Tuesday, March 31, 2009

यादों के झरोखों से

जब भी कभी गांव जाता हूं तो यादों के झरोखों में खो जाता हूं। वो ऐसा झरोखा है जहां सिर्फ यादें हैं सिर्फ यादें, बेमोल यादें। हमारे घर तक अब पक्का खड़डंजा यानी ईंट वाली सड़क बन चुकी है। घर भी पहले से पक्का हो चुका है। वैसे हर साल अब मेरा एक या दो बार जाना तो हो ही जाता है वर्ना पहले तो चार-पांच साल में एक या दो बार जाना संभव हो पाता था।
वहां पहुंचते ही मेरी यादें मुझे ले जाती हैं उस समय में, जब हमारे घऱ पर बिना कारण लोगों का जमावड़ा लगा होता था। नीम के पेड़ के नीचे बैठकर राजनीति, फसल, गांव और बच्चों के भविष्य की चिंता पर हुक्का पीते हुए बहस किया करते थे। एक-दो बच्चों का ये ही काम होता था कि हुक्के को ठंडा ना होने दें। बातों के दौर के बीच हुक्के की गुड़गुड़ाने की आवाज़। ये सिलसिला कई दशकों पुराना है, हमारे दादा के दादा भी इसी तरह बैठ कर बातें किया करते थे।
जब भी अपने घर के आंगन में खड़ा होता हूं तो यादें २०-२५ साल पीछे ढकेल देती हैं। तब मैं गर्मियों की छुट्टियों में कुछ दिन के लिए यहां आया करता था। आंगन में सब मर्द बैठा करते थे। वहीं थोड़ी सी दूरी पर बंधे होते थे जानवर, गाय, भैंस, बछड़ा, बैल, भैंसा। इन जानवरों की देखभाल के लिए कोई ना कोई हमेशा लगा रहता था। वहीं पास में हम सब बच्चे, या तो खेल रहे होते या फिर बड़ों की बातें सुन रहे होते।
जब १९८३ में भारत ने क्रिकेट में वर्ल्ड कप जीता तो क्रिकेट की भी चर्चा खूब हुआ करती। नाम भूल रहा हूं उनका, उन्होंने शौक में ही अपने बच्चों के नाम पाकिस्तान की टीम पर रख दिए, बड़े का इमरान, उससे छोटा, वसीम,....। वो बोलते कि पाकिस्तान के पास इमरान है तो क्या हुआ...हमारे पास भी इमरान है....बेटे चल इमरान अंकल की बोल पर छक्का जड़ के दिखा। और महफिल में ठहाका गूंज उठता था, सब कहते, मियां उस इमरान को दुनिया नहीं खेल पाती, ये पिद्दी क्या खेलेगा? तेश में आकर वो १२ साल का लड़का कहता कि एक दिन जरूर छक्का मारूंगा।
आज जब अपने आंगन में खड़ा होता हूं तो पाता हूं कि नीम का वो पेड़ आज भी वहां ही है, दूसरा काट दिया गया। अब हुक्का जल्दी ठंडा नहीं होता, उसकी गुड़गुड़ भी काफी देर बाद सुनाई पड़ती है। उस आंगन में अब चाचा जी अकेले बैठे रहते हैं जब उनको याद आती है कि हुक्का साथ दे रहा है तो गुड़ गुड़ा लेते हैं।

(ये बात सिर्फ आंगन की है, हमारी तरफ इसे ‘घेर’ कहा जाता है। औरतों के लिए इस घेर के पीछे बड़ी जगह होती थी वहां पर भी ऐसे ही मंडली लगा करती थी)

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, March 13, 2009

अपनों के दर्द में फंसा कोई अपना

बोलने के लिए बोलना और उस बोलने से ना जाने कितनों के दिल को दुखाना, पर फिर भी बोलना। वैसे ही जैसे कि कुछ भी लिखने के लिए बस लिख देना या फिर किसी बात की गहराइयों तक बिना पहुंचे, बात को सामने रख देना उस बात को एक नाम दे देना। क्या और कितना उचित है? कई बार हम, ना जाने कुछ ऐसा कर देते हैं जो कि सामने से हमसे उतना सरोकार ना रखती हों, पर कहीं दूर बैठे लोगों के लिए वो ‘कुछ ऐसा’ ज़िंदगी और मौत की लड़ाई बन जाता है। अपनी आन और शान को जिंदा रखने के लिए वो ना मालूम कितनों की जान ले भी सकते हैं और वक्त पड़ने पर दे भी सकते हैं। वो बातें जो बिना दूर की सोच-समझ के साथ लिखी गई हों वो बातें अप्रत्यक्ष रूप से कभी हम से और कहीं दूर बैठे लोगों से सरोकार जरूर रखती हैं।
हाल ही में मेरे सामने कुछ ऐसी ही बातें सामने आगईं। ऐसा नहीं था कि कभी मैंने या मेरे सहयोगियों ने किसी धर्म, मजहब, या फिर किसी समूह पर निशाना साधकर कुछ लिख दिया हो। पर ऐसा कुछ लिखा गया जिसे हमारी नज़र सही के पैमान से आंक रही थी और वहीं दूसरे की नज़र उसमें गलती बयां कर रही थी। जब तक एहसास को भी एहसास होता तब तक गलती घट चुकी थी और कहीं ना कहीं वो एहसास ही हमें, हमारे कदमों को मंजिल तक की राह दिखा रहे थे।
बाटला एनकाउंटर, हमारी नज़र में सही था पर जो भी बात आपको सही लगे ऐसा नहीं कि दूसरे को भी सही लगे। तो उसी तरह, किसी जगह पर उसे गलत बताया जा रहा था। उस एनकाउंटर में शहीद के नाम को इतना उछाला गया कि उसके बाद लगने लगा कि अब किसी को शहीद होने से पहले सोचना होगा। यहां पर सिर्फ कहने के लिए लोग कह रहे हैं कि वो फर्जी एनकाउंटर था, सिर्फ कहने के लिए, बार-बार कह रहे हैं ‘बेचारों को मार दिया’। कहने के लिए कह दिया कि वो बेचारे थे। पर किसी ने ये नहीं सोचा कि उस मुठभेड़ में कोई शहीद भी हुआ। एक पल में उस की शहादत पर सवालिया निशान लग गया।
‘बर्खुरदार, आप तो वो ही ख़बर दिखाते हो, जो आप लोग दिखाना चाहते हो’।
‘नहीं, हमने वो खबर दिखाई जो सही थी’। ‘जिस दिन एनकाउंटर हुआ उस से एक रोज़ पहले तीन लड़कों को उठाया गया था, कहां गए वो लड़के ‘बेचारों को मार दिया’, बेगुनाहों को मार डाला गया’।
‘आपको सही जानकारी ही नहीं है, आजकल ऐसा नहीं है कि किसी को भी उठाओ और दिखा दो कि मार दिया और कह दो कि होगया एनकाउंटर। पुलिस का जीना दुर्भर कर देता है मीडिया और आयोग। उन तीन लोगों के घरवालों ने हल्ला क्यों नहीं किया कि हमारे बच्चों को उठाया गया? बेकार में लोगों ने बात फैला दी और लोगों ने बिना किसी सोच के बात मान ली’।

