Friday, August 19, 2011

MERE SAPNE MERE APNE: ’हमें भूलने की बीमारी है।‘

MERE SAPNE MERE APNE: ’हमें भूलने की बीमारी है।‘: बहुत लोगों कह रहे हैं कि अन्ना का ये अनशन एक ब्लैकमेलिंग है। अन्ना सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं। साथ ही अरविंद केजरीवाल का एक कमेंट, ‘ जन...

’हमें भूलने की बीमारी है।‘


बहुत लोगों कह रहे हैं कि अन्ना का ये अनशन एक ब्लैकमेलिंग है। अन्ना सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं। साथ ही अरविंद केजरीवाल का एक कमेंट, जनतंत्र में जनता की तानाशाही को ही जनतंत्र कहते हैं। डायलॉग था, अच्छा लगना ही था।

हमारे घर में घुसकर 164 से ज्यादा लोगों को मार देना और उस कातिल की हिफाजत के लिए करोड़ों खर्च करना, किसी लोकतंत्र की सबसे मजबूत कड़ी है। उन 164 लोगों के परिवार से पूछो कि वो क्या चाहते हैं और पूछो 300 से ज्यादा लोगों से जो उस हमले में घायल हो गए। हमें भूलने की बीमारी है

मैं इस अनशन को तानाशाही नहीं मानता, जब पानी सर से ऊपर चला जाता है तो ऐसी क्रांति होती है। सरकार को बताने के लिए कि अपनी मनमानी मत करो। जनता ही यहां की सिकंदर है।

वहीं मैं अपने उन दोस्तों से पूछना चाहता हूं कि जब सरकार किसी काम को करने की पहल ना करे। तब जनता उस काम को खत्म करने के लिए कदम आगे बढ़ाए तो क्या गलत है। लोग कह रहे हैं कि अन्ना का तरीका गलत है पर मैं कहता हूं कि इस तरीके में बुराई क्या है। सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रही और जो उठा रही है वो नाकाफी हैं। जिन पर लगाम लगाने की जरूरत है उन पर लगाम नहीं लगा रही तो सरकार की ऐसी कोशिशों का क्या फायदा? वो तो करप्शन को ही बढ़ावा दे रहे हैं।

लोग कह रहे हैं, हमारे देश में संसद है और संसद से बड़ी कोई चीज नहीं। हम भी कहते हैं कि हां संसद में ही लोकपाल बिल बने पर वो जन लोकपाल बिल हो। उस बिल में सांसदों, नेताओं और दबंग लोगों को रियायत ना मिले।

संसद के नुमाइंदे बनाएंगे लोकपाल। बनाओ, किस ने मना किया है। पर उस बिल से हमें शर्मिंदा ना होना पड़े। जैसे कि नोट फॉर वोट केस में होना पड़ा था। उन सांसदों को जनता ने ही चुना था। जिनको आज एतराज हो रहा है उन्होंने सांसदों को बड़ा भलाबुरा कहा था। जानता हूं कि हमें भूलने की बीमारी है

सरकार के मनीष तिवारी अन्ना पर आरोप लगाते रहे तब लोगों को ये क्यों नहीं लग रहाकि सरकार गलत कर रही है। सावंत कमिशन का हवाला देते हुए मनीष तिवारी ने तो अन्ना को सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी तक कह डाला। तब किसी ने 74 साल के उस शख्स के बारे में, जिसे अन्ना कहते हैं, नहीं सोचा। सरकार का मतलब साफ था कि आप अनशन करोगे या सरकार के खिलाफ बोलोगे तो हम आपके ऊपर इल्जाम लगाएंगे। इसे आप क्या कहेंगे भाईचारा’?

आज ऐसा जनसैलाब उमड़ा है वो टीम इंडिया के वर्ल्ड कप जीतने के बाद भी नहीं देखा गया था। लोग चल रहे हैं पानी में भीग कर साथ दे रहे हैं। आप भी साथ दो अन्ना का ना सही पर भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए आगे आओ। जब हम सुधरेंगे तब सिस्टम सुधरेगा। 
अब भी सोए रहे तो फिर कब जागोगे?

आपका अपना
नीतीश राज

Tuesday, June 7, 2011

हमारा ही पीएम सबसे मजबूर क्यों?

ऑफिस में काम पूरा करके दफ्तर के साथियों के साथ गप्पे मारते हुए नीचे उतरा। रात आधी से ज्यादा निकल चुकी थी पर हमारे लिए काफी बाकी थी। रास्ते में एक सहयोगी के फोन की घंटी बजी और उसका जवाब था ‘आ रहा हूं,। क्या हुआ। कोई खबर है, चलता हूं। जाओ, मैने जवाब दिया।


मैं कुछ कदम आगे बढ़ा ही था कि तभी उस सहयोगी का फोन आ गया। यार रामलीला मैदान में महाभारत हो गई है। और फिर काम की व्यस्तता की वजह से उसे फोन काटना पड़ा। मैंने सोचा कि दो दिन से सोच रहा था कि रामलीला मैदान जाऊंगा पर जा नहीं पाया चलो गाड़ी उधर घुमा लेता हूं। वहीं दूसरे ख्याल ने कदम रोक दिए कि ऑफिस को इस वक्त मेरी जरूरत ज्यादा होगी, चलो ऑफिस का रुख करो।


