लेफ्ट इसलिए रो रहा है कि जी-8 का सम्मेलन अभी क्यों हुआ। हाथ तो खींच लिया लेकिन उस का फायदा लेफ्ट को मिलता दिखाई नहीं दे रहा। पीएम देश में होते तब समर्थन वापस लिया होता तो मसौदे की कॉपी वितरित नहीं हो पाती। आईएईए में जाने से सरकार को लेफ्ट कुछ समय के लिए तो और रोक ही पाती।
जैसे ही लेफ्ट ने हाथ खींचा, कांग्रेस को दर्दनिवारक गोली मिल गई और समाजवादी पार्टी ने समर्थन की चिट्ठी राष्ट्रपति को सौंप दी। लेकिन पेंच तो यहीं हो गया। 272 के जादुई आंकड़े को छूने के लिए यूपीए के पास हैं 224, तो 39 समाजवादी पार्टी के पास हैं। इनको मिलाकर होते हैं 263 तो बाकी बचते हैं 9, सिर्फ 9। लेकिन समाजवादी पार्टी के 8 सांसद अभी वोट दे पाएंगे या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता। इनमें से कुछ बागी हैं तो कुछ जेल में। तो कुल मिलाकर 17 वोट की और जरूरत होगी यूपीए को। लेकिन 272 के जादुई आंकड़े को पाने के लिए ये 17 वोट आएंगे कहां से?
तो अब शुरू होता है खरीद-फरोख्त का सिलसिला। बाते मनवाने और नंबर गिनती को बढ़ाने का काम, वादे देने और वादे मनवाने का सिलसिला। अब सबसे ज्यादा जिस पर निगाह होगी वो हैं अन्य दल। अन्य दल की संख्या है 35। याने की इनके तो वारे-न्यारे होगए। जो भी आंकड़ा आएगा वो इनमें से ही आएगा। इनमें से कुछ ने कहा है कि वो फ्लोर पर जाकर ही पक्ष-विपक्ष की बात पर गौर करेंगे। लेकिन कुछ पार्टी तो सीधे ही मोलभाव पर उतर आई हैं। एक पार्टी ने तो साफ कह दिया कि यदि हमारी मांग पूरी होगी तब ही हम पक्ष में वोट करेंगे नहीं तो हम लेफ्ट के साथ हैं। इसका मतलब ये हो गया कि जिसके पीछे लेफ्ट ने सरकार से हाथ खींचा याने कि परमाणु करार उससे इन पार्टियों को कुछ भी मतलब नहीं। वो तो सिर्फ ये जानते हैं कि इस समय बहती गंगा में हाथ धोना ही बेहतर।
वैसे, इस नंबर गेम में जोड़-तोड़ करके सरकार को अपने नंबर साबित कर पाने में शायद ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। लेकिन इस करार से एक ये बात तो साबित हो गई कि राजनीतिक पार्टियां चाहें जो कुछ भी कहें या करें लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो सही और अपनी राह पर चलना ही पसंद करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति कलाम जी ने साफ कर दिया कि ये करार देशहित में हैं और कुछ ऐसा ही कहना है कुछ और वैज्ञानिकों का भी। करार के पक्ष में एक कदम सरकार तो आगे बढ़ गई है लेकिन दूसरा कदम है बहुमत साबित करना। क्या मनमोहन सरकार कर पाएगी बहुमत साबित?
आपका अपना,
नीतीश राज
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