बचपन से ही आदत रही देर रात तक जग कर पढ़ने की। वहीं दूसरी तरफ घर में किसी को भी देर रात जगने की आदत नहीं थी। सब के सब जल्द सो जाते थे। वहां वो सोते यहां पर मेरा जगना और लगभग कई बार तो सुबह तक पढ़ना जारी रहता था। याद है वो रातें जब मैं पढ़ा करता था।
पर हर चार साल बाद वो वक्त जरूर आता जब कि मैं रात को नहीं पढ़ता था चाहे फिर परीक्षा ही क्यों ना हो। लगभग पूरी रात टीवी के सामने बैठा रहता। याद आता है घर में सिर्फ टीवी चलता रहता था और वो भी ना के बराबर आवाज़ में। ड्रॉइंग रूम में रोशनी हुआ करती थी सिर्फ टीवी की। बिना पलक झपकाए निरंतर टीवी पर नजरें गड़ाए पूरे 90 मिनट दम साधे देखना। ये आदत बनी रही और आज भी कायम है। आज से फिर शुरू हो रहा है फुटबॉल का जादू जिसका कोई भी मुकाबला नहीं।
ऐसा नहीं है कि हमारे देश में फुटबॉल के दीवाने नहीं हैं। हैं...और बहुत तादाद में हैं। पर फुटबॉल को बैकफुट पर रखा गया है। कभी भी खेल मंत्रालय और मीडिया की तरफ से फुटबॉल और हॉकी को ठीक से आगे बढ़ाया ही नहीं गया। हमारे देश में किसी से भी पूछ लीजिए कि रोनॉल्डो, मैसी, काका, बेकहम कौन है तो बहुत लोग शायद बता दें पर उन्हीं से पूछ लीजिए कि भरत छेत्री कौन है तो शायद वो नहीं बता पाएं। भूटिया का नाम बता दिया जाएगा पर और किसी का....?? अंग्रेजी चैनल तो बेहरहाल थोड़ा वक्त देंगे कि फुटबॉल के ग्राउंड में क्या हो रहा है पर हिंदी चैनलों में से किसी के पास इतनी हिम्मत नहीं है कि वो राखी सावंत या गंगू बाई के ऊपर फुटबॉल को रख लें।
बेहरहाल, बचपन से ही मैं अर्जेंटीना का दीवाना रहा हूं। गैब्रियल बतिस्तुता, डिएगो माराडोना, अमैरिको गैलिगो, डैनियल पासारेला, रोबर्टो अयाला मैदान में कमाल करते थे। कुछ का मानना है कि बतिस्तुता में माराडोना से ज्यादा काबलियत थी, बतिस्तुता ने अर्जेंटीना की तरफ से अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा 56 गोल किए हैं। वहीं क्रेस्पो के 36 गोल के बाद माराडोना तीसरे नंबर पर 34 गोलों के साथ हैं।
1986 का वर्ल्ड कप याद ही होगा। क्वार्टर फाइनल में इंग्लैंड से अर्जेंटीना की भिड़ंत। माराडोना के दो गोल की बदौलत इंग्लैड को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। अधिकतर लोगों को ये याद है कि माराडोना ने हाथ की मदद से एक गोल किया था और उस गोल को ’हैंड ऑफ गॉड’ के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग इस गोल की ही चर्चा करते हैं। लेकिन इसी मैच के दूसरे गोल को ’द गोल ऑफ सेंचुरी’ दिया गया। 60 मीटर की लंबी दौड साथ ही इंग्लैंड के 6 खिलाड़ियों को छक्काते हुए माराडोना ने सदी का गोल किया था। वो मैच दागदार और यादगार दोनों रहा।
इस बार फिर उम्मीद की जा रही है कि कोच माराडोना, मैसी, तेवेज, सरजिओ, डिएगो मिलिटो, वॉल्टर सेम्यूल, गैब्रियल हैंज, वेरोन की मदद से टीम जीत दर्ज करेगी। पर अर्जेंटीना की मिडफील्ड कमजोर है इस जगह पर ही सतर्क रहना होगा टीम को।
हम तो उम्मीद करेंगे की अर्जेंटीना जीते पर ये बात तो साफ है कि 12 जुलाई तक हर रात उस माहौल और मैदान के नाम रहेगी जिसके लिए फुटबॉल जानी जाती है।
पहले भी सुबह देर से उठते थे अब भी देर से उठेंगे। जिंदगी में अंतर कुछ नहीं पड़ता।
आपका अपना
नीतीश राज
सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteworld is Goal
ReplyDeleteइस देश में उसी चीज को बढ़ावा मिलता है जिसमे भ्रष्ट मंत्रियों को फायदा या दलाली पहुंचे आप अच्छा काम करने की सोचिये आपकी सारी की सारी अच्छाई और ईमानदारी बेकार हो जाएगी ,रही फुटबाल जब इस देश का अपना खेल हाकी का कब्र खुद चुका है तो फुटबाल को कौन पूछे अब तो सिर्फ क्रिकेट ही है जो भ्रष्ट मंत्रियों को पैसा,सूरा और सुंदरी का भी अहसास कराता है |
ReplyDeleteबढ़िया आलेख प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteमैच देखने की इच्छा तो है पर कमबख्त नींद बहुत आती है:)
ReplyDeleteआदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
ReplyDeleteआदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।
waah sandesh achchha hai
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