Sunday, August 30, 2009

सावधान! आप कार खरीदने तो नहीं जा रहे गर जा रहे हैं तो इसे पढ़ते जाइए।

कुछ दिन पहले की बात है लगभग महीने भर पहले की, मेरे एक जाननेवाले के साथ कुछ ऐसा हुआ जिसे मैंने क्या कभी मेरे जाननेवालों में से किसी ने नहीं सुना या देखा था। तभी से मैंने सोच लिया था कि इस बारे में जरूर से लिखूंगा और सबको आगाह करूंगा।

मेरे जाननेवाले एक बिल्डर की कंपनी में काम करते हैं। हर दिन सौ से ज्यादा लोगों से मिलना होता है। काफी दिन से सेंट्रो को चला रहे थे। एक दिन कहीं पर जाना था साथ में उनके बॉस भी थे, बॉस की गाड़ी में कुछ खराबी आगई थी। उस ड्राइव के बाद बॉस ने कहा कि बेहतर है कि दूसरी गाड़ी ले लो। बातों-बातों में बात निकली और तय होगया कि नई गाड़ी ली जाए। उनको पसंद थी होंडा सिटी।

कैसे ना कैसे करके 10 दिन के अंदर ही होंडा सिटी घर की पार्किंग में खड़ी थी। घर वाले काफी खुश थे। दोस्तों को पार्टी भी दी गई वो सब अलग। कहीं पर भी जाना होता तो होंडा सिटी से ही जाते। बेचारी सेंट्रो अपनी बारी आने की राह तकने लगी।

बहरहाल, गाड़ी खरीदने के एक महीने के बाद ही एक हादसा हो गया। एक महीने के बाद गाड़ी सर्विसिंग के लिए जाती है वैसे ही उनकी भी गई। सर्विसिग के दो-तीन दिन के बाद ही एक दिन जब वो ऑफिस जाने के लिए घर से उतरे तो देखा कि गाड़ी पार्किंग में मौजूद नहीं है। काटो तो खून नहीं जैसी स्थिति हो गई। उनके हाथ में गाड़ी की चाबी थी फिर गाड़ी गई तो गई कहां और कैसे?


तुरंत उन्होंने घर जाकर सबको बताया कि गाड़ी नहीं है पार्किंग में। कार साफ करने वाले से पूछा गया। उसने बताया कि गाड़ी आज उसने साफ की थी लगभग सुबह 7.45 के करीब। फिर जिस गार्ड की पार्किंग में ड्यूटी थी उस गार्ड से पूछा गया उसने भी बताया कि गाड़ी को खुद उसने सफाई होने के बाद चैक किया था। तुरंत दोस्तों को कॉल करके बुलाया गया कुछ ऑफिस जा रहे थे या कुछ रास्ते में थे सब वापिस सोसायटी आगए। सभी को बताया गया तो सब हैरान क्योंकि होंडा सिटी का दावा है कि उसकी डुप्लीकेट चाबी कोई बना नहीं सकता और बिना चाबी के वो खुल ही नहीं सकती। तो फिर गाड़ी कहां गई?

शाम तक ये साफ हो गया कि गाड़ी चोरी हो गई है। हम लोगों के प्रेशर के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली। पुलिस की शुरूआती तफ्तीश में एक ऐसी बात सामने आई कि जिसके कारण पैरों तले जमीन खिसक गई। पुलिस ने दूसरी चाबी की डिमांड की, तुरंत पेश की गई। और यहीं था सबसे बड़ा पेंच। दूसरी चाबी यानी की डुप्लीकेट चाबी जो कि आपको गाड़ी खरीदते वक्त दी जाती है वो इस होंडा सिटी की नहीं थी उस चाबी में फर्क था

पुलिस को शक हुआ डीलर के ऊपर और तुरंत उन लोगों को पकड़ा गया जिन्होंने डिलीवरी की थी गाड़ी की। डीलर के दो लोगों को पुलिस ने डिटेन किया। पर कुछ पता नहीं चला और फिर कई दिन तफ्तीश में निकलते चले गए। हम लोग यहां भागदौड़ कर रहे थे।

एक दिन दिल्ली पुलिस के रिनगर थाने से कॉल आया कि मेरे जानने वाले को कि गाड़ी मिल गई है। सभी पुलिस स्टेशन पहुंचे तो एक शख्स को पकड़ रखा था और गाड़ी को असम से रिकवर किया गया। गाड़ी के फर्जी कागजात यहां दिल्ली में ही बन रहे थे, तभी पुलिस ने इस शख्स को धर दबोचा।

उस गाड़ी चोर ने खुलासा किया कि 6 साल के अंदर अब तक 71 गाड़ियां चुरा चुका है। गाड़ियों को नॉर्थ इस्ट, उत्तराखंड जैसी जगहों पर ले जाकर बेच दिया जाता हैं। इस काम में पूरा गिरोह सक्रिय है और अधिकतर उन गाड़ियों को निशाना बनाया जाता हैं जो कि नई होती है क्योंकि उनमें एक भी पैसा नहीं लगता, सिर्फ कागजात बनवाने का खर्च आता है।

पर होंडा सिटी की चाबी कहां से मिली?

तब जो पता चला उसने हमारे होश ही उड़ा दिए। डीलर के यहां निचले तबके पर इनके गिरोह के लोग काम करते हैं। जब गाड़ी की डिलीवरी करनी होती है तब गाड़ी लाने के लिए उन लोगों से ही कहा जाता है। यही वो वक्त होता है जब वो खेल जाते हैं सबसे बड़ा खेल। तब वो एक्सीडेंटल गाड़ियों की चाबी के साथ उस नई नवेली गाड़ी की चाबी को बदल देते हैं और खुशी से लबरेज ग्राहक दोनों चाबियों को चैक करके नहीं देखते। अधिकतर लोग उस चाबी से ही ओपरेट करते हैं जिसमें कि रिमोट इन बिल्ट होता है और दूसरी चाबी को यूं ही बिना चैक किए जेब के हवाले कर देते हैं। जब उनकी गाड़ी सर्विसिंग के लिए आती है तो वहां पर भी गिरोह के लोग होते हैं। अधिकतर गाड़ी घर पर ही डिलीवर की जाती है तो एड्रेस(घर का) का पता चल जाता है। गर डिलीवरी घर पर नहीं होनी है तब गिरोह का दूसरा साथी सर्विस सेंटर के बाहर मौजूद होता है। जैसे ही गाड़ी मालिक गाड़ी लेकर जाता है तो बाहर खड़ा शख्स गाड़ी का पीछा करके घर तक पहुंच जाता है। फिर दो-तीन दिन तक लगातार गाड़ी के मालिक पर नजर रखकर किसी दिन भी हाथ साफ कर दिया जाता है। शान से बिना आवाज़ किए काम हो जाता है और ड्राइवर की सीट पर बैठकर चोर गाड़ी उड़ा ले जाता है।

तो ये है आज के हाईटेक चोरों की हकीकत। तो संभल जाइए कहीं आप अपने हाथ से ही चोरों को अपनी गाड़ी की चाबी तो नहीं दे कर आ रहे। कहीं आप गाड़ी खरीदने जा रहे हों तो आप तो वो गलती नहीं कर रहे। जब भी कोई भी चाबी लें तो सभी चाबियों को चैक जरूर करें और संतुष्ट होने के बाद ही वहां से हटें। तब थोड़ा वक्त गर आप लगा देंगे तो बाद में बहुत सा वक्त और आपकी गाड़ी बच जाएगी।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, August 28, 2009

11 दिन के बीते पन्ने

आखिरकार दो दिन के इंतजार के बाद हमारे कंप्यूटर के डॉक्टर साहब आए और फिर आते ही बेचारे को इंजेक्शन। पर इस बार एक ही इंजेक्शन में ठीक। जो 1 जीबी की रैम लगाई गई थी उसमें ही प्रोब्लम थी। जैसे ही बदली गई रैम कंप्यूटर जी दुरुस्त। बहरहाल, इस बीच कुछ मुद्दे ऐसे उठे जिन पर लिखने की काफी इच्छा कर रही थी। साथ ही वो मुद्दे ऐसे थे जिनको मैं अपने ब्लॉग पर सहेजना जरूर चाहूंगा। क्योंकि उनमें से कुछ घटनाएं ऐसी थी जो शायद कभी दोबारा नहीं होंगी।