अनर्गल आरोपों से लड़के को गुस्सा आ गया था।
‘……नहीं, अब आप पहले मेरी पूरी बात सुनिए, मुझे पूरा कर लेने दीजिए। उन लड़कों के पास से इतने सबूत मिले हैं कि वो उसी वक्त नहीं रखे जा सकते थे जब कि एनकाउंटर हुआ। वो लड़के आज से इस धंधे में नहीं थे वो बहुत पहले से ही इस सब को अंजाम देने में लगे थे। आप के अनुसार तो ये भी होगा कि उस पुलिसवाले को भी पुलिसवालों ने ही मारा। अब आप खुद बताइए कि क्या जरूरत पड़ी थी पुलिसवालों को अपने साथी को मारने की? जवाब नहीं होंगे आप के पास, क्योंकि ये सब मनगढ़ंत है और जो सही था वो सामने आ चुका है, वो गुनहगार थे’।
इस मसले पर और सवाल-जवाब नहीं हो सकते थे, अपने को और फंसाना नहीं चाहते थे वो बुर्जुग, सो बात तो पलटनी ही थी। आखिरकार सच्चाई तो नौजवान पत्रकार के साथ ही थी। पर अब फंसने की बारी नौजवान पत्रकार की थी जो कि खाना खाते हुए सवाल-जवाब में फंसा हुआ था।
‘हूं, चलो छोड़ो इस बात को, लेकिन तुम लोगों ने तो नर्सरी तक कह दिया था! आतंक की नर्सरी, आजमगढ़’।
मुझे एक ब्रेक लगा और मेरा खाना खाना रुक गया। मैंने चेहरा उठाया तो उसी शांत चेहरे के साथ वो बुजुर्ग, उस नौजवान को देख रहे थे, जैसे तौल रहे हों कि अब क्या जवाब दोगे। लेकिन वो नौजवान उसी शांत चेहरे के साथ खाना खाता रहा। अंदर ही अंदर वो नौजवान पत्रकार समझ चुका था कि जो तीर अब छोड़ा गया है वो बेहद पेचीदा है। मुझे याद आ रहा था कि ऑफिस में इस शब्द के ऊपर बहुत बहस हुई थी। पहले लिखने के लिए मना भी किया गया था पर कुछ लोगों ने इस शब्द पर आपत्ती नहीं जाहिर की थी और बाद में ‘वो’ लिखा गया। लिखा दिल्ली में गया था और वहां से बहुत दूर उस शब्द ने अपना क़हर बरपा दिया था। बाद में उस शब्द को हटा दिया गया था।
‘जी हां, लिखा था क्योंकि सारे तार वहीं से जा कर जुड़ रहे थे। ये सिर्फ हम नहीं सब कर रहे थे, पुलिस तक कह रही थी’।
‘पर नाम तो तुम लोगों ने ही रखा था ना, आतंक की नर्सरी, आजमगढ़, तो तुम लोग कुछ भी नाम रख दोगे, ये नहीं सोचोगे कि इसका असर क्या होगा’।

नौजवान ने चुप्पी साध ली।
‘....और तुम क्या पुलिस की बात कर रहे हो उसने तो उठा लिया ना आजमगढ़ से उस लड़के को। क्या वो गुनहगार था? आज भी लखनऊ में उस शब्द की आग की लपटें दिख जाती हैं। आज ही दो ट्रेन भर के आजमगढ़ से लोग आए हैं। कुछ जवाब बनता है सही था उस को गिरफ्तार करना’।
‘नहीं, वो तो गलत था लेकिन हर बार सही हो ऐसा नहीं है, गलती हो ही जाती है’।
‘फिर भी तुम दोगे तो पुलिस और अपने भाइयों का ही साथ, बिरादरी का साथ, पत्रकार बिरादरी का साथ’।

नौजवान बीच खाने से उठ गया। जानता था कि वो इसका जवाब दे नहीं सकता था और उस समय दर्द को छोड़कर कुछ दिखा भी नहीं पाया था, जिसे कुछ ने समझा था और कुछ उसी तरह अनजान बने रहे जिस तरह आज वो बनने की कोशिश कर रहा था। मैंने भी खाना खत्म किया और उठ गया। ना शब्द, ना सवाल, ना जवाब, कुछ भी तो नहीं था हमारे पास। हाथ धोकर सीधे गाड़ी में जाकर बैठ गए और गाड़ी दिल्ली की तरफ दौड़ा दी।
ये संवाद थे एक बाप और बेटे के बीच। ये पहली बार नहीं हैं जब कि खाना आधा छूटा हो ये पहले भी कई बार हो चुका हैं। दिक्कत तो उस पत्रकार के लिए होती है जो कि इस घटना से अपनी ही कौम, अपने ही लोगों का गुनहगार बनकर खड़ा हो जाता है। और उसी काम के लिए तमगा भी पाता है। कभी-कभी एक शब्द से ही दूर-दूर तक उस दर्द का एहसास लंबे समय तक होता है।
इस चुप्पी के बीच मुझे याद आ रहा था ‘एक आतंकवादी का घर’, जिसे मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ‘शम्स ताहिर खान’ ने लिखा था। जिसे मेरे एक ब्लॉगर भाई ने अपने ब्लॉग पर छापा भी था। यदि इजाज़्त मिली तो मैं उसे पेश करूंगा।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, March 9, 2009

