Wednesday, December 31, 2008

दिल कर रहा था उस कंडेक्टर को धुन दूं पर...

जम्मू-कश्मीर में काउंटिंग थी और सुबह से लाइव करके दिमाग का दही बन चुका था। नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आ रही थी पीछे-पीछे चल रही थी पीडीपी। जम्मू में पीडीपी को कुछ नहीं मिला था और बीजेपी ने सीटों की कमाई की थी। कश्मीर में पीडीपी शायद सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी बनती नजर आ रही थी। ऑफिस में ये सब चल रहा था और मुझे मेरे रिलीवर ने रिलीव कर दिया और मैं सीधे घर की तरफ कूच कर गया। मेरे पास गाड़ी नहीं थी और कोई साथ जाने वाला भी नहीं मिल रहा था जिससे लिफ्ट ले सकता।
बस स्टेंड पर जाकर खड़ा हुआ तो खड़ा ही रह गया और आधा घंटा कब-कब में निकल गया पता ही नहीं चला। मेरे रूट की बस आ ही नहीं रही थी। दिमाग का दही पहले ही बन चुका था अब दही सड़ने भी लगी। बहुत ही चिड़िचिड़ाहट हो रही थी साथ में गुस्सा भी आ रहा था। पौन घंटे के इंतजार के बाद इंतजार खत्म हुआ और मैं बस में चढ़ा।
कनॉट प्लेस में एक अंग्रेज ने बस को हाथ दिया। बस स्टेंड से थोड़ा आगे जाकर बस वाले ने बस को रोक दिया। वो अंग्रेज जिसे की विदेशी सैलानी कहा जाएगा भागता हुआ बस को पकड़ने आया पर तुरंत ही बस वाले ने बस चला दी। वो पीछे भागता रहा, चिल्लाता रहा, भागता रहा, चिल्लाता रहा लेकिन बस नहीं रुकी। एक थ्री व्हीलर वाले ने ये देखा तो बस पकड़वाने में उसकी मदद करने लगा और आखिरकार बाराखंबा पर बस में वो चढ़ गया। आते के साथ ही उसने कंडेक्टर से कहा कि उसे गंजियाबाद (गाजियाबाद) जाना है।
ये सुनते के साथ ही कंडेक्टर ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। ‘गंजियाबाद जाना है ये तेरा गंजियाबाद कहां हैं ओ अंग्रेज?’ .... ..... .... तीन-चार गाली देने के बाद उस कंडेक्टर ने कहा, ‘साले अंग्रेज तेरे से तो सौ रु. किराया लूंगा गाजियाबाद तक के और तू क्या तेरा बाप भी देगा’। लेकिन यहां पर उस सैलानी ने कहां, ‘I Know the Fair…हमको मालूम...सौ नहीं...Just 10 Rs.’ ‘अरे अंग्रेज को किराया पता है किसने बताया बे तेरे को...’। कंडेक्टर का जवाब था।
वो अंग्रेज थोड़ी टूटी-फूटी हिंदी जानता था, याने कि उसे सब समझ आरहा था जो भी वो कंडेक्टर बोल रहा था। इसके बाद भी कुछ देर तक उस अंग्रेज को उसने ऐसे ही तंग किया। लेकिन उस अंग्रेज ने एक शब्द भी नहीं कहा। शायद ये उनको बताया भी गया होगा कि लोकल से कभी भी पंगा नहीं लेना है। पूरी बस में कुछ लोग इन बातों पर हंस रहे थे और कुछ ये तमाशा देख रहे थे। लेकिन पूरी बस में उस बदतमीज कंडेक्टर को कोई नहीं रोक रहा था। जब ये सब कुछ हो रहा था तो वहां पर कुछ लड़कियां भी बैठी हुईं थी। जब भी कंडेक्टर गांजियाबाद बोलता तो लड़कियां खूब जोर-जोर से हंसती। कंडेक्टर उन लड़कियों को देखता और फिर गांजियाबाद कहकर उस अंग्रेज को परेशान करता। कुछ बातें तो ऐसी थी कि बताई भी नहीं जा सकती। कंडेक्टर गालियां दे रहा था और लड़कियां हंस रही थीं। वो कंडेक्टर अपने आप को जेम्स बॉन्ड समझ रहा होगा इसलिए ये हरकत कर रहा होगा। लड़कियां हर दिन के लिए सीटें खाली मिलजाने के लालच में या फिर कुछ पैसे बचाने के मोह के कारण भी हंस रहीं थी या फिर वो सारी बेअकल थीं।
मुझे गुस्सा आ रहा था लेकिन मैं कुछ कर नहीं पा रहा था। पहले की इरिटेशन और बढ़ गई थी। लग रहा था कि उस कंडेक्टर को पकड़कर धुन दूं पर उस कंडेक्टर के साथ में दो-चार लड़के भी थे शामत से घबरा रहा था क्योंकि थका भी हुआ था। अपने को इतना असहाय कभी नहीं पाया था। सुबह ३.३० बजे का उठा हुआ और शाम के ४.०० बजे के करीब की ये बात थी। इन लड़कियों के पास में ही एक ४०-४५ साल की महिला खड़ीं हुईं थी। जैसे कि मुझे भी गुस्सा आ रहा था शायद उनको भी आ रहा था। उन्होंने सिर्फ एक लाइन उस कंडेक्टर को कही, ‘तुम सोच रहे हो कि तुम इसका मजाक उड़ा रहे हो, नहीं, तुम्हारे देश का मजाक उड़ रहा है। अपने या हमारे लिए ना सही पर देश की खातिर तो इस शख्स को परेशान मत करो’। ‘अरे, देश का अपमान क्यों हो रहा होगा, और वो फूहड़ सी हंसी हंसा। लेकिन इस बार लड़कियों ने साथ नहीं दिया। कुछ मुझ से लड़के जो कि इसी बात का इंतजार कर रहे थे तुरंत उस कंडेक्टर को ज्ञान देने लगे। लेकिन दिल से कह रहा हूं कि उस महिला ने मुझे खुद की ग्लानि से बचा लिया और मैं उन्हें दिल से धन्यवाद कहना चाहता हूं।
वैसे आप सब को ये बता दूं कि ये ब्लूलाइन बस की बात थी। जब मैं अपने स्टॉप पर उतरा तो पीछे से मुझे इसी रूट की सरकारी बस आती दिखी। शर्म आती है सरकारी बसों पर जो हमेशा ही इनसे पीछे चलती हैं और जब ब्लूलाइन बसें सवारी उठा लेती हैं तो तकरीबन १०-१५ मिनट के अंतराल के बाद चलती हैं और खाली आती हैं। ब्लूलाइन और आईसीआईसीआई बैंक की एक ही कहानी है दोनों ने ही सरकारी रवैये की सुस्त चाल का फायदा उठाया और पूरे मार्केट को कैप्चर करके अपने हिसाब से चलाया। ब्लूलाइन आज भी क़त्ल करती है और आईसीआईसीआई बैंक के रिकवरी एजेंट याने गुंडे आज भी लोगों को मारते पीटते हैं माना की अब थोड़ा सरकार सख्त होने के कारण ये सब कम हुआ है पर चल तो अब भी रहा है। पर कब तक?

