Wednesday, December 3, 2008

इजरायली अपने लोगों का शव बिना पोस्टमार्टम के ले गए, लेकिन हमले का तो हमें पोस्टमार्टम करना होगा।

मुंबई धमाकों को क्या कोई याद रखना चाहेगा? शायद नहीं, ये वो डरावनी हकीकत है जिसे दोबारा कोई नहीं देखना चाहेगा। लेकिन यदि हम चाहते हैं कि ये दोबारा हमारे देश के साथ नहीं हो तो इस घाव को हमें हमेशा याद रखना होगा। जहां तक मेरा मानना है कि ये पहली बार है कि हम हारे हैं और आतंकवादी जीते हैं। वो जो करने आए थे वो उससे ज्यादा कर गए। अब तक वो छुप कर हमला करते थे। श्रीनगर, घाटी के तर्ज पर इस बार फिदाइन हमला किया गया। हर बार वो छुपकर वार करते थे इस बार अपना दस्ता भेजकर, बिना चेहरा छुपाए, चेहरे पर कोइ नकाब नहीं, चेहरा दिखाकर हमला किया। २००२ अक्षरधाम सबको याद ही होगा, ऐसे वाक्ये बहुत ही कम हैं। हम इस हमले को गर भूल गए तो याद रखिए कि फिर आतंकवाद पलट कर आएगा और वार होगा हमारे नासूर बन चुके घाव पर।

कैसे घुसे आतंकवादी ?

सब जानते हैं कि कहीं तो चूक हुई है पर ये चूक हुई किस-किस मोड़ पर है। तो लगता है कि शुरू से लेकर आखिर तक हर मोड़ पर सिर्फ हमारी ही गलती है। थ्यौरी तो कई सामने आ रही हैं पर जिस पर विश्वास करना पड़ेगा वो है जो कि पुलिस ने अपने आप को बचाने कि लिए दी है। पकिस्तान के कराची में पहले १० आतंकवादी इकट्ठा हुए, फिर समुद्री रास्ते के जरिए भारतीय सीमा पर एक जहाज को अगवा कर के मुंबई पहुंचे और फिर टैक्सियों में भरकर दो-दो के गुट में ५ जगह अपने-अपने मुकाम की तरफ चल दिए।
पर पेंच तो यही आता है कि पहले तो कराची से मुंबई आने के लिए पानी के रास्ते ४ दिन का समय लगता है। क्या इन चार दिन के अंदर खुफिया सूत्रों को एक बार भी ये पता नहीं चला कि समंदर के रास्ते पर कुछ हलचल है। एक जहाज को कब्जे में किया जाता है जिस का नाम कुबेर बताया गया। पुलिस ने जहाज पर मौजूद अमर सिंह टंडेल का रिकॉर्ड पहले से अच्छा नहीं माना है। ये जानकारी भी है कि गैरकानूनी काम के चलते अमर सिंह टंडेल को १ साल की कैद पाक में काटनी पड़ी थी। क्या ऐसे लोगों पर हमेशा नजर नहीं रखनी चाहिए थी। हो सकता है कि अमर सिंह टंडेल भी उनसे मिला हुआ हो और भारत तक लाने का जिम्मा उसका ही हो पर जैसे ही वो भारत की सीमा में पहुंचे उन्होंने टंडेल को मार दिया। समुद्री रास्ते से आगाह करती यूपी पुलिस की वो रिपोर्ट कहां है? कोई पूछे इंटेलिजेंस, रॉ, राज्य सरकार, सीबीआई से। ये तो सच है कि वो सब आए समुद्र के रास्ते से ही थे। जिसे हमारे गृहराज्यमंत्री जायसवाल और महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री समुद्री रास्ते से हुई चूक को अपनी गलती मान चुके हैं। लेकिन जब पता था कि समुद्री रास्ते पर सुरक्षा कमजोर है तो फिर क्या वहां पर ध्यान नहीं देना चाहिए था। अब ध्यान देत क्या होत जब आतंकी कर गए २०० ढेर।

कितने थे आतंकवादी ?

