Friday, January 9, 2009

वो सफर, जो मुझे हमेशा याद रहेगा। मेरी पहली हवाई यात्रा-2।

आगे...
...इतने बड़े ग्राउंड में अपने प्लेन को ढूंढने की असमंजस में मैं इधर-उधर ताकने लगा। कई बस आजा रही थी इतनी देर में ये तो जान गया था कि ये जगह एयरपोर्ट है ना कि कोई बस अड्डा। लेकिन क्या करूं याद आ रही थी बस अड्डे की जहां पर कोई ना कोई जरूर आवाज़ लगाता रहता है, मैं ये ही सोच रहा था कि कोई आवाज़ लगाए कि मुंबई-मुंबई, कोलकाता-कोलकाता,बैंगलोर-बैंगलोर...और मैं पैदल ही वहां का रुख कर लूं। लेकिन ये जगह है इतनी बड़ी कि पैदल ढूंढना भी बहुत मुश्किल है। दिमाग में सिर्फ और सिर्फ ये ही सब घूम रहा था और लगातार दौड़ रहा था पर पैर थे कि जम से गए थे। सुबह के 5.45 बज रहे थे। ठंड भी बहुत थी लेकिन अब तो पसीना आने लगा था। साथ ही वहां पर अभी तक सिर्फ मैं ही अकेला खड़ा हुआ था तो और घबराहट हो रही थी कि कहीं देर तो नहीं होगई। लेकिन तभी वहां पर टाई पहने एक लड़का आया। उसके हाथ में वॉकी टॉकी भी था और उसने मुझे बताया कि अभी बस आएगी और आपको आपके प्लेन तक ले जाएगी।
अब आई सांस में सांस। लेकिन अब दूसरी चिंता सताने लगी और वो चिंता हमेशा ही गलत समय पर आती है वो है लघुशंका की। अब समझ में नहीं आ रहा था कि कहां फारिग होऊं। ग्राउंड स्टाफ कहां जाता है इसका तो पता नहीं था पर यदि जाऊं और बस फिर छूट जाए तो क्या होगा। इसी द्वंद में फंसा हुआ था कि बस आगई और कुछ सह यात्री भी आगए। बस थोड़ी देर रुक कर तकरीबन 15 यात्री को लेकर बस प्लेन की तरफ चल दी। लघुशंका का निवारण तो अब प्लेन में जाकर ही होगा। ये प्लेन होगा हमारा, बस नहीं रुकी, तो ये होगा, ये भी नहीं। करते-करते तकरीबन आधा किलोमीटर घूमने के बाद हम अपने प्लेन तक पहुंचे। या तो मेरे प्रेशर का मामला था या पता नहीं क्या, पर तुरंत मैं बस से उतर कर सीढ़ियों के पास तक जा पहुंचा और मेरे टिकट को आधा फाड़कर चैकर ने आधा मुझे पकड़ा दिया। ऊपर पहुंचा तो दो ऑटियों ने मेरे इस्तकबाल किया और अंदर की तरफ इशारा किया। पहले बिजनेस क्लास पड़ा और तुरंत ही तकरीबन 186 सीटों का इकॉनमी क्लास। अब कहां बैठूं? कुछ दिन पहले ही एक अंग्रेजी मूवी देखी थी कि एयरहोस्टेस खुद बताती हैं कि कहां बैठना है। पर यहां तो ऐसा नहीं था। मैंने तुरंत बोर्डिंग पास पर नजर डाली तो उसमें सीट नंबर लिखा हुआ था 12A। याने समझते देर नहीं लगी कि मुझे कहां बैठना है।