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, December 25, 2008

कब तक डरपोक बने रहेंगे हम? हर दिन के मरने से तो बेहतर है कि एक बार ही मर जाएं।

जब-जब भारत पर आतंकी हमला हुआ है तब-तब भारत की सरकार ने बड़ा ही कड़ा रुख इख्तियार किया है। हर बार पाकिस्तान की तरफ ही निशाना रहा। भारत की तरफ से सबूत भी पाक सरकार को दिए गए। हर बार भारत के कड़े रुख के बाद पाक का रवैया क्या रहा? क्या पाकिस्तान ने कभी भी इस बात को स्वीकार किया कि वो आतंकवादी हमला पाकिस्तान की जमीन से किया गया। नहीं, भारत के हर कड़े रुख का जवाब पाकिस्तान ने और भी तीखे तेवरों में दिया। कोई भी कुछ कहता रहा, पर पाकिस्तान ने किसी की भी नहीं सुनी। भारत ने पूरे विश्व का समर्थन हासिल किया लेकिन पाकिस्तान का रवैया उतना ही सख्त रहा, उसने कभी नहीं माना कि आतंकियों को पाक जमीन मुहैया है।
भारत की संसद पर हमला हुआ, विमान अपहरण कांड और दिल्ली, बैंगलोर, राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, भारत के हर प्रदेश पर संकट के काले बादल अपना क़हर बरपाते रहे। भारत को सबूत के तौर पर कुछ आतंकवादी मिलते रहे लेकिन कभी भी पाकिस्तनी सरकार ने ये कबूल नहीं किया कि उनकी जमीन ही है दहशतगर्दों की पनाहगाह। पाक अधिकृत कश्मीर में तो आतंकवादियों के गढ़ के इतने पुख्ता सबूत मिले जिसे की दरकिनार नहीं किया जा सकता था पर पाकिस्तानी सरकार ने इसे कभी नहीं माना और आज भी वहां कई आतंकवादी संगठन अपना गढ़ बनाए बैठे हैं और उनकी मदद कर रहा है आईएसआई। जिसके पुख्ता सबूत बकौल भारत सरकार भारत के पास हैं और कुछ तो पाक और यूएन को भी दिए जा चुके हैं।
करगिल, क्या किसी को याद नहीं है, अभी हम नहीं भूले हैं, पाकिस्तान की सरकार पर करगिल करवाने का इल्जाम लगा। जब तक कि पाक सरकार पर काबिज नवाज शरीफ कुछ कर पाते तब तक उन्हें ही देश से ऱुखसत करवा दिया गया। आज भी नवाज शरीफ इस बात से इनकार नहीं करते कि करगिल पाकिस्तान पर काबिज समानान्तर सरकार की ही देन थी जिसे कि उस समय के जनरल परवेज मुशर्रफ चला रहे थे। वो दौर था जब कि भारत के राजनीतिक और आपसी संबंध पाकिस्तान के साथ काफी सौहार्दपूर्ण हो गए थे। लेकिन ठीक इसी दौर के बाद पाकिस्तान को एक ऐसा जनरल कम नेता मिला जो कि चाणक्य की तरह सोचता था। उसने कई मामलों में भारत के साथ ऐसी कूटनीति खेली कि भारत के चाणक्य कुछ कर नहीं सके। हमारे देश में आकर ही पाक सरकार का वो जनरल अपनी अधिकतर बातें मनवा के चला गया। आगरा वर्ता के असफल होने का ठीकरा भी भारतीय सरकार के ऊपर ही फोड़ दिया गया। जनरल परवेज मुशर्रफ ने यूएन तक में जाकर हमारे कई तथ्यों को दरकिनार कर दिया और साथ ही पीठ में छुरा भोंकने से भी वो बाज नहीं आया।
अब बात आती है कि घुसपैठ तो पहले भी भारत की लगी पाक सीमा से भारत की जमीन पर होती ही रही हैं। लेकिन इस बार मुंबई में फिदाइनों ने मासूम जनता पर क़हर बरपा दिया। इस हमले ने भारत की आर्थिक राजधानी के साथ-साथ पूरे देश को दहशत से भर दिया। २०० से ज्यादा लोग मारे गए उसमें २० से ज्यादा विदेशी भी थे। पूरे विश्व में इस हमले की निंदा हुई। लेकिन पहली बार किसी फिदाइन हमलावर को जिंदा पकड़ा जा सका। उस आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने ये कबूला कि वो पाकिस्तानी है। आतंकवादी के कबूलनामें के बाद इस समय की सरकार को बाहर से सहयोग देने वाले नवाज शरीफ ने भी ये मान लिया कि कसाब पाकिस्तानी है। पाक मीडिया की जुबानी पूरी दुनिया ने ये जाना कि खुद कसाब के पिता और उस गांव फरीदकोट के लोगों ने ये माना कि कसाब पाकिस्तानी है पर पाकिस्तान को अब भी सबूत की दरकार रही।
भारत एक तरफ डर-डर कर ये बात कहता रहा कि भारत के सारे विकल्प खुले हुए हैं। भारत के विदेश मंत्री और पीएम ने कहा कि हम तो आतंकवाद को ख़त्म करने की बात कर रहे हैं। पाकिस्तान अपनी जमीन से जितनी जल्दी हो आतंकवादियों को पनाह देना बंद करे। दूसरी तरफ पीएम ने साफ शब्दों में कहा कि भारत का मुद्दा युद्ध नहीं, आतंकवाद है। पर दूसरी तरफ पाकिस्तान डंके की चोट पर कार्रवाई करने से मना कर रहा है। पाकिस्तान के आर्मी चीफ परवेज कयानी ने तो यहां तक साफ कह दिया कि
‘पाकिस्तान की आर्मी पूरी तरह तैयार है और यदि भारत कोई भी कदम उठाता है तो भारत के हर कदम का जवाब एक मिनट के अंदर दे दिया जाएगा।’
