चश्मा पहनें वो शांत, गंभीर, लंबा, इंजीनियर लड़का
चश्मा पहने एक लंबा लड़का, जिसकी टांगें उसको एक अलग शख्स के रूप में दिखाती थी। कोई भी ये नहीं कहता कि ये
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१९९९ में फिरोजशाह कोटला में कीर्तिमान
स्कोरबोर्ड पर १०१ रन बन चुके थे और एक भी विकेट पाकिस्तान का गिरा नहीं था। प्रसाद और श्रीनाथ दोनों गेंदबाजों को कामयाबी नहीं मिली थी। पहले सत्र में तो सभी गेंदबाजों को अनवर-आफरीदी की जोड़ी ने खूब ठोंका। लेकिन दूसरे सत्र की शुरूआत में ही कुंबले ने आफरीदी को मोंगिया के हाथों कैच आउट करवा दिया। फिर अगली ही गेंद पर इजाज अहमद को चलता कर दिया। ऑन द हैट्रिक थे कुंबले पर हैट्रिक ले नहीं पाए। दो ओवर के बाद ही इंजमाम ने एक लेजी सॉट खेली और गेंद खुद स्टंप को चूम गई। इस ओवर की पांचवीं गेंद पर यूसुफ योहाना को भी कुंबले ने अपना शिकार बना दिया। आफरीदी और युहाना दोनों ही इस बात से संतुष्ट नजर नहीं आए थे। जबकि आफरीदी तो साफ कॉट बिहाइंड थे और युहाना तो स्टंप के सामने ही पगबाधा हुए थे। फिर मोइन खान का स्लिप पर गांगुली ने शानदार कैच लपका। साथ ही सईद अनवर का कैच लक्ष्मण ने लपका। फिर भारत के सामने थे सिर्फ सलीम मलिक और कप्तान वसीम अकरम। कुंबले कहते हैं कि, ‘यदि इनको आउट कर दें तो फिर समझो कि मैच हमारे कब्जे में, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं दिख रहा था’।
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२००२ में टूटे जबड़े से भी जीवट प्रदर्शन
मैंने अपने एक आर्टिकल में इस बात का पहले ही जिक्र किया हुआ है। टूटे जबड़े से
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ग्रेग चैपल का ख़ौफ़
ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि काफी समय तक सब कुछ सिर्फ और सिर्फ चैपल तक ही सिमट कर रह गया। जितने भी सीनियर खिलाड़ी थे उन सब पर चैपल ने निशाना साधा। सबसे पहले गांगुली, फिर द्रविड़ को अपने साथ मिलाकर गांगुली और द्रविड़ को भिड़ाना। शायद ये अध्याय भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए काला अध्याय था। फिर इस समय के महान खिलाड़ी सचिन पर भी साधा निशाना। कुंबले और लक्ष्मण दोनों ऐसे खिलाड़ी थे जो कि कभी भी बाहर का रास्ता देख सकते थे। कई बार कुंबले ने द्रविड़ के साथ इस बारे में बात भी की। द्रविड़ हमेशा ही समझाते कि अभी तो कुछ नहीं होने जा रहा है।
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कप्तानी के साथ कोटला से विदाई
अपने ३७वें जन्मदिन के मौके से कुछ दिनों पहले ही कुंबले को कप्तानी की कमान सौंपी गई थी। कोई भी नहीं जानता था कि
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पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में कुंबले को कप्तान बनाया जाएगा। २७ साल के बाद पाकिस्तान को हराने में कामयाब रहे। फिर सबसे विवादास्पद सीरीज जिसे की खुद कुंबले भी कठिन सीरीज मानते हैं। २-१ से भारत सीरीज हार गया था। साउथ अफ्रीका के खिलाफ से कुंबले की कप्तानी, गेंदबाजी, फील्डिंग पर असर दिखने लगा। श्रीलंका में तो जिस टीम से टेस्ट टीम हार कर आई थी उसी श्रीलंकाई टीम को हमारी वन डे टीम ने धो दिया था। इस सीरीज में तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। सही समय पर, सही अंदाज में कुंबले ने संन्यास ले लिया।
नागपुर टेस्ट और अंतिम बार ड्रेसिंग रूम में कुंबले
कोटला में ही कह दिया था कुंबले ने कि वो नागपुर में भी ड्रेसिंग रूम का हिस्सा जरूर होना चाहेंगे। कहीं ना कहीं ये जरूर लगता ही है कि यदि चोट नहीं लगी होती तो नागपुर टेस्ट ही कुंबले का आखिरी टेस्ट होता। पर कुंबले ने अच्छा किया कि कोटला में संन्यास ले लिया। सारा ध्यान ठीक तरीके से कुंबले पर ही रहा वर्ना शायद वो बंट जाता और फिर शायद कहीं पर कुंबले की अपनी बात भी दब जाती।
नागपुर टेस्ट काफी अहम टेस्ट है। सौरव गांगुली इस टेस्ट के बाद ही संन्यास लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। साथ ही पहले टेस्ट में गांगुली ने शतक जमाया था क्या जाते हुए आखिरी टेस्ट में भी गांगुली ये करिश्मा दिखा पाएंगे। वहीं वीवीएस लक्ष्मण अपना १०० वां टेस्ट मैच खेलेंगे। १००वें टेस्ट में क्या वो सैंकड़ा लगा कर छठे खिलाड़ी बन पाएंगे। वैसे सिर्फ रिकी पॉन्टिंग ही एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो कि अपने १००वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमा चुके हैं। साथ ही हरभजन सिंह को दरकार है सिर्फ एक विकेट की, फिर वो भी ३०० क्लब में शामिल हो जाएंगे।
लेकिन ये तो पक्का है कि हां, जंबो और दादा की कमी टीम इंडिया को खलेगी जरूर, याद बहुत आएंगे। सच एक युग और अध्याय को विराम लग जाएगा। एक तरफ सबसे ज्यादा मैच जीताने वाले गेंदबाज और दूसरी तरफ भारत के सबसे सफल कप्तान। इन्हें एक युग तो कहेंगे ही।
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आपका अपना
नीतीश राज
सच कहा आपने ! एक युग और अध्याय को विराम लग जायेगा ! बहुत बढिया लिखा आपने ! सहेजने लायक पोस्ट ! धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत मेहनत से आपने इस पोस्ट को प्रस्तुत किया है। आभार।
ReplyDeleteयादें ताजा कर दी.
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट। कुम्बले वास्तव में भद्र पुरुष हैं।
ReplyDeleteसहेजने लायक बहुत अच्छी पोस्ट . धन्यवाद.
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