शाहरुख को अमेरिका में एक एयरपोर्ट पर करीब दो घंटे तक रोके रखा गया, जसवंत सिंह की किताब पर बवाल, खेमों में बंटी बीजेपी, मोदी ने जसवंत की किताब पर लगाया बैन पर दूसरे बीजेपी शासित राज्यों के सीएम ने किया इनकार, बीजेपी से निकाले गए जसवंत सिंह और सुध्रींद्र कुलकर्णी, और वहीं दूसरी तरफ किताब पर अरुण शौरी के तीखे तेवर, अब यशवंत सिन्हा का भी आडवाणी पर निशाना। वसुंधरा राजे का नया मोर्चा, खेल की खबरों में ऐशेज में ऑस्ट्रेलिया हारा और खिसका चौथी रैंक पर वहीं भारत दूसरी पायदान पर, ओलंपियन और ब्रान्ज मेडलिस्ट मुक्केबाज विजेंद्र कुमार वर्ल्ड के दूसरे नंबर के बॉक्सर बन गए और ऐसी ही बहुत सी खबरें थीं जिनपर लिखना चाहते हुए भी मैं लिख नहीं पाया था।

सबसे पहले बात शाहरुख खान की।

बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान आजादी के दिन एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए यूएस जाते हैं और वहां पर किंग खान को दो घंटे तक रोक कर पूछताछ की जाती है। बकौल शाहरुख उनसे पूछताछ उनके नाम में जुड़े ‘खान’ के कारण की गई। वहां शाहरुख के साथ ऐसा हुआ यहां देश में लोग आगबबूला हो गए। अंबिका सोनी ने तो यहां तक कह दिया कि अमेरिकन सेलिब्रिटिज जब भारत आएं तो उनके साथ भी ऐसा ही बर्ताव हो। पर वहीं सलमान खान सामने आए और फिर शुरू हुई खान वॉर। सल्लू ने कहा ये तो होता ही रहता है इसमें कोई नई बात नहीं है। पर अब उसी फजीहत से बचने के लिए सल्लू आने वाली फिल्म ‘वॉन्टेड’ के प्रमोशन के लिए अमेरिका नहीं जा रहे हैं।

शाहरुख ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सब सवालों के जवाब भी दिए। जब ये बात सामने आई तो शाहरुख ने कहा कि नेवार्क एयरपोर्ट के अधिकारियों का रवैया ठीक नहीं था पर जो हुआ सो हुआ अब इस बात को तूल नहीं देना चाहिए। फिर पहले तूल क्यों दिया गया? इस पर एस पी महासचिव और अमिताभ बच्चन के मुंह बोले भाई अमर सिंह बीच में कूद पड़े और कहा कि ये तो आने वाली फिल्म को लेकर शाहरुख खान का पब्लिसिटि स्टेंट है।

बीजेपी में किताब पर कलह।

शिमला में बीजेपी की चिंतन बैठक से पहले जसवंत की लिखी किताब पर उठी चिंता को दूर किया गया और उन्हें निष्कासित कर दिया गया। 30 साल की बफादारी एक फोन पर ही खत्म कर दी गई। आज तक भारतीय इतिहास में हम ये पढ़ते आए हैं कि भारत को आजादी महात्मा गांधी ने दिलवाई। आजादी में योगदान पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने देश को एकजुट किया पर ये हमारे हीरो हैं। साथ ही जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग की और आजादी के साथ विभाजन के दर्द का विलेन उन्हें माना गया। पर जिन्ना को हीरो और पंडित नेहरू और सरदार मोदी को विलेन के कठघरे में लाकर जसवंत सिंह ने खड़ा कर दिया। यहीं से बवाल की शुरूआत हुई। मोदी ने किताब में सरदार पटेल के बारे में गलत लिखने पर गुजरात में बैन कर दिया। वहीं कुछ और बीजेपी शासित राज्यों में बैन नहीं लगाया गया। और ये टकराव सामने आया जो कि मोदी के खिलाफ खड़ा नजर आया। सुध्रींद्र कुलकर्णी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। किताब और कई मुद्दों पर अरुण शौरी ने पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधा और संघ को अपना चाबुक चलाने के लिए कहा।

जसवंत सिंह ने हाल ही में कहा था कि उन्होंने आडवाणी को बचाया। उसी बात को ब्रजेश मिश्र और यशवंत सिन्हा दोनों ने आगे बढ़ाया। वहीं राजनाथ और आडवाणी के फरमान को दरकिनार करते हुए वसुंधरा राजे आज भी पद पर कायम हैं। कुछ भी हो आगे आने वाले दिनों में संघ का प्रभुत्व बीजेपी पर भारी पड़ेगा। जैसे कि पहले हुआ करता था। अभी जल्द ही कुछ और फेरबदल देखने को मिल सकता है।

नाक कट गई ऑस्ट्रेलिया की

इंग्लैंड से एशेज सीरीज 2-1 से हारकर ऑस्ट्रेलिया चौथे नंबर पर पहुंच गया। टेस्ट रैंकिंग में वो कभी चौथे पायदान पर लुढ़क जाएगा शायद ऐसा कभी ऑस्ट्रेलिया ने नहीं सोचा होगा। ये इतिहास में पहली बार हुआ है कि ऑस्ट्रेलिया के एक ही कप्तान ने दो बार अपने कार्यकाल में एशेज गंवाई हो। 2005 के बाद 2009 ने ऑस्ट्रेलिया की शर्मनाक हार हुई। वहीं इंग्लैंड के ऑलराउंडर एंड्रयू फ्लिंटॉफ को उनकी टीम ने एक खूबसूरत विदाई दी। विवादित खिलाड़ी फ्लिंटॉफ को हम भारतीय तो युवराज के कारण ही याद रखेंगे जब कि 20-20 में युवी से फ्लिंटॉफ नहीं भिड़े होते तो ब्रोड को युवी 6 छक्के नहीं मार पाते।

डीडीसीए में जिस्मफरोशी

सहवाग के इल्जामों की झड़ी अभी रुकी नहीं थी कि कीर्ती आजाद ने ये कहकर सनसनी फैला दी कि दिल्ली के क्रिकेट में लड़कियां सप्लाई की जाती है। मतलब साफ था कि यदि किसी खिलाड़ी को चुना जाना है तो उसे कीमत अदा करनी होगी और वो कीमत लड़की के रूप में देनी होगी। युवराज ने भी आरोप लगाए कि उनके साथ भी छोटे स्तर पर भेदभाव हो चुका है और ये सब उनको सहना पड़ा है। पर ये पता नहीं कहा तक सच है क्योंकि योगराज के बेटे के साथ यदि नाइंसाफी हो सकती है तो फिर किसी के साथ भी हो सकती है।

कुछ और खबरों के अलावा ये वो खबरें थीं जिन पर मैं लिख नहीं सका पर हां इतिहास के पन्नों को फिर से पलट कर देखने की इच्छा हो उठी क्योंकि कुछ बातें तो जसवंत सिंह ने सही कहीं हैं पर मैं उनकी हर बात से इत्तेफाक नहीं रखता। मैंने इसके पीछे काफी रिसर्च की है। जिन्ना यदि इतने ही सेकुलर थे या फिर इतने ही बड़े आजादी के नेता थे तो कहीं पर भी उनका जिक्र क्यों नहीं आता। क्यों सिर्फ पाकिस्तान में ही वो जाने जाते हैं। क्यों 1927 के बाद ही उनकी तरफ से ये पहल हुई कि मुस्लमानों के लिए एक अलग राष्ट्र होना चाहिए थे। सुभाष चंद्र बोस क्या बंगालियों के लिए लड़ रहे थे। इतिहासकार कहते हैं कि यदि बोस गायब नहीं हुए होते तो शायद भारत 1945 में ही आजाद हो गया होता। तो जिन्ना को हीरो बनाने के पीछे क्या कारण है। और सबसे बड़ा सवाल जिन्ना के दादा हिंदू थे फिर भी हिंद राष्ट्र से क्यों जलन थी जिन्ना को। कौन थे ये कायदे आजम। भारत के इतिहास के पन्नों पर लिखी आजादी के वो अनछपे पन्नों के बारे में लिखने की कोशिश में।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, August 26, 2009

