Thursday, May 21, 2009

हम तो उसकी फिराक में है जो हमारी फिराक में है।

कुल मिलाकर ३२२ का आंकड़ा हो गया है यूपीए के पास। मनमोहन सिंह ने इतनों का पर्चा तो महामहिम को सौंप दिया है। यूपीए के २७० और ४ निर्दलीय बाकी ४८ सब माया-मुलायम-लालू से। ये तिकड़ी ना चाहते हुए भी साथ है। जैसे कि पिछले लेख में मैंने कहा था कि तीनों कुछ भी कर जाएंगे पर सरकार को समर्थन जरूर देंगे। हुआ भी बिल्कुल वही। क्योंकि तीनों के तीनों बचने की फिराक में हैं। एक शायर हुए थे फिराक। उन्होंने क्या खूब कहा था---

ये ना समझ कि हम तेरी फिराक में हैं,
हम तो उसकी फिराक में हैं जो तेरी फिराक में है।


यहां पर इन लोगों पर ये चंद शब्द कुछ यूं बैठते हैं---

ये ना समझ कि हम तेरी फिराक में हैं,
हम तो उसकी फिराक में है जो हमारी फिराक में है।


ये बचाना चाहते हैं सीबीआई के हंटर से। मतलब साफ है कि तीनों के तीनों ने समर्थन एक डर कि वजह से किया है। आज नहीं तो कल इन पर चार्जशीट तो लगनी ही है। इन तीनों का चालान तो होना ही है। दुनिया को ये दिखाने के लिए रह जाएगा कि कांग्रेस को सरकार बनाने में समर्थन भी किया अब सरकार हमारे ऊपर ही ऊंगली उठा रही है। यूपी में मिली कांग्रेस की बढ़त अब इन से देखी नहीं जा रही है। ये चाहते हैं कि यूपी में आने वाले दिनों में यदि कांग्रेस की तरफ से कोई भूचाल आता है तो अपना बचाव वो यूं कर सकें। राज्य में बीएसपी की सरकार है तो पहले पत्ता मुलायम-अमर का ही कटेगा। लालू तो चुनाव के नतीजों से मरे हुए हैं जब तक संभलेंगे तब तक सीबीआई कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेगी।
जहां तक कांग्रेस का सवाल है कि उसको राज्यसभा की स्थिति पर गोर भी तो करना ही होगा। अभी तो कांग्रेस को मंत्रिमंडल बंटवारे पर माथापच्ची करनी होगी।

मनमोहन यूपीए के नेता चुने गए, सरकार का दावा ठोंकने गए पर फिर भी बात पूरे समय राहुल की ही होती रही। जहां भी देखो तो चर्चा का केंद्र बिंदु युवराज ही क्यों बने हुए हैं? क्यों? यूपीए की पहली बैठक में जो शुमार हुए। राहुल को अब तो कोई पद संभाल लेना चाहिए या सीधे पीएम का पद ही संभालेंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Tuesday, May 19, 2009

सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं मुलायम और मायावती, इसलिए कह रहे हैं सरकार में हमें भी ले लो, प्लीज़.....।

कांग्रेस को एक तरह से पूर्ण बहुमत मिला नहीं कि सभी छोटी पार्टियां लगी हुई हैं कि हमें भी गठबंधन में ले लो। सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं अब सभी। जनता ने कांग्रेस को बहुमत के करीब पहुंचा कर ये तो साबित कर दिया है कि अब क्षेत्रिय पार्टियों को काम करना ही पड़ेगा।

इस पूरे चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले मायावती के निशाने पर गर कोई था तो पार्टी के रूप में कांग्रेस और शख्स के रूप में राहुल गांधी। कांग्रेस के लिए मायावती का हर रैली में ये कहना था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश सरकार को पैसा मुहैया नहीं करा रही है, कांग्रेस झूठी पार्टी है और पता नहीं क्या-क्या। चुनाव के दौरान ही मायावती ने राहुल पर निशाना साधते हुए कहा था कि गरीबों के घर में सो जाने से कोई गरीबों के दर्द को नहीं समझ सकता और राहुल के गांवों के हर दौरे पर मायावती के निशाने पर ही राहुल गांधी होते थे। आज एक रैली में माया पलट गईं और कहने लगीं कि बिना शर्त के वो समर्थन देने को तैयार हैं क्योंकि मनमोहन सिहं ने उन्हें छोटी बहन कहा था। छोटी बहन तो संजय दत्त ने भी कहा था तो क्या उस पार्टी के साथ चलना चाहेंगी आप? नहीं। जवाब सभी जानते हैं।

