Sunday, December 21, 2008

मांग करने वालों की तादाद बढ़ी तो अब सबकी जुबान चुप क्यों?

बिना तथ्यों के बात करना गलत होता है, यदि तथ्य हैं तो बेहतर हो कि उजागर भी हों। अब जो तथ्य सामने आ रहे हैं वो पुराने तथ्यों से कुछ अलग हैं। जो पुराने तथ्य सामने आए थे वो ये थे कि करकरे, सालस्कर, काम्टे और साथ में बैठे तीनों सिपाही जब शहीद हुए तो उनके पास टाइम ही नहीं था कि वो आतंकवादियों की गोली का जवाब दे पाते। साथ ही तीनों अधिकारियों को पीछे की तरफ से गोली मारी गई थी। सबकुछ इतना अचानक हो गया कि किसी को भी पता नहीं चल सका था कि क्या हुआ। 27 की रात 1 बजे के करीब जब ये ख़बर आई थी कि हमारे तीन आला अधिकारियों को गोली लग गई है जिसमें से करकरे को ताज के पास और सालस्कर, काम्टे को कामा के पास गोली लगी है। पर थोड़ी देर बाद ये दुखद समाचार आया कि करकरे नहीं रहे, पर ये क्या सालस्कर भी नहीं रहे, और तीसरा फ्लैश था कि काम्टे भी शहीद। मुंबई के साथ-साथ पूरा देश आतंकित हो गया। हेमंत करकरे का नाम हर दिन सुनने को आ रहा था कारण था साध्वी का। तो फिर एकदम से खबर आना कि आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला कर दिया है और इन आतंकियों ने हमारे तीन आला अधिकारियों को मार दिया है तो ख़ौफ़ की बात तो थी ही। क्या आतंकवादी इतने ताकतवर होकर आए हैं कि पूरे मुंबई को कब्जे में कर लेंगे। फिर एक घंटे बाद ही ये साफ हो गया कि तीनों अधिकारी कामा के पास शहीद हुए। लेकिन जिस क्वालिस में करकरे थे उस क्वालिस में सिर्फ एक सिपाही घायल अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहा था। अभी तक जो भी सच सामने आया है वो है खुद जाधव की जुबानी। जो भी हमने जाना है वो हमें जाधव ने बताया है। उस में ही ये सच सामने आया कि उस क्वालिस में किसी ने भी बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहन रखी थी। दूसरी बात जो सामने आई थी वो ये कि इतना मौका किसी के पास भी नहीं था कि कोई संभल कर आतंकवादियों का जवाब दे पाता।
पर अब, जो बात सामने आ रही है वो है कसाब की जुबानी। अजमल आमिर कसाब वो आतंकवादी, जो मुंबई में कहर बरपाने वाले देहश्तगर्द गुट का सदस्य था। कसाब को गिरगांव चौपाटी से जिंदा धर दबोचा गया था और इसका साथी इस्माइल मारा गया था। इन्हीं दोनों आतंकवादियों ने अधिकारियों को मारा और फिर इन्हीं की गाड़ी लेकर गिरगांव चौपाटी भाग निकले। अब कसाब का इकबाले जुर्म सामने आया है। कसाब का बयान जो सामने आया है वो बिल्कुल अलग है। आतंकवादी कसाब के मुताबिक जब वो कामा में क़हर बरपाने के बाद जैसे ही कामा से बाहर निकले तो पुलिस से उनका सामना हुआ। एके 47 का मुंह उन्होंने पुलिस पर खोल दिया। तभी वहां पर दूर से पुलिस की गाड़ियां भी आती दिखाई दी। पहली गाड़ी कामा के पीछे वाले गेट से आगे वाले गेट की तरफ बढ़ गई। थोड़े फासले से आती दूसरी गाड़ी पीछे वाले गेट के पास धीरे हो गई। धीरे होते के साथ क्वालिस में आगे की सीट पर बैठे पुलिसवाले ने उन्हें पहचान लिया था जिसके हाथ में एक 47 थी। गाड़ी रुकते के साथ ही पुलिस ने फायर खोल दिया। गोली कसाब के हाथ को चीरते हुए निकल गई। तभी इस्माइल ने गोलियां चलानी शुरू कर दी और सभी के सभी पुलिसवालों को मार दिया। तीन शव को गाड़ी से बाहर फेंक कर वो गाड़ी से मुंबई में ख़ौफ़ का क़हर, बरपाते हुए चले गए और गिरगांव चौपाटी पर पकड़े गए।
लेकिन यहीं पर बात जो सामने आती है वो है कि दो अलग-अलग बयान सामने आ रहे हैं। ये बात भी सामने आ रही है कि ये दोनों छिपे हुए थे और जिस जगह पर छिपे थे वो गाड़ी के बांयी ओर थी और जो गोलियां अधिकारियों को लगी हैं वो दाहिने तरफ लगी हैं। जब आतंकवादी बांयी तरफ थे तो दायीं तरफ से और पीछे से गोली कैसे चली। मान लिया चलगई पता नहीं कैसे चल गई, कहां से चल गई। लेकिन हेमंत करकरे की बुलेट प्रूफ जैकेट कहां है? जब करकरे की मौत की खबर आई तो नरीमन हाउस में इस ख़बर का तालियों से स्वागत किया गया।
दूसरी बात कि हेमंत करकरे के सीने में तीन गोली लगी जब गोली पीछे से चलाई गईं तो गोली सीने में कैसे लगी? सीएसटी पर जब वो मोर्चा लेने के लिए निकले थे तो उन्होंने बुलेटप्रूफ जैकेट और साथ ही हेल्मेट भी लगा रखा था तो फिर उन्होंने ये उतार क्यों दिया? क्या हेमंत करकरे जैसे सीनियर ऑफिसर इस आतंकवादी घटना को कम आंक रहे थे। या कि फिर ओवर कॉनफिडेंस ने इन आतंकवादियों को इतना मौका दे दिया कि हमने देश का सच्चा सिपाही खो दिया। वो सिपाही जो कि देश को आने वाले दिनों में एक ऐसे सच से रूबरू कराने वाला था जो कि अभी तक भारत के इतिहास में नहीं हुआ था। जिसके कारण वो पूरे देश का दुश्मन बन गया था।
सालस्कर को भी गोली दाहिने तरफ ही लगी है। तो क्या इन दोनों थ्यौरियों में कुछ लोच है या फिर असलियत अभी आना बाकी है। मैं कसाब की थ्यौरी को तबज्जो नहीं देता लेकिन जाधव की भी बात कहीं ना कहीं अधुरी लगती है। जांच की मांग जो की जा रही है वो इन्हीं तथ्यों के कारण की जा रही है। पूरा देश ये मानता है कि तीनों ऑफिसर हमारे नगीना थे, अभी मुंबई को इनकी जरूरत थी शायद देश को भी, पर कुछ हैं जो कि मेरी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वो इस शहीद को खोने के हमारे ग़म को भी हमारा नहीं होने देना चाहते। अंतुले के बाद कांग्रेस दो धड़ों में बंट चुकी है, साथ ही हर दिन कोई ना कोई इस जांच को कराने की वकालत कर रहा है तो फिर कुछ चुनिंदा लोग जांच क्यों नहीं होने देना चाहते। क्या कुछ पर्दे के पीछे है जो कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते की सामने आए?