सचिन ने पूरा किया अपने चाहने वालों का अरमान

जब ये सीरीजी शुरू हुई तो सबसे पहले मैंने इस बात पर ही जोर दिया था कि क्या सचिन पूरा कर सकोगे अपने चाहने वालों के अरमान? थोड़ी-थोड़ी उम्मीद थी और थोड़ी-थोड़ी नहीं भी। पर सचिन एक महान बल्लेबाज की तरह पूरे मैच में खेले और उस अधूरे काम को पूरा कर दिया जिसे वो बहुत पहले से करना चाहते थे। न्यूजीलैंड में शतक मारने के सपने को सचिन ने सच कर दिखाया। वैसे भारत ने अपनी पारी में मारे 18 छक्के जो कि किसी भी पारी में मारे गए छक्कों के बराबर है।
न्यूजीलैंड ने टॉस जीतकर की फील्डिंग।
क्राइस्टचर्च में भारत ने अभी तक ५ वन डे खेले थे और एक भी नहीं जीता था। 6ठे वन डे में भारत क्राइस्टचर्च में जीत की दरकार के साथ फील्ड पर उतरा। डेनियल विटोरी की पत्नी प्रेग्नेंट हैं तो विटोरी अपनी पत्नी के पास रहे पर मैच में बीच-बीच में दिखते रहे। इस लिए आज मैच की कप्तानी पहली बार मैक्कुलम ने की और टॉस जीतकर विटोरी के ना होने पर पहले फील्डिंग चुनी। पर मैक्कुलम को क्या पता था कि उनकी कप्तानी में रिकॉर्ड बनने वाला है न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड के खिलाफ सबसे ज्यादा रन। शुरुआत में लगा कि मैक्कुलम का ये फैसला टीम के लिए सही साबित हुआ जब कि सहवाग महज 3 रन बनाकर एक सीधी गेंद को छोटी बाउंडरी से बाहर पहुंचाने के चक्कर में मिस कर गए और क्लीन बोल्ड हो गए। भारत ने अपना पहला विकेट 15 के स्कोर पर खो दिया। फिर गंभीर ने सचिन का साथ दिया और सचिन अपनी लय में खेल रहे थे। तभी गंभीर 15 के निजी स्कोर पर बटलर का शिकार बने। भारत के स्कोरबोर्ड पर 13 ओवर में 65 रन हो चुके थे पर 2 विकेट भी खो दिए थे।
सचिन-युवराज की जोड़ी ने क्राइस्टचर्च में मचाया कोहराम।
युवराज आते के साथ ही सचिन के साथ टीम का स्कोर आगे बढ़ाने में लगे। तीसरे विकेट के लिए दोनों के बीच 132 रन की पार्टनरशिप हुई। इसमें युवराज ने 60 गेंदों में 87 रने बनाए। जिसमें 10 जानदार चौके और 6 शानदार छक्के शामिल थे। इस से आप हिसाब लगा सकते हैं कि युवराज ने चौके-छक्के से ही 76 रन बनाए सिर्फ 11 रन दौड़कर लिए। इस बीच सचिन युवराज का साथ देते रहे और स्ट्राइक ज्यादा से ज्यादा युवी को देते रहे और दर्शक सचिन के कलात्मक खेल का लुत्फ लेते रहे। भारत का स्कोर तब 203 था जब 145 की स्ट्राइक रेट से बैटिंग कर रहे युवराज 30 ओवर में एलियट की दूसरी गेंद का शिकार बने, सिर्फ 13 रन से शतक से चूके पर सबको बता दिया कि फॉर्म में आ चुका हूं।
सचिन रिटायर्ड हर्ट।
युवराज के बाद कप्तान धोनी 5वें नंबर पर बैटिंग करने उतरे। युवराज के जाने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे सचिन ने युवराज की जगह ले ली है और भारत के स्कोर को तेजी से बढ़ाने लगे। सचिन ने मैदान के हर कोने में स्ट्रोक खेले। पर कप्तान और सचिन के बीच की साझेदारी 135 रन की ही हो सकी। लेकिन इस बीच सचिन काफी देर से एक दिक्कत से गुजर रहे थे। सचिन के पेट की मसल खिंच चुकी थी जिसे की वो काफी देर से दबा कर खेल रहे थे। पर अब बात बढ़ चुकी थी। सचिन दोहरे शतक से सिर्फ 37 रन दूर थे तब वो मैदान से बाहर आगए।
सचिन की इस पारी के लिए न्यूजीलैंड के कप्तान मैक्कुलम ने कहा कि, 'मैंने ऐसी पारी काफी कम देखी हैं। हर शॉट उनके बल्ले के मिडल से गया।' इस शानदार पारी के लिए सचिन को मैन ऑफ द मैच मिला।

रैना बने रनमशीन।
18 गेंदें, 38 रन, 5 छक्के। ये था रैना का आंकड़। इस पूरी सीरीज में रैना ने कमाल की बैटिंग की है। पहले वन डे में भी रैना ने 5 चौके और 4 छक्के लगाए थे। जब भारत का स्कोर 382 पहुंचा तो धोनी 5 चौके और 2 छक्कों की मदद से 68 रन पर मिल्स की गेंद का शिकार बने। लेकिन तब तक भारत की तरफ से क्राइस्टचर्च के पांच नायक काम कर चुके थे। भारत ने न्यूजीलैंड के सामने रखा 393 का लक्ष्य। ये न्यूजीलैंड में किसी भी टीम का सर्वाधिक स्कोर था।

भारत को मिली कड़ी टक्कर।
राइडर और इस मैच के लिए कप्तान बने मैक्कुलम ने बताया कि वो भी दम रखते हैं। राइडर ने शुरू से समझदारी से बैटिंग की और साथ ही मैक्कुलम को जब भी कहीं रन लेने का मौका मिला वहां पर उन्होंने रन चुराया। शुरूआत में भारत की फिल्डिंग अप टू डेट नहीं थी और कई बार मिस फिल्डिंग हुई और इस का फायदा न्यूजीलैंड के ओपनरों ने खूब उठाया। पूरा ओवर ठीक पड़ता लेकिन दो गेंद गलत हुई नहीं कि जितने की दरकार थी उनको वो रन निकालते। दोनों ओपनर गेंदबाजों के पास उन दोनों बल्लेबाजों का तोड़ नहीं मिल रहा था। गेंदबाजों को बदला गया लेकिन फिर भी कोई भी फायदा नहीं हुआ और न्यूजीलैंड ने 50 फिर 100 और फिर 150 रन बिना विकेट खोए बना लिए। फिर एक छोटी सी चूक और रैना की फुर्ती ने मैक्कुलम को रन आउट कर दिया और यहां से गेम पलट गया। मैक्कुलम ने 71 रन बनाए जिसमें 6 चौके और 3 छक्के शामिल थे। पहला विकेट 166, दूसरा 179, तीसरा 182, चौथा 188, पांचवां 203, छठा विकेट 217, सांतवा 218 यानी कि इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिर्फ 52 रन के अंदर 7 खिलाड़ी न्यूजीलैंड ने खो दिए। बाकि तो कुछ नहीं कर पाए लेकिन राइडर को भज्जी ने आउट किया जब कि राइडर 105 पर खेल रहे थे जिसमें 12 चौके और 4 छक्के लगाए थे।
आंठवें विकेट के लिए 83 रन की साझेदारी ने भारत के लिए एक बार तो मुश्किल खड़ी कर दी थी। लग ये रहा था कि कभी भी ये मैच भारत के हाथ से निकल सकता है। यहां पर विटोरी की कमी न्यूजीलैंड को और भारत को ईशांत शर्मा की कमी खली। सबसे ज्यादा खेल के लिहाज से गलत ये हुआ कि जब भारतीय टीम को विकेट नहीं मिल रहे थे तब मुनाफ पटेल ने दो लगातार बीमर डाल दी जिसके कारण अंपायर ने उन्हें बॉल करने से मना कर दिया। पर फिर एक विकेट यूसुफ और दूसरा विकेट प्रवीण कुमार ने लेकर न्यूजीलैंड की टीम की पारी समाप्त कर दी।
कुछ दिलचस्प जानकारी
इस मैच की दोनों पारियों में 726 रन बने जो कि दूसरा एक मैच में सबसे ज्यादा स्कोर रहा। सचिन को 58वीं बार मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला जो कि सबसे ज्यादा है। दोनों पारियों में लगे 31 छक्के जो कि अपने में एक रिकॉर्ड है। भारत ने लगाए एक पारी में 18 छक्के जो कि रिकॉर्ड की बराबरी है।
पर कुछ भी हो सचिन ने अपने चाहने वालों का अरमान पूरा तो कर ही दिया।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, March 6, 2009