आखिरकार मायावती को एकदम से हुआ क्या जो कांग्रेस की इतनी बुराई करती थी वो एकदम से कैसे सरकार के साथ चलने लगी है। जो वो कांग्रेस के पीछे हाथ धोकर पड़ गई कि सरकार में हमें भी ले लो प्लीज।
इस सब के पीछे एक बहुत बड़ी चाल है मायावती की। मायावती अब उत्तर प्रदेश से एसपी को खत्म करना चाहती हैं। इसलिए वो सरकार का हिस्सा बनना चाहती हैं क्योंकि यदि देखें तो राज्य में तो खुद माया काबिज हैं पर यदि केंद्र में भी हिस्सेदारी हो जाएगी तो अमर-मुलायम से वो पिछले सारे हिसाब बराबर कर सकेंगी।

लखनऊ में मायावती ने किया क्या है? एक अपनी महत्वाकांक्षी योजना में करोड़ों रु लगाए जा रही हैं। दूसरी तरफ मुलायम सरकार में बना लोहिया पार्क आज पानी को तरस रहा है। उस पार्क में कोई पानी भी देने वाला भी नहीं है। अरे अपनी लड़ाई में एक दूसरे का सर फोड़ो जो करना है करो पर जनता का तो भला रहने दो। पूरे शहर को नीला ही नीला कर दिया पोस्टरों से अखिलेश दास गुप्ता के पोस्तरों से। हर जगह नीली लाइट क्या है ये। विकास के नाम पर क्या किया?????

वहीं यदि देखें तो बार-बार दुत्कार दिए जाने के बाद भी अमर सिंह राष्ट्रपति को समर्थन पत्र देने अकेले ही पहुंच गए। अरे तुम समर्थन नहीं चाहोगे तो भी हमें तो आता ही है समर्थन देना। भई, यदि सरकार को बाहर से समर्थन देंगे तो भी तो सरकार के साथ तो रहेंगे ही कोई इतनी आसानी से हाथ तो नहीं डाल पाएगा। गर कोई डालने की हिम्मत करेगा तो जिस चीज में हम माहिर हैं हम वो करेंगे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मम्मी... मम्मी चिल्लाने लगेंगे अपने बचाव में। मम्मी कुछ तो ध्यान देंगी ही। यदि सरकार में शामिल नहीं होंगे तो मायावती जरूर से जेल में डलवाकर चक्की पिसवाएंगी। तो ये तो एसपी की मजबूरी है कि उसे हर हाल में, कैसे भी सरकार में शामिल होना होगा। पहलवानी के जोश में पूर्व पहलवान मुलायम सिंह ने लगता है कि कुछ काम ऐसे कर रखे हैं जो कि भविष्य में उनकी सेहत के लिए सही नहीं है।

वहीं कुछ ऐसे भी दल हैं जो कि लड़े तो एनडीए के साथ और अब सरकार में शामिल होने के लिए यूपीए गठबंधन में रास्ते खोज रहे हैं। हर बार पलटू राजनीति में माहिर अजित सिंह ये ही कर रहे हैं। जिगरा तो नीतीश कुमार के जैसा होना चाहिए था जो एनडीए के साथ चुनाव तो नहीं लड़े पर जब से उनके साथ आए तो उनके साथ ही हैं। बशर्ते कि नीतीश कुमार ने बिहार में बहुत काम किया पर इस मसले पर जनता का उल्लू खींचा।

सारी दुनिया कह रही थी कि तीन देवियां सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। पर एक देवी के सामने सभी देवियां फीकी पड़ गईं। ये राजनीति है कुछ भी करा सकती है। वैसे कांग्रेस को नकारों की फौज खड़ी करने से बचना चाहिए। साथ ही इन सभी को सबक भी सिखाना चाहिए चाहे वो लालू-मुलायम-पासवान ही क्यों ना हों।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, May 18, 2009

जनता है ये सब जानती है....

चुनवा हो गए और जनता ने चुन लिए हैं अपने नेता। साथ ही बता दिया है कि जनता के लिए कौन से मुद्दे हैं जिनपर वो वोट देती है। इस बार के चुनावों में जनता ने अपने आपको वोट दिया। जिसको चाहा उसको ही संसद की राह दिखाई। जनता विकास देखना चाहती है, अव वो ठगा जाना नहीं चाहती, अब वो नहीं डरती। जिनसे डरती थी उनको इस बार वोट नहीं दिया।
जनता ने कर दिखाया वो काम जो कि कानून की मोटी-मोटी किताबें और धाराएं नहीं कर सकी क्योंकि कानून ने बांध रखी है आंख पर पट्टी। जनता ने पूरा पत्ता साफ कर दिया उन बाहुबलियों का जो कल तक अपने आप को नेता कहते थे, जिनके ऊपर चलते थे कई मकद्दमें, पर हुए नहीं थे फैसले जनता ने एक उंगली से ही कर दिया फैसला, और कर दिया उन सभी का सूपड़ा साफ।

उत्तर प्रदेश हो या फिर बिहार या फिर महाराष्ट्र सभी जगह से ये भाई लोग हारे। हर कोई हारा चाहे कितना बड़ा हो या फिर कितना ही भारी। पर फिर भी 150 दागी उम्मीदवार पास होने में कामयाब हो ही गए, जिसमें बीजेपी से 42, कांग्रेस से 41, समाजवादी पार्टी से 8 दागी संसद में पहुंच गए हैं।

