मेरी पहली हवाई यात्रा कुछ ऐसी रही जिसकी कल्पना भी मैं नहीं कर सकता था और वो हो भी गई यूं ही अचानक। अभी हाल फिलहाल में ही मुंबई हमले के बाद जब कि ये खबर आ रही थी कि अब आतंकवादियों के निशाने पर है एयर रूट याने कि हवा के जरिए आक्रमण। ऑफिस में काम कर रहा था कि तभी हुजूरेवाला ने आदेश के स्वर में पूछा कि कल कौन सी शिफ्ट है। यही, जो आज कर रहा हूं। तो कल तुम्हारी ये शिफ्ट नहीं है। फिर कल सुबह तुमको मुंबई जाना है अपना रिक्रुजेशन भर दो सुबह की ही फ्लाइट है। बहुत दिनों के बाद ये कुछ ऐसा फरमान था जो कि अच्छा लगा। वाह! ऐसे फरमान तो रोज आएं तो सुभानअल्लाह।
जब तक कि एयरपोर्ट के दरवाजे पर नहीं पहुंच गया तब तक मुंह कलेजे को आ रहा था। लग रहा था पता नहीं ऑफिस में कब, कौन से दोस्त रूपी दुश्मन मज़ा बेकार कर दे। क्योंकि कुछ ने तो बहुत प्रयास किए थे, पर भला हो फरमान वाले का कि उस फरमान पर कोई डोरे ना डाल सका। लेकिन कई बार तो ये लगता रहा कि पूरे दिन ये खबर चली है कि अब वायु आक्रमण ही करेंगे आतंकवादी इस लिए लगता है कि ऑफिस के वो लोग जो कि बाज कि तरह ऐसे असाइनमेंट पर नजरें गड़ाए बैठे रहते हैं उन्होंने इस बार मेरे पर नजरें गड़ा दी, और मुझे बनाया है बलि का बकरा। लगातार जगते हुए मुझे करीब २२ घंटे हो चुके थे साथ ही इस सोच के बावजूद मेरी आंखों में नींद का नामो निशान नहीं था। लगातार जगते हुए मुझे करीब २२ घंटे हो चुके थे पर इस खुशी के आगे आंखों में नींद का नामो निशान नहीं था।
दिल्ली एयरपोर्ट पर जैसे ही गाड़ी ने छोड़ा तो लगा कि अब तो पहली बार हवाई यात्रा हो ही जाएगी। लेकिन परेशानी ये थी कि इस से पहले मैं कभी भी एयरपोर्ट नहीं आया था। दो-चार बार दोस्तों को छोड़ने आया था तो बस ये पता था कि यहां पर छोड़ते हैं और इस जगह के आगे आप नहीं जा सकते। मैंने एक हाथ में टिकट रख लिया और गेट पर पहुंचा और लाइन में लग गया। एक सिक्योरिटी गार्ड ने मेरे हाथ में ई-टिकट देखकर उसने कहा कि आप चाहें तो वहां(दूसरे गेट) से भी एंट्री कर सकते हैं। मैं उस राह हो लिया। मेरा आईडी कार्ड और टिकट चैक करने के बाद मैंने पहली बार किसी भी एयरपोर्ट पर पहली बार कदम रखा।
अंदर तो मैं आ गया था पर सबसे बड़ी बात ये लग रही थी कि अब आगे क्या। क्या करना हैं, मुझे कहां जाना होगा? कुछ भी तो पता नहीं था, पर सुना था कि कोई बोर्डिंग पास लेना होता है सिर्फ इस टिकट से काम नहीं चलता। पर ये मिलेगा कहां? तो देखा कि सामान की चैकिंग भी हो रही थी। तो क्या पहले सामान की चैकिंग करवाऊं या कि बोर्डिंग पास लूं। दिमाग का फैसला था कि टिकट ले लिया जाए। वहीं पास में एंट्री काउंटर था जहां पर मैंने पूछा कि क्या ये एयर इंडिया का काउंटर है तो उन्होंने कहा कि पहले आप को यहां से टिकट पर स्टैंप लगवानी होगी फिर आप को वहां जाना होगा और उसका काउंटर वो है किसी में भी लाइन में लग जाइए। वहां से निकलकर बोर्डिंग पास की राह पर चल दिया। इस के बाद मैंने सामान की को रखवाना ही उचित समझा। सामान जहां पर कि बैंड लग रहे थे जैसे पहुंचा तो उसने कहा कि नहीं आप इसे अपने साथ ले जा सकते हैं क्योंकि इसे हम हैंडबैग की तरह ही समझते हैं। ओ.के.। अब बोर्डिंग पास काउंटर की तरफ मैं बढ़ गया, तो किस लाइन में लगूं इकॉनमी या फिर बिजनेस क्लास में? इस ई-टिकट पर तो कुछ भी नहीं लिखा। या कुछ इनीसिएल बनें हों तो मुझे पता नहीं। लाइन में दो शख्स ही थे तुरंत मेरा नंबर आ गया। लेकिन हैंड बैग पर उस शख्स को मैंने एक कार्ड सा लगाते हुए देखा जो कि एयर इंडिया का ही था। मैंने भी उसे अपने बैग के साथ लटका लिया। तुरंत बोर्डिंग पास मिल गया। अब तो मेरा जाना पक्का हो ही गया। काउंटर पर ही बता दिया गया था कि वहां से एंट्री होगी। एक लाइन थी मैं भी लग गया। तुरंत चार-पांच आदमी लाइन से चैक होते-होते वहां पर बढ़े जा रहे थे जहां पर कि हैंड बैग चैक किये जा रहे थे। ये गार्ड सिर्फ आईडी प्रुफ और बोर्डिंग पास चैक कर रहे थे। मेरे आईकार्ड और बोर्डिंग पास चैक होगया और जैसे ही मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की तभी मुझे एक गार्ड ने रोक दिया।
मुझे लगा कि जरूर से ही कोई बात होगी। पता चला कि नहीं आगे वालों की चैकिंग नहीं हुई है तो मुझे और मेरे पीछे की जनता को रोक दिया गया। मैं देख रहा था कि एक ट्रे में सब मोबाइल और पर्स तक निकाल के रख रहे हैं साथ ही जैकेट भी। मैंने भी पूरी तैयारी कर ली। जैसे ही आगे जाने का आदेश हुआ तुरंत सब चीजें ऐसे रखी जैसे कि रोज आना जाना लगा रहता है, साथ में बैग भी रख दिया। मशीन के अंदर से चैक होता बैग आगे गया। साथ ही मेरे को भी एक ऑफिसर ने चैक किया बारिकी से फिर मैं आगे बढ़ गया। अब सब चैक पूरे हो चुके थे और जो मैंने बैग में कार्ड लटकाया था उस पर सिक्योरिटी चैक की मुहर भी लग चुकी थी। फिर वही समस्या कि जाना कहां है याने कि अब क्या?