लाहौर हमला, तीन थ्यौरी पर भारत महफूज

पाकिस्तान में श्रीलंका क्रिकेट टीम पर जो हमला हुआ है उसमें मुझे तो तीन थ्यौरी सामने आती हुई दिख रही हैं। जो तीन थ्यौरी हैं उन पर ही लगता है कि इस वक्त पाकिस्तान के हुक्मरान सोच रहे हैं। मेरे हिसाब से तीन थ्यौरी हैं---
१) तालिबान की करतूत
२) पाक के बाहर की शक्ति यानी भारत, एलटीटीई। (इसे वैसे तो खारिज कर दिया है पर फिर भी उंगली उठाने की फिराक में तो होंगे)
३) किसी घरेलू संगठन का हाथ। चाहे वो आईएसआई हो या फिर नवाज की पार्टी।
अब बताते हैं कि क्यों ये तीन थ्यौरी सामने आ रही हैं।
पहली थ्यौरी यानी तालिबान की करतूत। पाकिस्तान के बहुत बड़े सियासी हल्कों में ये माना जा रहा है कि श्रीलंका की टीम पर जो हमला हुआ है वो तालिबान का पाकिस्तान पर बढ़ते वर्चस्व की निशानी है। जैसे कि तालिबान में हमेशा से ही पढ़ाई, सिनेमा, औरतों का बेपर्दा होने और खासतौर पर खेल पर काफी कड़े और सख्त कानून बनाए हुए हैं। तालिबानी नहीं चाहते कि क्रिकेट जैसा खेल वो या फिर उनके देश में खेला जाए और जब से स्वात पर अपना कब्जा तालिबान ने किया है तब से पाकिस्तान को अपने देश का हिस्सा मानने लग गया है तालिबान। साथ ही स्वात के बाद पूरे पाकिस्तान पर तालिबान अपना अधिपत्य जमाना चाहता है। वैसे अभी तक तफ्तीश में ज्यादातर अफगानियों को ही पकड़ा गया।
दूसरी थ्यौरी यानी पाक के बाहर की शक्ति भारत,एलटीटीई। मुंबई हमलों का दोषी पाकिस्तान को माना गया और अब तो ये साबित भी हो गया कि 26/11 की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी, हमलावर पाकिस्तान से आए थे और सारे दोषी पाकिस्तान में ही हैं। तो पाकिस्तान में ये मानने वालों की कमी नहीं है कि लाहौर हमला भारत के आंतकवादी गुट या फिर भारत की किसी खुफिया एजेंसी की कारसतानी है। बाघा बार्डर के रास्ते आए थे आतंकी पहला वक्तव्य था पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक आला अधिकारी का। दूसरी बात, लाहौर हमला मुंबई हमले का पार्ट-2 माना जा रहा है और इसी कारण से ये माना गया कि भारत की तरफ से उसी तरह इस हमले को अंजाम दिया गया जिस तरह से मुंबई हमलों को दिया गया था। यानी भारत ने बदला उतार लिया है। जब कि सारी दुनिया इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती। श्रीलंका में एलटीटीई पर हमले के बाद से ये माना जा सकता था कि ये हमला वो भी करवा सकता है पर सोचने वाली बात ये है कि अभी तो वो श्रीलंका में ही अपने आप को बचाए रखने में असमर्थ हैं तो वो कहां से पाकिस्तान में अफगानी कपड़े पहनकर हमला करेंगे और यदि वो करते तो रॉकेट लॉन्चर और ग्रेनेड चूकता नहीं। पर इस थ्यौरी को पाकिस्तानी सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया है। अब देखेंगे कि पाकिस्तानी मीडिया क्या कहता है?
साथ ही बड़े केनवस पर देखें तो लोगों का ये मानना है कि अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत को इस हमले से कई फायदे हो सकते हैं। पाकिस्तान को एक आतंकवादी राष्ट्र घोषित किया जा सके(जो कि पाकिस्तान है)। साथ ही ये कि भारत कितना असुरक्षित है अपने पड़ोसी से और इस पड़ोसी से भारत को हमेशा ही खतरा बना हुआ है। आतंकवाद को बढ़ावा देने के कारण पाकिस्तान को अमेरिकी मदद भी नहीं मिलेगी।
तीसरी थ्यौरी यानी किसी घरेलू संगठन का हाथ। चाहे वो आईएसआई हो या फिर नवाज की पार्टी। सबसे ज्यादा जो बात चल रही है कि ये जरूर से ही किसी घरेलू संगठन का हाथ हो सकता है। अंतिम वक्त पर बस के रूट में फेरबदल किया गया या नहीं किया गया वो ही रूट रखा जिससे एक दिन पहले गए थे इस पर भी शुरूआती बयान एक जैसे नहीं थे। माना ये भी जा रहा है कि किसी फोन के आने के बाद रूट में फेरबदल से इनकार किया गया था। जब दोनों टीमें एक साथ होटल से निकलती हैं तो पाकिस्तान की टीम श्रीलंका की टीम के साथ क्यों नहीं निकली। क्यों यूनुस खान ने अपनी टीम को ५ मिनट के लिए और रुकने को कहा? क्या कारण है इसके पीछे, ये सवाल तो खुद अंपायरों तक ने अपनी पीसी में कहा था।
जब ४८ घंटे पहले ही पंजाब प्रांत के पुलिस के आला अफसरों को ये बताया जा चुका था कि जल्द ही श्रीलंका की टीम को निशाना बनाया जा सकता है तब भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए। खुद पाकिस्तान के पूर्व कप्तान इमरान खान ने सुरक्षा के इंतजामों पर सवाल उठाए हैं। जहां मिलने थे ७० सिपाही वहां मिले महज़ २५? तो क्या गलती ये सरासर लाहौर पुलिस की नहीं है। अंपायर क्रिस ब्राड ने ये बताया कि जब हमला हुआ तो पाकिस्तानी पुलिस वहां से भाग गई, कोई भी मदद के लिए नहीं था, हम वहां पर अकेले छूट गए थे। तो क्या इसे पुलिस की बुजदिली नहीं कहेंगे।
वैसे भी ये सही है जो अधिकतर आक्रमण करता हो तो उसे ये नहीं पता रहता कि बचाव कैसे करना है, वो ही हुआ पाकिस्तानी लोगों के साथ। अधिकतर वो भारत पर हमले की बात सोचते हैं जब हमला हुआ तो बचाव नहीं सोच सके।
यदि आतंकवादियों का मकसद श्रीलंका की टीम को मारना ही होता तो आतंकवादी एक रॉकेट लॉन्चर ही क्यों छोड़ते? वो भी ठीक निशाने पर नहीं? दो हेंड ग्रेनेड फेंकते पर इस तरह से कि दहशत पूरी दुनिया में फैल जाए पर निशाना चूक जाए।
इतने अच्छे-अच्छे एंगल से कैसे शूट किया इस पूरे हमले को? कैसे एक टीवी क्रू को पता चल गया कि ये हमला हो रहा है। और जहां से भी हो सके हर जगह, हर आतंकी की तस्वीरें उतारी गई। क्या ये बात हजम होती है? टीवी पत्रकार होने के कारण मुझे लगता है कि इतने एंगल से एक साथ तस्वीरों को लेना मुश्किल है। टॉप एंगल, साइड एंगल, फ्रंट एंगल इतने एंगल वो भी सिर्फ सेकेंड में कैसे संभव है, मुझे तो नहीं लगता। इससे ये साफ होता है कि हमले से पहले ही हमले की जानकारी थी उस क्रू को। और ये क्रिकेट जैसे खेल के साथ ये खेल किसी घर के ही सदस्य ने ही खेला है। सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए कि दहशत हम फैला सकते हैं और यदि जरूरत पड़ी तो पाकिस्तान में हम कुछ भी कर गुजर सकते हैं।
पर अब तो दूसरी थ्यौरी को सिरे से पाकिस्तान की सरकार ने खारिज कर दिया है। अब बात अंदर के गुनहगारों और ये तो पाकिस्तान क्रिकेट का दुर्भाग्य है,कि जिस मैदान पर पाकिस्तान क्रिकेट के स्वर्णिम अश्रर लिखे गए उसी गद्दाफी पर पाकिस्तान क्रिकेट पर कालिख पुत गई।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, March 4, 2009

