बाबू, यहां पर अलग-अलग तरह के रंग मिलते हैं। इनके रंग भी बिल्कुल अलग हैं, सबसे निराले रंग हैं, अपने में सबसे अनोखे। गिरगिट की तरह रंग बदलना तो कोई इन से सीखे। गिरगिट भी सामने आ जाए तो इनकी रंग बदलने की फितरत से गश खाकर गिर जाए, कहे, मैं चाह कर भी इन जैसा नहीं बन सकता, नहीं बदल सकता इतनी तेजी से रंग। लेकिन कुछ भी हो इनके रंग बदलने की अदा देखकर ही मजा आ जाता है। आज जो सगा है वो कल सौतेला और परसों कोई और, फिर एक दिन दुश्मन या फिर किसी दिन प्रेस ब्रीफिंग में कह देंगे कि, 'याद नहीं, हम नहीं जानते'। याद दिलाने की कोशिश भी करेंगे तो आपके सवालों का जवाब, सवाल बन कर ही सामने आएगा आपके।
बीजेपी ने अपनी नियमित प्रेस ब्रीफिंग में सुषमा स्वराज से, अपना पल्ला झाड़ लिया। कह दिया ये सुषमा जी कि निजी राय है। ये राय बीजेपी की नहीं है। जो भी सुषमा जी ने कहा है वो राय राजग याने एनडीए की भी नहीं है। बीजेपी पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर जब ये कह रहे थे तो पत्रकारों ने सवाल दागा कि आज आप किस अधिकार से बोल रहे हैं क्योंकि यहीं पर बैठकर सुषमा जी ने जो बयान एक दिन पहले दिया था। उस पर आप आकर सफाई भी दे रहे हैं और पूरी तरह से पल्ला भी झाड़ रहे हैं। तब जावड़ेकर जी को बोलना पड़ा कि वो यहां पर पार्टी के प्रवक्ता की हैस्यित से ही आए हैं। इन नेताओं के भी क्या कहने, कभी भी किसी को भी गच्चा दे जाते हैं।
सवाल ये कि क्या पार्टी से बड़ी हो गई हैं सुषमा स्वराज, जो कि बिना पार्टी या फिर घटग दलों से मशवरा करके अपनी राय दे रहीं हैं? नियमित प्रेस ब्रीफिंग क्यों की जाती है? क्योंकि इस समय जब कि देश आतंकवाद से जूझ रहा है और बीजेपी के ही दो शासित प्रदेशों में ये विपदा आई हैं तो सभी जानना चाहते हैं कि आप की पार्टी और राज्य सरकार क्या सोच रखती है और क्या फैसले लिए जा रहे हैं। माना कि वरिष्ठ नेता हैं सुषमा जी बीजेपी की। उनको जो भी बोलना था तो सोच समझकर बोलना चाहिए था। सुषमा जी पर भी दबाव बनाया गया तो सामने आकर उन्होंने कह दिया कि “ये पूरी तरह से मेरी निजी राय है साथ ही मैंने ये नहीं कहा था, केंद्र सरकार ने ये सब करवाया है, मैंने तो ये कहा था कि यूपीए में कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं। जो कि वोट-नोट प्रकरण से ध्यान हटवाना चाहते हों”। कितनी अच्छी हैं आप सुषमा जी तुरंत पलट गई। जब ही आपको अपना रोल नेता मानकर आप ही की पार्टी के ८ नेता वोट देते हुए पलट गए। जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का यही हाल है और इस बयानबाजी में पड़े हुए हैं तो फिर तो पार्टी का अल्लाह ही मालिक है। (मेरे पिछले आर्टिकल 'सुषमा स्वाराज चुप रहो' में पूरा बयान है सुषमा स्वाराज का) ।
कई बार लगता है कि कुछ वरिष्ठ या यूं कहूं कि कुछ बूढ़े नेता सटिया गए हैं तो गलत नही होगा। माना ये जाता है कि उम्र के साथ अकल और तजुर्बा भी बढ़ता है। लेकिन इन नेताओं के साथ तो उल्टा ही है। बुढ़ापे में जोश जोर मार रहा है।