आपका अपना
नीतीश राज

8 comments:

  1. सही कह रहे है आप्।

    ReplyDelete
  2. जांच हो रही है. जांच के नतीजे भी सामने आयेंगे. जो अंतुले ने कहा है और जिसे कुछ लोग हवा दे रहे हैं, वह यह है कि जांच हिंदू संगठनों द्वारा रची गई साजिश की होनी चाहिए. यही बात दिल्ली में बाटला हाउस में हुई मुठभेड़ के बारे में कही गई. दिल्ली में यह शुरू किया जामिया के वाइस चांसलर ने. मुंबई में शुरू किया अंतुले ने. क्या यह मात्र संयोग है कि दोनों मुसलमान हैं? वाइस चांसलर की बात का समर्थन किया केन्द्र सरकार के एक मंत्री अर्जुन सिंह ने. मुंबई की बात ही शुरू की केन्द्र सरकार के एक मंत्री ने.

    मुंबई में मौका मिला भारत सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ सबूत इकट्ठे करने का. अनेक देश इस मुहिम में भारत का साथ दे रहे हैं. अंतुले की मांग भारत सरकार के द्वारा इकट्ठे किए गए सबूतों की काट करती है. जो काम पाकिस्तान् करेगा, वह काम अंतुले कर रहा है. सरकार और सरकार का एक मंत्री एक दूसरे के विरोध में खड़े हैं इस मुद्दे पर. पर यह मंत्री अभी भी सरकार में है. इस का क्या कारण हो सकता है? क्या अंतुले यह सब कांग्रेस के उच्च नेतृत्व के कहने पर कर रहा है? क्या कांग्रेस फ़िर मुस्लिम वोट बेंक के चक्कर में उलझ गई है? क्या मुंबई हादसा भी कांग्रेस को मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से दूर नहीं कर पाया है?