कंप्यूटर जी ने लटकाया, 1 से 7 फिर 11।

14 अगस्त को पोस्ट डाल के कहीं जाना था तो निकल गया। कंप्यूटर शट डाउन कर चुका था तो सोचा कि चलो आज़ादी की बात कल ही करूंगा। जब अगले दिन कंप्यूटर खोला तो थोड़ी ही देर बाद एक छोटी सी विंडो आई और उसमें एक एर्रर लिखा हुआ था। जब तक उसे एर्रर को पढ़ पाता तब तक स्कैन विंडो खुल गई और उसमें पहला, फिर दूसरा और फिर तीसरा वायरस दिखा और कंप्यूटर बंद। तुरंत रिस्टार्ट किया और जल्दी से स्कैन पर डाल दिया कि एंटी वायरस अपडेट हो ही रहा है तो शायद सारे वायरस मारे जाएं। कंप्यूटर स्टार्ट तो बड़े ही आराम से हो गया लेकिन फिर वो ही प्रकरण और कंप्यूटर बंद।

अपने ऑफिस में सिस्टम(आईटी डिपार्टमेंट) के दोस्तों को अपने कंप्यूटर के लक्षण बताए तो उन्होंने कहा कि बीमार हो गया है तुम्हारा कंप्यूटर। बीमारी का नाम है वायरस। तुम्हारे कंप्यूटर पर शत्रुओं ने हमला कर दिया है और वायरस रूपी मिसाइलें दाग दी हैं जिससे बच पाना किसी भी सूरत में नामुमकिन है। तुम्हारा कंप्यूटर एफेक्टिड हो चुका है और ये स्वाइन फ्लू की तरह है यहां से वहां बहुत जल्दी फैलता है।

कंप्यूटर को सेफ मोड में चलाओ और सी ड्राइव से जो भी डेटा है वो निकाल लो। मैंने तुरंत उन सब चीजों को पेन ड्राइव में सुरक्षित कर लिया। फिर पास के ही एक अस्पताल यानी कंप्यूटर अस्पताल से डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर साहब आए और टूट पड़े इंजेक्शन यानी स्क्रू ड्राइवर लेकर और उतारने लगे कंप्यूटर के कपड़े।

नवज टटोलकर, धड़कन सुनकर डॉक्टर रूपी इंजीनियर ने बताया कि मिसाइलों के एटैक से आप की ’सी’ ड्राइव पूरी तरह छतिग्रस्त हो चुकी है और अब उस हिस्से को बचा पाना हमारे बूते की बात नहीं है। हमने पूछा तो इलाज बताएं डॉक्टर साहब। इलाज, इलाज तो एक ही है, पूरी ’सी’ ड्राइव फोरमेट की जाएगी मतलब नई बनाई जाएगी। गो एहेड (go ahead) हमने परमिशन दे दी।

डॉक्टर साहब ने आधे घंटे बाद माथे का पसीना पोछकर बोले, लीजिए आपकी ’सी’ ड्राइव फिर से जिंदा कर दी है। हैं ना हम कलाकार। हमने मन ही मन सोचा, सच आप कलाकार तो हैं ही। पर तभी कंप्यूटर जी ने आवाज़ लगाई डॉक्टर साहब, दवाई तो देते जाओ। डॉक्टर साहब ने तुरंत एक गोल सी रोटी निकाली और हमारे कंप्यूटर के मुंह में डाल दी।

थोड़ी ही देर में एंटी वायरस इंस्टॉल हो चुका था। पर ये क्या, एर्रर।।। अब डॉक्टर साहब की हालत खराब, हमने छूटते ही कहा अब कलाकारी दिखाइए। कंप्यूटर का नीला चेहरा देख डॉक्टर साहब के चेहरे का रंग ही उड़ गया। दो घंटे की मशक्कत और बीच में कई और डॉक्टरों से फोन पर राय लेने के बाद डॉक्टर साहब ने फैसला सुनाया। पेसेंट को अस्पताल में एडमिट कराना होगा। हम बोले अभी लेकर चलते हैं जल्दी चलेंगे तो शायद रात अपने घर पर कटे।
आदमी जैसा सोचता है वैसा होने लगे तो कहने ही क्या। जिस्म अस्पताल में और घर पर सिर्फ कंप्यूटर का बुझा-बुझा चेहरा। ऐसा लग रहा था दो जिस्म एक जान को जुदा कर दिया गया हैं। कितना काला पड़ गया बेचारे का मुंह।

जो भी हो अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। फिर से दोनों मिले पर वो पहले वाली बात नहीं आई। चेहरे ने जिस्म का साथ छोड़ना शुरू कर दिया। फिर डॉक्टर साहब को बुलाया गया इस बार फिर वो ही इंजेक्शन, वो ही नंगा करने का प्रकरण, बड़ा दुखदाई। फिर से ’सी’ ड्राइव बेचारी शहीद और फिर से जान फूंकी और वाह वाही लूटी गई। इस बार मरीज को पावर का टॉनिक दिया गया यानी कंप्यूटर की रेम बढ़ाई गई।

कंप्यूटर जी फिर दौड़ने लगे, हमने हाथ जोड़े कि वायरस फीवर भी तो 7 दिन खींच ही लेता है। पर यहां डॉक्टर साहब गए और कंप्यूटर जी ने 100 घंटे की रफ्तार को ब्रेक लगाया और हो गए फिर से री स्टार्ट।

हमने तुरंत अस्पताल में फोन लगाया अब तो डॉक्टर भी बचने लगे थे पर फिर भी टाइम मिल गया। आज दिन में किसी भी वक्त डॉक्टर साहब कम इंजीनियर साहब तसरीफ लाएंगे और अपने मरीज को देखेंगे। हमने भी इस बार अस्पताल में कह दिया है कि बहुत बार आप कंपाउंडर कम डॉक्टर को भेज चुके अब एक बार तो रीयल डॉक्टर को भेज दीजिए।

ग्यारह दिन के बाद आज लिख रहा हूं। इसमें भी हर दो-चार शब्द के बाद ’कंट्रोल एस’ करना नहीं भूलता। अभी ये लिखते वक्त भी कंप्यूटर जी बंद हो गए थे पर कंट्रोल एस ने बचा लिया। कंप्यूटर जी गर खराब हो जाएं तो क्या हाल होता है अब पता चल रहा है। इतनी खबरें हुईं कि लिखने को आतुर था पर.....। भगवान से दुआ करता हूं आज कंप्यूटर जी ठीक हो जाएं। जहां तक एर्रर देख लग रहा है कि नई रैम की प्रोब्लम है। यदि ठीक हो गया तो फिर नितीश नित हो जाएगा।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, August 15, 2009

रात की काली चादर, वो घुप अंधेरा और वो कमरा और उसमें टिमटिमाती बत्तियां-3

अब आगे...
हमने टाइगर बीयर ऑर्डर की और उसी काउंटर पर एक कौना पकड़ लिया और हल्के-हल्के कदमों से थिरकते रहे पर सिर्फ जब कि कोई हमें देखता तब वर्ना पब कल्चर।
हमारे दोस्तों में जिनके साथ उनकी बैटर हाफ थीं वो लगे थिरकने। उस पब में धीमी लाइट पर लाउड म्यूजिक और टेबल चेयर लगा हुआ था। लग ऐसा रहा था कि रात 9 बजे तक वो रेस्टोरेंट कम बार रहता होगा और फिर पब में तब्दील हो जाता होगा।

पब में अधिकतर १६ से लेकर २५ साल के रहे होंगे अधिक से अधिक ३० के पार का कोई नहीं होगा हमें चंद को छोड़कर। अधिकतर नई जमात की पौध लग रहे थे। चहरे पर बाल आए नहीं थे और मजा लेने में लगे थे कॉकटेल का। ऐसा लग रहा था कि सब के पास इफरात पैसा हो। एक शख्स सिर्फ खड़ा-खड़ा हिल रहा था और उसने इतने टाइट कपड़े पहने थे कि लड़कियां भी पीछे रह जाएं। मैं उसे कतई डांस नहीं कहता वो दो पैग अंदर करता चुसकियां ले-ले कर और फिर लग जाता हिलने। उनके साथ जो बंदियां थी वो डांस कर रहीं थीं।