देखा कुछ लोगों को एक महिला बड़े ही प्यार से बात करते हुए साथ ही खड़े पुरुष महोदय चैकिंग करते हुए बैग पर लटके उस कार्ड और बोर्डिंग पास की उन्हें आगे भेज रहे थे। लेकिन आगे कहां? अरे वहां पर खड़े हैं विमान तो! ओह हो! मतलब कि चलो जल्दी से लघुशंका भी जाना है हरदम गलत समय पर ही लगती है। मैं हीरो की तरह उस दरवाजे की तरफ बढ़ा। महिला को कार्ड दिखाया तो महिला ने देखा और मुझे दिशा निर्देश देते हुए बताया कि आपको मुंबई के लिए प्लीज उस गेट से जाना होगा। मैं इतने देर में समझ चुका था कि मामला कुछ गड़बड़ है और साथ ही ऊपर लगे प्लाजमा में इस फ्लाइट का नंबर भी नहीं था। ओह हो मुंबई के लिए वो काउंटर है ओ. के.। थैंक्स। कहते हुए मैं आगे बढ़ गया। उस काउंटर पर जैसे ही पहुंचा मेरा सभी सुरक्षा तंत्रों को चैक करने के बाद उस मोटे से आदमी ने मुझे अंदर जाने कि इजाजत दे दी। मैं ये ही सोच रहा था कि बैंगलोर जाने वालों की अगवानी के लिए महिला और मुंबई जाने वालों के लिए ये भैंसा, सांड। इसी सोच में वहां खड़ी बस निकल गई। लगा कि अब तो फ्लाइट जरूर से छूट जाएगी। अब इतनी विशाल जगह पर अपने प्लेन को कहां ढूंढूंगा।
जारी है...
हमें तो आदत रही है ट्रेन और बस की। जहां पर आप खुद के जिम्मेदार स्वंय हैं। यदि गाड़ी छूटी तो टिकट बेकार। पर प्लेन के सफर में ऐसा नहीं होता। ये बात हमको बाद में पता चली कि बोर्डिंग पास लेने के बाद तो ये एयरलाइंस की जिम्मेदारी बन जाती है कि वो हमें पुकार लगा-लगा के बुलाए और हमें बैठाए। पर हम जैसे अनाड़ी की हालत उस पैसेंजर बस के छूटने के बाद क्या हुई और हवाई सफर आखिर कटा कैसा। अपने तमाम अनुभव अगली पोस्ट में।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
बढियां है मेरी पहली याद आ रही है !
ReplyDeleteपहली बार 2004 में हवाई यात्रा की थी.. उसकी याद हो आयी.. आगे लिखिये.. हम इंतजार में हैं.. :)
ReplyDeleteबढ़िया हैं......आगे क्या हुआ लिखिए ?
ReplyDeleteमुबारकां..........
ReplyDeleteअब तो पार्टी बनती है भइया.....
पीयूष
रोचक लगी यह ..इन्तजार रहेगा अगली कड़ी का ...
ReplyDeleteApki yaha yatra par ke mujhe bhi apni pahli hawai yatra ki yaad aa gayi.....
ReplyDeletebahut achha likha hai apne
बहुत बढिया है जी. हमको भी ४० साल पहले की पहली हवाई यात्रा याद आ गई.
ReplyDeleteरामराम.
अरे बाबा हमे तो १९७९ की अपनी पहली यात्रा याद आ गई, अब तो हम गुरू बन गये, ओर नये लोगो की मदद भी करते है, वेसे जर्मन भी जब पहली बार बेठते है तो हमारी तरह से ही डरे डरे से होते है, सुनाये फ़िर हम भी कभी अपनी पहली बार की .....
ReplyDeleteबहुत अच्छा लग रहा है.
धन्यवाद
ReplyDeletefrom nikita
Thanks yaaar bahut help mili
ReplyDeleteThanks yaaar bahut help mili
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