गुमराह करने की कोशिश है कि वो सिर्फ १० आतंकवादी ही थे। ये मैं नहीं मानता कि वो १० थे। माना कि वो समुद्र के रास्ते से आए थे और मान लें कि आए भी १० ही हों पर आतंकवादी १० नहीं थे। कुछ पहले से ही मुंबई में उनका रास्ता देख रहे थे। वहीं दूसरी तरफ, जिस जहाज को उन्होंने अगवा किया था, कुबेर को, उसमें से १५ जैकेट मिले हैं। पुलिस ने ये पहले कहा था कि शायद कुछ लोग बच कर निकल गए हों। पर अब पुलिस ने ये कह दिया है कि सिर्फ १० जैकेट ही मिले हैं क्योंकि वो भी लोगों को दहशत में नहीं रखना चाहती। जब कि पब्लिक ये जानती है कि मुंबई की धरती पर आतंकी हैं। लेकिन सवाल ये ही उठता है कि जब जैकेट १५ मिले तो लोग घट कर १० क्यों रह गए? आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जाती है और इस बात का खंडन किया जाता है कि कुबेर में सिर्फ १५ जैकेट मिले हैं। हम भी जानते हैं कि यदि ये बात फैल गई कि मुंबई या देश में ५ आतंकी घूम रहे हैं तो अफरातफरी मच जाएगी। विलासराव क्या मनमोहन की गद्दी भी ख़तरे में पड़ जाएगी।
मैं ये कतई नहीं मानता कि मुंबई में ६० घंटे तक आतंक का राज चलाने वाले सिर्फ और सिर्फ १० आतंकवादी थे। मैं अपने कमांडो फोर्स को इतना कमजोर या हमारी पुलिस की तरह निकम्मा नहीं मानता। कमांडो कह रहे थे कि इन आतंकवादियों को पूरे होटल का लेयआउट पता था। किस फ्लोर पर कितने कमरे हैं, हर कमरे के पास क्या है, वो यहां से गोली चलाते जब तक हम घूम कर देखते तो दूसरे पल तीसरे फ्लोर से फायरिंग होने लगती, हम अपनी निगाह वहां गड़ाते तो वो छठे फ्लोर से फायरिंग करने लगते, फिर ५वें से, फिर पहले तक से फायरिंग करने लगते और फिर ग्रेनेड हमला। उन आतंकियों को होटल के चप्पे-चप्पे के बारे में पता था और ये मैं शर्त के साथ कह सकता हूं कि ताज को सिर्फ और सिर्फ ४ आतंकवादियों ने अपने कब्जे में नहीं किया। वो भी दो आतंकी बाद में आए उस से पहले तक वो दो आतंकी मुंबई में कोहराम मचा रहे थे। २७ की रात जब ओबरॉय पर कार्रवाई की जा रही थी तब ये खबर आने लगी कि ताज में सिर्फ एक आतंकी बाकी रह गया है और वो भी घायल हालत में है। सबने सोचा था कि आज ताज को छुड़ा लिया जाएगा लेकिन अगले दिन दोपहर आते-आते तो इतनी गोलीबारी होने लगी कि लग गया कि वहां पर और भी आतंकी हैं। तो और आतंकी जब कि सेना ने पूरे ताज को घेर रखा था तब वो दो कहां से आए? जैसे कि पुलिस ने कहा कि दो आतंकी बाद में आकर पहले वाले आतंकियों से मिले।
इस बीच एक माता-पिता को फोन आता है। फोन के दूसरी तरफ होता है मौत के मुंह में झूल रहा खुद उनका बेटा। जो कि ताज होटल में इंटरनसिप कर रहा था और उसने अपनी आखरी इच्छा पूरी कर ली, मरने से पहले अपने घर फोन कर अपने घर वालों से बात कर ली। लेकिन जो जानकारी दी वो भयंकर थी, माता-पिता दोनों एक पल के लिए तो सन्न रह गए। अंतिम सांसे लेते हुए बेटा बोल रहा था कि
आतंकवादियों का हमला ताज पर हो चुका है और उसे गोली लग गई है, लेकिन गोली आतंकवादियों ने नहीं मारी, मारी तो उस शख्स ने है जो कि ताज में, हमारे साथ पिछले ५-६ महीने से इंटरनसिप (काम) कर रहा था।
तो क्या कोई इस बात का जवाब देगा कि फिर वो पांचवां कहां गया? चार आतंकियों की लाश तो मिल गई तो क्या ये शख्स भाग गया या मर गया? वैसे पुलिस ने ये बात शुरू में कही थी कि नरीमन हाउस में रहने वाले दो लड़के ताज में काम करते थे फिर इस बात को किस बात के कारण से दबा दिया गया। जानता हूं क्योंकि ताज है भी बहुत बड़ा और बहुत बड़े लोग हैं।
ये बात पुलिस ने बिल्कुल सही कही है कि वो सीधे कराची से आए थे और फिर क़हर बरपाने मुंबई में फैल गए। तो, नरीमन हाउस पर ठीक उसी समय पर पांच-छह लड़कों को देखे जाने की बात थी तो वो कौन थे? क्या है किसी के पास इस का जवाब? नहीं, तो अगली पोस्ट।