वहीं दूसरी तरफ १८-१९ साल के एक लड़के और लड़की मैं कॉम्पटीशन हो गया। भरे गिलास को सर पर रख कर कौन अधिक देर तक डांस कर सकता है? यहां म्यूजिक शुरू हुआ ‘....नशा शराब में होता तो नाचती बोतल....’। वहां लगे वो दोनों डांस करने और लड़की ने राजस्थानी फोक डांस करना शुरू किया तो लड़का उसी तर्ज पर उसको फॉलो करता रहा। दोनों बहुत अच्छा डांस कर रहे थे सभी उन्हें ही देख रहे थे। जब लोग ताली के साथ उन दोनों का हौसला बढ़ाने लगे तो एक लड़का और लड़की जो कि बहुत देर से कोने में रसपान कर रहे थे डिस्टर्ब हुए और खाने खाते वक्त यदि कंकड़ आ जाए तो जैसा बुरा मुंह कोई बना सकता है उस मुंह के साथ दोनों उनको देखने लगे। गाना खत्म होते होते लड़की का भरा जाम उसके सर से सरका और झट से उसने उसे कैच किया और वहां लड़की की जीत में तालियां और तेजी से बज उठीं।

उस शो के खत्म होते के साथ ही सभी अपने-अपने काम में लग गए और वो जोड़ा सड़ा सा मुंह हटाकर अच्छे मुंह के साथ एक दूसरे के मुंह से.....। मैंने गौर किया तो थोड़ी देर तक तो मुझे ये ही समझ नहीं आया कि उस लड़की ने पहना क्या हुआ है। मैंने ज्यादा दिमाग खर्च नहीं किया क्योंकि अब उन दोनों के पास से आंख हटा ही लेना बेहतर था क्योंकि दोनों के हाथ अब हदें पार करने लग गए थे। वो भी समझ गए और थोड़ा डार्क में चले गए। वहां पता चल रहा था कि कोई है पर कौन है और क्या कर रहा है ये पता नहीं चल रहा था।

तभी एक जोड़ा मेरे सामने से गुजरा यदि रेलवे स्टेशन पर दोनों होते तो कोई शायद उन्हें भीख में कपड़े ही दान कर देता। लड़के ने और लड़की ने दोनों ने शायद सिर्फ दिखाने के लिए ही कपड़े पहने थे। कुछ ऐसे लोग भी थे जो कि पूरे कपड़े पहने हुए थे पर उन्होंने शायद २१-२२ को पार कर लिया था। मैं दंग था।

मेरी बीयर खत्म होने वाली ही थी और तभी बार बंद कर दिया गया। अब किसी को दारू नहीं मिलेगी। मैंने अपने दोस्त से पूछा कि पेमेंट कर दी? उसने बताया कि क्रैडिट कार्ड बारटेंडर के पास ही पड़ा हुआ है। तब मैंने देखा कि करीब ४५-५० कार्ड रखे हुए थे एक ग्लास के ऊपर और उनके नीचे आपका बिल। जब बिल आया तो मैंने यूं ही जानने के लिए ये देखा कि एक बीयर की कीमत क्या पड़ी है। जो एक बीयर बाहर शायद ३०-४० की मिल जाएगी वो २५० की पड़ी।

हम चलने को तैयार हो रहे थे। वो टाइट कपड़े वाला बंदा अभी भी हिल रहा था साथ ही चुसकियां ले रहा था और उसकी बंदी अभी भी डांस कर रही थी पसीने में तरबतर। सर पर ग्लास बैलेंस करने वाले दोनों हाथ में हाथ डाले कर अपनी चेयर से अपने दोस्तों के साथ खड़े हो गए। तभी उन लोगों को क्रॉस किया उन दोनों ने जो कॉर्नर में रसपान कर रहे थे। लड़का रुका और बार टेंडर से कुछ कहने लगा। मुझे लड़की को देखने का मौका मिला मैं जानना चाहता था कि उसने क्या पहना है। पर अब भी निराश ही हुआ क्योंकि लाइट और डिम कर दी गई। मेरे दोस्त ने मेरा हाथ पकड़ा और बाहर की तरफ खींचने लगा।

पब कल्चर में हमारा इंट्रो उस पब की रीत या रिवाज नहीं था। ऐसा नहीं था कि ये उनकी कर्टसी थी वो तो हमारे उस फ्रेंड का कमाल था जिसने उसमें हमें एंट्री दिलाने के बाद उसके मालिक जो कि उसका दोस्त था उससे स्पेशल ट्रीटमेंट मांगा था। जो कि ये पार्टी उस जोड़े के लिए उसकी तरफ से गिफ्ट हो जाए। ये बात मुझे वहां से निकलते वक्त पता चली थी जब कि उस पब का मालिक हमें छोड़ने नीचे तक आया। उसने मेरे दोस्त के आइडिए की तारीफ की और मुझे उस बात का पता चला। मैंने वहां पर उसका और उसके दोस्त यानी पब के मालिक का शुक्रिया अदा किया और अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया।

दुकानें लगभग बंद हो चुकी थी एक पान की दुकान खुली थी जो कि बंद होने ही वाली थी उसमें से एक मालबोरो लाइट लेकर सुलगाई और पान मसाला लेकर आगे बढ़ गया। पार्किंग में पहुंचा तो सिगरेट के चंद कश ले चुका था काफी दिनों के बाद पी थी सिगरेट। सिगरेट की बदबू बीयर की बदबू पर भारी पड़ती है और उपर से पान मसाला तो कोई एक बार में ये नहीं जान सकता कि मैंने थोड़ी बीयर पी रखी है। चारों तरफ नजर दौड़ाई तो कोई पुलिस वाला मौजूद नहीं, दूर-दूर तक नहीं। मैंने सिगरेट फेंकी और गाड़ी में बैठ गया।

थोड़ी देर में ही मेरी गाड़ी घर के रास्ते पर दौड़ चली। पान मसाला खाते हुए मेरे दिमाग में कई सवाल दौड़ रहे थे। क्या पब से हमारी नई जेनरेशन के कदम बहक तो नहीं रहे। जितने भी फैशन शो में पारदर्शी कपड़े देखे हैं मैंने यहां पर देखे। शायद उस लड़की ने भी इतना पारदर्शी पहन रखा था और इतना छोटा कि सब कुछ दिख रहा था। वो सारे कपड़े शायद यहां पर चलते हैं। कुछ इतना पीजाते हैं कि फिर उनको गाड़ी तक पहुंचाने के लिए भी बाउंसर की जरूरत पड़ती है। ऐसा सिर्फ लड़कों के साथ ही नहीं लड़कियों के साथ भी होता है। सही जगह पर दिमाग ना लगा कर वो नई पौध अपना आगे आने वाला कल ही खराब कर रही है। पर शायद पब में आने वाली नेक्स्ट जेनरेशन का कितना हिस्सा होगी शायद कुछ फीसदी और ये ही नेक्स्ट जेनरेशन नहीं है। गाड़ी घर की पार्किंग में लगाकर मैंने मोबाइल देखा तो समय रात के ३.४० बजा रहा था, घर की डोर बैल बजाने के लिए उठा हाथ वापस नीचे आगया और सोने के लिए मैंने वापिस गाड़ी का रुख किया।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, August 14, 2009

रात की काली चादर, वो घुप अंधेरा और वो कमरा और उसमें टिमटिमाती बत्तियां-2

अब उससे आगे...
मुझे रास्ता पता नहीं था तो मैं अपने उस दोस्त की कार के पीछे लग लिया जिसने पब का आइडिया दिया था। वो शूमाकर का भाई था पिछले जन्म में शायद, इतनी तेज गाड़ी मैंने कभी नहीं चलाई। जिमखाना से हम साकेत करीब १० मिनट के अंतराल में ही पहुंच गए। पर हमारे बाकी साथी १०-१५ मिनट बाद पहुंचे। हमने गाड़ी लगाई और हमारी नजर वहां रास्ते पर मौजूद पुलिस के दस्ते पर पड़ी जिन्होंने पब के ठीक २० मीटर की दूरी पर ही बैरियर लगा रखा था और वो चैक कर रहे थे कि कोई पी-कर तो ड्राइव नहीं कर रहा। अब सोचने वाली बात थी कि पब में से कोई सूफी तो निकलेगा नहीं पर चलो देखा जाएगा जब वापसी करेंगे।

हम सब साथ-साथ चल दिए पब की ओर। ऐसा लग रहा था कि सब हमें रास्ता देते जा रहे हैं जैसे कि कोई वीवीआईपी आ रहे हों। हम धड़ धड़ाते हुए ऊपर चढ़ने लगे। तभी नीचे ही खड़े चार बॉक्सरों ने हमें अंदर जाने से रोक दिया। हमने उसे आगे किया जिसने पब के मालिक से बात की थी उसने अपना रिफरेंस दिया और खबर वॉकी टॉकी के जरिए ऊपर तक पहुंचाई गई। करीब एक मिनट के अंतराल के बाद हमें ग्रीन सिग्नल मिल गया।