जहां भारत सूझबूझ का परिचय दे रहा है वहीं पाकिस्तान अकड़ और अड़ियल रवैया अपना रहा है। पाकिस्तान ने अपने रैंजर्स राजस्थान और गुजरात सीमा से हटा कर वहां पर फौज की तैनाती कर रहा है। जबकि पाकिस्तान के इस कदम को भारत रुटीन कार्रवाई मान कर अभी अपनी सेना की तैनाती पर विचार कर रहा है। जबकि भारत की तरफ से एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं। सेना को अलर्ट पर रख दिया गया है लेकिन सीमा पर अभी भी बीएसएफ ही है।
मुंबई हमारे देश का हिस्सा है जब मुंबई पर हमला हुआ तो बैकफुट पर भारत क्यों है। कब तक हम ये सोचते रहेंगे कि अमेरिका हस्ताक्षेप करेगा तभी कोई फैसला होगा। क्या जब सबूत हमारे पास हैं तो क्या हम कार्रवाई नहीं कर सकते। पाकिस्तान के ऊपर जब अमेरिका को शक हुआ था तो उनके घर में घुसकर अमेरिकी सेना ने कार्रवाई की थी। मुशर्रफ को पूरा सहयोग देना पड़ा था, पाक के जितने कठमुल्ला थे सब मियां मुशर्रफ के खिलाफ हो गए थे। लेकिन अमेरिका ही आकर जज की भूमिका क्यों निभाए। हम फैसले बाद में लेते हैं अब जब कि पाकिस्तान पूरे एक्शन में आ गया है तो सरकार भी अपनी सीमा पर सुरक्षा तैनात करना शुरू कर देगी। ये ही समय होता है जब कि भारत की सरजमीं पर आतंकवादी सबसे ज्यादा आते हैं उन बर्फीली चोटियों से जो कि भारत का मस्तक है।
मेरा भारत महान, हम आजाद हैं, मेरे देश की तरफ जो भी निगाह उठा कर देखेगा हम उनकी आंखें नोच लेंगे। असल मायने में हम बस कहते रहते हैं, डरपोक हैं हम, डरते हैं हम, हर दिन हम जीते हैं पर डरते हुए, कब कोई गोली हमें मौत के आगोश में डाल दे। मौत से भरी जिंदगी से हमें शिकवा नहीं पर एक दिन में ये फैसला नहीं कर सकते कि इस जिल्लत से भरी जिंदगी नहीं चाहिए। अरे आज हम खुश नहीं हैं कल हमारे बच्चे खुश नहीं रहेंगे परसों उनके बच्चे। क्या करना है इस बात का फैसला भी हम अपने अनुसार नहीं लेते। क्यों आखिर क्यों? हम दूसरों की तरफ नजरें गड़ाए बैठे रहते हैं कि या तो वो आकर फैसला कर दे या फिर जब तक दूसरा कोई हरकत नहीं करेगा तब तक हम कोई हल्ला नहीं बोलेंगे। और जब हल्ला बोलेंगे और पैर पर गिरकर माफी मांगने लगेगा तो फिर हमसे बड़ा दानवीर इस धरती पर कोई नहीं। १९७१ में यदि बांग्लादेश बना तो हमारे कारण लेकिन पाकिस्तानियों के घर में घुसकर उन्हें हमने औकात दिखाई थी। पर जंग जीतने के बाद भी भारत ने क्या किया। वो जो भारत और पाकिस्तान के बीच की जड़ थी उस को खत्म नहीं किया। हम जंग जीत चुके थे तब भी हमने पीओके वापस नहीं लिया। क्यों, क्यों नहीं लिया आज वहां पर आतंकवादियों ने हमारी ही जमीन पर आतंक के कैंप लगा रखे हैं। अरे, मुंबई मेरा अपना है, मेरे देश का हिस्सा है, करगिल हमारा है, उसपर किसी ने आंखें उठाई थी, तुमने आंखें तो नोच ली पर ये क्या साथ में उन आंखों को ठीक करने के लिए दवा दारू सब कुछ खुद मुहैया करा दिया। मैंने देखी थी लाशें, जब जवानों को ताबूत में से निकाला जाता था और पूरा गांव दहाड़ें मार मारकर रोता था उस सफेद पाउडर से लिपे बिना हरकत के जिस्म को।
भारत के साथ-साथ अमेरिका तक ने भी ये कह दिया कि पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादी वारदातें बंद करे। सख्त बात कोई भी देश नहीं कर रहा है। साथ ही विश्व ये चाहता है कि ये पड़ोसी देशों का आपसी मामला है और हो सके तो दोनों देश ही मिलकर इस मसले को सुलझाएं। सभी ये जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु सक्षम देश हैं और यदि लड़ाई हुई तो नुकसान विश्व का होगा। इसी का फायदा उठाकर पाकिस्तान ये गेम खेलता है, जब भी पाक पर आतंकियों को पनाह देने की बात आती है तब ही वो सीमा पर ऐसा माहौल बना देता है कि जिससे लगे कि तनावपूर्ण स्थति बन चुकी है। ये भारत को समझना होगा कि पाकिस्तान हर बार इसी गेम प्लान के अंतर्गत काम करता है। भारत अब तक बहुत संयम का परिचय दे चुका है लेकिन हमारे संयमपन को हमारी कायरता ना समझा जाए, हम बार-बार ये बात कह चुके हैं लेकिन हमने कभी भी ये दिखाया नहीं है। देश का हर बाशिंदा इस खौफ के साए से अपने आप को निकालना चाहता है। हमारा साथ हमारी सरकार के साथ है, हम एक जुबान में कहते हैं कि अब कहने का नहीं करने का वक्त आ गया है।

