कई बार लगता है कि आग शांत होने की राह तकती रहती है लेकिन कुछ उस आग में घी डालकर उसे जलाए रखना चाहते हैं। चाहे किसी वजह से भी। कुछ घाव ऐसे होते हैं जो कि समय के साथ भर जाते हैं लेकिन अपने निशान छोड़ जाते हैं, पर कुछ घाव ऐसे भी होते हैं जिन्हें बार-बार छेड़ा जाता है, कचोटा जाता है, लेकिन बार-बार क्यों छेड़ा जाता है उन घावों को? क्योंकि वो घाव नासूर की शक्ल इखित्यार कर ले।
कुछ लोगों को शायद शहीदों की शहादत पर सवालिया निशान लगाने की आदत से हो गई है। पहले इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत पर उठाए गए थे सवाल, तब भी बहुत बखेड़ा हुआ था। कुछ लोगों ने तो उस दिल्ली के बाटला एनकाउंटर तक को फर्जी करार दे दिया था। कुछ ने तो यहां तक कह दिया था कि खुद पुलिस की गोली का शिकार हुए थे इंस्पेक्टर शर्मा। फिर अब आवाज़ उठने लगी है कि शहीद करकरे क्या वाकई में शहीद हुए हैं? क्या इस बार मुंबई पर हुए हमले को भी कुछ लोग फर्जी करार देंगे, जहां पर 200 लोग मारे गए।
शायद कुछ लोग शहीद हेमंत करकरे के नाम के साथ जुड़े इस शहीद तमगे को पचा नहीं पा रहे हैं। तभी तो कोई ना कोई इस शहीद की शहादत पर सवालिया निशान जरूर लगा देता है।
अब की बार बारी है केंद्रीय मंत्री एआर अंतुले की। बिना तोल के बोलकर फंस गए अंतुले। अंतुले ने हेमंत करकरे पर कहा कि ‘उन्हें आतंकवादियों ने मारा या फिर किसी और ने’। जब मामला उठा तो अंतुले ने लोकसभा में जरा तोल कर जवाब दिया 'मैंने कहा था कि बजाए इसके कि करकरे, काम्टे, सालस्कर समेत एटीएस दल ताज होटल या ओबेराय भेजा जाता, उन्हें कामा अस्पताल भेजा गया। इन जवां मर्दों को एक ही गाड़ी में सवार होकर कामा अस्पताल जाने का निर्देश किसने दिया इस मामले की जांच कराने के बारे में मैंने कहा था।'
मैं नहीं जानता कि कितने लोग गलत समय पर दिए अंतुले के इस बयान से इत्तेफाक रखते होंगे।
अंतुले के इस बयान से पर मैं तो पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूं।
जांच जरूर होनी चाहिए। ये कोई माखौल नहीं था कि तीन आला अफसर हम लोगों ने यूं ही गवां दिए। मैं पूछता हूं आज हम बार-बार कह रहे हैं कि हेमंत करकरे, सालस्कर और काम्टे शहीद हुए, पर क्या उन तीनों में से किसी को भी इतना मौका मिला था कि वो अपनी आत्मरक्षा में गोली चला पाएं। क्या सच मायने में वो शहीद हुए हैं। शहीद का दर्जा तो हम उनको देते हैं जो कि दुश्मन से लड़ते हुए, टक्कर लेते हुए दुश्मन की गोली से मारा जाए ना कि सरकार, प्रशासन और डिपार्टमेंट की बेवकूफी से।
जम्मू-कश्मीर में हर दो-चार दिन में एक जवान शहीद हो जाता है। शायद ही किसी को ये पता चलता हो कि कोई शहीद हो गया। ना कोई इनाम ना कोई पोस्टर ना कोई तमगा। फिर भी हर रोज उसी मुस्तैदी के साथ सभी जवान डटे रहते हैं।
२६ नवंबर की वो काली रात को जब आतंकवादियों ने सीएसटी पर क़हर बरपाया था और कुछ पुलिसकर्मी उनसे लोहा ले रहे थे और उन बेचारों की खुटल, जंग खाई बंदूक ठस हो गई थी तो उन सिपाहियों को वहां से भागना पड़ा था। कुछ लोगों ने इन सिपाहियों को भगोड़ा कहा था लेकिन मैं इन को हीरो कहता हूं। जब आतंकवादी इन पर गोलियां बरसा रहे थे तो आसपास की दीवारों से धुआं उठ रहा था तब भी काफी देर तक ये डटे रहे। सलाम करता हूं उस सिपाहियों को। तब कहीं ये खबर हेमंत करकरे, सालस्कर और अशाक काम्टे के पास पहुंची थी। पहले भी मुंबई की लाइफ लाइन माने जाने वाली लोकल ट्रेन पर हमले हो चुके हैं तो सभी के सभी इस बात को ध्यान में रखते हुए सीएसटी की तरफ भागे।
