कई दिन से सोच रहा था कि मुंबई आतंकवादी हमले पर मेरा लिखना बनता है। कई मेल भी आए अपने ब्लॉगर भाइयों के, कि इस मुद्दे पर अब तक तुम्हारे ब्लॉग की तरफ से कुछ आया ही नहीं। तो सबको बता दूं कि कुछ और प्रोजेक्ट पर लगा हुआ था और फिर जब से ये हमला हुआ है तो तब से अधिकतर वक्त ऑफिस में ही निकल जाता।
२६ को प्रगति मैदान गए थे, शाम तक घूमते-घूमते हालत ऐसी हो गई कि उस दिन फिर कुछ लिख नहीं सका। शाम को सोचा था कि प्रगति मैदान पर लचर सुरक्षा व्यवस्था पर जरूर लिखूंगा लेकिन थकान ही इतनी ज्यादा थी कि कुछ लिख नहीं पाया। साथ ही यदि आपका बॉस कान का कच्चा हो तो और भी दिक्कत होजाती है और रात में उनसे एक बात को लेकर बहस हो गई(मेरे बॉस ये जानते हैं कि मैं लिखता हूं और जब वो इसे पढ़ेंगे तब तो)। मैंने सोचा था कि २७ को इस पर कुछ लिखूंगा लेकिन मुझे क्या पता था कि २६ की रात ऐसी आपदा देश पर आएगी कि देश के साथ-साथ पूरा विश्व उस घटना से हतप्रभ सा रह जाएगा।
२६ की रात को जब तक मैंने देखा तब तक अपुष्ट खबरें आ रही थीं कि शायद ये आतंकवादी हो सकते हैं। पर लगा कि मुंबई में सुरक्षा व्यवस्था तो इतनी कमजोर नहीं रह गई है जब से कि एटीएस का निर्माण हुआ है लेकिन आतंकवादी मुंबई में हैं ये बात कुछ हजम नहीं हो रही थी। सब चैनलों पर ये चल रहा था कि दो गुट में फायरिंग हुई है। लगा कि अंडरवर्ल्ड के दो गुटों में जमकर फायरिंग हो रही है पर ये आतंकवादी नहीं हो सकते दिल नहीं मान रहा था। थोड़ी देर में पता चला कि नहीं ये तो कुछ और ही है। ये महज कुछ क्षण के लिए फायरिंग नहीं हो रही है मुंबई पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया है।
सुबह मुझे देर तक सोने की आदत है, घर में सब उठ चुके थे, मैंने उठ कर सबसे पहले अपना चैनल देखा तो आंख फटी की फटी रह गई। ४ साल के बेटे ने पूछा, पापा क्या हुआ? पत्नी भी मेरे बगल में आकर बैठ गईं। हम दोनों को ऐसे बैठे देख, बेटू भी टीवी देखने लगे। फिर सवाल शुरू हुए बेटे के। लेकिन उन सवालों के जवाब मेरे पास क्या किसी के पास भी नहीं हो सकते। पापा ये स्मार्ट अंकल कौन हैं और इनके हैंड में क्या है? क्यों ये ढिसुम ढिसुम कर रहे हैं? अंकल लोग क्यों भाग रहे हैं? फिर खबरें देखते-देखते ही खाना वगैरा चलता रहा और दूसरी तरफ हमारे बेटू बार-बार ये बोलते रहे कि पापा अपना वाला चैनल चला लूं(कार्टून नेटवर्क)। लेकिन मैं मना करता रहा। बेटे ने भी ज्यादा जिद नहीं की। थोड़े समय के बाद मैं ऑफिस के लिए चला गया वहां पता चला कि २६ की रात से ही लाइव बुलेटिन चल रहे हैं। फिर तो काम करने में जुट गए। २८ की सुबह ६ बजे तक मैं ऑफिस में लाइव बुलेटिन करता रहा। रात बारह बजे लग रहा था कि ओबरॉय को छोड़कर दोनों जगहें आतंकियों के कब्जे से छुड़ा ली जाएंगी। पूरी रात नरीमन, ओबरॉय और ताज में फायरिंग होती रही, ग्रेनेड फेंकने का सिलसिला जारी रहा। ऑफिस से घर सोने के लिए फिर उठते ही वापस ऑफिस की राह। और यूं ही सुबह ६ बजे तक लाइव चलता रहता। तीन दिन कुछ यूं ही सिलसिला चलता