पाकिस्तान के लोग ऐसा क्यों सोचते हैं कि हमने ‘26/11-मुंबई हमलों’ का बदला लिया है।

मंगलवार की सुबह जब देर से उठा तो इल्म हुआ कि हां, रात देर से सोया था। अभी चाय के प्याले को मुंह तक लगा भी नहीं पाया था कि अल्साते मन को याद आया कि मैच भी है आज। टीवी खोलकर आंखें मलता हुआ स्कोर पढ़ा तो देखा कि अभी कुल 7-8 ओवर हुए थे सचिन-वीरू दोनों क्रीज पर थे। एक-दो चौकों के बाद लग रहा था कि सचिन आज शायद उतनी फॉर्म में नहीं हैं पर फिर भी इतने तो हैं कि नेपियर में अपना सर्वाधिक बना देंगे और जैसे मैंने सवाल पूछा था कि क्या सचिन अपने चाहने वालों का अरमान पूरा कर पाओगे? चाहने वालों को जवाब मिल गया, दो चौके मारने के बाद सचिन बाहर जाती बॉल को स्लिप के रास्ते चार रन तक पहुंचाने की कोशिश में बॉल से चकमा खा गए और कीपर को एक आसान सा कैच थमा बैठे।
हमने तुरंत मैच से यूं ही न्यूज की तरफ ऱुख किया। आंख फटी की फटी रह गई। अरे, ये क्या? कहां हुआ हमला, किसने किया, किनपर किया? ये तो पाकिस्तान है, तो क्या पाक टीम पर हमला हुआ है नहीं ये तो श्रीलंका की टीम आतंक की शिकार बनी है। बेहद दुख हुआ और नहीं जानता कि आलस कहां गायब हो गया तकरीबन 3-4 घंटे तक लगातार यूं ही चैनल खंगालता रहा। कई बार तो गुस्से ने दिमाग के सभी तारों को झनझना दिया।

अरे, क्या पागल होगए हैं पाकिस्तान के अधिकारी। जितने भी बयान किसी आला अफसर की तरफ से आ रहे थे उनमें से कुछ और साथ ही कई पत्रकारों के सवाल के निशाने पर कहीं ना कहीं भारत था। कई पाकिस्तानी न्यूज चैनलों पर ये साफ चला कि ये आतंकवादी बाघा बार्डर के रास्ते आए थे। मुझे ये समझ में नहीं आ रहा था कि पहले तो सुरक्षा में इतनी भारी चूक और उसपर तुर्रा देखिए कि अभी हालात को सामान्य करने की बजाय लगे हैं निशाना साधने पर।
इस पूरे हमले पर कई और कहां-कहां सवाल खड़े होते हैं पाकिस्तान के लिए----
1) कैसे हुई श्रीलंका की टीम की सुरक्षा में चूक? जब कि श्रीलंका की टीम को मिलती है ग्रेड ए यानी कि किसी दूसरे देश से आए हुए किसी भी राष्ट्राध्यक्ष जैसी सुरक्षा। श्रीलंका टीम के काफिले की सुरक्षा के लिए करीब 70 पुलिसवाले दिए गए थे। तो सवाल ये उठता है कि कहां गए 70 पुलिसकर्मी? यदि 70 पुलिसकर्मी वहां पर मौजूद थे तो 12 आतंकी उनको चकमा देने में कैसे कामयाब होगए, कैसे फरार हो गए सभी के सभी और वो भी 5-6 पुलिसवालों को मारकर?
2) गद्दाफी स्टेडियम तक जाने के कई रास्ते हैं। ऐसा बताया गया है कि टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक हर रोज दूसरे रास्ते से ले जाया जाता हैं। तो ये चूक कहां से हुई कि आतंकवादी जान गए वो रास्ता जिस रास्ते से आज टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक पहुंचना था?
3) दूसरे टेस्ट के दूसरे दिन जिस रास्ते का इस्तेमाल किया गया था टीम को गद्दाफी स्टेडियम तक लाने के लिए, तीसरे दिन भी उसी रास्ते का इस्तेमाल क्यों किया गया? रूट में हमेशा की तरह बदलाव क्यों नहीं किया गया?
4) पहले से ही सरकार को आगाह किया जा रहा था कि नवाज शरीफ और उनके भाई को पंजाब प्रांत से चुनाव ना लड़ने देने का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। पंजाब सूबे में नवाज शरीफ का जो रुतबा है वो पूरे पाकिस्तान के किसी भी प्रांत में जरदारी या फिर गिलानी का नहीं होगा। पंजाब सूबे के लोग नवाज के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
5) 12 आतंकवादी ये प्लान बनाते हैं कि मेहमान टीम पर हमला करना है। इस बात का मतलब ये है कि आतंकी काफी दिनों से इस योजना को अंजाम देने की कोशिश में जुटे हुए थे। तो क्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी सो रही थी?
6) स्वात पर तालिबान का कब्जा हो गया है और वहां पर पाकिस्तान का नहीं तालिबान का फरमान चलता है और ये धमकी पहले से ही दी जा रही थी कि सिर्फ स्वात के बाद निशाना पूरे पाकिस्तान पर है, और खासतौर पर इस प्रांत।
7) पाकिस्तान के अधिकारी कह रहे हैं कि ये हमला पूरी तरह से देखने पर लगता है कि जैसे मुंबई हमलों को अंजाम दिया गया था बिल्कुल उसी तरह इस का प्लान लाहौर में भी किया गया। याने कि वो हमला भी पाकिस्तान में प्लान किया गया था और ये हमला भी अंदर के लोगों ने ही प्लान किया है।
8) अभी तक जो माना गया है कि ये अटैक सुनियोजित था और 12 के 12 आतंकवादी अपने में पूरे ट्रेनेंड थे। शायद वो पूरी श्रीलंका की टीम को बंदी बनाना चाहते थे। पर देखने से जो लगा कि उनके पास अस्ला, बारूद, सामान काफी था पर फिर भी उसके बाद सवाल ये उठता है कि यदि वो सब ट्रेनेंड थे तो फिर सवाल ये कि मास्क पहन कर हमला करना और फिर मास्क फैंक देना, क्यों? जिस बैग को आप हमेशा अपने साथ, पीठ पर लादे रख रहे थे फिर उनको छोड़कर भागने का औचित्य क्या? गन, ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर इन सब को यूंही छोड़ कर क्यों भाग गए आतंकवादी? या फिर ये भी पहले से ही प्लान्ड था कि इनको छोड़ना था। बस पर इतने पास से रॉकेट दागा जाता है पर उसका निशाना चूक जाता है? बस के सामने से आकर बस पर ग्रेनेड फेंकने की कोशिश की जाती है और वो आतंकी के हाथ से छूटकर दूर गिर जाता है? क्या ऐसी ही ट्रेनेंड आतंकी थे जिन्होंने मुंबई पर हमला किया था?
9) सबसे बड़ा सवाल कि पाकिस्तान के इतने भरे-पूरे इलाके में 12 लोग हमला करते हैं और फिर मौका-ए-वारदात से गायब हो जाते हैं। एनकाउंटर तो दूर की बात लगभग 15 मिनट तक वो गोलीबारी करते हैं और फिर फरार हो जाते हैं और वहां कि पुलिस किसी को दबोचना तो दूर की बात उनका पता तक नहीं लगा पाती कि वो गए कहां। कोई भी वहां का निवासी ये बताने को राज़ी नहीं है कि आखिरकार वो किस तरफ गए हैं या उनको कहां देखा गया है। वैसे लाहौर के मॉडल टाउन इलाके से संदिग्ध 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, और इस मामले पर अब तक 60 लोगों को हिरासत में लिया गया।
10) दूसरी तरफ इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरे हमले के पीछे वहीं पाकिस्तान की अंदरूनी रंजिश हो। किसी भी आतंकी का ना तो पकड़ा जाना और ना ही घायल होना, दाल को कहीं ना कहीं काला जरूर बनाता है।
तो ये सब सवाल खड़े हैं अपना मुंह खोले कि क्या कोई दे पाएगा इनका जवाब। लाहौर से बाघा बॉर्डर महज 20 किलोमीटर की दूरी पर है। तो कई की आशंका है कि वो सारे आतंकवादी वहां से भागकर सबसे सुरक्षित स्थान भारत में दाखिल हो सकते हैं। तो फिर यदि देखा जाए तो कोई भी सुरक्षित नहीं है। ना इस पार के ना उस पार के। पाकिस्तानियों को ये समझना चाहिए कि ये हमला उनके देश में बैठे कुछ नापाक दहश्तगर्दों ने करवाया है। हम मुंबई हमलों के लिए किसी को माफ नहीं कर सकते, लेकिन अपनी पर आजाएं तो उसकी कीमत चुकाने की औकात इस जमाने में नहीं।