हमने जैसे ही ऊपर जाने के लिए सीढ़ी पर पैर रखा कि तभी लाइट चली गई, म्यूजिक बंद और इमरजैंसी लाइट ऑन और ऊपर भी ८-१० बॉक्सर। हमने फिर से उसी ग्रीन सिग्नल को आगे कर दिया। पर यहां पर एक बॉक्सर ने हमारे उस दोस्त को अपनी मंगेतर के साथ आगे बुलाया जिसकी सगाई हुई थी। वो आगे आया और फिर उसने हमें पीछे लाइन से ऐसे खड़ा किया जैसे कि एक साथ सभी गेट के अंदर चले जाएं।

दरवाजा खुला और एक स्पॉट लाइट हमारे दोस्त और उसकी मंगेतर के ऊपर पड़ी। टिमटिमाती लाइट के बीच खचाखच भरे उस कमरे में तालियों और कॉगरेट्स की आवाज़ गूंज गई। यहां हमने भी हाथ उठाकर तालियां बजाई अब लाइट हमारे ऊपर भी थोड़ी पड़ रही थी हम कमरे में दाखिल हो चुके थे और हमारे पीछे दरवाजा बंद और फिर कान फाड़ू म्यूजिक बजने लगा। वेलकम टू पब कल्चर।

हम पब में घुस चुके थे और म्यूजिक इतना तेज बज रहा था कि आंख से इशारा करके ही हम बात कर पा रहे थे। वो पब स्क्वेअर में बना हुआ था पर बीच में उन्होंने बार बना रखा था तो कुछ वो यू आकार का बन गया था। बार टेंडर्स ड्रिंक देने में लगे हुए थे और लोग थिरक रहे थे।

मैं पहली बार किसी पब में आया था तो मैं उत्सुक्ता वश सभी चीजें देख लेना चाहता था। मेरी नजर काफी बारिकी से एक-एक चीज को देख रही थी। कौन कितना पी रहा है और कौन वहां पर बने रहने के लिए सिर्फ दिखावा कर रहा है....कौन कैसे और कितना डांस कर रहा है....कौन थिरक रहा है और कौन हिल रहा है....कौन मटक रहा है....कौन पी कर टुल हो चुका है.... कौन किसको ताक रहा है....किसने क्या पहना है....कितने उम्र वाले हैं यहां पर और किस ग्रेड से उनका ताल्लुक हैं।
(क्रमश:)
आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, August 13, 2009

रात की काली चादर, वो घुप अंधेरा और वो कमरा और उसमें टिमटिमाती बत्तियां।

जब मेरे दोस्त का फोन आया तो मैं ऑफिस में काम के बीच में फंसा मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था। एक ही शहर में, एक ही दफ्तर में होकर भी महीनों हो जाते हैं मिले कुछ दोस्तों से।
हाल-चाल जानने के बाद उसने पूछा, ‘कब फ्री होगा और रात में क्या कर रहा है’।
‘9 तो बज ही जाएंगे और जहां तक सवाल रहा रात का, तो फ्री होते के साथ ही मुल्ला की दौड़ मस्जिद यानी मेरी घर।
‘तो ठीक है, भाभी को कह देना कि आज तू लेट आएगा’।
‘क्यों’?
‘अपनी सगाई की पार्टी दे रहा हूं, जिसे बैचलर पार्टी भी मान लेना....हा...हा...हा’।
मैंने थोड़ा जल्दी फ्री होना मैनेज कर लिया। एक घंटे से भी ज्यादा ट्रैफिक की पों...पों... के बीच बिताने के बाद रात 9 बजे के करीब मैं करोल बाग से जिमखाना पहुंचा। उसके अधिकतर दोस्तों को मैं पहचानता था और उनमें से एक-दो को छोड़ दें तो सभी अपने बैटर हाफ के साथ थे। हम सब में आपस में परिचय के कारण ज्यादा फॉरमेलिटी में समय बर्बाद नहीं हुआ और हम अपनी-अपनी सीट थाम, हाथ में जाम लेकर बैठ गए।

अब बस इंतजार था तो उसका जिससे हम मिलने आए थे। वो भी आईं और थोड़ी देर के लिए सब कुछ बदल गया। उसके आने की खबर पाते ही सब ने अपने-अपने कपड़े ठीक किए और सब के चेहरे और शरीर पर फॉरमेलिटी का लबादा चढ़ गया। पर थोड़ी ही देर में सब के पैरों के तले से जमीन सरक गई, सब की आंखें फटी की फटी रह गई। उस लड़की को हम सब जानते थे वो हमारे साथ ही काम करती थी।

ये दोनों....कब....कहां....कैसे....अरे विश्वास ही नहीं हो रहा....पर तुम कैसे....तुम ने कभी बताया नहीं...अरे...नहीं...ओह...आई कॉन्ट बिलीव दिस। ऐसी ही लाइन थोड़ी देर तक वहां हर किसी के मुंह से निकल रही थी। अब हमें पता चला कि क्यों वो ये राज नहीं खोल रहा था। क्योरोसिटी की हद हो चुकी थी सबने पूछा कि कैसे हुआ ये सब और हमें बताया क्यों नहीं?

दोनों ने खुलकर अपनी बात रखी और कैसे मिले और कैसे दाल गली। सब बताया और साथ में ये भी बताया कि कहीं कुछ बिगड़ ना जाए इस कारण से किसी को बताया नहीं गया। अब इस पार्टी में कोई भी गैर नहीं था किसी को अपनाने की बात नहीं थी दोस्तों के अंदर, सब अपने थे।

दिल्ली का जिमखाना क्लब बहुत बड़ा है। हम ड्रिंक जोन में थे और जैसे ही हमने एक दरवाजा खोला तो कान फाड़ू म्यूजिक को पीछे छोड़ते हुए दिल में उतर जाने वाले संगीत की महफिल जो कि मध्म रोशनी में चल रही थी वहां पहुंच गए। यहां बाहों में बाहें डाले जोड़े एक दूसरे में समा रहे थे। हम वो हॉल भी क्रॉस कर गए और फिर गलियारे में से होते हुए एक ऐसे हॉल में दाखिल हुए तो सफेद चादर से ढकी हुई काफी टेबल लगी हुई थी और खाने की भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। वहां पर हमने बफे में खाना खाया पर किसी ने भी शायद लगता नहीं कि भर पेट खाना खाया होगा। हम में से अधिकतर तो ढाबे पर बैठकर बटर चिकन और तंदूर की रोटी पाड़ने वाले हैं और खास तौर पर दो पैक के बाद तो ढाबे का खाना ही भाता है। उस कॉनटिनेंटल फूड में रोटी की जगह रस के आकार की ब्रेड थी अब रोटी खाने वाले तो.....। आधे भरे, आधे से ज्यादा खाली पेट के साथ वहां से हम निकल पड़े।

बाहर आते के साथ लगा कि अभी तो रात शुरू हुई है चलो मस्ती करने चलें। पर कहां? ये सवाल हमारे सामने था। इंडिया गेट जाने से हम कतरा रहे थे, साथ ही कटवारिया सराय के पास के जंगल या फिर जेएनयू के जंगल में बारिश के मौसम में जाने से भी सब बचना चाह रहे थे। तो जाएं कहां? क्या रात भर यूं हीं सोचते रहेंगे या फिर कहीं चलेंगे। रास्ते में कार रोककर सब बाहर निकले और सिगरेट सुलगा ली। तभी एक दोस्त ने कहा चलो साकेत।

‘साकेत! वहां पर क्यों? क्या है वहां पर’? दुल्हन ने सवाल दाग दिया। जिसने रास्ता दिखाया अब जवाब भी उसे ही देना था। पब!!!!! क्या पब! जी हां पब। हुर्रे, चलो पब चलते हैं, डांस करेंगे। पर क्या एंट्री इस समय मिलेगी। ‘ये एक वाजिब सवाल है’। किसी की पीछे से आवाज़ आई। मैं तो एंट्री क्या पब के ‘प’ तक भी कभी नहीं पहुंचा था तो मैं सिर्फ मूक दर्शक की तरह सुन रहा था। फिर किसी ने कहा, ‘चलो देख लेंगे उस पब में तो मेरा मालिक से भी जुगाड़ है’। एक ने कहा, ‘पहले फोन करके पूछ लो वर्ना कुछ और सोचेंगे’। वो फोन करने में लग गया और उसकी तरफ से हरी झंडी मिलते के साथ ही हम सब अपनी-अपनी कार में बैठ निकल पड़े।
(क्रमश:)