रहा। पता नहीं चल पा रहा था कि कितने और शहीद होंगे। दुख हुआ कि करकरे, सालास्कर, शहीद होगए, पर क्या वो सच में शहीद हुए। बार-बार खबरें आती रही कि यहां से इतने हताहत हुए और वहां से संख्या बढ़ गई है। थोड़ी देरी की शांति के बाद फिर फायरिंग या ग्रेनेड हमला। इस बीच एक फैसला जरूर अच्छा हुआ कि मीडिया पर लाइव तस्वीरें दिखाने की मनाई हो गई। इस के पीछे कई लोगों ने कई बात बनाई। पर ये फैसला काफी अच्छा था। मैंने अपने सीनियर के सामने ये बात रखी थी कि कमांडो कहां पर हैं ये हमें नहीं दिखाना चाहिए। पर शायद उन्हें मेरी बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कुछ भी जवाब नहीं दिया, साथ ही कहा कि फिर हम दिखाएंगे क्या? और साथ ही कि दोनों होटलों के केबल कनेक्शन काट दिए गए हैं, तो उन्हें पता कैसे चलेगा। मेरा जवाब था कि फोन और सेटेलाइट फोन के जरिए। कहीं पर भी उनके आका देख रहे होंगे जो उनको इस बात की जानकारी दे रहे होंगे। लेकिन थोड़ी देर के बाद ही इस बात को मान लिया गया था। बहुत खुशी हुई जब कमांडो कार्रवाई के दौरान तीनों जगह को आजाद करा लिया गया। पर शायद बहुत देर में हमने अपना पिंड इन आतंकियों से छुड़ाया। गलती किसकी? इस बारे में सिर्फ तथ्यों के साथ अगली पोस्ट में लौटूंगा।
लेकिन ये ५-६ दिन ऐसे थे कि ना चाहते हुए भी लगा कि हमने इस बार बहुत खोया है। कई सवाल मन में उठ रहे हैं। उन सब सवालों के जवाब और उन पर उठते सवालों के साथ अगली पोस्ट में सब लिखूंगा। अभी के लिए इतना ही।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
" very well written and explained and so many questions are being raised in this artical of yours....and many of us are anxious to know the right answers.....for every how, when why,what who.....but stil not answered... waiting to read your next articl abt it..."
ReplyDeleteRegards
आपका कमांडोज की पोजीशन नही दिखाने का फैसला पहले ही मान लिया जाना था ! कहिर देर आयद दुरुस्त आयद वाली तर्ज पर उनको बाद में मानना पडा ! आगे और बातें आपसे पता चलेंगी ! इंतजार है !
ReplyDeleteरामराम !
सही लिखा आपने ,आपकी अगली पोस्ट का इँतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteसही लिखा आपने ...देर आयद दुरुस्त आयद वाली!
ReplyDeleteyah sach hai ki is opearation ko fath karne me kai shaheed ho gaye hai .age ke khulase ka intajaar hai.
ReplyDeleteराज सा. आपकी लेखन शैली में कशिश है... बहुत अच्छा लिखा है......
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट। कमांडो के बारे में उनके चॉपर से छत पर कूदते समय गिन कर बताया जा रहा था जो कि बहुत-बहुत गलत हरकत की मीडिया ने ।(यह बात हमेशा गुप्त रखी जाती है कि कितने कमांडो कोई ऑपरेशन इस वक्त कर रहे हैं) उम्मीद है मीडिया को थोडा वारसेंस अब तक आ गया होगा।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ढग से आप ने लिखा, आप की अगली पोस्ट का इन्तजार....
ReplyDeleteधन्यवाद