उत्तर प्रदेश में जनता ने काफी उलटपलट कर दिया। गाजियाबाद के डीपी यादव का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी रसूख है पर इस बार वो भी काम नहीं आया और जनता ने उन्हें भी टिकट देने से इनकार कर दिया। वैसे भी राजनीति में डीपी यादव के अब चंद ही दिन बाकी रह गए थे तो जनता ने इस बार बता दिया कि वो दिन भी पूरे हो गए। अतीक अहमद को अपना दल ने प्रतापगढ़ से टिकट दिया था पर ना तो अतीक का ना ही अपना दल का और ना ही इन दोनों का प्रताप कुछ काम आया।
मुख्तार अंसारी को बीएसपी ने वाराणसी से दिया था टिकट। बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय के कत्ल के आरोप में गाजीपुर जेल में बंद हैं मुख्तार अंसारी। इस बार जनता ने मुख्तार को संसद के अंदर का नहीं जेल के अंदर का टिकट काट कर दे दिया। मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी को टिकट तो मिल गया पर गाजीपुर से जीत नहीं।
उन्नाव की लोकसभा सीट इसलिए इस बार काफी चर्चा में रही क्योंकि यहा की प्रत्याशी कांग्रेस की अनु टंडन के प्रचार के लिए सलमान खान गए थे। अनु टंडन का मुकाबला था वहां के डॉन अरुणशंकर शुक्ला उर्फ अन्ना का। लेकिन जनता ने डॉन को नहीं सीधी सादी अनु टंडन को संसद का टिकट दे दिया।

बिहार में इस बार सब को पता था कि नीतीश कुमार की मेहनत रंग लाएगी। नीतीश कुमार ने बिहार में लोगों के अंदर से भय गायब किया है। तो जनता ने भी इस का जवाब देते हुए राज्य से साले साहब साधु यादव, तसलीमुद्दीन, मुन्ना शुक्ला, रामा सिंह, प्रभुनाथ सिंह जैसे आपराधिक तत्वों को हरा कर नीतीश का साथ दिया है। पूर्णिया से बाहुबलि पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन सुपौल से और मां पूर्णिया से बुरी तरह हारी। सीवान से शहाबुद्दीन की बेगम हिना, आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद और डॉन सूरजभान की पत्नी वीणा नवादा से अपने पति के कर्मों के कारण इन्हें हार का मुंह देखना पड़ा।

जनता ने लेकिन इस बार ये दिखा दिया कि यदि वो चाहे तो क्या नहीं कर सकती है। पर अभी जनता को और जागरुक होना होगा। नामचीन बाहुबलियों को और उनके मंसूबों को तो जनता ने हरा ही दिया है पर फिर भी यदि देश को सुरक्षित रखना है तो इन दागियों को संसद का टिकट पाने से सिर्फ जनता ही रोक सकती है।

वहीं दूसरी तरफ जनता ने इस बार जितने भी सौदेबाज थे उतनों को हराकर साबित किया है कि वो स्थाई सरकार बनाना चाहती है। जितनी भी छोटी पार्टियां चंद सीटें जीतने के बाद सौदे करती है उन्हें जनता ने सिरे से नकार दिया। जनता ने कहा 'NO TO THEM'. चाहे वो लालू हों या फिर पासवान या फिर मुलायम-अमर की जोड़ी या फिर माया या लेफ्ट की कोई नई चाल। ऐसा हुआ कि कुछ गढ़ से ही कुछ का तो पत्ता साफ हो गया।

जनता है ये सब जानती है...पब्लिक है....।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, May 16, 2009

सारे आंकड़े फास, बीजेपी का सूपड़ा साफ, कांग्रेस के हाथ सरकार

इंतजार की घड़ी खत्म हुई और कांग्रेस इतनी बड़ी जीत के साथ सामने आएगी शायद ही किसी ने सोचा हो। और बीजेपी को ज़ोर का झटका ज़ोर से ही पड़ा। बीजेपी का हाल ये होगा ऐसा भी किसी ने सोचा नहीं होगा। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भी गर सोची जा रही थी तो बीजेपी को १३० सीटों से कम कोई नहीं सोच रहा था। बीजेपी के दिग्गज कह रहे थे कि इस बार तो बीजेपी यूपी में अपना परचम फिर से लहराएगी पर ऐसा हो ना सका। इस बार तो बीजेपी सबसे खराब स्थिति के नंबर को भी नहीं पकड़ पा रही। पीएम इन वेटिंग का वेट और बढ़ गया। नहीं चला आडवाणी जी का जादू और शायद अब वो कभी पीएम नहीं बन पाएंगे। आडवाणी जी का सुनहरा सपना टूट गया। आखिरकार ये साबित हो गया कि देश पर नहीं चला लौह पुरूष जादू। गुजरात को छोड़ दें तो मोदी अपनी साख के मुताबिक कहीं पर भी आंकड़े नहीं बटोर पाए। इस बार के चुनाव के नतीजों के बाद यदि ये सोचा जाए कि बीजेपी को फिर से जुगत लगानी होगी अपना नया पीएम इन वेटिंग ढूंढने में। मोदी का गढ़ है गुजरात पर मोदी देश के नेता नहीं हैं, नतीजे तो ये ही कहते हैं।