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, August 12, 2009

ट्रैफिक की पों...पों...और मेरा मन गीला-गीला।

ऑफिस से घर पहुंचने की जल्दी, घर के रास्ते पर गाड़ियों का शोर और जगह-जगह से उड़ती धूल। रास्ते में बस...किसी कार....या थ्री व्हीलर का बिना बात बजता हॉर्न, बार-बार बजता हॉर्न लगता कि क्या चालक बहरा है या हमें बहरा समझ रखा है या हमें बहरा करने पर तुला हुआ है। आंखें घर तक पहुंचाने वाली बस के इंतजार में, अपनी उस बस के इंतजार में दूर तक देखती मेरी नजर। पर लगता है कि फिर बस का इंतजार करना व्यर्थ हो जाएगा....इतनी भरी होगी कि चढ़ ही नहीं पाऊंगा। यदि बस टाइम पर आ जाए और मिल जाए तो तीन-चार चेंज करने से बच जाता हूं। पर अब समय बर्बाद करने से बेहतर है कि मेट्रो से चला जाए करेंगे चार बार कसरत।

मेट्रो से मुझे तो ये ही अच्छा लगता है कि सफर कब खत्म हो जाता है पता ही नहीं चलता। जब तक संभलते हैं तो पता चलता है कि आपका गंतव्य आगया। पूरा पसीना सूख गया पर अब शुरू होगी घर तक पहुंचने की जंग। धूल-हॉर्न-चिल्लाहट-धूप-उमस-पसीना-गंदगी और पता नहीं क्या-क्या सब से होगा सामना, वो भी एक साथ। धूप इतनी रहती है पर फीडर बस वालों से लड़ों नहीं तो चलेंगे नहीं। देखो, सभी तो बस के अंदर भिच कर बैठे-खड़े हुए हैं। मैं नीचे ही रहता हूं धूप झेल लूंगा पर पसीना-गर्मी नहीं। ये देखो हम धूप में खड़े हुए हैं और ड्राइवर-कंडेक्टर छांव में हंसी-ठिठोली कर रहे हैं। चलो आज मुझे नहीं जाना पड़ा और कोई गया है लड़ने के लिए। भइया दोनों को लेकर ही लौटना। चलो फतह मिली उठ कर आ तो रहे हैं।

कई बस बदल लेने के बाद अपने अंतिम गंतव्य तक पहुंचने के लिए ऑटो की तरफ बढ़ा।
‘अरे, तुम ही तो थे ना भइया कल भी’।
मैंने उसके जवाब का इंतजार भी नहीं किया और बैठ गया।
‘जी साहब, कल मैं ही था। वहीं छोड़ूं ना जहां पर कल छोड़ा था’।
'भइया मेरा घर उसी सोसायटी में ही है तो वहीं छोड़ोगे ना कहीं और क्यों जाऊंगा मैं'।
’नही, नहीं साहब, कहीं सब्जी वगैरा तो नहीं लेने जानी मैं तो ये ही पूछ रहा था। चलिए छोड़ देता हूं यदि बुरा लगा हो तो साहब, ‘सॉरी’।’
ऐसी बात तो थी नहीं कि इसे सॉरी बोलना पड़े। मुझे लगा मैंने बेकार ही इस बेचारे का मन दुखा दिया, उस सवाल का जवाब ‘हां’ में भी तो दिया जा सकता था पर आजकल मैं क्यों जल्दी इरिटेट हो जाता हूं।

मैं पसीने में पूरा तरबतर थ्री व्हीलर में लग रही हवा से काफी राहत महसूस कर रहा था। ओह हो....रेडलाइट भी अभी होनी थी अब जाकर थोड़ी हवा लगने लगी थी पसीना सूखना शुरू हुआ ही था कि ब्रेक लग गया। ऑटो वाले ने ऑटो बंद कर दिया।

सिग्नल ग्रीन होने पर ऑटो वाले ने स्टार्ट किया तो पहली बार में नहीं हुआ, दूसरी बार फिर नहीं हुआ। पीछे से पों...पों...पों....पीं...पीं....पीं...लोगों ने बुरा हाल कर दिया। कुछ कार वाले बगल से निकलते वक्त गाली देते हुए निकले। रेड लाइट पर गाड़ी रुकने की गंभीरता को समझते हुए तुरंत नीचे उतरा और उसके साथ मिलकर धक्का लगाने लगा। कोने में ऑटो को करवा कर उसमें बैठ गया। जितना पसीना सूखा था उससे दोगुना निकल गया। ऑटो भी स्टार्ट हो गया और हमने उसी ग्रीन लाइट को समय रहते पार भी कर लिया।

ऑटो को दोबारा शुरू करने में महज एक मिनट भी नहीं लगा और रेडलाइट ३ मिनट की थी। फिर लोग क्यों हुए इतने बेचैन कि गालियां देते हुए चले गए, हॉर्न पर हॉर्न बजाने लगे। क्या हमारा अंदर संयम खत्म हो चुका है। इसी संयम खत्म होने की वजह से एक्सीडेंट और खून खराबा होता है। घरों में, बीवी के साथ, भाई के साथ, माता-पिता के साथ लड़ाई होती है। इसी संयम ना रखने की वजह से। क्यों हम इतने बेपरवाह हो गए हैं।

मैं घर पहुंच गया और घर पहुंचते-पहुंचते पसीने से मेरी शर्ट सूख चुकी है पर मन गीला-गीला हो रहा है क्योंकि और लोगों की तरह ही मैंने भी तो संयम नहीं बरता था।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, August 7, 2009

ये इबादत नहीं है...शक्ति प्रदर्शन का एक जरिया है।

कल रात 11 बजे जब मैं ऑफिस में था तब एक खबर आई कि दिल्ली में दो आतंकवादियों को धर दबोचा गया है। पहली नजर में लगा कि 15 अगस्त से पहले तो गिरफ्तारी लाजमी है ही और वैसे भी खुफिया तंत्र ने दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस से पहले अलर्ट जारी कर रखा है। फिर ख़बर में अपडेट हुआ कि दोनों को दरियागंज से पकड़ा गया है और दोनों आतंकी दिल्ली में अपने मोड्यूल से मिलने आए थे। दोनों आतंकी हिजबुल के थे और जम्मू-कश्मीर के रहने वाले और पाक में ट्रैनिंग लेकर के दिल्ली आए थे। दोनों के पास से एक-47, कारतूस, हैंड ग्रेनेड मिले थे यानी देखा जाए तो दोनों दिल्ली के किसी भी हिस्से में कोहराम मचा सकते थे और साथ ही मुंबई 26/11 जैसी वारदात को अंजाम दे सकते थे।

इस खबर के आने के लगभग 10-15 मिनट के बाद ऑफिस से गए हुए एक साथी का फोन आया कि आईटीओ पर पूरा जाम लगा हुआ है। एक बाइक पर ४-४ लड़के, किसी भी टू व्हीलर पर ३ से कम तो कतई नहीं निकले हुए हैं। मुझे पता था कि वो सब कहां जा रहे हैं मैंने तुरंत उनको बताया कि आज शब-ए-रात है और सारे मुसलमान इबादत के लिए जामा मस्जिद जाते हैं साथ ही इनकी तादाद कुछ ज्यादा ही होती है तो बेहतर ये कि पंगा मत लेना क्योंकि भीड़ पागल होती है और भीड़ के लिए कोई कानून नहीं होता है।

मेरे साथी ने जवाब दिया कि ट्रैफिक, जाम, इबादत और हुड़दंग में अंतर करना उन्हें आता है। ये हुड़दंग है, ये शक्ति प्रदर्शन है जिसे चाह रहे हैं ये लोग उल्टा-सीधा कहकर आगे निकल जा रहे हैं। इनकी तादाद भी इतनी ज्यादा है कि कोई पंगा क्या कुछ बोल नहीं सकता। पुलिस सिर्फ देख रही है और कुछ कर नहीं पा रही है उसमें भी सोने पर सुहागा दो हवलदार खड़े होकर ट्रैफिक संभाल रहे है बाकी सब बैठे हुए हैं। मैं भी सहमत था कि सच कायदे कानून को तो मानना चाहिए। खासकर टू व्हीलर पर ४-४ लोग बैठें हुए बिना हेल्मेट के हजारों लोग घूम रहे हैं क्यों। जब ऑफिस खत्म करके मैं भी गया तो ये ही हाल था हजारों की तादाद में आईटीओ पर कानून की धज्जियां पुलिस हेडक्वाटर के सामने ही उड़ाई जारही थीं। हमारे साथ आ रहे एक साथी की कार में भी कुछ लड़के बाइक से उतरकर जबर्दस्ती घुसने की कोशिश कर रहे थे। ये तो शुक्र है कि मौके पर पुलिस पहुंच गई वर्ना कुछ और ही होता।

