Saturday, July 19, 2008

चलो, यहां लाज तो बची...


आखिरकार भारत के पास ही रही ट्रॉफी, लेकिन इस बार गिल के चुंगल से निकल कर असली ट्रॉफी खिलाडि़यों तक के हाथ में पहुंच गई। वैसे तो इस ट्रॉफी को लेकर आया हैदराबाद हॉकी संघ। गिल साहब भी महान हैं उन्होंने अपनी तुगलकी फरमान सुना दिया था कि वो एड हॉकी कमेटी को ये ऑरिजनल ट्रॉफी नहीं देंगे। सिर्फ और सिर्फ ये ट्रॉफी सौपेंगे तो हैदराबाद हॉकी संघ को ही। बहरहाल, अंतिम समय में ही ये ट्रॉफी आयोजकों के पास तक पहुंच गई ये ही काफी है।
वैसे तो, फाइनल हम सेमीफाइनल में ही खेल चुके थे। कोच ए के बंसल साहब ने तो पहले ही ये एलान कर दिया था कि अब फाइनल में जीत हमारी होकर ही रहेगी। पाकिस्तान को जैसे भारत ने सेमी में पीटा उस के बाद सभी खिलाड़ियों ने बैठकर कोरिया और जापान के बीच दूसरा सेमी देखा था। उस से कोच की रणनीति साफ जाहिर हो चुकी थी। मैन टू मैन मार्किंग और फारवर्ड लाइन को लेकर चिंता उनकी बनी हुई थी। शायद इसलिए कोच ने ही खिलाड़ियों को खुद फैसला लेने और कोरियन खिलाड़ियों को समझने के लिए पूरा मैच देखने की हिदायत दी। खिलाड़ियों ने इसका भरपूर फायदा उठाया। वैसे देखा जाए तो 53वें मिनट तक या यूं कहें कि 60 मिनट तक भारत 2-0 से पीछे था। ऐसा नहीं था कि भारत ने कोई मूव वगैरा नहीं बनाया लेकिन स्कोर बोर्ड पर खाता खोल नहीं पाया। कोरियन खिलाड़ी जियोन जिन को पीला कार्ड दिखाते के साथ ही भारत ने दस मिनट के बाकी बचे खेल में स्कोर बराबर कर दिया। फिर टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अतिरिक्त समय में दिवाकर राम ने गोल्डन गोल कर ट्रॉफी पर भारत का नाम लिख दिया। सभी जगह खुशी का माहौल था। लेकिन इस बीच कोच ने अपना एक बयान दिया जिसमें भारत को पेनल्टी कॉर्नर का किंग भी घोषित कर दिया। दिवाकर राम से पहले संदीप सिंह भी अजलान शाह में टॉप स्कोरर रहे थे। लेकिन यदि दो टूर्नामेंट में भारत के खिलाड़ी टॉप गोल स्कोरर रहे तो इसका मतलब ये नहीं होगया कोच साहब कि आप सर्वश्रेष्ठ कहने लग जाएं। अभी जो दाग हम पर लगा है उसका दर्द गया नहीं है। यदि २०१० में होने वाले विश्व कप को जीतता है तो शायद ये गम कुछ कम होसके। लेकिन भलाई इसमें है कि तारीफ कीजिए लेकिन बड़बोलेपन से बचिए, बंसल साहब।
वैसे, भारत-पाक के बीच उस सेमी में हाथापाई ही एक ऐसा मोड़ थी जो कि उस खेल के रोमांच को थोड़ा कम कर गई। वैसे गरमा-गरमी हमेशा से ही होती है खास तौर पर भारत-पाक के मैच में। चाहे खेल कोईं भी क्यों ना हो। जब आप जीत रहे हों तो दूसरा पक्ष आप पर हावी होने के लिए, चाहता है कि कोई भी एक गलती आप से ऐसी हो जाए जिससे कि आपकी टीम 10 खिलाड़ियों से खेले। और कई बार ना चाहते हुए भी आप जोश में कुछ ऐसा कर जाते हैं जैसा कि फीफा वर्ल्ड कप में इटली-फ्रांस के मैच में हुआ। जिदान के ऊपर एक ऐसा दाग लग गया जिसे चाह कर भी वो कभी धो नहीं सकते।


आपका अपना,
नीतीश राज

4 comments:

  1. So that those who will accidentally visit your site will not waste there time with this stupid topics.

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  2. for, credit cards for bad credit

    where can u tell me....there r few facts in this which might u read somewhere. but this is not metter that u read whole articl somewhere else.

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  3. for lotto result,
    this might be a stupid topic for stupid people.

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  4. सही लिखा है आपने।

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”