मुझे याद आता है हीथ्रो हवाई अड्डे पर हमला और ७ जुलाई जब कि लंदन के अंडरग्राउंड ट्रेनों को टारगेट बनाया गया था। लंदन में ७ जुलाई, २००५, पहले खबर ये आई कि ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है पर बाद में ये पता चला कि ये हादसा नहीं, आतंकवादी हमला है। क्या याद है कि शुरुआत से ही किस तरह की तस्वीरें या रिपोर्ट हमें मिल रहीं थी। सभी जगहों को सील कर दिया गया था। मीडिया को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। दूर से तस्वीरें ली जा रहीं थी। उन जगहों को पुलिस ने चारों तरफ से घेर लिया था। ये सारी फुटेज आज भी यू ट्यूब पर आराम से देखी जा सकती हैं कि हमें उस समय मीडिया ने क्या दिखाया था और साथ ही बाद में भी मीडिया ने क्या दिखाया था ये भी हमें याद करना चाहिए। जब तक पुलिस ने उन जगहों को पूरी तरह से साफ नहीं कर दिया तब तक वो तस्वीरें किसी चैनल पर नहीं दिखाई गईं। ऐसे समय पर मीडिया का क्या रोल हो ये बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।
जब हीथ्रों हादसे के समय पर भी वापस हम अपने देश की खबरों पर ३-४ घंटे बाद लौट आए थे। क्यों लौट आए थे, क्योंकि बाहर की कुछ चुनिंदा तस्वीरें हम को मिल रहीं थीं, उनमें एक्शन नहीं था, कोई क्यों देखना चाहेगा उन तस्वीरों को, चाहे उस में हमारे देश के कुछ चुनिंदा लोग क्यों ना फंसे हुए हों। हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता जब सरकार को कुछ फर्क नहीं पड़ता तो देश के कुछ चुनिंदा टीआरपी पसंद चैनलों को क्यों फर्क पड़ेगा। पर बात यहां आकर खत्म नहीं होती यहां से तो वो शुरू होती है कि फिर देश के लिए मीडिया का रोल क्या हो?
जब आपातकाल के समय रिपोर्टिंग करनी हो और जब संवेदनशनील मामले हों तो मीडिया की भूमिका क्या ये ही होनी चाहिए कि अनाप-शनाप, बिना किसी प्रमाण के कुछ भी छाप दे या फिर बात बिना पुष्टी किए लोगों तक पहुंचा दे। साथ ही कितना देश के हित में कहना है या कि कितना भड़काऊ कंटेंट लोगों तक पहुंचाना है इस बात को ध्याना में रखते हुए कि कहीं देश में स्थिति और ना बिगड़ जाए। कुछ तो सरकार को ऐसा करना ही होगा कि देश की बेहतरी के लिए लगाम लगाई जा सके।
अब ये तो और ही साफ हो गया है कि मुंबई हमलों के पीछे मास्टरमाइंड जकीउर्ररहमान लख्वी ने अपने भेजे आतंकियों को फोन पर टीवी देखकर ही दिशा निर्देश दिये थे। ऐसी स्थिति में मीडिया के लिए देश ऊपर होना चाहिए ना कि टीआरपी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए एनबीए याने की न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन में शामिल सभी चैनलों के संपादकों ने मिलकर कुछ अहम दिशा निर्देश बनाए। सरकार नियम बनाए और उसको मीडिया के ऊपर थोंपे इससे बेहतर ये हुआ कि संपादकों ने मिलकर कुछ अपने नियम बना लिए।
आतंकवादी हमले, सांप्रदायिक हिंसा या इसी प्रकार के अन्य संघर्ष और अपराध की खबरों के कवरेज के समय सदा इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि इसमें से कितना और क्या दिखाना जनहित में है। साथ ही मीडिया को अपनी इस जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना चाहिये कि खबर बिल्कुल सही औऱ सिर्फ तथ्यों पर आधारित हो। ये भी ध्यान में रखना होगा कि ऐसी लाइव रिपोर्टिंग नहीं करें जिससे आतंकवादियों, उनके संगठन या विचारधारा का किसी प्रकार प्रचार होता हो या फिर उनके लिये किसी तरह की हमदर्दी पैदा होती हो। साथ में इस बात का भी ध्यान में रखें कि बंधकों को बचाने के लिए चल रही किसी कार्रवाई का अगर लाईव कवरेज हो रहा हो, तो बंधकों की पहचान, उनकी संख्या और उनकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी ना दी जाए। साथ ही बचाव अभियान कितना बाकी है या बचाव में लगे सुरक्षा बलों की संख्या कितनी है और उनकी रणनीति क्या है, इसका भी लाईव प्रसारण नहीं होना चाहिये। ये हिदायत एक चैनल के आतंकवादियों से बातचीत के बाद दी गई। किसी हादसे के दौरान पीड़ितों , वहां तैनात सुरक्षा बलों , तकनीकी लोगों या फिर आतंकवादियों से लाइव बातचीत नहीं की जानी चाहिए। साथ ही वैसी पुरानी फुटेज बेवजह बार बार ना दिखायें जिससे दर्शकों की भावनायें भड़कें। पुरानी फुटेज अगर दिखाएं तो उस पर स्पष्ट लिखा हो 'फाइल'। संभव हो तो वक्त और तारीख लिखें। ये भी हिदायत कि मारे गये लोगों का पूरा सम्मान होना चाहिये औऱ शवों को नहीं दिखाना चाहिये। साथ ही विचलित करनेवाली तस्वीरें और ग्राफिक्स दिखाते समय इस बात का खास ख्याल रखें कि उनसे पीड़ित परिवार की तकलीफ ना बढे।
पर देखने की बात तो ये होगी कि क्या मीडिया इन सब नियमों को मानेगा और नहीं मानने पर उस चैनल पर किस तरह की कार्रवाई होगी। अब सरकार भी इन हमलों के बाद से मीडिया के लिए एक पैमाना तैयार कर रही है कि मीडिया आपात समय में किस तरह से कवरेज करेगा। पर सरकारी फरमान के खिलाफ आवाजें अभी से ही उठने लगी हैं। जहां तक मेरा मानना है तो सरकार को सिर्फ आपात स्थितयों को ध्यान में रखते हुए ही नियम बनाने चाहिए वर्ना हर समय के लिए यदि नियम बन गए तो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सरकारी फरमान काफी भारी पड़ेगा।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
भारत सरकार नियम बनाये और बताये की क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं ये चेनल वालों के लिए बहुत शर्म की बात है...इसका सीधा अर्थ ये हुआ की चेनल वालों का अपने दायित्व का बोध नहीं है...अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए वो किसी भी सीमा तक गिर सकते हैं...न्यूज चेनल पैसा कमाने के चक्कर में न्यूज का कचरा करने पर तुले हैं...उनके लिए न देश के प्रति कोई सम्मान है और ना देशवासियों के प्रति...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सन्तुलित और बुद्धिमत्ता युक्त पोस्ट।
ReplyDeleteकाफ़ी दिन से आपने कुछ लिखा नही है
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