अंतिम बार वीडियो में हम सबने हेमंत करकरे को सीएसटी पर ही देखा था। तब ध्यान होगा सबको कि उस समय उन्होंने आसमानी शर्ट पर हेल्मेट लगा रखा था। साथ ही एक सिपाही ने उनके हाथ में बंदूक दी थी। तब सबसे पहले मेरे दिमाग में ख्याल आया था कि कहीं शर्मा की तरह ये भी बुलेटप्रूफ जैकेट ना पहन के जाएं। पर थोड़ी देर बाद कुछ सिपाहियों के साथ करकरे को फ्रंट पर जाते देखा था। सीएसटी के अंदर कुछ सिपाहियों के साथ जाते देखा था। याने कि एक बात तो सही है कि वो मुकाबला करने के लिए ही उस जगह पर गए थे। पर जाते समय उनके शरीर पर जो था वो था दंगा निरोधक दस्ता का बुलेट प्रूफ या कहें कि लाठी प्रूफ जैकेट जिसे की बाद में खुद पुलिस के आला अफसरों ने माना है।
तभी पता चलता है कि आतंकवादी सीएसटी छोड़ चुके हैं और कामा अस्पताल की तरफ गए हैं और सदानंद दाते कामा पर घायल हो गए हैं और मैट्रो के पास से भी गोलियों की आवाज़ें सुनी गई हैं। हेमंत करकरे अपने ड्राइवर के साथ कामा की तरफ कूच करने के लिए निकलने लगे। पर तभी सालस्कर और काम्टे भी वहां पहुंच गए। फिर तीनों के तीनों एक साथ कामा की तरफ चल दिए। पर इस बार गाड़ी की कमान खुद सालस्कर ने संभाल रखी थी। आगे की सीट पर सालस्कर के साथ काम्टे बैठे थे और क्वालिस की बीच की सीट पर हेमंत करकरे बैठे हुए थे और पीछे की सीट पर ड्राइवर के साथ चार सिपाही जिसमें जाधव भी थे। पर निकलते वक्त सभी ने बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने हुए थी शायद सब ने सीएसटी पर ही छोड़ दी, क्यों। बीच-बीच में पुलिस की ये क्वालिस रुकते हुए सिपाहियों और लोगों से पूछते हुए आगे बढ़ रही थी कामा अस्पताल के पास सदानंद को की मदद के लिए ये तीनों वहां आए थे। गाड़ी रुकती है तभी पेड़ के पीछे से दो आतंकवादी कसाब और इस्माइल निकले और क्वालिस पर अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे। कुछ पल में ही मुंबई ने अपने तीनों अफसर खो दिए। साथ ही तीन सिपाही भी एक सिपाही जाधव घायल अवस्था में क्वालिस में ही पड़े मिले। जब तक कि पुलिस ने वहां आकर सभी को अस्पताल नहीं पहुंचाया, अस्पताल में जाधव का इलाज चलने लगा लेकिन उनके साहब शहीद हो चुके थे। पर सवाल यहीं खड़े होते हैं कि इन आतंकियों का मकसद क्या था। क्या वो बिना किसी मकसद के भारत में आतंक फैलाने के लिए आए थे। क्या वो विदेशियों पर हमला करने आए थे। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में हमारी नाक नीचे करने के लिए आए थे। क्या करने आए थे वो यहां पर। क्या और कोई भी कारण हमें समझ में नहीं आता। ताज होटल, ओबेराय होटल समझ में आता है कि वहां पर विदेशी थे और साथ ही वो मुंबई की पहचान है, सीएसटी, नरीमन भी समझ में आते हैं। पर क्या कारण था कि कामा, मैट्रो और पुलिस मुख्यालय की पास की जगह को क्यों निशाना बनाया गया। जहां पर विदेशी ढूंढे से भी नहीं मिलेंगे। कोई बताए फिर उस पर ही निशाना क्यों?