हम तो शुक्रगुजार हैं भगवान के उस बंदे का जो श्रीलंका टीम की बस का ड्राइवर था जिसने हिम्मत दिखाते हुए टीम को सकुशल गद्दाफी तक पहुंचा दिया। जिसके सामने वाले शीशे पर गोलियां टकरा रहीं थी और उसने एक्सीलेटर और अपने पैर पर विश्वास करके पाकिस्तान, क्रिकेट और आईसीसी के साथ-साथ दुनिया को शर्मिंदगी उठाने से बचा लिया और अकेले आतंक को मात देने में कामयाब रहा।

आपका अपना
नीतीश राज

(फोटो साभार-क्रिक इन्फो)

न्यूजीलैंड में भारत जीता, पाकिस्तान में क्रिकेट हारा।

ट्वेंटी-20 सीरीज हारने के बाद धोनी और धोनी की टीम के लिए पहला वन डे बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने था। धोनी के लिए फिर टॉस अच्छा रहा, और टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला। ओपनर के रूप में जैसा कि सोचा जा रहा था वो ही हुआ सहवाग के साथ गंभीर नहीं सचिन ही थे। सचिन से लोगों को काफी उम्मीदें, सचिन ने जमने की कोशिश की। वहीं दूसरी तरफ सहवाग अपने रंग में आ चुके थे। जहां सहवाग अर्ध शतक के नजदीक थे वहीं सचिन अभी डबल फिगर को छू ही पाए थे।

सचिन ने भी अपने हाथ दिखाए और दो शानदार चौके लगाए। एक-दो चौकों के बाद लग रहा था कि सचिन शायद उतनी फॉर्म में नहीं हैं, फिर भी इतने तो हैं कि नेपियर में अपना सर्वाधिक बना देंगे और जैसे मैंने सचिन से सवाल पूछा था कि क्या सचिन अपने चाहने वालों का अरमान पूरा कर पाओगे? चाहने वालों को जवाब मिल गया, दो चौके मारने के बाद सचिन बाहर जाती बॉल को स्लिप के रास्ते चार रन तक पहुंचाने की कोशिश में बॉल की रफ्तार और हवा से चकमा खा गए और कीपर को एक आसान सा कैच थमा बैठे।
जिसकी उम्मीद थी बिल्कुल उससे हटके हुआ। जहां लोग सोच रहे थे कि लेफ्ट-राइट का कॉम्बिनेशन देने के लिए कोई लेफ्टी आएगा याने कि सबसे सफल जोड़ी फिर होगी क्रीज पर, पर ऐसा हुआ नहीं। लोगों और मीडिया की खरी-खरी सुनने के बाद अपना पसंदीदा नंबर 7 छोड़ कप्तान धोनी 3 नंबर पर बैटिंग करने पहुंचे। अपने इस निर्णय को साबित करने के लिए धोनी ने धीमे और सधी शुरुआत करी। वहां वीरू का बल्ला बोल रहा था। अब तक वीरू 56 गेंदों पर 11 चौके और 1 छक्के की मदद से 77 रन बना चुके थे। विटोरी की गेंद पर एक लाजवाब शॉट सहवाग ने खेली और सर्कल के अंदर खड़े टेलर ने उससे भी शानदार कैच लपक वीरू की शानदार पारी पर ब्रेक लगा दी। चौथे नंबर पर टीम के युवराज आए और
कप्तान के साथ दूसरे रन के फेर में पड़कर पवैलियन की राह पर निकल लिए। अब टी-20 के स्टार सुरेश रैना की बारी थी। 20-20 के क्रम को आगे बढ़ाते हुए रैना ने मैदान के हर कोने में बॉल पहुंचाई और शानदार 4 छक्के और 5 चौंकों की मदद से महज 39 गेंदों पर 66 रन बनाकर छक्के मारने के प्रयास में एलिट की गेंद पर ब्रायन को कैच थमा बैठे। वहीं दूसरे छोर पर कप्तान ने पारी संभाल रखी थी। अब धोनी का साथ देने क्रीज पर आए यूसुफ पठान आए और 10 गेंदों पर 1 छक्के और 2 चौकों की मदद से 20 रन बनाए। धोनी की इस समझदारी भरी पारी में सिर्फ ६ चौकों की मदद से 89 गेंदों पर 84 रन बनाए। न्यूजीलैंड के सामने 7.20 की औसत के साथ लक्ष्य 38 ओवरों में 274 रहा।
वैसे, इस बीच न्यूजीलैंड में झमाझम बारिश होने लगी और पाकिस्तान में श्रीलंका टीम की बस पर दनादन फायरिंग। पाकिस्तान में दूसरे टेस्ट के साथ-साथ दौरा भी खटाई में पड़ गया। खेल और क्रिकेट के इतिहास का काला दिन। वहीं दूसरी तरफ न्यूजीलैंड में बारिश के कारण पहला वन डे के ओवर कम कर दिए गए, मैच 38-38 ओवरों का हो गया।
इरफान की जगह टीम में आए प्रवीण कुमार ने बिना खाता खोले न्यूजीलैंड को दूसरे ओवर में ही पहला झटका मैक्कुलम के रूप में दिया। न्यूजीलैंड की तरफ से टी-20 का सितारा अस्त हो गया था। दूसरा विकेट भी प्रवीण कुमार की झोली में गया। गुप्टिल और टेलर जब खेल रहे थे तो लग रहा था कि औसर रन रेट तो बढ़ता जा रहा है पर फिर भी यदि ये दोनों टिके रहे तो मैच को कभी भी पलटने की काब्लियत रखते हैं। १६वें ओवर में यूसुफ पठान ने घातक होते टेलर को सचिन के हाथों कैच करवाकर न्यूजीलैंड की मुसीबत और बढ़ा दी। एलिट को सहवाग के सपाट थ्रू ने रन आउट कर दिया और बारिश शुरू हो गई।
डकवर्थ लुईस नियम को लागू किया गया और फिर जो टार्गेट न्यूजीलैंड के सामने था वो लगभग नामुमकिन सा ही था। 43 गेंद पर 111 रन। जब चौथा विकेट गिरा था तो न्यूजीलैंड को 102 गेंद पर 163 रन चाहिए थे और उनके हाथ में 6 खिलाड़ी थे।
जब मैच शुरू हुआ तो स्कोर को आगे बढ़ाने के कारण ओरम युवराज का शिकार बने। अब लगने लगा कि यदि गुप्टिल का विकेट भारत कैसे भी झटक ले तो फिर पूरी तरह मैच भारत के पक्ष में हो जाएगा। और हुआ भी कुछ यूं ही, पर अब बारी थी भज्जी की। चार गेंद पर भज्जी ने 3 विकेट झटक लिए। सबसे पहले गुप्टिल, फिर ब्रूम और फिर मिल्स को आउट कर न्यूजीलैंड की हार में चारों तरफ कील ठोंक दी। कहां एक समय 132 पर 5 विकेट थे वहीं 9 विकेट भी होगए। अब बस खानापूर्ति ही शेष रह गई थी। और भारत ने पहला वन डे 53 रन से डकवर्थ लुईस नियम से जीत लिया। मैन ऑफ द मैच चुने गए टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी।