कांग्रेस के लिए सबसे खराब स्थिति में भी १४० का आंकड़ा छूने की बात कही जा रही थी। यहां तो कांग्रेस २०० के आंकड़े के पार जा पहुंची। यहां पर सिपाहासलार की भूमिका में सोनिया पर जनता ने विश्वास किया। पीएम मनमोहन सिंह के कामों पर जनता ने मोहर लगाई। लोगों ने राहुल गांधी के जज्बे को पहचाना। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं पर भरोसा किया और जनता को साथ चलने के लिए राजी किया। जब ही तो यूपी में राहुल की मेहनत रंग लाई या यूं कहें देश में उनको पहचान मिली। राहुल के साथ युवा जुड़े और देश को आगे बढ़ाने की राह पर निकल चले। दिल्ली में शीला दीक्षित के काम को लोगों ने ७-० से जीता दिया। दिल्ली और पंजाब में टाइटलर और सज्जन कुमार को हटाना अच्छा रहा। इससे सिखों का वोट मनमोहन सिंह और कांग्रेस को मिला। राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, केरला, आंध्र प्रदेश सभी जगह कांग्रेस ने बढ़त बनाई।

कांग्रेस ने जो दो-तीन गलती पिछली बार की थी उससे उनको सबक लेना होगा। शिवराज पाटील को हटाना फायदेमंद रहा पर ये ध्यान में रखना होगा कि कहीं फैसले लेने में ज्यादा देर ना हो जाए। नटवर सिंह को विदेश मंत्री के पद से हटाना भी सही फैसला था। पर इस बार थोड़ा सोच-समझकर चलना होगा वर्ना जनता सब जानती है।

तीसरे मोर्चे को काफी नुकसान हुआ सीट और पैसे दोनों मामलों में। अब इनकी दादागीरी नहीं चलेगी। पासवान-लालू लोग खरीद-फरोख्त का धंधा नहीं कर सकेंगे, सौदेबाजी नहीं कर सकेंगे। ये अच्छा हुआ कि नीतीश कुमार के काम को लोगों ने पहचाना और वोट दिया और उनकी पार्टी को जीता दिया। पर नीतीश कुमार को अभी फैसला करना होगा कि वो किस करवट बैठेंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, May 13, 2009

.....और भारत हार गया।

.....और भारत हार गया। जी हां, एक बार फिर हार गई हॉकी। एशिया कप की पूर्व चैंपियन भारत 2009 एशिया कप के सेमीफाइनल में जगह नहीं बना पाई। सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए भारत को चीन से हर हाल में मैच जीतना था पर भारत नहीं जीत सका। 70 मिनट का हूटर जब बजा तो भारत के अरमान खत्म हो चुके थे, मैच का स्कोर 2-2 था और सेमीफाइनल में चीन था, भारत नहीं।

हमने फिर से अंत में गोल खाने की आदत को नहीं सुधारा और मैच को गंवा बैठे। पहले हाफ में भारत ने 2-0 से बढ़त बना रखी थी। पहले हाफ के खत्म होने से महज चार मिनट पहले मिले पेनल्टी कॉर्नर में संदीप सिंह ने गोल दाग कर भारत को 1-0 से बढ़त दिला दी। फिर हाफ खत्म होने से सिर्फ एक मिनट पहले संदीप सिंह ने पेनल्टी कॉर्नर से दूसरा गोल दागकर भारत को 2-0 से आगे कर दिया था।

वहीं दूसरे हाफ में चीन ने भारत की रक्षात्मक तकनीक के ऊपर बढ़कर हमले करने शुरू कर दिए। और इसमें उन्हें सफलता भी 45 मिनट में मिले पेनल्टी कॉर्नर से मिल गई। भारत ने कई मौके बनाए मगर कामयाबी नहीं मिली। साथ ही लगातार रक्षात्मक खेल का उदाहरण देते हुए खिलाड़ी इतने दबाव में आगए कि 59वें मिनट में चीन ने बराबरी कर ली। भारत को अंतिम मिनट पर पेनल्टी कॉर्नर मिला था जिससे लग रहा था कि भारत ये मैच जीत जाएगा पर चीन के गोलकीपर सू री फेंग ने कमाल का बचाव किया और चीन को सेमीफाइनल में पहुंचा दिया। चीन ने इस मैच को बराबरी पर खत्म कर दिया और भारत को सेमीफाइनल की दौड़ से बाहर। पता नहीं हमारे खिलाड़ियों को जीतता मैच बचाना क्यों नहीं आता?