अरे, ये क्या मुझे तो खिड़की के बगल वाली सीट मिली है। कहीं ए नंबर की सीट कोई और तो नहीं होती, पर ऐसा नहीं था और पूरे इत्मीनान के साथ बैठ गया। बैठते ही लघुशंका की शंका का निवारण करने की इच्छा जाग्रित हुई और मैं चल दिया बाथरुम की ओर। मैं जिस से बड़ी देर से त्रस्त था उस से निजात पा लिया। थोड़ी ही देर में मेरी सीट के आगे लगी स्क्रीन पर जो कि मेरे आगे वाले की सीट की बैक थी उस पर संदेश आने लगे। अधिकतर फिल्मों में देखा है कि पहली बार सफर करने वाले को बेल्ट लगाने में बड़ी दिक्कत होती है पर मुझे नहीं हुई। सीढ़ियां हटा ली गईं थी। एयरहोस्टेस जो कि उदघोषिता भी थी उसने सूचना दी कि थोड़ी देर में फ्लाइट उड़ने के लिए तैयार है और उदघोषणा बंद होगई।
धीरे-धीरे विमान बड़ी आवाज़ करते हुए सरकने लगा और रनवे तक पहुंच गया। विमान थोड़ा रुका और मैंने धरती को जी भरकर पास से देखा क्योंकि मेरे बगल में तो कोई था नहीं लेकिन जो भी सहयात्री आजू-बाजू थे वो अपने दोनों हाथ जोड़कर बैठे हुए थे। उनमें से कुछ पढ़ भी रहे थे और कुछ सिर्फ सामने शून्य में देख रहे थे। मैं अपने बगल में बांयी और की विंग को देखने लगा। विमान रनवे पर चल दिया फिर तेज आवाज़ के जरिए दौड़ने लगा। बस एक छोटे से हल्के झटके के साथ मैं आसमान की तरफ बढ़ गया। धरती पीछे और नीचे छूटती जा रही थी और मैं लगातार नीचे देखता जा रहा था। पर ये क्या, प्लेन की लेफ्ट विंग नीचे की तरफ क्यों झुक रही है। मेरा तो कलेजा मुंह को ही आ रहा था और मैं नीचे देखने से डरने लगा। साथ ही मैं दूसरी तरफ झुकने लगा। ऐसा लगा कि कहीं नीचे ही ना गिर जाएं। वो एहसास बड़ा ही खतरनाक था। लग रहा था कि खड़ा हो जाऊं क्योंकि प्लेन एक तरफ काफी झुक गया था और ठीक मेरे नीचे दिल्ली या फिर उसके आसपास के इलाके रहे होंगे। यदि कोई बाईचांस मुझे देख रहा होता तो वो पहचान जाता कि ये मेरी पहली हवाई यात्रा है। मेरी हवाईयां उड़ी हुई थी।
थोड़ा ऊपर जाकर विमान ठीक से चलने लगा। एहसास हो रहा था कि जैसे चढ़ाई में कुछ दिक्कत हुई है और अब वो समतल सड़क पर ठीक से चलने लगा है। पर लगता था कि बीच-बीच में सड़क में बहुत गड़्ढ़े हैं और प्लेन में काफी आवाज़ हो रही थी। लेकिन ऊपस से धरती को देखना का सुख मुझे बहुत ही प्रफुल्लित कर रहा था। साथ ही लग रहा था कि गूगलअर्थ में जो चित्र उभरते हैं वो सचमुच में ही काफी सही और जीवंत लगते हैं।