आपका अपना
नीतीश राज

Sunday, December 21, 2008

मांग करने वालों की तादाद बढ़ी तो अब सबकी जुबान चुप क्यों?

बिना तथ्यों के बात करना गलत होता है, यदि तथ्य हैं तो बेहतर हो कि उजागर भी हों। अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं वो पुराने तथ्यों से कुछ अलग हैं। जो पुराने तथ्य सामने आए थे वो ये थे कि करकरे, सालस्कर, काम्टे और साथ में बैठे तीनों सिपाही जब शहीद हुए तो उनके पास टाइम ही नहीं था कि वो आतंकवादियों की गोली का जवाब दे पाते। साथ ही तीनों अधिकारियों को पीछे की तरफ से गोली मारी गई थी। सबकुछ इतना अचानक हो गया कि किसी को भी पता नहीं चल सका था कि क्या हुआ। 27 की रात 1 बजे के करीब जब ये ख़बर आई थी कि हमारे तीन आला अधिकारियों को गोली लग गई है जिसमें से करकरे को ताज के पास और सालस्कर, काम्टे को कामा के पास गोली लगी है। पर थोड़ी देर बाद ये दुखद समाचार आया कि करकरे नहीं रहे, पर ये क्या सालस्कर भी नहीं रहे, और तीसरा फ्लैश था कि काम्टे भी शहीद। मुंबई के साथ-साथ पूरा देश आतंकित हो गया। हेमंत करकरे का नाम हर दिन सुनने को आ रहा था कारण था साध्वी का। तो फिर एकदम से खबर आना कि आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला कर दिया है और इन आतंकियों ने हमारे तीन आला अधिकारियों को मार दिया है तो ख़ौफ़ की बात तो थी ही। क्या आतंकवादी इतने ताकतवर होकर आए हैं कि पूरे मुंबई को कब्जे में कर लेंगे। फिर एक घंटे बाद ही ये साफ हो गया कि तीनों अधिकारी कामा के पास शहीद हुए। लेकिन जिस क्वालिस में करकरे थे उस क्वालिस में सिर्फ एक सिपाही घायल अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहा था। अभी तक जो भी सच सामने आया है वो है खुद जाधव की जुबानी। जो भी हमने जाना है वो हमें जाधव ने बताया है। उस में ही ये सच सामने आया कि उस क्वालिस में किसी ने भी बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहन रखी थी। दूसरी बात जो सामने आई थी वो ये कि इतना मौका किसी के पास भी नहीं था कि कोई संभल कर आतंकवादियों का जवाब दे पाता।
पर अब, जो बात सामने आ रही है वो है कसाब की जुबानी। अजमल आमिर कसाब वो आतंकवादी, जो मुंबई में कहर बरपाने वाले देहश्तगर्द गुट का सदस्य था। कसाब को गिरगांव चौपाटी से जिंदा धर दबोचा गया था और इसका साथी इस्माइल मारा गया था। इन्हीं दोनों आतंकवादियों ने अधिकारियों को मारा और फिर इन्हीं की गाड़ी लेकर गिरगांव चौपाटी भाग निकले। अब कसाब का इकबाले जुर्म सामने आया है। कसाब का बयान जो सामने आया है वो बिल्कुल अलग है। आतंकवादी कसाब के मुताबिक जब वो कामा में क़हर बरपाने के बाद जैसे ही कामा से बाहर निकले तो पुलिस से उनका सामना हुआ। एके 47 का मुंह उन्होंने पुलिस पर खोल दिया। तभी वहां पर दूर से पुलिस की गाड़ियां भी आती दिखाई दी। पहली गाड़ी कामा के पीछे वाले गेट से आगे वाले गेट की तरफ बढ़ गई। थोड़े फासले से आती दूसरी गाड़ी पीछे वाले गेट के पास धीरे हो गई। धीरे होते के साथ क्वालिस में आगे की सीट पर बैठे पुलिसवाले ने उन्हें पहचान लिया था जिसके हाथ में एक 47 थी। गाड़ी रुकते के साथ ही पुलिस ने फायर खोल दिया। गोली कसाब के हाथ को चीरते हुए निकल गई। तभी इस्माइल ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और सभी के सभी पुलिसवालों को मार दिया। तीन शव को गाड़ी से बाहर फेंक कर वो गाड़ी से मुंबई में ख़ौफ़ का क़हर, बरपाते हुए चले गए और गिरगांव चौपाटी पर पकड़े गए।
लेकिन यहीं पर बात जो सामने आती है वो है कि दो अलग-अलग बयान सामने आ रहे हैं। ये बात भी सामने आ रही है कि ये दोनों छिपे हुए थे और जिस जगह पर छिपे थे वो गाड़ी के बांयी ओर थी और जो गोलियां अधिकारियों को लगी हैं वो दाहिने तरफ लगी हैं। जब आतंकवादी बांयी तरफ थे तो दायीं तरफ से और पीछे से गोली कैसे चली। मान लिया चलगई पता नहीं कैसे चल गई, कहां से चल गई। लेकिन हेमंत करकरे की बुलेट प्रूफ जैकेट कहां है? जब करकरे की मौत की खबर आई तो नरीमन हाउस में इस ख़बर का तालियों से स्वागत किया गया।
दूसरी बात कि हेमंत करकरे के सीने में तीन गोली लगी जब गोली पीछे से चलाई गईं तो गोली सीने में कैसे लगी? सीएसटी पर जब वो मोर्चा लेने के लिए निकले थे तो उन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट और साथ ही हेल्मेट भी लगा रखा था तो फिर उन्होंने ये उतार क्यों दिया? क्या हेमंत करकरे जैसे सीनियर ऑफिसर इस आतंकवादी घटना को कम आंक रहे थे। या कि फिर ओवर कॉनफिडेंस ने इन आतंकवादियों को इतना मौका दे दिया कि हमने देश का सच्चा सिपाही खो दिया। वो सिपाही जो कि देश को आने वाले दिनों में एक ऐसे सच से रूबरू कराने वाला था जो कि अभी तक भारत के इतिहास में नहीं हुआ था। जिसके कारण वो पूरे देश का दुश्मन बन गया था।
सालस्कर को भी गोली दाहिने तरफ ही लगी है। तो क्या इन दोनों थ्यौरियों में कुछ लोच है या फिर असलियत अभी आना बाकी है। मैं कसाब की थ्यौरी को तबज्जो नहीं देता लेकिन जाधव की भी बात कहीं ना कहीं अधुरी लगती है। जांच की मांग जो की जा रही है वो इन्हीं तथ्यों के कारण की जा रही है। पूरा देश ये मानता है कि तीनों ऑफिसर हमारे नगीना थे, अभी मुंबई को इनकी जरूरत थी शायद देश को भी, पर कुछ हैं जो कि मेरी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वो इस शहीद को खोने के हमारे ग़म को भी हमारा नहीं होने देना चाहते। अंतुले के बाद कांग्रेस दो धड़ों में बंट चुकी है, साथ ही हर दिन कोई ना कोई इस जांच को कराने की वकालत कर रहा है तो फिर कुछ चुनिंदा लोग जांच क्यों नहीं होने देना चाहते। क्या कुछ पर्दे के पीछे है जो कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते की सामने आए?

