Showing posts with label विचारिक. Show all posts
Showing posts with label विचारिक. Show all posts

Thursday, June 10, 2010

हमारे अंदर का सबसे बड़ा जानवर ‘कौन’?


जितने मनुष्य उतनी शख्सियत, उतने चेहरे। सबका रहन-सहन अलग, नजरिया अलग, पहचान अलग। रोज ना जाने कितनी शख्सियत आंखों के आगे से गुजर जाती हैं। हर दिन हमें तरह-तरह के लोग रास्ते में टकराते हैं। जितने तरह के लोग उतने ही तरह के व्यक्तित्व। सभी की अपनी एक अलग पहचान, अपना एक अलग सोचने का ढंग और साथ ही अपनी-अपनी खूबियां और खामियां।

कई बार इंसानों के बारे में सोचता हूं तो एक सवाल मेरे मन को बार-बार कुरेदता है। हम सब की जिंदगी में ऐसे मुकाम बहुत बार आते हैं जब कि हम अपने अंदर के जानवर से दो-चार होते हों। तब हमें पता चलता है कि हमारे अंदर भी एक जानवर है और उस जानवर की वो काली छाया कितनी ताकतवर है। कई मौकों पर हम अपने अंदर के उस जानवर से लड़ के जीत जाते हैं और कई बार वो हमें शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देता है।

कई मौके आते हैं जब हम अपने अंदर के जानवर से दो-चार होते हैं। मनुष्य के अंदर का जानवर खुद को तो परेशान करता ही है साथ ही दूसरों को भी तकलीफ पहुंचाता है। हमारे अंदर का जानवर क्या है? किन-किन कारणों से जानवर, शरीर के अंदर का जानवर जाग उठता है? और वो कौन-कौन से कारक होते हैं जो हमें जानवर बना देते हैं?

मैंने थोड़ी कोशिश की कुछ कारकों को टटोलने की जो कि हमें इंसान बने रहने नहीं देते और कई बार इंसानियत खोकर जानवर बनने पर मजबूर कर देते हैं।

हमारे अंदर का जानवर है क्या? ये बता पाना तो बहुत ही मुश्किल है। इस पर बहुत सोचने पर मैंने पाया कि हमारे अंदर की वो इच्छा, कल्पना या बात जिसे हर कीमत पर नैतिक-अनैतिक ढंग से पूरा करने की जिद। उस जिद में किसी और को नुकसान, क्षति हो तो भी कोई गुरेज नहीं।

अब बात करते हैं कारकों की। मैंने इन्हें 3 भागों में विभाजित किया है जो इंसान को इंसानियत छोड़ कर वैहशीपन अपनाने पर मजबूर करते हैं।

क्रोध (गुस्सा), हवस, घमंड। इन में से कौन सा वो कारक है जो कि सबसे खतरनाक होता है।

वैसे तो तीनों कारक ही एक दूसरे से मिलते जुलते लगते हैं। मजबूरी हो या फिर कोई और वजह, कई बार गुस्सा आता है, और पागल बना देता है। पागल मतलब जिसका अपने पर काबू नहीं, जो कुछ भी कर सकता है। आपके अंदर के जानवर को जगा देता है गुस्सा।

हवस, हमेशा नहीं जागती पर जब भी जागती है तो पाप होना स्वाभाविक सा ही है। वैहशी बना देती है हवस। फिर मनुष्य ये सोचने के काबिल नहीं रह जाता कि वो जिस को अपना शिकार बना रहा है वो कौन है।

पर सबसे बड़ा कारक है जो कि यदि एक बार आपके अंदर आ जाए तो आप को हमेशा के लिए जानवर बना दे, वो है घमंड। गुस्सा हमेशा नहीं बना रह सकता, हवस हमेशा नहीं रह सकती पर घमंड आपके साथ-साथ चलता है हमेशा। घमंड के कारण गुस्सा और हवस का जन्म हो सकता है पर हवस और गुस्से के कारण घमंड का जन्म नहीं हो सकता।

एक इंसान को जानवर बनाने का सबसे बड़ा कारक मुझे घमंड लगता है। घमंड को हमेशा अपने से दूर रखना चाहिए।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”