'बादलों के ऊपर जहां और भी हैं। ऐसा लग रहा था।'

नीचे धरती, उसके ऊपर बादल, उसके ऊपर हमारा विमान और हमारे विमान के ऊपर सिर्फ और सिर्फ साफ आसमान। सूरज ऊगने की फिराक में धीरे-धीरे ऊपर उठते हुए। बड़ी ही मनमोहक तस्वीर उभरकर सामने आ रही थी। थोड़ी देर बाद नाश्ता आया और पता चला कि हवाई ब्रेकफास्ट कैसा होता है। उस समय हम समुद्र तल से 10700 मीटर की ऊंचाई पर थे और बाहर हवा का तापमान था -46 डिग्री, जी हां, शून्य से 46 डिग्री नीचे। मैं अपने इयरपीस पर गाने सुनता हुआ जा रहा था। चलचित्र और गानों की व्यवस्था भी अंदर थी उसी स्क्रीन पर जहां पर पहले संदेश आ रहे थे। सिर्फ पौने दो घंटे में मैं मुंबई पहुंच गया। पूरी उड़ान के वक्त मैं एक अलग एहसास होता रहा जो कि बिल्कुल अलग था।
जाने में तो वक्त का पता ही नहीं चला। शाम को एक शो करना था शो करके अगले दिन दोपहर की फ्लाइट पकड़कर दिल्ली वापिस हो लिया। लेकिन इस बार की फ्लाइट में कोई दिक्कत नहीं हुई। ऊपर ऐसा लग रहा था कि जैसे सड़क सुधार दी गई हैं जो भी ऊबड़-खाबड़ रास्ते थे वो पाट दिए गए हैं। लेकिन जैसे ही दिल्ली के करीब पहुंचे और उतरने के लिए उदघोषणा हुई सब ने तैयारी कर ली पर ये क्या, प्लेन तो हवा में ही उड़ा जा रहा है। क्या हुआ कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। कैप्टन ने बताया कि अभी नीचे ट्रैफिक है तो इंतजार कीजिए। अब लगा प्लेन राउंड-राउंड घूमने और यहां मेरी हालत खराब होने लगी। उस समय ऊंचाई ज्यादा नहीं थी और लेफ्ट साइड पूरी तरफ झुक जाती तो लगता कि अब गिरे और तब। जब कोई हवाई यात्रा के सफर पर जाता था और उसके साथ ऐसी कोई घटना होती थी तो हम बहुत चहकते हुए कहते थे कि पैसे तो दो घंटे के लिए दिए थे और ढ़ाई घंटे की मौज ली है, मजा बहुत आया होगा। अब पता चलता है कि क्या हालत होती है जब हवा में अटके रहते हैं तो। 15 मिनट के बाद हमारी फ्लाइट नीचे उतर गई पर अंतरराष्ट्रीय रनवे पर। और वहां से घरेलू रनवे तक हम विमान में दौड़ते हुए आए जिसकी गति लगभग 30 कि.मी. थी।
पर जो कुछ भी था फ्लाइट में आनंद आ गया बस एक बात थी कि बाईं तरफ प्लेन जब झुकता है तो कलेजा मुंह को आता है।

आपका अपना
नीतीश राज

8 comments:

  1. Manoranjak laga aapka hamai yatra vritant. Abhar.

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  2. मुबारक हो पहली विमान यात्रा -आपने तो तो इतनी सहजता से अपनी लघुशंका का निवारण कर लिया मुझे तो इए लेकर कई दीर्घ शंकाएँ सालती रहीं !

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  3. रोचक रही आपकी पहली यात्रा ..अच्छा लगा इसको पढ़ना

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  4. बहुत लाजवाब और प्रवाह मयी भाषा मे लिखा है आप्ने ये वृतान्त. वाकई सभी के साथ पहली यात्रा मे ऐसा ही होता है. फ़िर बाद मे तो यात्रा के दौरान भी याद नही रहता है कि हवाई जहाज मे बैठे यात्रा कर रहे हैं. सारा ध्यान ही दुसरी बातों मे लगा रहता है.

    और असल मे पहली यात्रा मे मजा ही इसीलिये आता है कि हमारा सारा ध्यान ही हवाई जहाज मे होता है और बाद मे तो हम कहीं और खोये रहते हैं. बहुत बढिया जी.

    रामराम.

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  5. पढ़ना अच्छा लगा जी! और इस कारण भी कि मैं आज तक हवाई जहाज नहीं चढ़ा!

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  6. अगली बार कुछ भी डर नही लगेगा, मजा आ गया

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  7. नीती‍श जी, बढि‍या चि‍त्रण, दि‍शार्नि‍देश के तौर पर भी उपयोगी जानकारी।

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  8. बहुत लाजवाब और रोचक

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”