इससे टोक दिया जाता है। पर अब शायद टोकना ना पड़े। 2 अक्टूबर से यानी की आज गांधी जयंति के पर्व से स्वास्थ्य मंत्री रामदौस की ये मुहिम चालू हो जाएगी। जो सिगरेट नहीं पीते वो इसे बिल्कुल १०० फीसदी सही ठहरा रहे हैं। पर जो सिगरेट पीते हैं उनके अपने ही तर्क हैं। सार्वजनिक स्थल पर यदि कोई धुम्रपान करते हुए पाए गए तो उस धुंए होगी 200 रुपये। तो अब बेहतर होगा ये गाएं ‘बीड़ी मत जलइले’
सरकार नहीं चाहती कि किसी एक की लत से दूसरों को कोई भी परेशानी हो। सार्वजनिक जगह जैसे कि अस्पताल, स्कूल, पार्क, रेलवे वेटिंग रूम, रेस्टोरेंट, कैंटीन, कॉफी हाउस, पब, बार, एयरपोर्ट लाउंज, कोर्ट परिसर, सिनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल, बस स्टॉप, सरकारी और प्राइवेट दफ्तरों पर आप मुंह से धुंआ नहीं उड़ा सकते। यदि धुंआ निकला तो भरिए 200 रुपये। और जो आपका चालान काट सकते हैं वो हैं-

प्राइवेट ऑफिस में बिग बॉस या उनके समकक्ष,
बस स्टैंड पर ट्रांसपोर्ट इंस्पेक्टर और उसके समकक्ष अधिकारी,
फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन का कोई भी अफसर,
अस्पतालों में हेल्थ इंस्पेक्टर और उनके समकक्ष,
सब इंस्पेक्टर और उससे उपर रैंक के अधिकारी,
स्टेशन पर स्टेशन मास्टर और उसके समकक्ष अधिकारी।

नए कानून में यदि आप किसी को धूम्रपान करने में मदद करते पाए गए तो भी मुश्किल में पड़ जाएंगे। यानी माचिस भी मत दीजिए। ऑफिस में मैंनेजर, मालिक रखेंगे पीने वालों पर नजर, यदि कोई पीते हुए पाया गया तो मालिकों के लिए भी कानून सख्त है। लेकिन हर पब्लिक जगह पर एक स्मोकिंग जोन बनाना जरूरी होगा। वेंटिलेशन वाले कमरे बनाए जाऐंगे जहां पर धुंआ उड़ाने की आजादी होगी।
प्रोहिबिशन ऑफ स्मोकिंग इन पब्लिक प्लेसेज रूल्स 2008 लागू होते ही पब और रेस्टोरेंट मालिकों ने विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि पब में सिगरेट और ड्रिंक्स के लिए ही सब आते हैं तो किसी भी एक चीज की मनाही से उनके बिजनेस पर असर पड़ेगा। स्मोकिंग जोन बनाने से भी फायदा नहीं होगा क्योंकि वहां पर ड्रिंक्स सर्व नहीं की जा सकती।
घर पर भी यदि किसी भी सदस्य ने आपकी सिगरेट पर आपत्ति जताई तो यहां भी निषेध का बोर्ड लग जाएगा और फिर घर के स्मोकिंग जोन यानी की बाथरूम में ही जाकर आप धुंआ उड़ा सकेंगे।

अब हर जगह पर लगी होगी एक संवेधानिक चेतावनी-
सिगरेट पीना आपके स्वास्थ्य के साथ-साथ आपकी जेब के लिए भी हानीकारक है।

आपका अपना
नीतीश राज
(फोटो साभार-गूगल)

