Wednesday, February 18, 2009

काश! देश के सभी शहर चंडीगढ़ बन पाते।


कुछ दिन पहले ही फिर से अपने मनपसंद शहरों की लिस्ट में से एक, चंडीगढ़, जाना हुआ। सच मायने में मुझे इस शहर के रहन-शहन, हरियाली, धरोहर और साथ ही इस शहर के कायदे कानून को देखकर काफी सुकून मिलता है। इस शहर को देखकर ही लगता है कि देश में चंडीगढ़ जैसे कुछ शहर ज्यादा होने चाहिए। यहां के सेक्टर १७ के मार्केट को देख लें तो लगता है कि दिल्ली के कनॉट प्लेस में आप तफरी कर रहे हैं। सड़कें चौड़ी और साफ सुथरी देखकर ही लगता है कि आप किसी साफ सुथरी जगह याने कि पॉश इलाके में घूम रहे हैं।
मेरे मित्र ने मुझे बताया कि चंडीगढ़ का दूसरा नाम एनआरआई सिटी भी। मैंने उससे जानना चाहा कि ऐसा क्यों कहा जाता है? उसका जवाब था कि, ‘दिल्ली से मात्र २५० किलोमीटर दूर ऐसी सुकून भरी जगह मिलना आसान भी नहीं है। ये जगह एक तरह से देखें तो सेंटर प्वाइंट है ठंडी और गर्म जगह का। साथ ही यहां पर किसी भी सरकार का राज तो चलता नहीं है तो कानून व्यवस्था और साफ-सफाई तो तुम देख ही रहे हो’।
कुछ साल पहले जब सबसे पहली बार मेरा आना हुआ था चंडीगढ़, तब, रास्तों पर रेड लाइट नहीं थी। माना जाता था कि इस शहर के रहने वालों को इस बात का पता है कि सड़कों पर गाड़ी कैसे चलाई जाती है। लेकिन अब
हर चौराहे पर रेड लाइट लगा दी गई है शायद आबादी ज्यादा हो गई है या फिर वहां पर वो लोग पहुंच चुके हैं जो कि गाड़ी चलाना तो जानते हैं पर काबू रखना नहीं। पता नहीं कहां से ट्रैफिक पुलिस का हवालदार आपके पास आएगा और कहेगा कि सर आपने सीट बैल्ट नहीं लगाई है जरा गाड़ी कोने में लगाई। और फिर नियम नियम है आप अकड़े तो कट गई पर्ची, यदि प्यार से सुलटा लिए तो जल्द ही छूट जाएंगे। मोबाइल को हाथ में ले भी नहीं सकते। याने कि जब गाड़ी चला रहे हों तो सिर्फ गाड़ी चलाएं। इस कारण से सबसे ज्यादा चालान दिल्ली और उसके आस-पास से आए लोगों का ही कटता हैं। क्योंकि कायदे मानने में हम दिल्ली वालों का दिल थोड़ा छोटा है। गाड़ी चलाते समय तो अनिवार्य रूप से मोबाइल पर बात करेंगे। सीट बैल्ट के नाम पर बैल्ट को लगाएंगे नहीं सिर्फ ओढ़ लेंगे। हेल्मेट के नाम पर टोपी लगाएंगे। कोई भी पुलिस वाला आप से हरियाणवी लठमार टोन में (सिर्फ ताऊ जी को छोड़कर) बात करता नहीं मिलेगा।
साथ ही शहर ज्यादा बड़ा भी नहीं है और अधिकतर जगह पर जाने के लिए हर शख्स के पास अपना वाहन है। चंडीगढ़ और बैंगलोर ही शायद दो शहर हैं जहां पर सबसे ज्यादा स्कूटी चलती हैं।
हर चौराहे पर बना गोल चक्कर और उन गोल चक्कर की सजावट देखते ही बनती है। हर गोल चक्कर याद दिलाता है कि हम दिल्ली के चाणक्यपुरी में घूम रहे हों। वैसे आप सब को बता दूं कि चंडीगढ़ में जितने भी गोल चक्कर हैं उनको किसी ना किसी प्राइवेट कंपनी ने गोद ले रखा है। इसलिए वहां की साज सजावट निराली होती है साथ ही हर साल सबसे अच्छे और व्यवस्थित गोल चक्कर को ईनाम भी दिया जाता है।
इस शहर में यदि कभी आप आएं तो अपने साथ पॉलीथिन (पन्नी) नहीं लेकर आएं तो बेहतर वर्ना देखते के साथ ही पुलिस उसे जब्त कर लेगी और साथ ही जुर्माना भी लगा सकती है। नो टू पॉलीथिन इन चंडीगढ़। नो टू स्मोकिंग भी। पब्लिक प्लेस पर तो आप नहीं पी सकते, देखते ही चालान है। ५ की सिगरेट १००० में पड़ेगी, काफी महंगी, कई महीनों का कोटा। कोई भी आम आदमी आप की कंप्लेंट कर सकता है जिसका खामियाजा अजय देवगन अभी भी भुगत रहे हैं। अपनी गाड़ी से आए हैं तो नियम रट कर आइए यदि गलती हुई तो चालान, सीट बैल्ट हमेशा बांधें। प्रेस क्लब अगर जाना हो रहा है जो कि किसी भी थ्री स्टार होटल से कम नहीं है तो ध्यान रहे कि चप्पल, कुर्ता ना पहन कर जाएं वर्ना अंदर आप को जगह मिलेगी नहीं।

नेक चंद रॉक गार्डन घूमने के लिए काफा अच्छी जगह है साथ ही उसके पास ही सुखना लेक है जो कि बाकायदा चंडीगढ़ की सुंदरता को बढ़ाने और टूरिस्टों को खींचने के लिए काल्पनिक याने कि आर्टिफिसिएल बनाई गई। सेक्टर १६ का स्टेडियम और मोहाली स्टेडियम होसके तो देखने ही चाहिए और हम तो सेक्टर १६ के स्टेडियम में मैच खेलने गए थे। यूनिवर्सिटी भी अच्छी जगह है जहां पर आप घूम सकते हैं।
हरियाणा और पंजाब की राजधानी एक यूनियन टैरिटरी चंडीगढ़ है। इस कारण से इसके अपने काफी नुकसान और फायदे भी हैं पर देखकर लगता है कि हर शहर को अव्वल बनाने में यहां का प्रशासनिक तबका काफी मेहनत से लगा रहता है। हां, एक बात तो बताना भूल ही गया था कि चंडीगढ़ में और दिल्ली से चंडीगढ़ के रास्त में आपको ढाबे कम और ठेके (दारू की दुकान) ज्यादा मिलेंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

# अब नवाबों के शहर जाना हो रहा है देखते हैं कि वो शहर हमें कैसा दिखता है।

फोटो साभार—गूगल

4 comments:

  1. बहुत दिनो से आपके बारे मे ही सोच रहा था मेरा भी इन दिनो घूमना-फ़िरना ज्यादा हो रहा है,खैर बहुत अच्छा लगा आपको बहुत दिनो बाद पढकर।संभव हो तो अपना मो नं दे देना कभी-कभार बात कर लेंगे।

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  2. मेरे मनपंसद शहर में से यह एक है ..अच्छा लिखा आपने इस शहर कि खूबसूरती पर

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  3. बहुत अच्छी जानकारी दी आपने...चंडीगढ़ गए कोई आठ साल हो गए हैं....यकीनन अब वो और भी अधिक सुंदर हो गया होगा.

    नीरज

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  4. मैने तो अस्सी के दशक में चण्डीगढ़ देखा था। बहुत अच्छा शहर है।

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