Saturday, July 12, 2008

आरुषि केस- सुलझ गया केस !

आरुषि हत्याकांड में ऐसा क्या था कि देश का हर शख्स, 55 दिन तक, बड़ा हो या छोटा पहले दिन से ही क़ातिल का नाम जानना चाहता था। विदेश में भी ये केस लोगों की उत्सुक्ता का विषय बना रहा। प्रणब जी जब विदेश दौरे पर थे तब उनसे भी ये पूछा गया था कि कौन हो सकता है क़ातिल? चार्ल्स शोभराज ने भी इस केस के बारे में जानना चाहा? सभी को जानने की उत्सुक्ता थी, चाहे वो राजनीतिज्ञ हो या फिर क्रिमिनल।
आखिर कारण क्या था? क्या आपने कभी सोचा है? शायद सोचा भी हो और कई तथ्य या विचार सामने आए हों। एक डेंटिस्ट की 14 साल की लड़की, जो DPS School में पढ़ती थी। उसकी हत्या हो जाने से क्या हो गया? हर दिन दिल्ली और एनसीआर में क़त्ल होते हैं पर कोई जानना नहीं चाहता कि क्या हुआ आस-पड़ोस वालों को छोड़कर। लेकिन इस क़त्ल में कुछ तो ऐसा था जो ध्यान खींचता था। यदि पहले दिन से जो थ्यौरी बनी थी नोएडा पुलिस के सामने कि हेमराज ने क़त्ल किया और नेपाल भाग गया? तो शायद ये केस वहीं दब जाता। लेकिन जब हेमराज का शव बरामद हुआ। तब लगा कि कुछ पंगा है, पेंच है। तब नोएडा पुलिस भी जागी लेकिन तब तक कई तथ्यों से खिलवाड़ हो चुकी थी।

डॉ राजेश तलवार याने कि आरुषि के पिता को पुलिस ने डबल मर्डर के जुल्म में पकड़ा तो सारी दुनिया जानना चाहती थी कि आखिर राज़ क्या है। कौई कैसे अपनी एक मात्र बच्ची का क़त्ल कर सकता है। ये ही थी मुख्य वजह। यदि पहले दिन ही ये पता चल जाता कि कृष्णा, राजकुमार और विजय मंडल ने मिलकर क़त्ल की इस वारदात को अंजाम दिया है तो ये केस वहीं मर जाता, खत्म होजाता। फिर शायद ही कभी हमारे आप के सामने असलियत आपाती।
पुलिस ने अलग-अलग थ्यौरी दी,जिससे तलवार परिवार की भयंकर बदनामी हुई। सबने परिवार का जीना मुहाल कर दिया। मां, पिता, दोस्त सब की बदनामी की पुलिस ने। इल्जाम ऐसे संगीन थे कि अच्छे-अच्छे क्राइम के तोपची बोल नहीं पा रहे थे कि क्या सही है और क्या गलत। इस बीच जो मर गई उसकी इज्जत को भी नोएडा पुलिस ने तार-तार कर दिया। घर के सदस्य समाज में मुंह तक दिखाने से कतराते रहे। यहां तारीफ करना चाहुंगा नूपुर तलवार की जिन्होंने किसी भी कदम पर हौसला नहीं खोया। वहीं सीबीआई ने भी ये साबित कर दिया कि क़त्ल की रात दरवाजा खुला होने के बाद भी आवाज दंपत्ति तक नहीं गई होगी।
पुलिस ने 55 दिन के बाद, वो दाग जो कि इस परिवार के ऊपर लगा था ऑनर किलिंग का धो दिया। तलवार को 50 दिन बाद जमानत तो मिल गई लेकिन शिकंजा अभी भी बरकरार। एक नामी डॉक्टर के साथ पुलिस वालों ने ऐसा क्यों किया? क्या ये 50 दिन कोईं भी डॉ तलवार को लौटा पाएगा। एक तो बच्ची को खो दिया और दूसरी तरफ जेल के ज़ख्म भी। कौन है डॉ तलवार का गुनाहगार? लाचार बाप अब अपनी बेटी के लिए आंसू अपने घर में ही बहा सकेंगे, किसी काल कोठरी में नही।
इस साल की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री 2008 को सीबीआई ने सुलझाने का दावा किया है। सीबीआई ने अपनी डेढ़ घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस में क़ातिलों के नाम बता दिए। तीनों नौकर है। याने नौकरों को आप डांट भी नहीं सकते, यदि उससे कोई गलती हो तब भी। साथ ही नौकरों को इतनी आजादी नहीं देनी चाहिए कि वो आपके घर में सेंध मार दे और आप को पता भी नहीं चले। मैंने अपने पुराने आर्टिकल (आरुषि केस-पेंच ही पेंच) में लिखा था कि कहीं कृष्णा सीबीआई को गुमराह तो नहीं कर रहा है और बात सच थी, हुआ भी यही। सीबीआई की मानें तो कृष्णा ने दो गलतियां की:--
पहली, 3 पल की वो कॉल। यदि नहीं उठाता तो शायद ही चुंगल में आ पाता।
दूसरी, दूसरे नार्को में उसने राजकुमार का नाम ले दिया और बताया कि राजकुमार की आरुषि पर गंदी नजर थी। राजकुमार दो नार्को में टूट गया, नहीं तो कृष्णा तो पूरा ही महेश भट्ट का चेला था जो पूरी स्किप्ट लिख कर बैठा हुआ था।
लेकिन पेंच अभी भी कई हैं। नार्को को कोर्ट चार्जशीट तक तो इस्तेमाल कर सकती है लेकिन यदि फोरेंसिक रिपोर्ट में कुछ पुख्ता नहीं निकला तो सीबीआई की भी किरकिरी हो सकती है। वहीं, कृष्णा के घरवाले कह रहे हैं कि क़त्ल की रात कृष्णा घर पर था। इस बहुचर्चित केस के बाद लोगों की आंखें तो खुलेंगी कि नौकरों पर कितना भरोसा करना चाहिए। वर्ना ये घर के फूल तक का क़त्ल करने से नहीं हिचकते।

आपका अपना
नीतीश राज

1 comment:

  1. बहुचर्चित केस के बाद लोगों की आंखें तो खुलेंगी कि नौकरों पर कितना भरोसा करना चाहिए.

    sach kah rahe hai .

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