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Tuesday, June 7, 2011

हमारा ही पीएम सबसे मजबूर क्यों?

ऑफिस में काम पूरा करके दफ्तर के साथियों के साथ गप्पे मारते हुए नीचे उतरा। रात आधी से ज्यादा निकल चुकी थी पर हमारे लिए काफी बाकी थी। रास्ते में एक सहयोगी के फोन की घंटी बजी और उसका जवाब था ‘आ रहा हूं,। क्या हुआ। कोई खबर है, चलता हूं। जाओ, मैने जवाब दिया।


मैं कुछ कदम आगे बढ़ा ही था कि तभी उस सहयोगी का फोन आ गया। यार रामलीला मैदान में महाभारत हो गई है। और फिर काम की व्यस्तता की वजह से उसे फोन काटना पड़ा। मैंने सोचा कि दो दिन से सोच रहा था कि रामलीला मैदान जाऊंगा पर जा नहीं पाया चलो गाड़ी उधर घुमा लेता हूं। वहीं दूसरे ख्याल ने कदम रोक दिए कि ऑफिस को इस वक्त मेरी जरूरत ज्यादा होगी, चलो ऑफिस का रुख करो।


रामलीला मैदान की उस काली स्याह रात के एक-एक दृश्य, एक-एक तस्वीर दिमाग को हिला रहे थे। एकबार तो बाबा रामदेव का चहरा फक पड़ चुका था जब कि मंच पर पुलिस उनको गिरफ्तार करने पहुंची। पर दूसरे ही पल हिमालय की गुफाओं में किए तप और योग की शक्ति ने उनके अंदर वो जज्बा और फुर्ति पैदा कर दी कि वो अपने सहयोगियों के बीच कूद पड़े। 46 साल का कोई भी शख्स 12-14 फीट के प्लेटफॉर्म से ऐसे नहीं कूद सकता, शायद योग का कमाल था। पर ना तो वहां मौजूद बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों को इस बारे में जानकारी थी और ना ही बाबा के समर्थकों को कि दिल्ली पुलिस वो पुलिस है जो चाहने पर मुर्दे को भी जिंदा कर दे, जो अपनी पर आ जाए तो यमदूत भी रहम के लिए पनाह मांगने लगे।


कंधे से उतर कर बाबा रामदेव मंच पर आकर बैठ गए और बोतल से पानी पीने लगे। फिर उसी बोतल को बाबा रामदेव ने माइक समझकर अपने उत्तेजित हो रहे समर्थकों को शांत करने लगे। उस समय हर मिनट तस्वीरें बदल रही थी। उस दौरान जब भी कैमरा बाबा के ऊपर होता तो मैंने पूरे समय बाबा को समझाते हुए ही देखा। कहीं भी भावों से ऐसा नहीं लग रहा था कि वो अपने सहयोगियों, समर्थकों को उत्तेजित कर रहे थे।


मेरे एक सहयोगी ने मेरे से कहा कि यदि ये रात बाबा रामदेव निकाल गए तो कल बाबा रामदेव के लिए एक नई सुबह होगी। मैंने जवाब दिया, लाख लोग हैं और दिल्ली में इतनी पुलिस नहीं, जो लाख लोगों को खदेड़ दे। पर मैं गलत था तस्वीर बदली और नई तस्वीर में रेपिड एक्शन फोर्स भी मौके पर दिखी। हम समझ गए कि ये रात बाबा के लिए जीवन की सबसे लंबी रात होने वाली है।


मंच से बोलते बाबा रामदेव को एकदम से सहयोगियों ने भीड़ में पीछे-पीछे करना शुरु किया। उनके समर्थक महिलाओं को सामने रखते हुए बाबा को मंच के पीछे ले जा रहे थे। बाबा की आवाज़ पीछे से आ रही थी पर थोड़ी देर बाद बाबा रामदेव का पता नहीं चला। पंडाल में आंसूगैस छोड़ी जाने लगी। पंडाल में लोग तितर-बितर होने लगे। डंडे, पत्थर सब चल रहे थे। पंडाल में आग लग गई और बाबा रामदेव का मंच खाली हो गया। पंडाल में गिने चुने लोग दिखने लगे। वहां मौजूद थी तो सिर्फ पुलिस और पुलिस। लोगों को उठा-उठा कर लेजाती हुई। ये सब मंजर बर्बरता दिखा रहे थे। आंखों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि रात तक भरा पूरा रामलीला मैदान दो घंटे के अंदर खाली करवाया जा चुका था।


फिर इसके बाद उस रात को क्या हुआ कितना एक लोकतांत्रिक देश के लोगों का साथ छल हुआ ये सब को पता है। बार-बार मुझे ऑस्ट्रेलिया की वो घटना याद आ रही थी। जब भारतीयों पर हमले के खिलाफ सभी भारतीय मेलबर्न की सड़कों पर इक्ट्ठा हुए थे और पुलिस ने जो कार्रवाई की थी उसकी आलोचना पूरे विश्व में हुई थी। तब ये ही हमारी सत्तारूढ़ सरकार के नेतागणों ने उसकी निंदा की थी साथ ही उच्चायुक्त को बुलाकर इसके लिए आगाह भी किया था। क्यों आज उसकी को दोहराने की ये निंदा नहीं कर पा रहे और साथ ही क्या ये तस्वीरें इनको दुख नहीं दे रही, कि अब भारत की निंदा पूरे विश्व में होगी।