जब टीम इंडिया बैटिंग कर रही थी तब ये खबर फैल चुकी थी कि श्रीलंका की टीम पर हमला हो गया है। और दोनों टीमों ने हाथ पर काली पट्टी बांधकर अपना विरोध दर्ज कराया। धोनी ने कहा कि अच्छा हुआ कि भारतीय टीम ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया और शायद ही अब कोई भी खिलाड़ी पाकिस्तान में जाकर खेलना पसंद करेगा।
पर सच तो ये है कि पाक में पनपे आतंक के सच से खुद पाकिस्तानियों को लड़ना होगा और क्रिकेट को जिंदा रखने के लिए तालिबानी ताकतों के सामने घुटने नहीं टेकने होंगे। फिल्म के बाद अब इन दहशतगर्दों के निशाने पर है क्रिकेट पर आतंक से तो लड़ना होगा ही।

आपका अपना
नीतीश राज

(फोटो साभार-क्रिक इन्फो)

पाकिस्तान में श्रीलंका टीम पर हमला, पाक में आतंक के आगे हारा क्रिकेट।

पाकिस्तान में श्रीलंका टीम पर हमला हुआ। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब कि विदेशी दौरे पर गई किसी टीम पर आतंकवादी हमला किया गया हो। श्रीलंका की टीम की जगह वो भारत की भी टीम हो सकती थी। जनवरी-फरवरी में भारत को पाकिस्तान का दौरा भी करना था। ऑस्ट्रेलिया और भारत के मना करने के बाद श्रीलंका ने दो फेज में पाकिस्तान का दौरा करना कबूला। जनवरी में वन डे और फरवरी-मार्च में दो टेस्ट।

दूसरे टेस्ट का तीसरा दिन, श्रीलंकाई टीम की बस होटल से गद्दाफी स्टेडियम जहां पर दूसरा टेस्ट खेला जा रहा था वहां के लिए रवाना हुई। साथ में आगे पीछे सुरक्षा दस्ता। सब ठीक चल रहा था, श्रीलंका की टीम इस पर हल्की चर्चा करने में मश्गूल थी कि कैसे गेंदबाजी करनी है। पाकिस्तान के समय अनुसार सुबह 8.40 पर टीम की बस गद्दाफी स्टेडियम के पास लिबर्टी चौक के पास पहुंची। जैसे ही राउंडअबॉयुट याने गोलचक्कर पर घूमी, चारों तरफ से बस और बस को सुरक्षा दे रहे पुलिस के दस्ते पर हमला कर दिया गया। 12 आतंकवादी बस पर अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे जिसमें श्रीलंका की क्रिकेट टीम बैठी थी।
सामने से आ रही गोलियों से बच पाना बस के आगे चल रहे पुलिस दस्ते के लिए मुमकिन नहीं था। 7 पुलिसवाले मौके पर ही ढेर हो गए। बस पर ताबड़तोड़ गोलियां लग रहीं थी, और इधर खिलाड़ियों की चीख निकलने लगी।
6 खिलाड़ियों को गोलियां लगी।
फायरिंग की आवाज़ सुनते के साथ ही खिलाड़ियों ने झुकना शुरू कर दिया। चमिंडा वास ने बताया कि, फायरिंग के समय यदि वो झुके नहीं होते तो गोली लग सकती थी, गोली ठीक उनके ऊपर से गई थी। श्रीलंकाई बस के ड्राइवर मेहर मोहम्मद ने बताया कि गोली की आवाज़ के बाद पहले तो लगा कि कोईं पटाखे चला रहा है पर तुरंत पीछे बैठे किसी खिलाड़ी ने पीछे से आवाज़ लगाई कि ‘चलो, जल्दी चलो(go)’। ड्राइवर ने समझदारी का काम किया एक्सीलेटर पर रखा पैर और बस को गद्दाफी स्टेडियम के अंदर पर पहुंचाकर ही दम लिया। जो खिलाड़ी घायल हुए----

--कप्तान महेला जयवर्द्धने के पांव में टखना(ankle) में हल्का सा कट लगा, याने कोई खतरा नहीं।
--उप कप्तान कुमार संगकार के कंधे में गोली लगी, खतरे से बाहर।
--अजंथा मेंडिस-पीठ पर किसी चीज के गहरा घाव।
--थरंगा परनाविथाना-सीने में लगी गोलीघाव।
--थीलाना समरवीरा-जांघ में लगी गोली, खतरे से बाहर पर पूरी तरह नहीं। समरवीरा टीम के टॉप के बल्लेबाज जिसने पिछले टेस्ट और दूसरे टेस्ट की पहली पारी में दोहरा शतक जड़ा था।
--पॉल फरबरेस-श्रीलंकाई टीम के सहायक कोच के हाथ में गहरा घाव।