अब भारत 14 मई को दोपहर 3 बजे अंतिम स्थान पर नहीं आने की जंग लड़ेगा बांग्लादेश के साथ। वैसे बांग्लादेश ने अभी तक इस टूर्नामेंट में 21 गोल खाए हैं और मात्र 1 गोल मलेशिया के खिलाफ किया है। वहीं भारत ने 4 गोल किए हैं और पांच खिलाफ हुए हैं। यदि भारत मैच जीत जाता है तो पांचवें स्थान के लिए 15 मई को शाम 5 बजे जापान के साथ मुकाबला होगा।

अजलान शाह जीतने के बाद कोच हरेंद्र ने सोचा था कि इस बार भी परचम भारतीय खिलाड़ी ही लहराएंगे, पर ये हो ना सका। जब हरेंद्र सिंह कोच के रूप में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो फिर क्या जरूरत है भारत को विदेशी कोच की। पता नहीं क्यों?

कोरिया, पाकिस्तान और फिर भारत का नाम सेमीफाइनल में पहले से ही माना जा रहा था साथ ही मलेशिया की टीम ने पिछले टूर्नामेंट में भी अच्छा प्रदर्शन किया था तो चौथी टीम वो ही मानी जा रही थी। सभी टीमें वहीं हैं पर एक टीम सेमीफाइनल से बाहर है वो है भारत। कब हम दबाव में जीतना सीखेंगे? कब जीतता हुआ मैच बचाना सीखेंगे? आखिर कब तक लीड लेकर मैच गवाएंगे? कब तक अंतिम मिनट में मिले मौकों को यूं ही बेकार कर देंगे और दबाव में ठीक से रिजल्ट नहीं दे पाएंगे? आखिर कब तक हम अपनी इस कमजोरी पर विजय पाएंगे? आखिर कब तक?

आपका अपना
नीतीश राज

ये लो आगए फिर रंग में सचिन

ये देखिए चल गए ना फिर से सचिन तेंदुलकर। कल ही तो मैंने लिखा था जब हर जगह ये ही बात होने लगी थी कि पता नहीं सचिन को क्या होगया है। मैंने साफ लिखा था कि भई कई बार ऐसा होता है कि हां कोई दो-चार मैच परफोर्म नहीं कर पाता पर इसका ये मतलब नहीं है कि दाना-पानी लेकर ही पीछे लग जाओ।

किंग्स इलेवन ने दूसरी भिड़ंत में भी 119 रन ही बनाए और जीत के लिए 120 की चुनौती मुंबई इंडियंस के सामने रखी। और मैच में टॉस हारने के बावजूद सचिन ने कप्तानी का सही रुख दिखाते हुए तीसरे ओवर से ही गेंदबाजों को इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। फिर भज्जी को गेंद पकड़ाई और भज्जी ने कमाल ही कर दिया। सबसे खतरनाक खिलाड़ी संगकारा को आउट कर दिया। साथी ही ड्यूमनी को भी सचिन ने मौका दिया। ड्यूमनी ने भी युवराज को आउट कराके मुंबई की कमर ही तोड़ दी। सचिन ने फील्डिंग में भी कमाल दिखाया और सोहल जो कि खतरनाक बन रहा था उसे रन आउट किया।

जब बल्लेबाजी की बात आई तो सचिन ने गजब का आत्मविश्वास दिखाते हुए ब्रावो से ओपन करवाया और साथ ही जयसूर्या के आउट होने के बाद पिछले मैच में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले राहणे को मैदान में उतारा। फिर रहाणे के आउट होने के बाद खुद मैदान में आए। चाहते तो ड्यूमनी को भेजा जा सकता था पर नहीं। अपनी परर्फोरमेंस को सुधारने का जज्बा लेकर सचिन मैदान में उतरे और 40 से 122 तक टीम को पहुंचाया। साथ ही ब्रावो का उत्साहवर्धन भी करते रहते। जहां ब्रावो ने श्रीशांत को छक्के मारे वहीं घातक बनते हुए पीयूष चावला को सचिन ने भी शानदार छक्का जड़ा।

माना कि अभी आईपीएल का सफर बहुत बाकी है और सचिन को हमेशा से ही बार-बार अपने आप को साबित करते रहना पड़ेगा खासकर टीम के लिए। वैसे पूरी दुनिया में कोई भी सचिन से साबित करने की बात तो कहने नहीं जा रहा। पर ट्वेंटी-20 में जैसी कप्तानी और परफोर्मेंस एक खिलाड़ी से चाहिए वहां पर अभी सचिन पूरा नहीं दे पा रहे हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, May 11, 2009