मैंने तुरंत काउंटर किया कि याद है, कुछ दिन पहले कावड़ियों के कारण भी इसी तरह हम लोग त्रस्त थे, कितनी परेशानी होती थी। वो भी सहमत था मेरी बात से। मैं सोच में पड़ गया कि क्यों हमें जरूरत पड़ती है अपने धर्म को दिखाने के लिए शक्ति प्रदर्शन की। क्यों जरूरत पड़ती है हमें लाउडस्पीकर की और उस पर चीख-चीख कर लोगों को अपने अल्लाह का नाम दूसरों को जबर्दस्ती सुनाने की। क्यों हमें जरूरत पड़ती है लगातार, बार-बार घंटी बजाने की। लोग कहते हैं कि भगवान चीखने से नहीं साधना से मिलता है। तो क्या हमारा धर्म के नाम पर ये शक्ति प्रदर्शन ठीक है?

आपका अपना
नीतीश राज

(दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस के जज्बे को सलाम करना चाहूंगा कि दरियागंज जैसे इलाके से इतनी सफाई से दो आतंकी पकड़ लेना और वो भी इबादत की रात में एक कामयाबी ही कहूंगा। वर्ना यदि थोड़ी सी भी चूक हो गई होती तो बाटला जैसा इल्जाम फिर लग सकता था।)

Wednesday, August 5, 2009

आज के दिन का ना खत्म होने वाला इंतजार....--2

...........मेरी चचेरी बहन, पूरे खानदान के नौ भाइयों की इकलौती बहन। इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी.....इस बार नहीं, शायद हर बार।

कितने मजबूर होते हैं हम, कई बार कुछ भी नहीं कर पाते। सिर्फ कठपुतलियों की तरह इधर से उधर होते रहते हैं। हमारे अपने दुख के उस समंदर में पहुंच जाते हैं जहां से उन्हें वापस लेकर आपाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लगता है। क्योंकि अन्तर्मन के पटल पर जब एक बार जख्म बन जाए तो हर हाल में साल दर साल बाद भी निशान बाकी रह जाते हैं।
घर की हालत देखते ही बज्रपात हुआ हम सभी पर। हम में सबसे छोटी, अपने तीन बच्चों के साथ सिर्फ २४ साल की उम्र में वो.....।

याद आता है....मेरे को परिवार वाले बार-बार बोलते रहे कि नौ भाइयों की एक बहन है और हम चाहते हैं कि शादी में सभी लोग मौजूद रहें। मुझे याद नहीं आ रहा कि मैं क्यों नहीं शरीक हो पाया था शादी में। मेरी बहन ने मुझसे बहुत दिनों तक बात नहीं की थी, बहुत दिन या यूं कहें कि कई महीने। फिर धीरे-धीरे समय निकला और फिर मेरा उससे मिलना हुआ और फिर जिंदगी आगे यूं ही बढ़ गई।

दो महीने पहले सुबह-सुबह एक दिन भइया का फोन आया, मैं ऑफिस में था। जैसे कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि ऑफिस में मैं ऐसी जगह बैठता हूं वहां पर कोई फोन अटैंड तो कर सकता हैं पर बात नहीं कर सकता। भइया ने मेसिज दिया और मैं अवाक सा फोन पकड़े खड़ा रहा। मैंने तुरंत अपने रिलीवर को फोन लगाया हर समय की तरह उसने फोन नहीं उठाया। मुझे लगा कि वो फोन उठाएगा भी नहीं और ना ही कॉलबैक करेगा पर थैंक्स गॉड उसने कॉलबैक किया। मैंने उसे ख़बर बताई और उसे जल्द से जल्द ऑफिस आने को कहा। वो जैसे बैठा था वैसे ही एक घंटे बाद ऑफिस पहुंच गया, मैं इतना टेंस था कि बिना उसे धन्यवाद कहे वहां से घर के लिए रवाना हो लिया।
वो मुझसे लिपट कर मुझसे पूछती रही कि, भइया तुम्हें तो मेरे घर का पता नहीं मिलता था ना....पर आज कैसे मिल गया....। मैं टूटता जा रहा था मुझे सभी ने खड़ा किया और मैं अपनी बहन से दूर होगया।

मैं तुरंत घर पहुंचा और हम निकल पड़े अपनी बहन की ससुराल। मैं कभी गया तो था नहीं तो काफी दिक्कत हुई पर हम उनके घर पहुंच गए। घर की हालत देखते ही बज्रपात हुआ हम सभी पर। हम में सबसे छोटी, अपने तीन बच्चों के साथ सिर्फ २४ साल की उम्र में वो.....हमारे सामने बिना चूड़ियों, बिना बिंदिया, बिना साजो समान, बिना सुहाग के जमीन पर मोक्ष सी पड़ी हुई थी। मुझे मेरे परिवार में मन का बहुत सख्त माना जाता है पर जैसे ही वो मेरे सामने आई मैं वैसे ही टूट गया और काफी देर से रुका बांध बह निकला।

वो मुझसे लिपट कर, मुझसे पूछती रही कि, भइया तुम्हें तो मेरे घर का पता नहीं मिलता था ना....पर आज कैसे मिल गया....। मैं टूटता जा रहा था मुझे सभी ने खड़ा किया और मैं अपनी बहन से दूर होगया।
सब कहते थे कि कितने दूर हो जाओ, इस एक दिन जरूर बहन से मिलने आओगे पर आज.....शायद तो............।

आपका अपना
नीतीश राज

(कुछ भी जीवन में गलती हुई हो, तो माफ जरूर कर देना। तुम हमेशा ही दिल के करीब रहोगी।)

आज के दिन का ना खत्म होने वाला इंतजार....

जब मैं छोटा था शायद ७-८ साल का, तब से करीब २० साल की उम्र तक मुझे अच्छी तरह से याद है मैं इस त्यौहार पर किसी का इंतजार करता था। घर के दरवाजे पर झूलते हुए, पीछे से मम्मी की डांट, जब तक दरवाजा टूट नहीं जाएगा तब तक यूं ही राह तकता रहोगा। कभी सीढ़ियों पर बैठ कर, कभी खिड़की में दोनों टांगे बाहर लटका कर, कभी धूप में खड़े होकर इंतजार की इंतहा तक सिर्फ और सिर्फ इंतजार। इंतजार एक अदद बहन का।
घर के उस कोने यानी बाथरूम में जाकर खूब देर तक रोता रहता। इस बात से अनभिज्ञ कि हर किसी के भाग्य में बहनें नहीं होती।

आप को लगेगा कि क्या कह रहा हूं मैं पर हां, एक अदद बहन का इंतजार। कुछ लोग तो दूर की रिश्ते की बहन के खत के कारण डाकिये की राह तकते हैं कि देर से ही सही पर समय रहते शायद राखी पहुंच जाए। हम दो भाई, हमारी कोई बहन नहीं आज के दिन हम नासमझ हमेशा इसी इंतजार में कि कोई तो हमारी बहन भगवान ने बनाई ही होगी जो आज के दिन हमारी सूनी कलाइयों में वो धागा बांधेगी और फिर जिसे हम रक्षा का वचन देंगे। पर इंतजार-इंतजार ही रहा। मेरे बड़े भाई शायद जल्द ही इस बात को समझ गए पर मैं इंतजार में ही लगा रहा।

कई बार मेरा, जानने वाले खूब मजाक उड़ाते, कहते कि अपने पापा-मम्मी से कहो तो शायद बहन मिल जाए। तब सब हंसते और मम्मी उनको झेंपते हुए डांटने लग जाती। हमारी समझ में नहीं आता पर मेरी बहन मुझे नहीं मिलती।

