Saturday, June 4, 2011

ये 'ब्लैकमेल' है तो ये ‘ब्लैकमेल’ अच्छा है।


बात कुछ ऐसी है कि बच्चे को पढ़ाई करने के लिए कहना और यदि बच्चा ना सुने तो माता-पिता का अनशन पर बैठना।

भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर कुछ दिन पहले ही एक आंदोलन, ‘अन्ना का अनशन’ शुरु हुआ था। पहले दिन से ही वो देश की आवाज़ बन गया। जिसने सरकार की नींव हिला कर रख दी। तभी से बाबा रामदेव को भी लगने लगा था कि वो अन्ना के साथ मिलकर इस आंदोलन को नई दिशा दे सकते हैं। और बाबा, अन्ना के साथ उस राह पर चलने लगे जिस राह पर नंगे पांव अन्ना और उनके सहयोगी चल रहे थे।

कुछ दिन में ही सरकार जान गई कि सड़क किनारे से उठी ये मुहिम सरकार के सारे पेंच ढ़ीले कर सकती है। यहां तक कि गद्दी सिरे से भी उखड़ सकती है। सरकार बचाने की होड़ में सरकार ने अन्ना की बातें मान ली और लोकपाल बिल के मसौदे पर एक कमेटी बनाई गई जो कि 30 जून तक विधेयक का मसौदा तैयार कर देगी। जो अभी तो असंभव सा लगता है।

वहीं दूसरी तरफ.....
उस दिन नंगे पांव कुछ दूर तक चलने में ही ऐसा लगा था कि हां, मंजिल दूर नहीं, मुझे भी मिल सकती है मंजिल। नंगे पांव खेतों में, कांटों पर भी चलने की आदत, पर उस दिन पेड़ों की छांव में भी चलने के बावजूद पड़े पांव पर छाले नई मंजिल की तलाश करना चाहते थे। पांव की वो टीस जो तलवों से ज्यादा दिल में उठ रही थी। बरसों से उठ रही दिल की आवाज से मिलकर उस टीस ने रामकृष्ण यादव उर्फ बाबा रामदेव को मजबूर किया कि वो 4 जून से सरकार को सरकार का काम याद दिलाए।


बाबा रामदेव के कहने पर लोग सर्द रातों में उठकर सुबह योग करने के लिए कहीं भी पहुंच जाते। दो-चार नहीं हजारों की तादाद में लोग आते। धीर-धीरे लोकप्रियता ने लोगों को अपने घर में सुबह उठकर योग करने पर मजबूर किया। आलसी भारतियों के अंदर ये जज्बा उस योगी ने भरा। हर जगह, किसी भी वक्त लोगों को योग करते देखा जा सकता था। योग को पेटेंट कराने से लेकर देश के सभी मुद्दों पर बाबा खुलकर सामने आए। बाबा की प्रसिद्धी राजनेता, अभिनेता या किसी भी खिलाड़ी से कम नहीं। उस प्रसिद्धी ने मजबूर कर दिया कि वो देश के लिए कुछ करें। पहले मुद्दे और अब ये अनशन उस राह में दूसरा कदम है।

वहीं तीसरी बात.....
बाबा योग सिखाइए और खुश रहिए। इस राजनीति में मत उतरिए। कुछ हासिल नहीं होगा और दामन पर कीचड़ जरूर लग जाएगा। कुछ लोगों की राय लगभग ऐसी ही थी।
इस बात का साफ मतलब ये था कि बाबा, क्यों पचड़े में पड़ते हो हमें खाने दो और यदि बोलो तो हम आपको भी खिला देते हैं। दिग्विजय सिंह को ये समझना चाहिए कि अब वो दिन गए जब कि नेता करोड़ों के घपले करते थे और कानून उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता था। 13-14 वीवीवीआईपी नेता गण तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं। नेता लोग खाते रहें और स्विस बैंकों में अपना पैसा डालते रहें। देश को चूना लगाते रहें और आम नागरिक कुछ कहता है तो उसे ब्लैकमेलिंग का नाम लगा दो। नहीं...नहीं...नहीं अब ये नहीं होगा, नहीं चुप रहेगा भारतीय नागरिक।

एनसीपी नेता तारिक अनवर कहते हैं कि पहले अन्ना और अब बाबा सरकार को ब्लैकमेल कर रहे हैं। यदि इसे ब्लैकमेल कहते हैं तारिक अनवर साहब तो हम इस ब्लैकमेलिंग को सही ठहराते हैं। मुझे और साथ ही किसी भी भारतीय को जो कि देश का भला सोचता होगा उसे इस तरह की ब्लैकमेलिंग से कोई भी आपत्ति नहीं। बाबा करो ब्लैकमेल, जितना कर सकते हो करो। यदि भ्रष्टाचार के मुंह पर तमाचा ऐसे लग सकता है तो ये ‘ब्लैकमेल’ अच्छा है।

आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. एकदम सहमत हूँ, जागृति आनी चाहिये, लेकिन अंततः देश को उससे आगे भी बहुत कुछ चाहिये।

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  2. भावनाओं को भुनाने का अच्छा प्रयास है!

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  3. यदि भ्रष्टाचार के मुंह पर तमाचा ऐसे लग सकता है तो ये ‘ब्लैकमेल’ अच्छा है।

    -बिल्कुल सहमत नितीश....

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  4. पूरे साल भर बाद लौटे हो..मगर जोर शोर के साथ..अब नियमित हुआ जाये. शुभकामना.

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  5. well said Nitish, this will be the blackmailing of its first kind where people are making effort to bring their own money back rather than others money (because black money in the swiss banks do not belong to the corrupt politicians or the capitalists but to the ordinary man of India who works really hard and gets nothing).

    Rakesh S Rawat

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”