रामलीला मैदान की उस काली स्याह रात के एक-एक दृश्य, एक-एक तस्वीर दिमाग को हिला रहे थे। एकबार तो बाबा रामदेव का चहरा फक पड़ चुका था जब कि मंच पर पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुंची। पर दूसरे ही पल हिमालय की गुफाओं में किए तप और योग की शक्ति ने उनके अंदर वो जज्बा और फुर्ति पैदा कर दी कि वो अपने सहयोगियों के बीच कूद पड़े। 46 साल का कोई भी शख्स 12-14 फीट के प्लेटफॉर्म से ऐसे नहीं कूद सकता, शायद योग का कमाल था। पर ना तो वहां मौजूद बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों को इस बारे में जानकारी थी और ना ही बाबा के समर्थकों को कि दिल्ली पुलिस वो पुलिस है जो चाहने पर मुर्दे को भी जिंदा कर दे, जो अपनी पर आ जाए तो यमदूत भी रहम के लिए पनाह मांगने लगे।


कंधे से उतर कर बाबा रामदेव मंच पर आकर बैठ गए और बोतल से पानी पीने लगे। फिर उसी बोतल को बाबा रामदेव ने माइक समझकर अपने उत्तेजित हो रहे समर्थकों को शांत करने लगे। उस समय हर मिनट तस्वीरें बदल रही थी। उस दौरान जब भी कैमरा बाबा के ऊपर होता तो मैंने पूरे समय बाबा को समझाते हुए ही देखा। कहीं भी भावों से ऐसा नहीं लग रहा था कि वो अपने सहयोगियों, समर्थकों को उत्तेजित कर रहे थे।


मेरे एक सहयोगी ने मेरे से कहा कि यदि ये रात बाबा रामदेव निकाल गए तो कल बाबा रामदेव के लिए एक नई सुबह होगी। मैंने जवाब दिया, लाख लोग हैं और दिल्ली में इतनी पुलिस नहीं, जो लाख लोगों को खदेड़ दे। पर मैं गलत था तस्वीर बदली और नई तस्वीर में रेपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर दिखी। हम समझ गए कि ये रात बाबा के लिए जीवन की सबसे लंबी रात होने वाली है।


मंच से बोलते बाबा रामदेव को एकदम से सहयोगियों ने भीड़ में पीछे-पीछे करना शुरु किया। उनके समर्थक महिलाओं को सामने रखते हुए बाबा को मंच के पीछे ले जा रहे थे। बाबा की आवाज़ पीछे से आ रही थी पर थोड़ी देर बाद बाबा रामदेव का पता नहीं चला। पंडाल में आंसूगैस छोड़ी जाने लगी। पंडाल में लोग तितर-बितर होने लगे। डंडे, पत्थर सब चल रहे थे। पंडाल में आग लग गई और बाबा रामदेव का मंच खाली हो गया। पंडाल में गिने चुने लोग दिखने लगे। वहां मौजूद थी तो सिर्फ पुलिस और पुलिस। लोगों को उठा-उठा कर लेजाती हुई। ये सब मंजर बर्बरता दिखा रहे थे। आंखों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि रात तक भरा पूरा रामलीला मैदान दो घंटे के अंदर खाली करवाया जा चुका था।


फिर इसके बाद उस रात को क्या हुआ कितना एक लोकतांत्रिक देश के लोगों का साथ छल हुआ ये सब को पता है। बार-बार मुझे ऑस्ट्रेलिया की वो घटना याद आ रही थी। जब भारतीयों पर हमले के खिलाफ सभी भारतीय मेलबर्न की सड़कों पर इक्ट्ठा हुए थे और पुलिस ने जो कार्रवाई की थी उसकी आलोचना पूरे विश्व में हुई थी। तब ये ही हमारी सत्तारूढ़ सरकार के नेतागणों ने उसकी निंदा की थी साथ ही उच्चायुक्त को बुलाकर इसके लिए आगाह भी किया था। क्यों आज उसकी को दोहराने की ये निंदा नहीं कर पा रहे और साथ ही क्या ये तस्वीरें इनको दुख नहीं दे रही, कि अब भारत की निंदा पूरे विश्व में होगी।


इस बात का मैं साक्षी हूं कि रात 10.45 पर सुबोध कांत सहाय ने ये कहा था कि हमने अपनी मांग लीखित बाबा के पास भेज दी हैं। और दो घंटे बाद रामलीला मैदान पर पुलिस हमला कर चुकी थी।

पीएम के रूप में मनमोहन सिंह सबसे ज्यादा मजबूर दिखाई देते हैं। ये सिर्फ मेरी राय नहीं है कि वो अब तक सभी पीएम में सबसे कमजोर हैं। घोटालें हों या करप्शन सब में वो मजबूर हैं। ओसामा जी कहने वाले दिग्विजय सिंह की जुबान चुप कराने में भी शायद वो मजबूर हैं। रात के इस पूरे प्रकरण को दमन चक्र ही कहा जाएगा पीएम साहब। उस प्रेमलता से पूछो जिसको आपकी मजबूरी ने बिस्तर पर मजबूर बना दिया।




आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, June 4, 2011

ये 'ब्लैकमेल' है तो ये ‘ब्लैकमेल’ अच्छा है।


बात कुछ ऐसी है कि बच्चे को पढ़ाई करने के लिए कहना और यदि बच्चा ना सुने तो माता-पिता का अनशन पर बैठना।

भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कुछ दिन पहले ही एक आंदोलन, ‘अन्ना का अनशन’ शुरु हुआ था। पहले दिन से ही वो देश की आवाज़ बन गया। जिसने सरकार की नींव हिला कर रख दी। तभी से बाबा रामदेव को भी लगने लगा था कि वो अन्ना के साथ मिलकर इस आंदोलन को नई दिशा दे सकते हैं। और बाबा, अन्ना के साथ उस राह पर चलने लगे जिस राह पर नंगे पांव अन्ना और उनके सहयोगी चल रहे थे।

कुछ दिन में ही सरकार जान गई कि सड़क किनारे से उठी ये मुहिम सरकार के सारे पेंच ढ़ीले कर सकती है। यहां तक कि गद्दी सिरे से भी उखड़ सकती है। सरकार बचाने की होड़ में सरकार ने अन्ना की बातें मान ली और लोकपाल बिल के मसौदे पर एक कमेटी बनाई गई जो कि 30 जून तक विधेयक का मसौदा तैयार कर देगी। जो अभी तो असंभव सा लगता है।

वहीं दूसरी तरफ.....
उस दिन नंगे पांव कुछ दूर तक चलने में ही ऐसा लगा था कि हां, मंजिल दूर नहीं, मुझे भी मिल सकती है मंजिल। नंगे पांव खेतों में, कांटों पर भी चलने की आदत, पर उस दिन पेड़ों की छांव में भी चलने के बावजूद पड़े पांव पर छाले नई मंजिल की तलाश करना चाहते थे। पांव की वो टीस जो तलवों से ज्यादा दिल में उठ रही थी। बरसों से उठ रही दिल की आवाज से मिलकर उस टीस ने रामकृष्ण यादव उर्फ बाबा रामदेव को मजबूर किया कि वो 4 जून से सरकार को सरकार का काम याद दिलाए।


बाबा रामदेव के कहने पर लोग सर्द रातों में उठकर सुबह योग करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते। दो-चार नहीं हजारों की तादाद में लोग आते। धीर-धीरे लोकप्रियता ने लोगों को अपने घर में सुबह उठकर योग करने पर मजबूर किया। आलसी भारतियों के अंदर ये जज्बा उस योगी ने भरा। हर जगह, किसी भी वक्त लोगों को योग करते देखा जा सकता था। योग को पेटेंट कराने से लेकर देश के सभी मुद्दों पर बाबा खुलकर सामने आए। बाबा की प्रसिद्धी राजनेता, अभिनेता या किसी भी खिलाड़ी से कम नहीं। उस प्रसिद्धी ने मजबूर कर दिया कि वो देश के लिए कुछ करें। पहले मुद्दे और अब ये अनशन उस राह में दूसरा कदम है।

वहीं तीसरी बात.....
बाबा योग सिखाइए और खुश रहिए। इस राजनीति में मत उतरिए। कुछ हासिल नहीं होगा और दामन पर कीचड़ जरूर लग जाएगा। कुछ लोगों की राय लगभग ऐसी ही थी।
इस बात का साफ मतलब ये था कि बाबा, क्यों पचड़े में पड़ते हो हमें खाने दो और यदि बोलो तो हम आपको भी खिला देते हैं। दिग्विजय सिंह को ये समझना चाहिए कि अब वो दिन गए जब कि नेता करोड़ों के घपले करते थे और कानून उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता था। 13-14 वीवीवीआईपी नेता गण तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं। नेता लोग खाते रहें और स्विस बैंकों में अपना पैसा डालते रहें। देश को चूना लगाते रहें और आम नागरिक कुछ कहता है तो उसे ब्लैकमेलिंग का नाम लगा दो। नहीं...नहीं...नहीं अब ये नहीं होगा, नहीं चुप रहेगा भारतीय नागरिक।

एनसीपी नेता तारिक अनवर कहते हैं कि पहले अन्ना और अब बाबा सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं। यदि इसे ब्लैकमेल कहते हैं तारिक अनवर साहब तो हम इस ब्लैकमेलिंग को सही ठहराते हैं। मुझे और साथ ही किसी भी भारतीय को जो कि देश का भला सोचता होगा उसे इस तरह की ब्लैकमेलिंग से कोई भी आपत्ति नहीं। बाबा करो ब्लैकमेल, जितना कर सकते हो करो। यदि भ्रष्टाचार के मुंह पर तमाचा ऐसे लग सकता है तो ये ‘ब्लैकमेल’ अच्छा है।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”