आपका अपना
नीतीश राज

सबूत पे सबूत मांगते हो, कार्रवाई करोगे या फिर...।

सबूत, सबूत, सबूत, सबूत मांगता है पाकिस्तान। कितने सबूत चाहिए पाकिस्तान को और किस बात के सबूत चाहिए। अब क्या आकाशवाणी होगी कि पाकिस्तान ही है जिम्मेदार। वो ही है मुंबई के २०० लोगों का हत्यारा और करोड़ों लोगों के दिल को दुखाने और दहशत भरने का जिम्मेदार। क़ातिल ने खुद मान लिया कि हां मैंने ही क़त्ल किया है। करोड़ों लोगों के सामने उसने नरसंहार किया। ऐसा नहीं कि तुम(पाक) नहीं देख रहे थे उस हत्याकांड को। पाक को भी पता चल रहा था कि हां ये उनके ही आदमी है लेकिन कबूल कर तो वो सकता ही नहीं।
मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबूत दिए साथ ही २० मोस्ट वांटेड लोगों की लिस्ट भी थमा दी। पाक ने तुरंत इस बात से मना कर दिया कि उनके देश में मोस्ट वांटेड नहीं हैं। साथ ही यदि होंगे भी तो हम भारत को नहीं सौपेंगे, जो भी करना होगा हम पाकिस्तान की अदालत में ही करेंगे। मतलब उनका भी साफ था कि पाकिस्तान फिर से अंग्रेजों के शासनकाल में लौट जाएगा जहां पर हर कानून उनका अपना होता था, जज से लेकर पैरोकार तक। भारत ने वो ही सबूत यूएन के पास भी भेजे थे। यूएन ने तुरंत कार्रवाई करते हुए तुरंत पाक को आगाह किया और पाक के एक आतंकवादी संगठन पर कार्रवाई होगई। फिर पाक किस बात के सबूत मांग रहा है। जब एक तरफ तो हमारे दिए हुए सबूत पर कार्रवाई कर रहा है तो फिर किस बात के सबूत।
दूसरी तरफ जब कसाब ने ये खुद कबूल किया है कि वो पाकिस्तानी है और साथ ही पाक के फरीदकोट का रहने वाला है तो फिर भी पाकिस्तान को भरोसा नहीं हो रहा है। चलो भई कसाब को हमने और हमारी पुलिस ने खूब पीटा और फिर उससे जबर्दस्ती ये लिखवाया और बुलवाया जा रहा है तो चलो कसाब की बात भी छोड़ देते हैं।
पाकिस्तान के फरीदकोट का रहने वाला एक शख्स जो कि अपना नाम आमिर बताता है उसने बोला है कि टीवी पर दिखलाए जाने वाला आतंकवादी जिसने की मुंबई में नरसंहार किया वो उसका ही बेटा है। उस पिता ने तो यहां तक कहा कि वो कई दिन तक ये सोचते रहे कि कैसे कबूल करें कि अजमल आमिर कसाब उनकी ही औलाद है।
फरीदकोट के इस शख्स को रातों रात कहां गायब कर दिया जाता है कि पता ही नहीं चलता। दूसरी तरफ बीबीसी के संवाददाता जब वहां जाकर तहकीकात करता है तो उसे कसाब के घर सादी ड्रेस में पुलिस का पहरा दिखता है। पुलिस का पहरा क्यों? कोई जवाब देने के लिए। फिर उस रिपोर्टर को वहां से चले जाने के लिए कहा जाता है।
पाकिस्तान का नेशनल टीवी डॉन, एक स्टिंग ऑपरेशन करता है वो भी कसाब के गांव का। कैमरे पर तो नहीं पर हिडन कैमरे पर सभी लोगों ने कसाब की असलियत खोल दी।
अब पाकिस्तान की दो ऐसी शख्सियत ये बोल रही हैं कि अजमल आमिर कसाब पाकिस्तानी है। नवाज शरीफ ने एक पाक टीवी को दिए इंटरव्यू में ये साफ साफ कह दिया कि कसाब पाकिस्तानी है और जरदारी इस सच को सामने आने देना नहीं चाहते। साथ ही पाकिस्तान में इस सच को कबूल करने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन सामने लाने वाला नहीं। नवाज शरीफ ने ये भी कहा कि खुद नवाज ने इस बात का पता लगाया है कि फरीदकोट का ही रहने वाला है कसाब और उसका परिवार भी वहीं रहता है और साथ ही उसके परिवार पर हर समय पेहरा है। सीधे उन्होंने ये बात कही है कि यदि कसाब पाकिस्तानी नहीं है तो फरीदकोट में इतनी सुरक्षा क्यों है।
अब पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की अध्यक्ष असमा जहांगीर ने ये माना है कि पाकिस्तान का ही है कसाब। साथ ही उन्होंने ये भी माना कि बेहतर हो कि पाकिस्तान सीधे-सीधे इस बात को मान ले और फिर क्या अब भी सबूत की जरूरत है पाकिस्तान को, ये असमा जहांगीर ने कहा।
पाकिस्तान और पाक मीडिया इस बात को कहीं और से जोड़ कर देख रहे हैं। पाक के मैरियट होटल को उड़ाने के अंदाजे से आरडीएक्स से भरा ट्रक होटल से टक्करा दिया जाता है वहां पर इस बात को भारत की तरफ से कार्रवाई माना जा रहा है। पाक मीडिया और विश्लेषक भी जरदारी राग अलापने में लगे हुए हैं। भारत को इस बार कड़ा कदम उठाना होगा।
कहीं से भी छोटी से भूल भारत-पाक को युद्ध की ओर लेजा सकती है। दोनों देशों को बचाना तो इस युद्ध से ही है क्योंकि अलगाववादी ये ही तो चाहते हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, December 18, 2008

करकरे की शहादत पर सवाल नहीं पर मौत की जांच तो होनी ही चाहिए, क्या गलत कहा है अंतुले ने।

कई बार लगता है कि आग शांत होने की राह तकती रहती है लेकिन कुछ उस आग में घी डालकर उसे जलाए रखना चाहते हैं। चाहे किसी वजह से भी। कुछ घाव ऐसे होते हैं जो कि समय के साथ भर जाते हैं लेकिन अपने निशान छोड़ जाते हैं, पर कुछ घाव ऐसे भी होते हैं जिन्हें बार-बार छेड़ा जाता है, कचोटा जाता है, लेकिन बार-बार क्यों छेड़ा जाता है उन घावों को? क्योंकि वो घाव नासूर की शक्ल इखित्यार कर ले।
कुछ लोगों को शायद शहीदों की शहादत पर सवालिया निशान लगाने की आदत से हो गई है। पहले इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत पर उठाए गए थे सवाल, तब भी बहुत बखेड़ा हुआ था। कुछ लोगों ने तो उस दिल्ली के बाटला एनकाउंटर तक को फर्जी करार दे दिया था। कुछ ने तो यहां तक कह दिया था कि खुद पुलिस की गोली का शिकार हुए थे इंस्पेक्टर शर्मा। फिर अब आवाज़ उठने लगी है कि शहीद करकरे क्या वाकई में शहीद हुए हैं? क्या इस बार मुंबई पर हुए हमले को भी कुछ लोग फर्जी करार देंगे, जहां पर 200 लोग मारे गए।
शायद कुछ लोग शहीद हेमंत करकरे के नाम के साथ जुड़े इस शहीद तमगे को पचा नहीं पा रहे हैं। तभी तो कोई ना कोई इस शहीद की शहादत पर सवालिया निशान जरूर लगा देता है।
अब की बार बारी है केंद्रीय मंत्री एआर अंतुले की। बिना तोल के बोलकर फंस गए अंतुले। अंतुले ने हेमंत करकरे पर कहा कि ‘उन्हें आतंकवादियों ने मारा या फिर किसी और ने’। जब मामला उठा तो अंतुले ने लोकसभा में जरा तोल कर जवाब दिया 'मैंने कहा था कि बजाए इसके कि करकरे, काम्टे, सालस्कर समेत एटीएस दल ताज होटल या ओबेराय भेजा जाता, उन्हें कामा अस्पताल भेजा गया। इन जवां मर्दों को एक ही गाड़ी में सवार होकर कामा अस्पताल जाने का निर्देश किसने दिया इस मामले की जांच कराने के बारे में मैंने कहा था।'
मैं नहीं जानता कि कितने लोग गलत समय पर दिए अंतुले के इस बयान से इत्तेफाक रखते होंगे।
अंतुले के इस बयान से पर मैं तो पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूं।

जांच जरूर होनी चाहिए। ये कोई माखौल नहीं था कि तीन आला अफसर हम लोगों ने यूं ही गवां दिए। मैं पूछता हूं आज हम बार-बार कह रहे हैं कि हेमंत करकरे, सालस्कर और काम्टे शहीद हुए, पर क्या उन तीनों में से किसी को भी इतना मौका मिला था कि वो अपनी आत्मरक्षा में गोली चला पाएं। क्या सच मायने में वो शहीद हुए हैं। शहीद का दर्जा तो हम उनको देते हैं जो कि दुश्मन से लड़ते हुए, टक्कर लेते हुए दुश्मन की गोली से मारा जाए ना कि सरकार, प्रशासन और डिपार्टमेंट की बेवकूफी से।
जम्मू-कश्मीर में हर दो-चार दिन में एक जवान शहीद हो जाता है। शायद ही किसी को ये पता चलता हो कि कोई शहीद हो गया। ना कोई इनाम ना कोई पोस्टर ना कोई तमगा। फिर भी हर रोज उसी मुस्तैदी के साथ सभी जवान डटे रहते हैं।