श्रीलंकाई टीम की बस के पीछे एलिट अंपायर की वैन भी आ रही थी। 5 अंपायरों के इस काफिले पर भी आतंकवादियों ने निशाना साधा और इसमें रिजर्व अंपायर एहसान रज़ा गंभीर रूप से घायल हो गए। अभी भी एहसान रज़ा अस्पताल में भर्ती हैं पर अभी-अभी पता चला है कि वो ख़तरे से बाहर हैं। लेकिन इस वैन को जो ड्राइवर थे उनकी मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस की तफ्तीश के बाद पता चला कि 12 आतंकवादियों का ये काम था और उन्होंने हमले में ऑटोमैटिक गन, हैंड ग्रेनेड, रॉकेट लॉन्चर और स्टार डायमंड पिस्टल का इस्तेमाल किया। कुछ का कहना ये है कि ये अटैक पूरा 26/11 मुंबई हमलों की तर्ज पर किया गया है।
वैसे ही पाकिस्तान में कोई भी खिलाड़ी जाकर नहीं खेलना चाहता। 2008 में ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पाक का दौरा रद्द किया था। उसके बाद चैंपियंस ट्रॉफी रद्द की गई। फिर भारत ने मुंबई हमलों के बाद दौरा रद्द कर दिया, जिसे की आज पूरा विश्व सही ठहरा रहा है। जब ये फैसला लिया गया था तो मुझे याद है कि दुनिया और कुछ पाक के खिलाड़ी जैसे आफरीदी ने काफी कुछ उल्टा सीधा कहा था। श्रीलंका की टीम ने हौसला दिखाया और उसके इस निर्णय पर कई सवाल भी उठे थे।

इस हमले के तुरंत बाद श्रीलंकाई टीम का पाकिस्तान दौरा रद्द कर दिया गया। कोई भी खिलाड़ी इलाज कराने के लिए भी पाक में नहीं रुकना चाहता था। क्रिकेट के इतिहास में पहली बार ये हुआ होगा कि किसी टीम को मैदान से ही हेलिकॉप्टर से दूसरे देश ले जाया गया और फिर वहां से वो रात तक वापिस अपने देश में पहुंच जाएंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, March 2, 2009

सचिन,अपने चाहने वालों के अरमानों को पूरा कर पाओगे?

सचिन तेंदुलकर के दीवाने न्यूजीलैंड में भी हैं। 2002-03 के बाद से न्यूजीलैंड में उनके दीवाने अब उनको खेलते हुए देख पाएंगे इसलिए उत्सुक्ता और बढ़ गई है। पिछला दौरा ना ही सचिन और ना ही भारत टीम के लिए अच्छा रहा था। 2002-03 में 7 वन डे भारत-न्यूजीलैंड के बीच खेले गए और भारत ने वो सीरीज 5-2 से गंवाई थी। 2003 वर्ल्ड कप से ठीक पहले की ये सीरीज थी। पर इस बार सचिन के ऊपर जो जिम्मेदारी है वो बहुत बड़ी है। पिछली सीरीज की नाकामयाबी का दाग धोना है जिसमें सचिन ने 3 वन डे में सिर्फ 0, 1, 1 रन बनाए थे। अभी तक यदि देखें तो सचिन ने न्यूजीलैंड में 15 वन डे खेले हैं और 27 की औसत से 408 रन का ही योगदान देने में कामयाब हो सके हैं। न्यूजीलैंड में सचिन ने वन डे में शतक नहीं जमाया है, तो इस बार सचिन को ये कीर्तिमान अपने नाम करना ही होगा। साथ ही टेस्ट में भारत 1967 के बाद से अब तक न्यूजीलैंड में टेस्ट सीरीज नहीं जीत पाया है। तो भारतीय टीम के सबसे सीनियर और बुजुर्ग खिलाड़ी से ये उम्मीद की जा रही है कि इसके बाद तो मौका मिलने नहीं जा रहा है, हो सके तो इस टूर में न्यूजीलैंड में अपने सारे सपने पूरे कर डालें और टीम के भी।

सचिन को लोग क्रिकेट का खुदा मानते हैं। सचिन से सब को बहुत उम्मीदें होती हैं और चाहे कोई कुछ भी कहे लेकिन सचिन को खेलते देखना अपने में एक अलग रोमांच भर देता है। यहां तक की गेंदबाज जो कि सचिन को गेंद डालता है वो भी रोमांचित हुए नहीं रह पाता। हर एक गेंदबाज का सपना होता है अपने करियर में सचिन को एक बार आउट करना। पर सवाल ये उठता है कि क्या क्रिकेट में सचिन का कद इतना बड़ा हो चुका है कि सचिन अपने चाहने वालों के अरमान को पूरा कर सकें? न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड की टीम के खिलाफ वन डे में शतक का अरमान? एक अच्छी ईनिंग का अरमान?
न्यूजीलैंड में सचिन के आंकड़े सचिन के बढ़ते कद को ठेंगा दिखाते हुए उनकी वहां पर नाकामयाबी की चुगली करते हैं। न्यूजीलैंड में सचिन 15 मैचों में 3 बार शून्य पर आउट हुए हैं, 3 बार तो 10 का आंकड़ा भी नहीं छू सके। सिर्फ 3 हाफ सेंचुरी और यदि देखें तो 1994 से लेकर अब तक सचिन के बल्ले को तलाश है एक हाफ सेंचुरी की। न्यूजीलैंड में अभी सचिन के बल्ले की प्यास शतक को लेकर नहीं बुझी है। तो क्या ये आंकड़े महान बल्लेबाज से सवाल नहीं करते कि क्या सचिन अपने चाहने वालों के अरमान को पूरा कर पाएंगे? श्रीलंका में तीन बार अंपायर की गलती तो सारी दुनिया मान रही थी पर क्या सचिन के रिफ्लेक्सिस ज्यादा धीरे नहीं हो गए जिसके कारण ना चाहते हुए भी सचिन के बल्ले की बजाय हर बार बॉल पेड पर लग जा रही थी।

माना जा रहा है कि भारत कि इस समय की टीम पहले की सभी टीमों से बेहतर है तो साबित करना होगा इस टीम को कि ये टीम सर्वश्रेष्ठ है। 1967 के बाद यदि ये करिश्मा कोई टीम कर सकती है तो वो ये ही टीम होगी। लेकिन पहले वन डे में 2003का बदला उतारना है फिर टेस्ट की बात करेंगे।
नेपियर में अब तक सचिन तीन बार खेलने उतरे हैं और दो बार दूसरे नंबर पर बल्लेबाजी की है। फरवरी 1995 में दूसरे मैच में 15 गेंदों पर 13 रन और तीसरे मैच जनवरी 1999 में 23 रन 19 गेंदों पर बनाए थे, जिसमें 4 चौके शामिल थे। दुआ है कि इस बार सचिन नेपियर में कामयाबी की ऊंचाइयों को छू लें।

बेस्ट ऑफ लक टीम इंडिया और बेस्ट ऑफ लक मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”