२५ नवंबर को पुणे के एक पुलिस थाने में एक फोन कॉल आता है जो कि मराठी में बोलता है कि हेमंत करकरे को दो-तीन दिन में बम ब्लास्ट में जान से मार देंगे। अगले दिन वो मार भी दिए जाते हैं। क्या इस की जांच नहीं होनी चाहिए कहीं कोई हमारे देश में ही गद्दार तो नहीं। लेकिन एक बात तो सारी दुनिया मानेगी कि वो आतंकवादियों से मुकाबला करने के लिए ही गए थे पर ये उनकी किस्मत ही थी कि मुंबई के तीन आला पुलिस अधिकारी बिना किसी को आघात पहुंचाए उन आतंकवादियों के घात लग गए। पर उन तीनों से शहीद का तमगा आने वाले कल में भी कोई नहीं छीन पाएगा वो फ्रंट पर ही शहीद हुए हैं।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
aapki chinta bilkul durust hai, chor hamare ghar mein hi bethe hue lagte hai.Bhavuk hone ki bajaye ham sabko vyavaharikta se kaam lena padega,niji aur rajnaitik swartho se upar uthkar desh hit ko sarvopari rakhna hoga, aapka blog yahi sandesh deta hai. Saadhuvad.
ReplyDeletem.hashmi
?
ReplyDelete?
?
सिर्फ लिखने के लिये लिखा है या आप कुछ सार्थकता में भी जाना चाहते है। या सेक्यूलर पंथी बाने में इसी प्रकार उछल रहे है। शहीद करकरे के प्रति सम्मान है किन्तु इस प्रकार की राजनैतिक रोटियॉं सेकना ठीक नही। मरे तो तो बहुत लोग है अब मुर्दो को उखाड़ कर जॉंच किया जायेगा कि कौन कैसे मरा जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है उसका भी।
अगर आपको लगता है कि दाल काली है तो खुद ही कुछ परिणाम निकाल दीजिए।
नमस्कार है भाई, आप की मुर्गी की एक टांग देखी। स्वादिष्ट पकी है। आपमें अच्छे पत्रकार होने के सभी गुण हैं। बाकी सब आप चूल्हे में जाने दें।
ReplyDeleteआप भाईसाहब कमाल है ... अंतुले और यह ऊपर हाश्मी साहब जरूर सोच रहे होंगे इस देश मे एक ढूँढो तो हजारो मिलते है...वोह बुश वाला आपको भिजवाये क्या?
ReplyDeleteआपका यह सिक्के के दोनों तरफ़ रहना सूचक है कि आप एक सच्चे धरमनिरपेक्ष है...बिल्कुल कांग्रेसी ..
सिर्फ़ जबानी जमा-खर्च..........कि इससे आगे भी कुछ...