श्री प्रकाश जायसवाल जी को क्या सूझा कि वो पागलों की तरह गोधरा प्रकरण को उछालने लगे। राज्य सरकार पर तोहमत लगानी है तो सुरक्षा के मामलों पर लगाइये। गुजरात में दो जगह सूरत और अहमदाबाद में ४८-५० बम मिल चुके हैं। और आतंकवादियों का साहस तो देखिए जब मोदी सुरक्षा का जायजा लेने सूरत की गलियों में घूम रहे थे तब वो बम को प्लांट कर रहे थे। ऐसे हौसले हो गए हैं दहशतगर्दों के। राज्य सरकार को लताड़ पिलानी है तो इस मुद्दे पर पिलाइये। लेकिन ये क्या आप लगे सांप्रदायिकता को हवा देने। यदि सांप्रदायिक दंगे भड़क जाते हैं तो कांग्रेस इस दंगों पर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने लग जाएगी। अगर दंगे फैले तो दिग्विजय सिंह और जायसवाल भी उतने ही जिम्मेदार होंगे जितने की खुद मोदी हैं।
अधिकतर नेता अब राज ठाकरे की तरज पर काम करने लगे हैं या यूं कहें की बनते जा रहे हैं। राज ठाकरे की तरह सिर्फ ऐसी बातें बोलना जिससे अपने पर कैमरे की लाइट पड़े। और वो अगली सुबह हर पेपर और न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन बनें। इन कैमरे वालों को भी कुछ मसाला चाहिए होता है तभी वो लोग कुछ सेल्समैनी कर पाएंगे, कुछ बेच पाएंगे (कभी ये सेल्समैन भी निशाने पर आएंगे)। यदि अब नहीं सुधरे तो एक दिन ये ही होगा कि दोनों पछताएंगे।
आपका अपना
नीतीश राज
बीजेपी ने अपनी नियमित प्रेस ब्रीफिंग में सुषमा स्वराज से, अपना पल्ला झाड़ लिया। कह दिया ये सुषमा जी कि निजी राय है। ये राय बीजेपी की नहीं है। जो भी सुषमा जी ने कहा है वो राय राजग याने एनडीए की भी नहीं है। बीजेपी पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर जब ये कह रहे थे तो पत्रकारों ने सवाल दागा कि आज आप किस अधिकार से बोल रहे हैं क्योंकि यहीं पर बैठकर सुषमा जी ने जो बयान एक दिन पहले दिया था। उस पर आप आकर सफाई भी दे रहे हैं और पूरी तरह से पल्ला भी झाड़ रहे हैं। तब जावड़ेकर जी को बोलना पड़ा कि वो यहां पर पार्टी के प्रवक्ता की हैस्यित से ही आए हैं। इन नेताओं के भी क्या कहने, कभी भी किसी को भी गच्चा दे जाते हैं।
सवाल ये कि क्या पार्टी से बड़ी हो गई हैं सुषमा स्वराज, जो कि बिना पार्टी या फिर घटग दलों से मशवरा करके अपनी राय दे रहीं हैं? नियमित प्रेस ब्रीफिंग क्यों की जाती है? क्योंकि इस समय जब कि देश आतंकवाद से जूझ रहा है और बीजेपी के ही दो शासित प्रदेशों में ये विपदा आई हैं तो सभी जानना चाहते हैं कि आप की पार्टी और राज्य सरकार क्या सोच रखती है और क्या फैसले लिए जा रहे हैं। माना कि वरिष्ठ नेता हैं सुषमा जी बीजेपी की। उनको जो भी बोलना था तो सोच समझकर बोलना चाहिए था। सुषमा जी पर भी दबाव बनाया गया तो सामने आकर उन्होंने कह दिया कि “ये पूरी तरह से मेरी निजी राय है साथ ही मैंने ये नहीं कहा था, केंद्र सरकार ने ये सब करवाया है, मैंने तो ये कहा था कि यूपीए में कुछ लोग ऐसा कर सकते हैं। जो कि वोट-नोट प्रकरण से ध्यान हटवाना चाहते हों”। कितनी अच्छी हैं आप सुषमा जी तुरंत पलट गई। जब ही आपको अपना रोल नेता मानकर आप ही की पार्टी के ८ नेता वोट देते हुए पलट गए। जब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का यही हाल है और इस बयानबाजी में पड़े हुए हैं तो फिर तो पार्टी का अल्लाह ही मालिक है। (मेरे पिछले आर्टिकल 'सुषमा स्वाराज चुप रहो' में पूरा बयान है सुषमा स्वाराज का) ।