क्या हो गया है सचिन को? शुरुआत में तो लगा था कि वाह! मास्टर ब्लास्टर इस बार तो ब्लास्ट करने के लिए तैयार हैं। पर क्या होगया सचिन को एकदम से ब्रेक लग गए। आईपीएल सीजन 2 में सचिन ने 9 मैच खेले हैं और 226 रन बनाए हैं जिसमें से एक बार नॉट आउट भी रहे। पहले तीन मैचों में तो सचिन का जलवा देखने लायक था। पहले तीन मैचों में ही सचिन ने दो हॉफ सेंचुरी जमाई। पहले ही मैच में 49 गेंदों पर नाबाद 59 रन बनाए जिसमें 7 चौके शामिल थे। चेन्नई को बड़ी ही आसानी से मात दे दी थी। हैदराबाद के खिलाफ दूसरे मैच में टीम 12 रन से भले ही हार गई पर सचिन ने 3 छक्के और 2 चौकों की मदद से महज 27 गेंदों पर 36 रन बनाए। कोलकाता के खिलाफ तो कमाल ही कर गए मास्टर। ऐसा ब्लास्ट किया कि मजा ही आगया। महज 45 गेंद में 4 छक्के और 6 चौकों की मदद से 45 गेंद पर 68 रन की पारी खेली जो कि अभी तक सचिन की इस सीजन में सर्वश्रेष्ठ है।
फिर तो लगता है जैसे कि सचिन को नजर ही लग गई। किंग्स के खिलाफ 01, कोलकाता के खिलाफ 34, बैंगलोर के खिलाफ 11, हैदराबाद के खिलाफ 02, दिल्ली के खिलाफ महज 15, फिर बैंगलोर के खिलाफ 00। मतलब-
पहले तीन मैचों में- 59+36+68=163
बाकी के 6 मैचों में- 01+34+11+02+15+00=63
तो एकदम से अचानक सचिन को क्या होगया। कहां चली गई फॉर्म। माना की बैगलोर को हराकर टीम ने फिर से अपने आप को सेमीफाइनल की दौड़ में रखा है पर लगता है कि सचिन पर कप्तानी हावी होने लग गई है। जब भी थोड़ी सी टेन्स हालात होते हैं सचिन को नाखुन चबाते जरूर देखा जा सकता है चाहे वो मैदान में हों या फिर बाहर।

आजकल ये मुद्दा गर्माया हुआ है कि क्या हो गया है सचिन को? सब इस बारे में ही बात करते नजर आजाएंगे। पर सचिन को कुछ भी नहीं हुआ है। जहां तक सवाल रहा जयसूर्या का तो वो अभी ८ मैचों में सिर्फ १७१ रन बना पाए हैं। तो सचिन को कुछ नहीं हुआ है बस देखना ये है कि सचिन कब फॉर्म में वापस आ पाते हैं और उसका इंतजार सब को रहेगा।

आपका अपना
नीतीश राज

फिर वहीं आगए-अब करो या मरो

मलेशिया में अजलान शाह कप में भारत ने पाकिस्तान को 2-1 से हराकर फाइनल में जगह बनाई थी। वहीं मलेशिया में ही एशिया कप में तीन बार की चैंपियन पाकिस्तान ने उसका बदला उतारते हुए पिछली एशिया चैंपियन भारत को पहले ही मैच में 3-2 से मात दे कर अचरज में डाल दिया। अब भारत को चीन से किसी भी हाल में जीत दर्ज करनी ही होगी वर्ना सेमीफाइनल में जगह नहीं हाथ से निकल जाएगी। भारत की हॉकी टीम के लिए फिर स्थति करो या मरो की होगी। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान से पहले मैच में बराबर पर चुकी चीन के लिए मैच को ड्रॉ करने से भी काम चल जाएगा और वो ड्रॉ के साथ भी सेमीफाइनल में जगह बना जाएगी।

भारत-पाकिस्तान का मैच हमेशा से ही बड़ा कांटे का होता है। और इस बार मुकाबला था दो दिग्गजों का। दुनिया के दो सर्वश्रेष्ठ पेनल्टी कॉर्नर स्पेशलिस्ट भारत की तरफ से संदीप सिंह और पाकिस्तान की तरफ से सोहेल अब्बास। अजलान शाह में भारत की तरफ से किए 11 गोलों में से 8 गोल संदीप सिंह ने किए थे। पर इस बार हार संदीप सिंह के हाथ लगी और जीत सोहेल अब्बास के।

शुरुआत से ही मैच में दोनों टीमों ने एक दूसरे पर हमले करने शुरु कर दिए। गेंद कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में। मैच देख रहे लोगों को मैच की रफ्तार ने रोमांच से भर दिया। दोनों टीमों से आज भी रफ्तार के मामले में कोई बाजी नहीं मार सकता। पर मैच में शुरू से ही पाकिस्तान का पलड़ा भारी रहा। चौथे(4) मिनट में ही पाकिस्तान की तरफ से गोल दाग दिया गया। अंपायर ने गोल को गलत ठहराते हुए गोल को नकार दिया और फैसला भारत के पक्ष में दिया। 15वें मिनट में ही प्रभजोत सिंह ने भारत को बढ़त दिला दी। पर हसीम खान ने 33वें और रेहान बट्ट ने ३६वें मिनट में पाक को 2-1 की लीड दिला दी। फिर भारत की तरफ से राजपाल सिंह ने 45वें मिनट में गोल दागकर स्कोर बराबर कर लिया। मैच खत्म होने से 16 मिनट पहले पाकिस्तान के ड्रेग फ्लिकर सोहेल अब्बास ने गोल दागकर अपनी टीम को 3-2 से जीत दिला दी। अंत के 10 मिनट में भारत को 3 पेनल्टी कॉर्नर मिले पर संदीप सिंह अपना जादू नहीं बिखेर पाए।