आपसे सहमत हूं,्सवाल शहीदो की शहादत की जांच का नही है,उनकी शहादत किसी की तारीफ़ की मोहताज़ भी नही, मगर तीनो बड़े अफ़्सरो का इस तरह से मारा जाना सच मे सवाल खड़े करता है।
ReplyDeleteमेरा भी यही मानना है कि करकरे की मृत्यु एक हादसा है, शहादत नहीं. मुम्बई के आतंकवादी घटनाओं में स्थानीय मदद भी मिली है
ReplyDeleteजहां कसाव पकड़ा गया ठीक उसी जगह अंतुले का घर है और मुम्बई में पिछले दिनों से ये चर्चा जोरों पर है कि ये दोनों आतंकवादी छिपने के लिये अंतुले के घर ही जा रहे थे अंतुले के बयान के बाद इस चर्चा को और भी बल मिलता है.. आखिर कहां जा रहे थे दोनों आतंकवादी?
कम से कम मुम्बई की आतंकवादी घटनाओं में अंतुले की भूमिका की जांच तो अवश्य होनी चाहिये
सही है जी, अन्तुले जी को भारत रत्न कब मिल रहा है?
ReplyDeleteप्रिय नीतिश ,तुम्हारे तर्क के पीछे जो वजह है ......अफ़सोस वो अंतुले के तर्क के पीछे नही है....हाँ एक बात है की आतंकवादियो की गोली से वे लोग शहीद हुए है ,शायद अधिक आत्मविश्वास की वजह से .या शायद घटना क्रम की गंभीरता को न समझ के ....विरोधी के पास उम्मीद से ज्यादा घातक हथियार होने से ....या बुलेटप्रूफ जेकेट ओर हेलमेट न पहनने के कारण ....
ReplyDeleteवैसे अंतुले का ये कहने का दूसरा मकसद है ,जो शर्मनाक है.!
तो फिर सौरभ कालिया कारगिल में अब्दुल हमीद पाकिस्तान जंग में की भी जाँच हो.
ReplyDeleteफिर तो जाँच इस की भी हो के गाँधी केसे मरा लाल बहादुर जी केसे मरे/
बहुत जाँच हैं करो तो सही पर सेकुलर ही खाली मत बनो/
मैं डॉ अनुराग की बात से पूरी तरह सहमत हूं कि अंतुले की मंशा सही नहीं थी। और साथ ही कई उन लोगों की मंशा भी सही नहीं है जो कि उनकी शहादत पर सवालिया निशान लगा रहे हैं।
ReplyDeleteलेकिन मेरे तर्क बिल्कुल अलग हैं। मैं सुनी सुनाई बातों पर बातें नहीं करता। लेकिन क्या करकरे पर दबाव नहीं था, आज जो हिंदु संगठन उनके साथ खड़ें हैं वो साध्वी एपिसोड में उन पर निशाना साधे बैठे थे। तभी तो मोदी ने उनकी शहादत की कीमत उनके घर वालों को भेज दी थी पर उन्होंने नहीं ली क्यों नहीं ली ये भी सब जानते हैं।
अफ़्सरो का इस तरह से मारा जाना सच मे सवाल खड़े करता है.सही है ....
ReplyDeleteकुछ गलतियां अफसरों से जरूर हुयी -यह बुद्धिमता नही थी की आपात स्थिति में तीनों जाबाज अधकारी एक गाडी मेंही जा बैठे -पर वे मारे गए आतंकियों की गोली से ही इसमें कोई षड़यंत्र कहाँ लगता है -उन्होंने आतंकी घटना को जरूर कैजुअल तरीके से ले लिया !
ReplyDeleteनीतिश जी आप की बात बिलकुल सही है, भेदी कोई घर का ही है,ओर यह हमला लगता है कोई सोची समझी साजिश ही है,कितने ही राज दफ़न है ... शायद यह राज कभी खुल जाये... जांच जरुर होनी चाहिये लेकिन कोन करेगा???
ReplyDeleteधन्यवाद
इस मुद्दे पर मैं दिल से नियन्त्रित हूं । करकरे की शहादत पर कोई विवाद न हो तो ही अच्छा है । दिमाग इस पर बात करने को बिलकुल ही तैयार नहीं है । वे एक निर्भीक, समर्पित और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी थे । उनका और उन जैसों का जाना हमारे लिए अपूरणीय क्षति है ।
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