कई बार लगता है कि कुछ वरिष्ठ या यूं कहूं कि कुछ बूढ़े नेता सटिया गए हैं तो गलत नही होगा। माना ये जाता है कि उम्र के साथ अकल और तजुर्बा भी बढ़ता है। लेकिन इन नेताओं के साथ तो उल्टा ही है। बुढ़ापे में जोश जोर मार रहा है।
श्री प्रकाश जायसवाल जी को क्या सूझा कि वो पागलों की तरह गोधरा प्रकरण को उछालने लगे। राज्य सरकार पर तोहमत लगानी है तो सुरक्षा के मामलों पर लगाइये। गुजरात में दो जगह सूरत और अहमदाबाद में ४८-५० बम मिल चुके हैं। और आतंकवादियों का साहस तो देखिए जब मोदी सुरक्षा का जायजा लेने सूरत की गलियों में घूम रहे थे तब वो बम को प्लांट कर रहे थे। ऐसे हौसले हो गए हैं दहशतगर्दों के। राज्य सरकार को लताड़ पिलानी है तो इस मुद्दे पर पिलाइये। लेकिन ये क्या आप लगे सांप्रदायिकता को हवा देने। यदि सांप्रदायिक दंगे भड़क जाते हैं तो कांग्रेस इस दंगों पर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने लग जाएगी। अगर दंगे फैले तो दिग्विजय सिंह और जायसवाल भी उतने ही जिम्मेदार होंगे जितने की खुद मोदी हैं।
अधिकतर नेता अब राज ठाकरे की तरज पर काम करने लगे हैं या यूं कहें की बनते जा रहे हैं। राज ठाकरे की तरह सिर्फ ऐसी बातें बोलना जिससे अपने पर कैमरे की लाइट पड़े। और वो अगली सुबह हर पेपर और न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन बनें। इन कैमरे वालों को भी कुछ मसाला चाहिए होता है तभी वो लोग कुछ सेल्समैनी कर पाएंगे, कुछ बेच पाएंगे (कभी ये सेल्समैन भी निशाने पर आएंगे)। यदि अब नहीं सुधरे तो एक दिन ये ही होगा कि दोनों पछताएंगे।
आपका अपना
नीतीश राज
ive done something here to have you a few cents!
ReplyDelete"अधिकतर नेता अब राज ठाकरे की तरज पर काम करने लगे हैं या यूं कहें की बनते जा रहे हैं। राज ठाकरे की तरह सिर्फ ऐसी बातें बोलना जिससे अपने पर कैमरे की लाइट पड़े। और वो अगली सुबह हर पेपर और न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन बनें। इन कैमरे वालों को भी कुछ मसाला चाहिए होता है तभी वो लोग कुछ सेल्समैनी कर पाएंगे, कुछ बेच पाएंगे (कभी ये सेल्समैन भी निशाने पर आएंगे)। यदि अब नहीं सुधरे तो एक दिन ये ही होगा कि दोनों पछताएंगे।"
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक और मार्के की बात.
गुरु अच्छा लिखते हो....हमें तो पता नहीं था। वैसे,सुषमा के बारे में सही टिपियाए हो.......
ReplyDeleteसुषमा जी जब बेल्लारी में चुनाव लड़ रही थीं तो डेविड और गोलायथ जैसा लग रहा था। हमारी पूरी संवेदना उनके प्रति थी। पर उसके बाद तो समय बहुत बदला। और राजनेताओं के प्रति हमारी सोच भी बहुत बदली।
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं।
भाई कोन सी कलम से लिखते हो,सच मे जादु कर देते हो आदमी एक बार पढना शुरु तो करे फ़िर नही हटता, धन्यवाद सुन्दर ओर सच्चे लेख के लिये.
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