इसी के साथ भारत-पाकिस्तान के बीच जीत का फासला और भी बढ़ गया। अभी तक दोनों देशों के बीच 139 मैच हुए हैं और पाकिस्तान ने 73 और भारत ने 43 मुकाबले जीते हैं वहीं 23 में कोई भी नतीजा नहीं निकला है।

अब मंगलवार को दोपहर 3 बजे भारत को एशिया कप में बने रहने के लिए चीन को मात देनी ही होगी। हमारी दुआ टीम के साथ है।

आपका अपना
नीतीश राज

Sunday, May 3, 2009

पीठ पीछे वार करने वालों की कमी नहीं है, बहुत बुरी चोट करते हैं ये चुगलखोर, ‘एक प्रोड्यूसर की आपबीती’।

अरे भई, तुम ने देखा नहीं था क्या? यार, देख तो लेते कि क्या जा रहा है ऑन एयर? देखो उसका चेहरा तक छिप गया लॉन्ग शॉट में। थोड़ा तो देखना चाहिए था। वैसे तो अपने आप को सच्चा प्रोफेशनल कहते हो फिर भी ये गलती तुम से कैसे होगई। पूरे शॉट में टैक्सट पढ़ा ही नहीं जा रहा था। वो तो छोड़ों क्या ऑडियो चैक नहीं किया गया था? ऑडियो तो यार प्रोग्राम से पहले ही चैक होता है ना यार। चलो कैमरा फ्रेम तो प्रोग्राम शुरु होने से पहले बनते हैं पर ऑडियो, जान रहे हो ना क्या कह रहा हूं कि ऑडियो, तुम ये तो अच्छे तरीके से समझते होगे, पहले चैक होना चाहिए था कि नहीं। लोगों को ऑडियो नहीं सुनाई दे रहा, क्या खाक वो हमारे प्रोग्राम को सुन पाए होंगे। कभी ऑडियो आता था कभी ऑडियो नदारद, क्या कर रहे थे लोकेशन पर सुबह से आकर...हूं...हूं... मस्ती कर रहे होंगे सब...कूड़ा कर दिया ना प्रोग्राम का? बताओ, तुम बताओ, जवाबदेही तो तुम्हारी ही हुई ना कूड़े की।

ये सारे सवाल हैं एक आउटडोर प्रोग्राम के बाद बॉस और सीनियर्स के। सवाल उस से पूछे जा रहे हैं जो कि इस प्रोग्राम का प्रोड्यूसर है। एक शख्स और इतने सवाल, कैसे जवाब दे? चलो एक रास्ता निकाला उस प्रोड्यूसर ने।
सवालों के जवाब के सिलसिले को यूं शुरू करते हैं। तो सबसे पहले सवाल का जवाब उसने कुछ यूं दिया।

जिस लॉन्ग शॉट में गेस्ट का चेहरा छुप गया था उस कैमरे पर सबसे सीनियर कैमरामैन थे। उन्हें उस प्रोड्यूसर ने दो चार बार, बार-बार इस बाबत याद दिलाया था कि हो सके तो थोड़ा फ्रेम खोल दीजिए पर वो उसके सहयोगी के सामने उसका मजाक उड़ा कर चले गए। सहयोगी उसके ऊपर हंसता हुआ उनकी पूंछ बनकर उनके पीछे-पीछे दुम हिलाने लगा। ये वो सहयोगी था जो कि वहां पर भेजा ही इसलिए गया था कि उस प्रोड्यूसर के काम पर नज़र मार ले पर वो तो अवसर हाथ से निकलने के कारण उस प्रोड्यूसर का कूड़ा ही चाहता था। पर ये बात बॉस क्यों समझें?

दूसरी बात, जब ऑफिस में प्रोग्राम से पहले सभी कैमरा फ्रेम चैक कराए जा रहे थे तो उस समय वहां पर खड़े महारथी (एक और सीनियर प्रोड्यूसर) ने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया। उस प्रोड्यूसर का दोष तो है ही पर क्या जो-जो ऑफिस में खड़े होकर एक-एक फ्रेम में नुस्क निकाल रहे थे, क्यो वो सब बता नहीं सकते थे। जो कि बाद में उस प्रोग्राम को गिरवाने की बात भी करने लगे। क्या ऑफिस में कैमरा फ्रेम इसलिए चैक हो रहे थे की सभी कैमरे पर काला भरा हुआ है कि नहीं। वो अंधा हो गया था, कैमरामैन अंधे हो गए थे पर क्या ऑफिस में भी सभी अंधे हो गए थे।
जहां तक प्रोग्राम के नाम की बात है जो नहीं पढ़ा जा रहा था वो लाइट की प्रोब्लम थी जिसे की सभी ने हल करने की कोशिश की थी पर हो नहीं सकी थी। जहां तक ऑडियो की बात है वो सभी पहले से ही चैक किए गए थे एक नहीं दो-दो बार चैक हुए थे उसकी ऑखों के सामने, पर वो गलती गई थी सैकेंड भर के लिए। हां, स्पीकर के ऑडियो में क्या प्रोब्लम हुई थी पता नहीं पर वो अंत तक ठीक नहीं हो सकी थी।