मैं आखिर कब तक राह तकता। मैंने खुद बहन बनाना शुरू कर दिया। स्कूल में, पड़ोस में, पापा के जानने वालो की बेटियों को बनाता बहन। पर जब उनके भाई आगए तो उन्होंने मुझे दूध में मक्खी की तरह निकाल दिया। मेरी कलाई फिर सूनी रह जाती। आज के दिन मैं सड़कों पर, रेलवे स्टेशन पर कुछ लड़कियां राखी बांधती और पैसे लेती, मैं इस बात से अनभिज्ञ उनसे राखी बंधवाता और खुश होता कि एक बहन ने राखी बांधी है। पर सच्चाई ने पर्दा उठाया और मैं मायूस घर वापस आ बैठता।
पूरे खानदान के नौ भाइयों की इकलौती बहन। इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी रहेंगी....इस बार नहीं, शायद हर बार।

ये देखकर मम्मी मेरी कलाई में राखी बांधती। मैं खाना नहीं खाया करता था, मम्मी मुझे प्यार से मेरी मनपसंद खीर बनाकर कृष्ण जी को भोग लगाकर, उन्हें राखी बांधकर, फिर मुझे राखी बांधती और खिलाया करती। कुछ वक्त नखरा करता पर बच्चा अपनी मनपसंद चीज के सामने कितनी देर टिकता, फिर खा लेता।

आज के दिन मेरे दोस्त मुझे खेलने के लिए बुलाते तो दूर से उनके हाथों में ढेर सारी राखियां देखकर ही मैं खेलने नहीं जाता। और घर के उस कोने यानी बाथरूम में जाकर खूब देर तक रोता रहता। इस बात से अनभिज्ञ कि हर किसी के भाग्य में बहनें नहीं होती।

इंतजार खत्म हुआ पापा जी का तबादला हमारे पुश्तैनी घर के पास हुआ। तब से पोस्ट के साथ-साथ मेरी चचेरी बहन मुझे राखी बांधती। कभी बुआ या उनकी बच्चियां यानी मेरी बहनें मुझे राखी बांधती। मेरी चचेरी बहन, पूरे खानदान के नौ भाइयों की इकलौती बहन। इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी रहेंगी....इस बार नहीं, शायद हर बार।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, August 3, 2009

अभी राखी के स्वयंवर का पार्ट २ बाकी है

दर्शक तैयार रहें ड्रामा क्वीन के नाटकों के लिए और साथ ही इलेश परुजनवाला को भी ये नहीं समझना चाहिए कि राखी सावंत उनकी हो गईं क्योंकि फिल्म तो अभी बाकी है मेरे दोस्त...

चौदह हजार लोगों की याचिकाओं में से सिर्फ सोलह लोगों को चुना गया था और उन सोलह लोगों में से भी एक-एक करके सिर्फ तीन लोग बाकी रह गए। करीब दो वीक के फेमिली ड्रामे के बाद राखी के पास अवसर था कि वो किस लड़के को अपना दूल्हा चुनती हैं। राखी के स्वयंवर ने पूरे देश को ठीक रात ९ बजे छोटे पर्द के सामने बैठने पर मजबूर कर दिया। राखी सावंत के स्वयंवर की टीआरपी ने एनडीटीवी इमेजिन को इस समय पर सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर दिया था। अब भी जब कि स्टार प्लस पर सच का सामना और सोनी पर इस जंग से मुझे बचाओ शुरू होने के बाद भी उसकी टीआरपी में ज्यादा फर्क नहीं आया था। सभी न्यूज चैनलों पर भी राखी ही राखी छाई रहीं। दर्शकों से पूछा गया कि कौन होगा राखी का दूल्हा?

हर चैनल पर इसके जवाब में ७०-७५ फीसदी से अधिक लोगों की राय एक थी इलेश परुजनवाला। साथ ही राखी के मुंह बोले भाई रवि किशन का भी ये ही मानना था कि इलेश से बेहतर दूल्हा राखी के लिए तो कोई और नहीं हो सकता। राखी को दुनिया से इतना प्यार इसलिए मिला क्योंकि एक मध्यमवर्गी फैमली से राखी का ताल्लुक। हर लड़की ये चाहती कि वो राखी की तरह बोल्ड बने। राखी ने जब चाहा वो किया, जैसे चाहा वैसे किया, मीडिया को जैसे चाहा वैसे नचाया। याद होगा पिछला वेलेंटाइन डे, पूर्व प्रेमी अभिषेक को राखी ने जड़ा थप्पड़ और उस थप्पड़ की गूंज ने जहां लड़कों में रोष पैदा किया था वहीं लड़कियों ने उसकी बोल्डनेस को सराहया था। पूरे दिन मीडिया में सुर्खियों में बनी रहीं थी राखी। ये राखी सावंत का स्टाइल था। प्रेमी छोड़ा तो डंके की चोट पर अब सगाई की तो वो भी ड़ंके की चोट पर। इसी कारण राखी इतनी लोकप्रिय हुई और लोगों ने उन्हें आईटम गर्ल के साथ-साथ ड्रामा क्वीन कहकर बुलाना शुरू कर दिया।

याद होगा पिछला वेलेंटाइन डे, पूर्व प्रेमी अभिषेक को राखी ने जड़ा थप्पड़ और उस थप्पड़ की गूंज ने जहां लड़कों में रोष पैदा किया था वहीं लड़कियों ने उसकी बोल्डनेस को सराहया था। पूरे दिन मीडिया में सुर्खियों में बनी रहीं थी राखी। ये राखी सावंत का स्टाइल था।

वहीं दूसरी तरफ राखी तीनों दूल्हों के परिवार से मिल कर, बहुत देख-परखने भी चुकी थीं। जैसा सब जानते थे कि मानस कत्याल और क्षितिज जैन दोनों ने राखी से समय मांगा था और दोनों ही उम्र में राखी से छोटे थे। राखी असमंजस में थी कि क्या फैसला ले। वहीं इलेश परुजनवाला एक एनआरआई टोरंटो बेसड बिजनेसमैन था जो हर लिहाज से राखी के लिए उपर्युक्त था पर राखी की टूटी-फूटी अंग्रेजी यहां पर उसकी दुश्मन बन रही थी।

स्वयंवर में राखी बार-बार दूल्हों से, उनके परिवार वोलों से, टीवी देख रहे लोगों से ये कहती रहीं कि ये स्वयंवर असली है। ये कोई रिएलिटी शो नहीं है कि अंत में शादी ना हो। ऋषिकेश के मनमोहन तिवारी की मां के पूछने पर राखी का जवाब ये ही था कि ये असली स्वयंवर है यहां से शादी करके ही मेरी विदाई होगी। पर अब क्या ये दर्शकों को बेवकूफ बनाना नहीं हुआ।

राखी और एनडीटीवी इमेजिन ने शादी से पहले एक गेम खेल दिया। अब तक जो ये कहते आ रहे थे कि राखी जिस लड़के को पसंद करेंगी उसी से शादी भी करेंगी। राखी ने अंत में अपने स्वयंवर में एक टविस्ट के साथ इलेश परुजनवाला को वरमाला डाल दी। पर ये वरमाला स्वयंवर की रस्मों को पूरा करने के लिए भर थी। वहीं इलेश को इस बात के लिए मनाया गया कि पहले शादी नहीं सगाई हो जिससे आप दोनों को एक दूसरे को समझने का मौका मिलेगा।

राखी ने इलेश को चुन तो लिया पर वो विश्वास राखी के अंदर नहीं जग पाया जिसके कारण वो इलेश को अपना जीवनसाथी मान सकें। शो में कुछ रस्मों को पूरा करने के लिए ही सगाई की रस्म की गई और हवाला दिया गया कि भारत में पहले सगाई और फिर शादी होती है। वहीं राखी ने कई बार इलेश को बोलने का पूरा मौका भी नहीं दिया गया और खुद राखी ने इलेश के नाम पर कई बातों को मीडिया और लोगों से कह दिया।

पर ये पहला स्वयंवर होगा जहां पर दुल्हन ने दूल्हा तो चुना पर उससे शादी नहीं की। शायद राखी अभी अपनी टीआरपी समझती हैं साथ ही क्या वो अभी भी अपने पुराने आशिक अभिषेक के लिए मौके खुले रखना चाहती हैं। दर्शक तैयार रहें ड्रामा क्वीन के नाटकों के लिए, राखी के स्वयंवर पार्ट २ के लिए एनडीटीव एमेजिन पर। साथ ही इलेश परुजनवाला को भी ये नहीं समझना चाहिए कि राखी सावंत उनकी हो गईं क्योंकि फिल्म तो अभी बाकी है मेरे दोस्त....।

आपका अपना
नीतीश राज

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”