जारी है...

आपका अपना
नीतीश कुमार

7 comments:

  1. क्या पता कितने सच दबे पड़े हैं.

    इन्तजार है आपकी अगली पोस्ट का.

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  2. सच पता नही कब सामने आयेगा ! पर आपका आलेख पढ़ते पढ़ते ये जरुर लगने लग गया है की हमसे ज्यादा सॉफ्ट टार्गेट कोई नही हो सकता ! ये आतंकी रोज नही आते वरना वो रोज ऐसे काण्ड कर सकते हैं ! आगे का इंतजार है !

    रामराम !

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  3. नीतीश भाई ाअप क लेख सच दिखाता है, पता नही कब इस सच से पर्दा उठेगा, लेकिन सच कुछ ओर ही है ओर स्थानिया लोग भी इस मे शामिल थे, यह बात पक्की है.
    धन्यवाद

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  4. इसे कहते हैं रिपोर्ट्। सच पर पसरी शंकाओं को परत-दर-परत हटाना वो भी पूरी इमानदारी से।मानना पडेगा आपको। अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।

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  5. सही कहा आपने कि ताज की असफलता की बात सामने नही आरही है क्योकि वह पैसे वाली पार्टी है। ताज वाले यदि यह मान ले कि आतंकी उनके पास काम करते थे कोई उनके होटलो मे आयेगा नही। इसलिये इस बात को दबा दिया गया। आतंकियो के लोकल सपोर्त पर सब मौन है। निश्चित ही वे मुसलमान होंगे। इसलिये बात दबा दी गयी है। मरने वाले भी हजारो मे होंगे यह खबर भी दबा दी गयी जैसे रेल हादसे के बाद लाशे फेक दी जाती है। नरीमन हाउस मे 100 किलो चिकन मँगाया गया था। क्या वह दस लोगो के लिये आया था? नही जी, आतंकी बहुत थे। ताज मे लगे खुफिया कैमरे जो कि टायलेट तक मे लगे होते है के बारे मे कही कोई जिक्र नही है। आतंकी महिनो से ताज मे रह रहे थे। ऐसे मे ताज के मालिको पर सीधा अपराधिक मामला बनता है पर इसको भी छुपाया जा रहा है।

    देखिये जनता ये सीधे नही पूछ सकती पर विपक्ष यह बात रख सकता है। पर विपक्ष का दामन भी साफ नही है।

    ऐसा लगता है कि आपके इस लेख के माध्यम से सार्थक चर्चा होगी।

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  6. इस खोजपूर्ण लेख के लिए बधाई! बहुत सटीक सवाल उठाये हैं आपने. मेरे मन में भी लगभग इसी तरह की शंकाएँ थीं. समझ नहीं आता है कि पुलिस न तो इनको रोक सकती है और न ही घटना का पोस्ट मोर्टेम कर सकती है तो फ़िर उसका काम है क्या? चालान काटना? साथ ही कस्साब के बयानों पर भरोसा करके आतंकवादियों की संख्या का निर्धारण भी अपरिपक्वता से कम नहीं है.

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  7. कितने सच हैं...
    अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.

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