प्रोग्राम शुरू होने से पहले ऑडियो वाला कहता है सब ठीक है, कैमरामैन कहता है सब ठीक है, लाइटमैन कहता है सब ठीक है, एंकर कहता है सब ठीक है। पर फिर भी कुछ गलती हो जाए तो क्या करे प्रोड्यूसर। जिम्मेदारी ले, जवाब देता फिरे।

पीठ पीछे कुछ लोग हमेशा से ही बात का बतंगड़ बना देते हैं। ऑफिस में मौजूद एक शख्स बार-बार सीनियर्स के कान में आग उगलता रहा और वो आग सीनियर्स कब तक अपने कान में रखते तो उन्होंने वो आग उस प्रोड्यूसर के कान में भी उगल दी जो कि दोगुनी थी। उस सीनियर शख्स ने तो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी प्रोग्राम को ऑन एयर ना करवाने में, पर होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है। उस चाटूखोर को काम छोड़कर सभी काम मजे से आते हैं। उसने एक प्रोग्राम की खूब रेड पीटी थी और वहां पर मौजूद सीनियर्स से गालियां भी खूब खाईं थी।

चलो बॉस ने उस प्रोड्यूसर को कुछ नहीं कहा पर हां एक बात जरूर है कि जिन्होंने भी उसे कुछ भी कहा वो उस पद के नहीं थे जिस से उसे कोई भी हानी होती। पर कान के कच्चों से बाजी कभी भी पलट सकती है।
कुछ चाटूखोरों को छोड़कर उस प्रोग्राम को सबने गलत तो नहीं कहा। पर हां, कुछ गलतियां जरूर थी पर गलतियों से ही तो सीखता है आदमी। और, इस गलती ने तो उस प्रोड्यूसर को दोहरी सीख दी।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, May 2, 2009

जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा, समझे वरुण

5 मार्च को पीलीभीत में वरुण गांधी ने एक ऐसा भाषण दिया था जिसने उन्हें एक बार में ही पहचान दिला दी। वर्ना संजय गांधी के नाम की छाप और फिर मेनका गांधी की छाया वरुण के नाम पर हमेशा हावी रही। वरुण गांधी के बारे में पिछले पांच साल में तो कोई किस्सा या कोई भी खबर सुनी नहीं गई थी। वहीं यदि गौर करें तो राहुल गांधी पूरे पांच साल के दौरान कई बार सुर्खियों में आए। उसके पीछे सत्ता में होना भी माना जा सकता है। पर फिर भी बीजेपी ने राहुल के तोड़ के रूप में वरुण को ही चुना। दोनों एक ही परिवार से, दोनों में एक जैसा जोश। पर यहां पर ये जोश थोड़ा अलग, एक में जोश थोड़ा ठहराव लेकर और दूसरे का जोश थोड़ा उबाल लेकर। बीजेपी ने इस उबाल को पहचाना और वरुण को खड़ा करने की कोशिश की राहुल के खिलाफ।

पर उस वक्त बीजेपी और वरुण दोनों धड़ाम से गिर पड़े जब पीलीभीत में ही एक सभा के दौरान कुछ अन्य नेताओं के साथ वरुण का मंच गिर पड़ा। जो जहां था वहीं सहम कर रह गया। कुछ देर तक तो लोगों को ये समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? पर वरुण को समझते देर नहीं लगी। जमीन पर पैर लगते ही जेल से लौटने वाले वरुण नाम के इस नेता को ये एहसास हो गया कि वो मंच से गिर पड़ा हैं। वरुण ने तुरंत अपने को संभाला और फिर चढ़ गया मंच के उस हिस्से पर जो अभी दुर्रुसत था। साथ के लोगों को और फिर जनता को भी संभाल लिया। कुछ भी हो मार्च से मई तक के उतार चढ़ाव, जेल, कोर्ट ने वरुण को नेता बना दिया।

क्या कहेंगे इसको किस्मत। जिस जगह ने उसे सराखों पर बैठाया उसी जगह पर वरुण धड़ाम से गिर पड़े। वरुण ने भी कभी सोचा नहीं था पर ये हुआ और शायद ये एहसास भी हुआ हो कि जो जैसा बोता है वैसा ही काटता भी है, चाहे आज या फिर कल।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”