    इस कुछ बातों पर भी विचार करें नीरज जी.

    ReplyDelete
  3. कृपया 'नीरज जी' के स्थान पर 'नीतीश राज' पढ़ें.

    ReplyDelete
  4. जाँच तो होनी ही चाहिए, उस से सच सामने आए। यह भी सच है कि करकरे ने हिन्दू संगठनों के उग्रवादी स्वरूप को बेनकाब किया था। तकलीफ भी उन्ही लोगों को है जो इस सच को झुठलाना चाहते हैं कि हिन्दू संगठन भी आतंकवाद जैसे रास्ते को अपनाने के रास्ते पर हैं। पर यह सच है तो इसे तुरंत कुचला जाना चाहिए। इस से यह मिथ नष्ट हो रहा है कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकते।

    ReplyDelete
  5. बिल्कुल सही कहा आपने !

    रामराम !

    ReplyDelete
  6. आपने ठीक लिखा है. जिन परिस्थितियों में करकरे जी शहीद हुए और जो विवरण आपने दिया है, संदेह को जन्म देने के लिए काफ़ी है. जांच की मांग करना अपनी ईमानदारी को उजागर करता है. कोई हिंदू जब कहीं जांच की मांग करता है तो हम यह कभी नहीं कहते कि वह हिन्दू होने के कारण ऐसा कर रहा है. फिर किसी मामले में जांच की मांग यदि कोई मुसलमान कर रहा है तो यह सवाल क्यों उठाया जा रहा है कि वह मुसलमान है. देखना यह है कि यह कौन लोग हैं जो मुसलामानों को मुंह खोलते भी नहीं देखना चाहते. जांच की मांग करना हर व्यक्ति का अधिकार है. विगत दिनों में जिन-जिन मुद्दों पर जांच की मांगें हुई हैं और जिन-जिन लोगों ने की हैं क्या वह सब ग़लत थीं. क्या जो भी सरकारी बयान आए उसे नत-मस्तक होकर स्वीकार कर लेना चाहिए. अंतुले मुसलामानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते. उनकी राय व्यक्तिगत राय है. उसका वज़न उनके पद से आँका जाना चाहिए. उनके मुसलमान होने से नहीं. करकरे जी की शहादत से किन लोगों को लाभ पहुँचा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है.
    केवल टी.वी. की खबरों को ही आधार मान लिया जाय तो उसपर कितनी परस्पर विरोधी खबरें आ चुकी हैं.प्रारम्भ में आतंकियों की संख्या छब्बीस बतायी गई, नौ के जिंदा गिरफ्तार किए जाने की बात की गई, पुलिस की दो गाडियां लेकर आतंकियों के भागने की सूचना दी गई, उन गाड़ियों के बार-बार नंबर भी बताये गए. यह भी कहा गया कि इन गाड़ियों की तलाश जारी है. फिर इस प्रसंग में मौन धारण कर लिया गया. जिन लोगों ने सबीना सहगल की मोबाइल पर दी गई सूचना को कि वे बेड के नीचे छुपी हुई हैं टीवी पर प्रसारित कर के उन्हें शहीद करा दिया क्या उन्हें कातिल नहीं समझाना चाहिए ?. क्या यह सभी बातें जांच की मांग को बल नहीं देतीं ?

    ReplyDelete
  7. आपने बिल्कुल सटीक लिखा है.

    आखिर कुछ तो ऎसा है, जिसे छुपाने की कशिश की जा रही है.
    सच्चाई चाहे कुछ भी हो, किन्तु तथ्य तो चीख-चीख कर इसी ओर इशारा कर रहे हैं.

    ReplyDelete
  8. इस अंतुले को पकड कर एक बार पुछ ताछ की जाये भारतीया तरीके से सब साफ़ साफ़ हो जायेगा, कुछ राज तो है क्योकि पहले दिन से मन नही मानता कि इतने काबिल पुलिस ओफ़िसर ऎसे हालात मै पाये जाये ओर जो तीसरा बचा है उस से भी पुछ ताछ करनी चाहिये , यह गुथिया जरुर सुलझनी चाहिये वरना देश अपने ही अन्दर बेठे गदारो से खतरे मै पढ सकता है, ओर अगर हमे शहीदो को सही श्राधज्लि देनी है तो सच्चाई को उजागर करना होगा.
    धन्यवाद

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”