Monday, June 7, 2010

क्या लोगों ने ‘उसे’ ठीक पीटा?


उस समय मेरे मुंह से सिर्फ ये ही शब्द निकले....ओह माई गॉड। उसे बुरी तरह से पीट रहे थे लोग। हर आता-जाता दो-चार तो कम से कम लगा ही देता, जहां दिल चाहता वहां मारता। कोई-कोई तो मन भरकर मारता और कुछ तो तब तक मारते जब तक कि खुद के हाथ-पैर दुखने ना लग जाएं। सुना था पर आज देख रहा था भीड़ का कानून।

कब-कौन-कहां से निकल कर उस लड़के के सामने आता और अपनी पूरी भड़ास उस पर निकाल देता, पता ही नहीं चल रहा था। हल्की दाढ़ी से भरे, लाल हो चुके गाल पर रसीद कर दिए जाते और यदि चेहरा छुपाने की कोशिश गर वो करता तो उसके कान तक आ चुके लंबे बाल उसके चेहरे को पीछे खींचने के लिए काफी होते। और फिर चेहरे पर तीन-चार....। कुछ तो उसे बॉक्सिंग पैड समझ कर सिर्फ पेट पर ही गुस्सा निकालते।

कुछ को तो मैंने देखा कि वो राहगीर थे उनको पता नहीं था कि मसला क्या है पर बाइक रोकी उतरे और चार लगाए बाइक शुरू की और चल दिए। कुछ सिर्फ वहां से गुजर रहे थे, देखा, लड़के को अपने दम के मुताबिक पीटा और चल दिए। कइयों को देख कर के ऐसा लग रहा था कि जैसे कहीं की खुंदक कहीं पर निकाल रहे हों।

मुझे फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस याद आई। जब सुनील दत्त एक चोर से बोलते हैं कि यदि मैंने तुम को यहां पब्लिक के आगे छोड़ दिया तो सोचो कि तुम्हारा क्या होगा। कोई घर से लड़ कर आया है, कोई बीबी से परेशान है, किसी को बॉस की टेंशन है, ऑफिस का झमेला, किसी की तुम जैसे जेब कतरे ने जेब काटी है सोचो जब इतने सब लोगों के बीच में तुम होगे तो क्या होगा? उस चोर की हवाइयां उड़ने लग गई। यहां पर भी मुझे वही परेशान लोग नजर आ रहे थे।

वहीं, पिटने वाला लगभग 18-19 साल का युवक होगा। बाल लंबे, कद लंबा, छरेरा शरीर पर अब सब कुछ धुमिल हो चुका लग रहा था। जगह-जगह से खून निकल रहा था, मुंह तो लहु-लुहान हो रहा था। कपड़े कई जगह से फट चुके थे। उस लड़के को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे क्योंकि जब तक संभलता तब तक फिर वो अपने आप को संभालने में जुट जाता।

जैसा वो चोर इस दुर्दशा के बाद सोच रहा होगा कि इस से तो बेहतर होता कि पुलिस के हत्थे चढ़ता। हुआ भी ऐसा ही ये सारा वाक्या होने के लगभग 5 मिनट के अंदर ही पुलिस मौके पर पहुंच कर उस लड़के में दो-चार लगाकर अपने साथ लेकर चलते बनी। कई बार तो शक भी होता है कि कहीं ये लोग भी तो नहीं मिले रहते इनसे?

लेकिन यहां के लोग झपट्टामार चोरों से परेशान हो चुके हैं। यहां कि लड़कियों,महिलाओं का तो दिन में सड़क पर निकलना दूभर हो गया है। सड़क पर मोबाइल पर बात कर ही नहीं सकते पता नहीं कब-कौन-कहां से आकर आपका कीमती सामान झपट जाए। कई बार तो लगता है कि उस लड़के के साथ अच्छा हुआ और पीटना चाहिए था पर कई बार सोचता हूं कि इतना नहीं मारना चाहिए था। मैं भी इंसान हूं क्या करूं!

कल एक जगह खबर पढ़ी थी कि लोगों ने झपट्टामार चोर को पकड़ा और इतना मारा कि वो मर गया। वो था इन चोरों से परेशान और पुलिस की नाकामियत पर भीड़ का कानून

आपका अपना
नीतीश राज

10 comments:

  1. haalaat bad se badtar hote ja rahe hain isiliye ye haal hai.

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  2. कल बाइक से जा रहा था, आगे-आगे दो खिलन्दड़ लड़के अपनी-अपनी साइकलों पर मस्ती करते जा रहे थे, मुझे जल्दी से अस्पताल पहुँचना था, लेकिन वे लड़के जानबूझकर मुझे साइड नहीं दे रहे थे, ही-ही कर रहे थे और इसे अपनी बहादुरी भी समझ रहे थे। बीच में एक बार मौका मिलने पर मैंने बाइक की स्पीड बढ़ाकर दोनों साइकलों के बीच ले आया, और दाँयी तरफ़ के साइकल वाले को एक जोरदार लात जमाई, जिससे वह नाली में गिर गया और बाँई तरफ़ वाला घबराकर खम्भे से टकरा गया… मैं आराम से निकल गया…

    क्या उसे लात जमाकर मैंने सही किया? :)

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  3. भीड़ की मानसिकता और उसका कानून...विवेक खो जाता है.

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  4. नही ऎसे मारना चाहिये था... गलत है

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  5. मेरे विचार से यह ठीक नहीं है। पहले बहुत सी महिलायें इस लिये जला दी जाती थीं कि वे चुड़ैल समझी जाती थीं।

    भीड़ में विवेक हमेशा गुम हो जाता है और अधिकतर वह कर लेने लग जाते हैं जो कि गलत है। यह बात हमेशा जहन में रहनी चाहिये।

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  6. अपनी-अपनी राय देने के लिए आप सभी का धन्यवाद। अधिकतर लोगों का मानना ये ही है कि भीड़ को कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए। सुरेश जी शायद आपको जवाब मिल गया होगा।

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  7. जिन्दा लोगों की तलाश! मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!

    काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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    उक्त शीर्षक पढकर अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन सच में इस देश को कुछ जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है।

    आग्रह है कि बूंद से सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो निश्चय ही विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

    हम ऐसे कुछ जिन्दा लोगों की तलाश में हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

    इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

    अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

    अतः हमें समझना होगा कि आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

    शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-ष्भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थानष् (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

    सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

    जो भी व्यक्ति स्वेच्छा से इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष
    भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
    7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
    फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
    E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in

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मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”