२६ नवंबर की वो काली रात को जब आतंकवादियों ने सीएसटी पर क़हर बरपाया था और कुछ पुलिसकर्मी उनसे लोहा ले रहे थे और उन बेचारों की खुटल, जंग खाई बंदूक ठस हो गई थी तो उन सिपाहियों को वहां से भागना पड़ा था। कुछ लोगों ने इन सिपाहियों को भगोड़ा कहा था लेकिन मैं इन को हीरो कहता हूं। जब आतंकवादी इन पर गोलियां बरसा रहे थे तो आसपास की दीवारों से धुआं उठ रहा था तब भी काफी देर तक ये डटे रहे। सलाम करता हूं उस सिपाहियों को। तब कहीं ये खबर हेमंत करकरे, सालस्कर और अशाक काम्टे के पास पहुंची थी। पहले भी मुंबई की लाइफ लाइन माने जाने वाली लोकल ट्रेन पर हमले हो चुके हैं तो सभी के सभी इस बात को ध्यान में रखते हुए सीएसटी की तरफ भागे।
अंतिम बार वीडियो में हम सबने हेमंत करकरे को सीएसटी पर ही देखा था। तब ध्यान होगा सबको कि उस समय उन्होंने आसमानी शर्ट पर हेल्मेट लगा रखा था। साथ ही एक सिपाही ने उनके हाथ में बंदूक दी थी। तब सबसे पहले मेरे दिमाग में ख्याल आया था कि कहीं शर्मा की तरह ये भी बुलेटप्रूफ जैकेट ना पहन के जाएं। पर थोड़ी देर बाद कुछ सिपाहियों के साथ करकरे को फ्रंट पर जाते देखा था। सीएसटी के अंदर कुछ सिपाहियों के साथ जाते देखा था। याने कि एक बात तो सही है कि वो मुकाबला करने के लिए ही उस जगह पर गए थे। पर जाते समय उनके शरीर पर जो था वो था दंगा निरोधक दस्ता का बुलेट प्रूफ या कहें कि लाठी प्रूफ जैकेट जिसे की बाद में खुद पुलिस के आला अफसरों ने माना है।
तभी पता चलता है कि आतंकवादी सीएसटी छोड़ चुके हैं और कामा अस्पताल की तरफ गए हैं और सदानंद दाते कामा पर घायल हो गए हैं और मैट्रो के पास से भी गोलियों की आवाज़ें सुनी गई हैं। हेमंत करकरे अपने ड्राइवर के साथ कामा की तरफ कूच करने के लिए निकलने लगे। पर तभी सालस्कर और काम्टे भी वहां पहुंच गए। फिर तीनों के तीनों एक साथ कामा की तरफ चल दिए। पर इस बार गाड़ी की कमान खुद सालस्कर ने संभाल रखी थी। आगे की सीट पर सालस्कर के साथ काम्टे बैठे थे और क्वालिस की बीच की सीट पर हेमंत करकरे बैठे हुए थे और पीछे की सीट पर ड्राइवर के साथ चार सिपाही जिसमें जाधव भी थे। पर निकलते वक्त सभी ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने हुए थी शायद सब ने सीएसटी पर ही छोड़ दी, क्यों। बीच-बीच में पुलिस की ये क्वालिस रुकते हुए सिपाहियों और लोगों से पूछते हुए आगे बढ़ रही थी कामा अस्पताल के पास सदानंद को की मदद के लिए ये तीनों वहां आए थे। गाड़ी रुकती है तभी पेड़ के पीछे से दो आतंकवादी कसाब और इस्माइल निकले और क्वालिस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे। कुछ पल में ही मुंबई ने अपने तीनों अफसर खो दिए। साथ ही तीन सिपाही भी एक सिपाही जाधव घायल अवस्था में क्वालिस में ही पड़े मिले। जब तक कि पुलिस ने वहां आकर सभी को अस्पताल नहीं पहुंचाया, अस्पताल में जाधव का इलाज चलने लगा लेकिन उनके साहब शहीद हो चुके थे। पर सवाल यहीं खड़े होते हैं कि इन आतंकियों का मकसद क्या था। क्या वो बिना किसी मकसद के भारत में आतंक फैलाने के लिए आए थे। क्या वो विदेशियों पर हमला करने आए थे। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में हमारी नाक नीचे करने के लिए आए थे। क्या करने आए थे वो यहां पर। क्या और कोई भी कारण हमें समझ में नहीं आता। ताज होटल, ओबेराय होटल समझ में आता है कि वहां पर विदेशी थे और साथ ही वो मुंबई की पहचान है, सीएसटी, नरीमन भी समझ में आते हैं। पर क्या कारण था कि कामा, मैट्रो और पुलिस मुख्यालय की पास की जगह को क्यों निशाना बनाया गया। जहां पर विदेशी ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे। कोई बताए फिर उस पर ही निशाना क्यों?
२५ नवंबर को पुणे के एक पुलिस थाने में एक फोन कॉल आता है जो कि मराठी में बोलता है कि हेमंत करकरे को दो-तीन दिन में बम ब्लास्ट में जान से मार देंगे। अगले दिन वो मार भी दिए जाते हैं। क्या इस की जांच नहीं होनी चाहिए कहीं कोई हमारे देश में ही गद्दार तो नहीं। लेकिन एक बात तो सारी दुनिया मानेगी कि वो आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए ही गए थे पर ये उनकी किस्मत ही थी कि मुंबई के तीन आला पुलिस अधिकारी बिना किसी को आघात पहुंचाए उन आतंकवादियों के घात लग गए। पर उन तीनों से शहीद का तमगा आने वाले कल में भी कोई नहीं छीन पाएगा वो फ्रंट पर ही शहीद हुए हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, December 3, 2008

इजरायली अपने लोगों का शव बिना पोस्टमार्टम के ले गए, लेकिन हमले का तो हमें पोस्टमार्टम करना होगा।

मुंबई धमाकों को क्या कोई याद रखना चाहेगा? शायद नहीं, ये वो डरावनी हकीकत है जिसे दोबारा कोई नहीं देखना चाहेगा। लेकिन यदि हम चाहते हैं कि ये दोबारा हमारे देश के साथ नहीं हो तो इस घाव को हमें हमेशा याद रखना होगा। जहां तक मेरा मानना है कि ये पहली बार है कि हम हारे हैं और आतंकवादी जीते हैं। वो जो करने आए थे वो उससे ज्यादा कर गए। अब तक वो छुप कर हमला करते थे। श्रीनगर, घाटी के तर्ज पर इस बार फिदाइन हमला किया गया। हर बार वो छुपकर वार करते थे इस बार अपना दस्ता भेजकर, बिना चेहरा छुपाए, चेहरे पर कोइ नकाब नहीं, चेहरा दिखाकर हमला किया। २००२ अक्षरधाम सबको याद ही होगा, ऐसे वाक्ये बहुत ही कम हैं। हम इस हमले को गर भूल गए तो याद रखिए कि फिर आतंकवाद पलट कर आएगा और वार होगा हमारे नासूर बन चुके घाव पर।

कैसे घुसे आतंकवादी ?