Wednesday, October 1, 2008

Headlines Today (Aajtak) की महिला पत्रकार की गोली मारकर हत्या

हेडलाइंस टुडे की युवा पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की सोमवार देर रात गोली मार कर हत्या कर दी गई। पहले तो ये एक हादसा माना जा रहा था लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ये खुलासा हुआ कि ये कोई हादसा नहीं है, सौम्या की किसी ने गोली मारकर हत्या की है। अमुमन तो उसकी सिफ्ट रात १२ बजे तक की होती थी और फिर वो खुद ड्राइव करके अपने घर वसंत कुंज जाया करती थी। लेकिन सोमवार को ब्रेकिंग न्यूज (साबरकांठा और मालेगांव में ब्लास्ट) की वजह से डेस्क पर काम कर रहीं प्रोड्यूसर सौम्या को देर रात तक रुकना पड़ा। जब वो तकरीबन रात के ३ बजे घर के लिए रवाना हुईं तो किसी ने भी ये नहीं सोचा था कि सौम्या के लिए इस रात की सुबह नहीं होगी।
सोमवार की काली रात पूरे ऑफिसवालों के लिए काली ही बन गई। केरला की रहने वाली सौम्या विश्ववनाथन स्वभाव से ही सौम्य थी। २६ साल की सौम्या की हेडलाइंस टुडे में सभी तारीफ किया करते थे। वो शांत और गंभीर स्वभाव की थी।
सोमवार की रात तकरीबन ३ बजकर ४० मिनट। ऑफिस से काम खत्म करके सौम्या अपनी सफेद रंग की जेन कार में घर वापस जा रहीं थी। घर पहुंचने से १० मिनट पहले उसने घर पर अपने पापा को फोन पर बताया था कि वो ५-१० मिनट के अंदर घर पहुंच जाएगी। लेकिन जब वो १५ मिनट तक घर नहीं पहुंची तो उसके पापा ने उसे फोन किया लेकिन घंटी जाती रही किसी ने फोन नहीं उठाया।
सुबह किसी राहगीर ने पुलिस को फोन करके इस बात की जानकारी दी कि नेल्सन मंडेला रोड पर किसी का एक्सीडेंट होगया है। जब तक उसको अस्पताल ले जाते तब तक वो दम तोड़ चुकी थी। उसकी गाड़ी के शीशे टूटे हुए थे। ड्राइवर सीट के शीशे से उस को टारगेट करके गोली चलाई गई थी। गोली सौम्या के सर के पीछे वाले भाग में लगी थी। साथ ही पीछे की सीट पर सौम्या के बाल इधर-उधर पड़े हुए थे, जो की मौत की अलग कहानी बयां कर रहे हैं। सौम्या की गाड़ी का आगे का टायर पंचर था। बाद में पता चला कि पहले उसकी गाड़ी के टायर को गोली मारकर पंचर किया गया था, फिर उसे गोली मारी गई थी। कार का बैलेंस बिगड़ने के बाद कार सड़क के बीचो-बीच डिवाइडर से टकरा कर करीब सौ फीट तक घिसटती रही। पुलिस ने मामला दर्ज कर दिया है। राजन भगत दिल्ली पुलिस के पीआरओ ने ये आश्वासन दिया है कि कार्रवाई जल्द से जल्द पूरी कर ली जाएगी और दोषियों को सख्त से सख्त सज़ा दी जाएगी। पुलिस एक अलग थ्यौरी पर भी काम कर रही है कि रास्ते में सौम्या का किसी से झगड़ा हो गया हो या फिर किसी ने उसके साथ छेड़खानी की कोशिश की हो और विरोध करने पर उसे गोली मारकर भाग गया हो। पर पता नहीं क्या हुआ पर सौम्या अब हमारे बीच नहीं है। हम सभी सौम्या के परिवार के साथ है जिनके ऊपर ये दुख का पहाड़ टूट पड़ा है और साथ ही ये उम्मीद करते हैं कि इंसाफ की खातिर पुलिस दोषियों को जल्द ही गिरफ्तार कर लेगी। इस कुकर्म करने वाले को पुलिस नहीं बख्शेगी।
पर सवाल ये ही खड़ा होता है कि दो हफ्ते पहले धमाकों से दिल्ली दहल गई थी। फिर पिछले हफ्ते ही महरौली में भी ब्लास्ट हुआ था। तो क्या पुलिस अब भी सो रही हैं। क्या दिल्ली अकेली लड़की या यूं कहें कि सभी के लिए असुरक्षित है?

सौम्या तुम चली गई पर हमेशा हमारे दिल में जीती रहोगी।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”