इस बात का मैं साक्षी हूं कि रात 10.45 पर सुबोध कांत सहाय ने ये कहा था कि हमने अपनी मांग लीखित बाबा के पास भेज दी हैं। और दो घंटे बाद रामलीला मैदान पर पुलिस हमला कर चुकी थी।

पीएम के रूप में मनमोहन सिंह सबसे ज्यादा मजबूर दिखाई देते हैं। ये सिर्फ मेरी राय नहीं है कि वो अब तक सभी पीएम में सबसे कमजोर हैं। घोटालें हों या करप्शन सब में वो मजबूर हैं। ओसामा जी कहने वाले दिग्विजय सिंह की जुबान चुप कराने में भी शायद वो मजबूर हैं। रात के इस पूरे प्रकरण को दमन चक्र ही कहा जाएगा पीएम साहब। उस प्रेमलता से पूछो जिसको आपकी मजबूरी ने बिस्तर पर मजबूर बना दिया।




आपका अपना
नीतीश राज

Wednesday, April 22, 2009

अब बोल दिया सो बोल दिया, अब क्यों डर रहे हो आडवाणी जी। बिलो द बेल्ट तो आपने हिट किया ही था।

अब बोल दिया सो बोल दिया, अब डरना क्यों? ये तो नहीं लग रहा कि कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं बोल दिया। कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि चुनाव के समय में इतने नीचे नहीं गिरना चाहिए था। बार-बार पीएम को कमजोर नहीं कहना चाहिए था। अब भई बार-बार किसी को फटकारते रहेंगे तो कभी ना कभी तो दूसरा फट ही पड़ेगा। जब दूसरा फट ही पड़ा है तो अब आप क्यों घबरा रहे हैं। क्यों? हर दिन कभी किसी चैनल पर तो कभी किसी अखबार में पीएम के बारे में आपको सफाई देते सुना जा सकता है।
मैंने तो सिर्फ मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहा था। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि मनमोहन सिंह ने पीएम के पद के स्तर को कम किया है। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि वो सारे निर्णय सोनिया गांधी से पूछ कर लेते हैं। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री यदि कोई हुआ है तो वो सिर्फ मनमोहन सिंह हैं। अब आडवाणी जी किसी को आप बार-बार ये सब कहते रहेंगे तो कौन चुप रहेगा। अब जब आपकी पोल पट्टी खुलने लगी तो नाराज़ बैठे हुए हैं और लगे हैं सभी से पूछने कि भई, क्या मैंने बिलो द बेल्ट हिट किया था?
जब आडवाणी जी चुप नहीं हुए और अपनी सभी रैलियों में उनका टेपरिकॉर्डर बजने लगा तो फिर कांग्रेस ने आडवाणी पर चौतरफा हमला करना शुरू कर दिया। अब ढाल के रूप में कोई सामने तो आया नहीं, तो लगे हैं रोने। आपकी एक के बाद एक गलतियां गिनाई जाने लगी तो लगा कि कहां पंगा ले लिया, मेरा गिरेबान तो ज्यादा मैला है। इस देश के हिंदुओं को तो छोड़िए, मुसलमानों के लिए भी जिन्ना किसी विलेन से कम नहीं था। आप पाकिस्तान जाते हैं तो लग जाते हैं उनकी तारीफ के गुणगान करने। तो जब भी इस मुद्दे पर आपको घेरा जाएगा तो संघ आपके साथ नहीं खड़ा होगा। बाबरी मस्जिद विध्वंश में आपकी भूमिका सब जानते हैं पर यहां पर दो धड़े हैं। हिंदु आपके साथ हो सकते हैं पर मुसलमानों के लिए तो आप विलेन ही हैं। तो जब-जब ये वाक्या सामने आएगा आपके वोट बैंक पर असर तो पड़ना ही है। कांधार मामले पर आपने अपना पल्ला झाड़ लिया पर उसमें भी आप फंस गए। उस समय आप गृहमंत्री थे और आपको इस बारे में जानकारी ही नहीं दी गई ये कोई पचा ही नहीं पा रहा है और यदि सच में नहीं दी गई तो आपकी पार्टी ही आप पर विश्वास नहीं करती। तो हर तरफ से आप फंस गए।
बेहतर तो ये है कि आप जब भी दूसरे पर हमला करें तो ये साथ में ध्यान रखें कि आप कितने पानी में हैं। अफजल गुरु के मामले में आप भी कठघरे में आते हैं जिसका जिक्र मैंने अपनी पिछली पोस्ट में किया है। १९९९ से लेकर २००४ तक आपने किसी भी राष्ट्रपति के पास पड़े माफीनामे पर कार्रवाई नहीं की उसके पीछे की वजह ये थी कि पहली बार ही यदि कुछ फैसले ले लेते तो हमेशा किसी वोट बैंक से आपको हाथ धोना पड़ता।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”