सब जानते हैं कि कहीं तो चूक हुई है पर ये चूक हुई किस-किस मोड़ पर है। तो लगता है कि शुरू से लेकर आखिर तक हर मोड़ पर सिर्फ हमारी ही गलती है। थ्यौरी तो कई सामने आ रही हैं पर जिस पर विश्वास करना पड़ेगा वो है जो कि पुलिस ने अपने आप को बचाने कि लिए दी है। पकिस्तान के कराची में पहले १० आतंकवादी इकट्ठा हुए, फिर समुद्री रास्ते के जरिए भारतीय सीमा पर एक जहाज को अगवा कर के मुंबई पहुंचे और फिर टैक्सियों में भरकर दो-दो के गुट में ५ जगह अपने-अपने मुकाम की तरफ चल दिए।
पर पेंच तो यही आता है कि पहले तो कराची से मुंबई आने के लिए पानी के रास्ते ४ दिन का समय लगता है। क्या इन चार दिन के अंदर खुफिया सूत्रों को एक बार भी ये पता नहीं चला कि समंदर के रास्ते पर कुछ हलचल है। एक जहाज को कब्जे में किया जाता है जिस का नाम कुबेर बताया गया। पुलिस ने जहाज पर मौजूद अमर सिंह टंडेल का रिकॉर्ड पहले से अच्छा नहीं माना है। ये जानकारी भी है कि गैरकानूनी काम के चलते अमर सिंह टंडेल को १ साल की कैद पाक में काटनी पड़ी थी। क्या ऐसे लोगों पर हमेशा नजर नहीं रखनी चाहिए थी। हो सकता है कि अमर सिंह टंडेल भी उनसे मिला हुआ हो और भारत तक लाने का जिम्मा उसका ही हो पर जैसे ही वो भारत की सीमा में पहुंचे उन्होंने टंडेल को मार दिया। समुद्री रास्ते से आगाह करती यूपी पुलिस की वो रिपोर्ट कहां है? कोई पूछे इंटेलिजेंस, रॉ, राज्य सरकार, सीबीआई से। ये तो सच है कि वो सब आए समुद्र के रास्ते से ही थे। जिसे हमारे गृहराज्यमंत्री जायसवाल और महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री समुद्री रास्ते से हुई चूक को अपनी गलती मान चुके हैं। लेकिन जब पता था कि समुद्री रास्ते पर सुरक्षा कमजोर है तो फिर क्या वहां पर ध्यान नहीं देना चाहिए था। अब ध्यान देत क्या होत जब आतंकी कर गए २०० ढेर।

कितने थे आतंकवादी ?

गुमराह करने की कोशिश है कि वो सिर्फ १० आतंकवादी ही थे। ये मैं नहीं मानता कि वो १० थे। माना कि वो समुद्र के रास्ते से आए थे और मान लें कि आए भी १० ही हों पर आतंकवादी १० नहीं थे। कुछ पहले से ही मुंबई में उनका रास्ता देख रहे थे। वहीं दूसरी तरफ, जिस जहाज को उन्होंने अगवा किया था, कुबेर को, उसमें से १५ जैकेट मिले हैं। पुलिस ने ये पहले कहा था कि शायद कुछ लोग बच कर निकल गए हों। पर अब पुलिस ने ये कह दिया है कि सिर्फ १० जैकेट ही मिले हैं क्योंकि वो भी लोगों को दहशत में नहीं रखना चाहती। जब कि पब्लिक ये जानती है कि मुंबई की धरती पर आतंकी हैं। लेकिन सवाल ये ही उठता है कि जब जैकेट १५ मिले तो लोग घट कर १० क्यों रह गए? आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाती है और इस बात का खंडन किया जाता है कि कुबेर में सिर्फ १५ जैकेट मिले हैं। हम भी जानते हैं कि यदि ये बात फैल गई कि मुंबई या देश में ५ आतंकी घूम रहे हैं तो अफरातफरी मच जाएगी। विलासराव क्या मनमोहन की गद्दी भी ख़तरे में पड़ जाएगी।
मैं ये कतई नहीं मानता कि मुंबई में ६० घंटे तक आतंक का राज चलाने वाले सिर्फ और सिर्फ १० आतंकवादी थे। मैं अपने कमांडो फोर्स को इतना कमजोर या हमारी पुलिस की तरह निकम्मा नहीं मानता। कमांडो कह रहे थे कि इन आतंकवादियों को पूरे होटल का लेयआउट पता था। किस फ्लोर पर कितने कमरे हैं, हर कमरे के पास क्या है, वो यहां से गोली चलाते जब तक हम घूम कर देखते तो दूसरे पल तीसरे फ्लोर से फायरिंग होने लगती, हम अपनी निगाह वहां गड़ाते तो वो छठे फ्लोर से फायरिंग करने लगते, फिर ५वें से, फिर पहले तक से फायरिंग करने लगते और फिर ग्रेनेड हमला। उन आतंकियों को होटल के चप्पे-चप्पे के बारे में पता था और ये मैं शर्त के साथ कह सकता हूं कि ताज को सिर्फ और सिर्फ ४ आतंकवादियों ने अपने कब्जे में नहीं किया। वो भी दो आतंकी बाद में आए उस से पहले तक वो दो आतंकी मुंबई में कोहराम मचा रहे थे। २७ की रात जब ओबरॉय पर कार्रवाई की जा रही थी तब ये खबर आने लगी कि ताज में सिर्फ एक आतंकी बाकी रह गया है और वो भी घायल हालत में है। सबने सोचा था कि आज ताज को छुड़ा लिया जाएगा लेकिन अगले दिन दोपहर आते-आते तो इतनी गोलीबारी होने लगी कि लग गया कि वहां पर और भी आतंकी हैं। तो और आतंकी जब कि सेना ने पूरे ताज को घेर रखा था तब वो दो कहां से आए? जैसे कि पुलिस ने कहा कि दो आतंकी बाद में आकर पहले वाले आतंकियों से मिले।
इस बीच एक माता-पिता को फोन आता है। फोन के दूसरी तरफ होता है मौत के मुंह में झूल रहा खुद उनका बेटा। जो कि ताज होटल में इंटरनसिप कर रहा था और उसने अपनी आखरी इच्छा पूरी कर ली, मरने से पहले अपने घर फोन कर अपने घर वालों से बात कर ली। लेकिन जो जानकारी दी वो भयंकर थी, माता-पिता दोनों एक पल के लिए तो सन्न रह गए। अंतिम सांसे लेते हुए बेटा बोल रहा था कि
आतंकवादियों का हमला ताज पर हो चुका है और उसे गोली लग गई है, लेकिन गोली आतंकवादियों ने नहीं मारी, मारी तो उस शख्स ने है जो कि ताज में, हमारे साथ पिछले ५-६ महीने से इंटरनसिप (काम) कर रहा था।
तो क्या कोई इस बात का जवाब देगा कि फिर वो पांचवां कहां गया? चार आतंकियों की लाश तो मिल गई तो क्या ये शख्स भाग गया या मर गया? वैसे पुलिस ने ये बात शुरू में कही थी कि नरीमन हाउस में रहने वाले दो लड़के ताज में काम करते थे फिर इस बात को किस बात के कारण से दबा दिया गया। जानता हूं क्योंकि ताज है भी बहुत बड़ा और बहुत बड़े लोग हैं।
ये बात पुलिस ने बिल्कुल सही कही है कि वो सीधे कराची से आए थे और फिर क़हर बरपाने मुंबई में फैल गए। तो, नरीमन हाउस पर ठीक उसी समय पर पांच-छह लड़कों को देखे जाने की बात थी तो वो कौन थे? क्या है किसी के पास इस का जवाब? नहीं, तो अगली पोस्ट।

जारी है...

