देश के किसी हिस्से पर यदि ब्लास्ट हो तो देश के लोग चाहेंगे कि पूरा देश एकजुट होकर उसका सामना करे लेकिन ब्लास्ट पर सिर्फ राजनीति और सिर्फ राजनीति हो रही थी। ये कोई और नहीं हमारे द्वारा चुने राजनेता ही कर रहे थे। लेकिन शर्म आनी चाहिए इन राजनेताओं को जो कि धमाकों में मरे लोगों की लाश पर बैठकर राजनीति की रोटियां सेकने लग गए। देश के एक राजनीतिक दल को इससे परवाह ही नहीं थी कि विस्फोट के पीछे किसका हाथ है। उसे तो आरोप लगाते हए इस बात की खुशी मिल रही थी कि वो कैसे दूसरी पार्टी को कठघरे में खड़ा कर पा रही है।
हमारे देश के एक हिस्से बैंगलोर में एक के बाद एक ब्लास्ट हुए जिन्होंने सीरियल ब्लास्ट का रूप ले लिया। एक के बाद एक ब्लास्ट, कुल मिलाकर 7 धमाके। ऐसा नहीं कि यह विपदा देश पर पहली बार आई हो इससे पहले भी हमारा देश एसी आतंकवादी साजिश से दो-चार हो चुका है। मुंबई, दिल्ली, मालेगांव, वाराणसी-लखनऊ-फैजाबाद, जयपुर, हैदराबाद में धमाके हुए और इन धमाकों की गूंज भारत के साथ-साथ पड़ोसी मुल्कों में भी सुनाई दी। इन धमाकों की निंदा एशिया से लेकर यूरोप तक में हुई। पाकिस्तान के हिमायती अमेरिका को भी सामने आकर इन धमाकों की निंदा करनी पड़ी। भारत के दुश्मन देशों ने भी अफसोस जताया और भारत के ऊपर कसते आतंकवाद के शिकंजे को जड़ से खत्म करने की वकालत की।
इस बार इन जहश्तगर्दों के निशाने पर था बैंगलोर। वैसे, आईटी सिटी बहुत पहले से इन आतंकवादियों के निशाने पर थी। ये तो शुक्र मनाना चाहिए कि ये विस्फोट ज्यादा तीव्रता के नहीं थे वरना अभी मरने वाले की तादाद सिर्फ एक है तब कुछ और भी हो सकती थी। उस मरने वाले के परिवार से कोई तो पूछे कि क्या कुछ चंद रुपये जो हम आपको शोक के रूप में देंगे क्या वो काफी हैं उस 'जिंदा' शख्स के बदले। इसे केंद्र सरकार की नाकामयाबी ही कहेंगे कि इससे जुड़ी कोई भी जानकारी वो राज्य सरकार को मुहय्या कराने में नाकामयाब रही। आपको याद होगा कि कैसे जयपुर में हुए सीरियल ब्लास्ट के बाद, राज्य सरकार और केंद्र की सरकार एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगाने में जुट गए थे। ये धमाका कोई पहली घटना नहीं है लेकिन इस बार इन राजनीतिक पार्टियों का रूख कुछ अलग ही रहा। पहले केंद्र में मौजूद सरकार और जिस राज्य में विस्फोट हुआ है दोनों एक दूसरे के ऊपर थोड़ा बहुत इल्जाम लगाते ही थे। लेकिन आज तो इन पार्टियों ने हद ही कर दी। बीजेपी जैसी पार्टी ने आव देखा ना ताव केंद्र सरकार पर हल्ला बोल दिया। बीजेपी का आरोप था कि 'केंद्र सरकार आतंकवादियों के ऊपर नरमी बरत रही है'। क्या ये कोई वक्त था कि ये दल देश की जनता को संभालने की जगह पर ये टिप्पणियां करें। बेहतर होगा कि ये पार्टियां संसद का बदला संसद में ही उतारें। धमाकों के वक्त अधिकतर देखा गया है कि राज्य सरकार को छोड़कर कोई भी नेशनल पार्टी केंद्र पर आरोपों की झड़ी नहीं लगाती। लेकिन इस बार ऐसा हुआ। अभी वक्त है देश को एकजुट होकर चलने का क्या ये बात भी देश की इन राजनीतिक पार्टियों को बताना होगा, समझाना होगा। पुलिस और आम जनता ऐसे समय के लिए पहले ही इन राजनीतिक पार्टियों से अपील कर चुके है कि ऐसी जगह पर तुरंत ना आया करें।
इन पार्टियों से तो अच्छा एक वो आम आदमी है जो कि विस्फोट में घायल किसी भी एक आदमी को अपना सहारा देकर किसी सुरक्षित जगह पर ले गया होगा या उसकी दवा-दारू पर ध्यान दिया होगा।
राजनीति करने वालों कुछ तो सीखो....देर हुई तो कहीं ऐसा ना हो कि....
जनता एक दिन तुम्हारे साथ ही राजनीति करने पर विवश हो जाए।।
आपका अपना
नीतीश राज
बहुत ही सही और मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। वो दिन बहुत ही जल्दी आने वाला है। सस्नेह
ReplyDeleteये थूँ वाली बात भी गौर करने लायक है और यह भी कि इन नेताओं से अच्छा वो आमआदमी हैजो दवा दारू के लिए लेगया घायलों की सहायता की. ...शुक्रिया
ReplyDeleteनितिश जी, हमारी थूक यदि उन तक पहुँचती तो शायद कुछ बदलाव दिखता लेकिन वे ना जानें किस मिट्टी के बनें हैं। उन पर किसी बात का असर नही होता।
ReplyDeleteजरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।
परमजीत जी, वो दिन दूर नहीं जब ये राजनेताओं की नंगाई लोगों के सामने होगी और ये सड़कों पर आम आदमी के जूते-चप्पलों का निशाना बनेंगे। ये पब्लिक है सब जानती है...जिस दिन भड़क गई तो कहर ढा देगी, दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी...।
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