Thursday, November 20, 2008

‘लिफ्ट याने मदद, पर ऐसी घटना से लगता है ना करो मदद’

ऑफिस की भागदौड़ के बाद जब हम ऑफिस से निकले तो रात के ११ बजने को थे। वैसे भी शाम को कुछ काम और काम से बड़ा उसको सही ढंग से ऑनएयर करने का प्रेशर कुछ ज्यादा ही रहता है। मैं और मेरे सहयोगी एक साथ हम नीचे उतरे सोचा कि चलो कहीं चलकर कुछ खा लें, फिर दोनों घर की तरफ रुखस्त हों। वैसे भी हम दोनों के रास्ते जुदा हैं एक पूर्व रहता है और दूसरा पश्चिम।
सहयोगी ने ऑफर किया कि चलो पहाड़गंज में एक अच्छा होटल है चलो वहीं चलकर कुछ खा पी लेते हैं, और फिर वो मुझे वापिस ऑफिस छोड़ कर घर चले जाएंगे। भूख के कारण मुझे भी ये फैसला उचित लगा। दोनों की हालत लगभगा एक जैसी थी, दोनों ने जल्दी-जल्दी ड्रिंक और खाना खत्म किया और फिर दोनों घर की तरफ निकल लिए।
अगले दिन जब ऑफिस पहुंचे तो फिर काम में हम दोनों जुट चुके थे। बीच में एक ख़बर आई कि लिफ्ट के बहाने दो लड़कियों ने एक आदमी को हजारों का नहीं लाखों का चूना लगा दिया। पैसे, घड़ी, सोने की चेन, सोने की दो अंगूठी, कार सब लेकर गायब होगई। अब वो आदमी पुलिस के धक्के खा रहा था। मेरा सहयोगी कुछ देर तक अपने दोनों हाथ सर के पीछे करके बैठ गया। मैंने पूछा क्या हुआ। वो खबर की तरफ ज्यादा मुखातिब था, मेरी बात शायद उसने ठीक से सुनी नहीं। मैंने दोबारा पूछा। उसने बताया कि ब्रेक पर बताऊंगा।
ब्रेक में उसने बताया कि कल जब वो मुझे छोड़ कर घर जा रहा था तो दो लड़कियों ने उससे भी लिफ्ट मांगी थी। उसने सोचा कि चलो सलवार सूट में सीधी-साधी लड़कियां हैं। उन दोनों लड़कियों को भी वहीं तक जाना था जहां पर मेरे सहयोगी को जाना था। दोनों को लिफ्ट दे दी, यूं ही तीनों में आपस में बात होने लगी। फिर एक लड़की ने पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। मेरे सहयोगी ने हां में सर हिलाते हुए जवाब के साथ सवाल पूछ लिया कि और आप लोगों ने? दोनों ने ना में सर हिला दिया। फिर लड़कियों ने एक रेस्त्रां में जा कर कुछ खाने की बात कही। सहयोगी को उस रेस्त्रां की पूरी हिस्ट्री पता थी उस को समझने में देर नहीं लगी कि वो शायद किसी जाल में फंसता जा रहा है। क्योंकि उस जगह पर कॉर्ल गर्ल और शराब दोनों देर रात तक आसानी से मुहैया होते हैं।
अब मेरे सहयोगी ने अपना पीछा उन दोनों से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी और फिर पता चली वो असलियत जिस के लिए मेरे सहयोगी ने अपने आप को तैयार कर लिया था। यदि आप खाना नहीं खा सकते तो दो-दो ड्रिंक ही कर लीजिए। हमें आपकी मनपसंद जगह पर भी जाने से एतराज नहीं हैं। हमसे सस्ते रेट आपको नहीं मिलेंगे। यदि आपके पास जगह नहीं है तो हमारे पास है लेकिन उसका एक्सट्रा लगेगा, पर आपके लिए हम उसमें भी डिस्काउंट करवा देंगे। यदि पैसे कम है तो आप अपने दोस्तों को भी बुला सकते हैं हम उन्हें भी सर्विस दे देंगे पर दाम फिक्स हैं। यदि कहीं नहीं जाना तो हम अपनी सर्विस आपको आपकी कार में भी दे सकते हैं। लंबी और बड़ी गाड़ी में हमको भी दिक्कत नहीं होगी।
मेरे सहयोगी ने दोनों को बड़े ही प्यार से बहला फुसलाकर वहां से चलता किया पर उसको एक काम जरूर करना पड़ा कि जहां से उनको बैठाया था वहां पर वापस छोड़ना पड़ा। क्योंकि पुलिस की धमकी से मेरा दोस्त खुद फंस सकता था और लड़कियों की एक आवाज से सहयोगी अस्पताल और हवालात दोनों जगह बड़े ही आराम से घूम कर आसकता था। सच मेरे सहयोगी ने बहुत ही अक्लमंदी का परिचय देते हुए दोनों से पीछा छुड़ाया।
बाद में उसने बताया कि, वो इन सब बातों के दौरान सिर्फ उन दोनों लड़कियों की शक्ल देख रहा था। और सोच रहा था कि क्यों उस समय भगवान ने ये अक्ल दे दी कि भली समझकर लिफ्ट दे दी। सभी राहगीरों पर से उठते अपने विश्वास को अपने अंदर कहीं टूटता हुआ महसूस कर रहा था। और शायद कहीं किसी जगह छोटे से कोने में ये सच भी हमारे अंदर पनप रहा है।

आपका अपना
नीतीश राज

5 comments:

  1. अन्‍त भला सो सब भला । गलती पहली बार होती है । उसकी आवृत्ति मूर्खता होती है ।

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  2. बैरागी जी सही कह रहे हैं ! बहुत शिक्षापरक लगा ये आलेख ! धन्यवाद !

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  3. बहुत सही लिखा आपने और ऐसी घटनाओ के कारण ही कभी-कभी हम ज़रुरतमद लोगो की मदद नही कर पाते। सटीक लिखा आपने । आज यहां मतदान है थोडी फ़ुरसत मिली है,सोचा आपको पढ लूं।बहुत अच्छा लगा।

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  4. बप्पा रे बप्पा! ऐसा होने लगा तो कोई जरूरतमन्द की भी सहायता न करेगा!

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”