आपका अपना
नीतीश कुमार

Tuesday, December 2, 2008

ताज..,नरीमन..,ओबरॉय..और मेरे विचार

कई दिन से सोच रहा था कि मुंबई आतंकवादी हमले पर मेरा लिखना बनता है। कई मेल भी आए अपने ब्लॉगर भाइयों के, कि इस मुद्दे पर अब तक तुम्हारे ब्लॉग की तरफ से कुछ आया ही नहीं। तो सबको बता दूं कि कुछ और प्रोजेक्ट पर लगा हुआ था और फिर जब से ये हमला हुआ है तो तब से अधिकतर वक्त ऑफिस में ही निकल जाता।
२६ को प्रगति मैदान गए थे, शाम तक घूमते-घूमते हालत ऐसी हो गई कि उस दिन फिर कुछ लिख नहीं सका। शाम को सोचा था कि प्रगति मैदान पर लचर सुरक्षा व्यवस्था पर जरूर लिखूंगा लेकिन थकान ही इतनी ज्यादा थी कि कुछ लिख नहीं पाया। साथ ही यदि आपका बॉस कान का कच्चा हो तो और भी दिक्कत होजाती है और रात में उनसे एक बात को लेकर बहस हो गई(मेरे बॉस ये जानते हैं कि मैं लिखता हूं और जब वो इसे पढ़ेंगे तब तो)। मैंने सोचा था कि २७ को इस पर कुछ लिखूंगा लेकिन मुझे क्या पता था कि २६ की रात ऐसी आपदा देश पर आएगी कि देश के साथ-साथ पूरा विश्व उस घटना से हतप्रभ सा रह जाएगा।
२६ की रात को जब तक मैंने देखा तब तक अपुष्ट खबरें आ रही थीं कि शायद ये आतंकवादी हो सकते हैं। पर लगा कि मुंबई में सुरक्षा व्यवस्था तो इतनी कमजोर नहीं रह गई है जब से कि एटीएस का निर्माण हुआ है लेकिन आतंकवादी मुंबई में हैं ये बात कुछ हजम नहीं हो रही थी। सब चैनलों पर ये चल रहा था कि दो गुट में फायरिंग हुई है। लगा कि अंडरवर्ल्ड के दो गुटों में जमकर फायरिंग हो रही है पर ये आतंकवादी नहीं हो सकते दिल नहीं मान रहा था। थोड़ी देर में पता चला कि नहीं ये तो कुछ और ही है। ये महज कुछ क्षण के लिए फायरिंग नहीं हो रही है मुंबई पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया है।
सुबह मुझे देर तक सोने की आदत है, घर में सब उठ चुके थे, मैंने उठ कर सबसे पहले अपना चैनल देखा तो आंख फटी की फटी रह गई। ४ साल के बेटे ने पूछा, पापा क्या हुआ? पत्नी भी मेरे बगल में आकर बैठ गईं। हम दोनों को ऐसे बैठे देख, बेटू भी टीवी देखने लगे। फिर सवाल शुरू हुए बेटे के। लेकिन उन सवालों के जवाब मेरे पास क्या किसी के पास भी नहीं हो सकते। पापा ये स्मार्ट अंकल कौन हैं और इनके हैंड में क्या है? क्यों ये ढिसुम ढिसुम कर रहे हैं? अंकल लोग क्यों भाग रहे हैं? फिर खबरें देखते-देखते ही खाना वगैरा चलता रहा और दूसरी तरफ हमारे बेटू बार-बार ये बोलते रहे कि पापा अपना वाला चैनल चला लूं(कार्टून नेटवर्क)। लेकिन मैं मना करता रहा। बेटे ने भी ज्यादा जिद नहीं की। थोड़े समय के बाद मैं ऑफिस के लिए चला गया वहां पता चला कि २६ की रात से ही लाइव बुलेटिन चल रहे हैं। फिर तो काम करने में जुट गए। २८ की सुबह ६ बजे तक मैं ऑफिस में लाइव बुलेटिन करता रहा। रात बारह बजे लग रहा था कि ओबरॉय को छोड़कर दोनों जगहें आतंकियों के कब्जे से छुड़ा ली जाएंगी। पूरी रात नरीमन, ओबरॉय और ताज में फायरिंग होती रही, ग्रेनेड फेंकने का सिलसिला जारी रहा। ऑफिस से घर सोने के लिए फिर उठते ही वापस ऑफिस की राह। और यूं ही सुबह ६ बजे तक लाइव चलता रहता। तीन दिन कुछ यूं ही सिलसिला चलता रहा। पता नहीं चल पा रहा था कि कितने और शहीद होंगे। दुख हुआ कि करकरे, सालास्कर, शहीद होगए, पर क्या वो सच में शहीद हुए। बार-बार खबरें आती रही कि यहां से इतने हताहत हुए और वहां से संख्या बढ़ गई है। थोड़ी देरी की शांति के बाद फिर फायरिंग या ग्रेनेड हमला। इस बीच एक फैसला जरूर अच्छा हुआ कि मीडिया पर लाइव तस्वीरें दिखाने की मनाई हो गई। इस के पीछे कई लोगों ने कई बात बनाई। पर ये फैसला काफी अच्छा था। मैंने अपने सीनियर के सामने ये बात रखी थी कि कमांडो कहां पर हैं ये हमें नहीं दिखाना चाहिए। पर शायद उन्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कुछ भी जवाब नहीं दिया, साथ ही कहा कि फिर हम दिखाएंगे क्या? और साथ ही कि दोनों होटलों के केबल कनेक्शन काट दिए गए हैं, तो उन्हें पता कैसे चलेगा। मेरा जवाब था कि फोन और सेटेलाइट फोन के जरिए। कहीं पर भी उनके आका देख रहे होंगे जो उनको इस बात की जानकारी दे रहे होंगे। लेकिन थोड़ी देर के बाद ही इस बात को मान लिया गया था। बहुत खुशी हुई जब कमांडो कार्रवाई के दौरान तीनों जगह को आजाद करा लिया गया। पर शायद बहुत देर में हमने अपना पिंड इन आतंकियों से छुड़ाया। गलती किसकी? इस बारे में सिर्फ तथ्यों के साथ अगली पोस्ट में लौटूंगा।
लेकिन ये ५-६ दिन ऐसे थे कि ना चाहते हुए भी लगा कि हमने इस बार बहुत खोया है। कई सवाल मन में उठ रहे हैं। उन सब सवालों के जवाब और उन पर उठते सवालों के साथ अगली पोस्ट में सब लिखूंगा। अभी के लिए इतना ही।


आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”