Wednesday, April 29, 2009

राजनीति, अब लॉन्ग टेनिस का ग्राउंड बन चुकी है।

हम सब लॉन्ग टेनिस के बारे में जानते हैं और कुछ तो इस खेल पर हाथ आजमा भी रहे होंगे। जो इस खेल के बारे में ना जानते हों उन्हें ये बता दूं कि आजकल हमारी राजनीति में कुछ इसी तरह का खेल चल रहा है। इस खेल के बारे में थोड़ा ध्यान से वर्ना समझ नहीं पाएंगे और जब समझ नहीं पाएंगे तो हार आपकी निश्चित है। पहला खिलाड़ी चारों तरफ से घिरे स्टेडियम में ठसा-ठस भीड़ के सामने हाथ में रैकेट लेकर मैदान में खड़ा होता है और दूसरे छोर पर दूसरा खिलाड़ी सामना करने के लिए तैयार। पहला खिलाड़ी गेंद को दूसरे खिलाड़ी के पाले में जान लगाकर फेंक देता है। ऐसा करने पर कई बार पहले वाले खिलाड़ी की आवाज़ हलक से बाहर भी आ जाती है। स्टेडियम में बैठे उस खिलाड़ी के दीवाने जोश में भर जाते हैं। वहीं दूसरा खिलाड़ी भी अपनी पूरी ताकत के साथ गेंद को फिर से पहले वाले के पाले में फेंक देता है। पहला खिलाड़ी और दम लगाता है, दूसरा खिलाड़ी उससे भी ज्यादा दम लगाता है, उनके दीवाने जोश से उछलने लगते हैं। गेंद एक दूसरे के पाले में फेंकने लगते हैं। अब दूसरे खिलाड़ी के दीवाने ज्यादा दम लगाने और दिखाने के चक्कर में हलक की आवाज़ स्टेडियम के बाहर तक चली जाती है। इधर की आवाज़-उधर की आवाज़, इधर का जोश-उधर का जोश। इस जोश से भरी आवाज़ के जोश में कई बार दीवानों के साथ-साथ खिलाड़ी भी होश खो बैठते हैं। कई बार इसी कारण से बाहर वालों को दिक्कत होने लग जाती है और गेम को गेम की तरह खेलने का आग्रह लेकर आसपास-पड़ोस के लोग उन्हें समझाकर चले जाते हैं।

आजकल हमारी राजनीति उस खेल की तरह चल रही है जिसे खासतौर पर भारत में तो एक लड़की के कारण ज्यादा पहचाना जाने लगा। और उसी बाला से बला के गुण सीख कर हमारे नेता उसे मंच पर आजमा रहे हैं।

आजकल हर दिन ये सुनने को मिलता कि किसी नेता ने दूसरे नेता के लिए कुछ कह दिया, थोड़ा सा दम लगाकर। अब गेंद उस दूसरे नेता के पाले में चली गई। उसने थोड़ा ज्यादा दम लगाकर गेंद पर गाली लपेटकर पहले वाले नेता के पाले में फेंक दी। और फिर सिलसिला शुरु होगा। वार पर पलटवार हो गया और फिर उस पलटवार पर भी पलटवार हो गया।

पहले आडवाणी जी ने शुरुआत की तो फिर मनमोहन जी ने भी जवाब दिया। बात कुछ ज्यादा होचली तो आस पास के लोग भी जुड़ गए। सोनिया गांधी फिर राहुल-प्रियंका सब हाथ धोकर पीछे पड़ गए आडवाणी के। आडवाणी जी सकपका गए, बोलने लगे कि क्या मैंने कुछ गलत कहा या बिलो द बेल्ट हिट किया। आडवाणी जी को बचाने के लिए इस बार अटल जी नहीं हैं तो राजनाथ जी जब तक पाला संभालते तब तक मोदी जी कूद पड़े। अब मोदी ने कुछ बोला तो जवाब प्रियंका ने दे दिया। इतने कद्दावर नेता को गेंद सीधे सर पर लगी कि इतनी पिद्दी सी प्रियंका कैसे जवाब दे सकती है। तो फिर गेंद को प्रियंका के पाले में फेंक दिया। इधर राहुल ने जवाब देना शुरु ही किया कि सबने कहा बच्चे की बात हम नहीं सुनते, ये खेल बच्चे नहीं खेलते। प्रियंका जो छोटी थी उसे सबने गंभीरता से लिया। गंभीर प्रियंका ने गंभीरता से जवाब दिया।

लॉन्ग टेनिस का मैच तो शुरु हुआ था और खत्म होगया चाहे वहां पर पांच सेट चले हों। ज्यादा हल्क से आवाज़ निकलने लगे तो आस-पड़ोस वाले समझाकर चले भी गए। पर राजनीति के खेल में गेंद के रूप में गाली, आरोप एक दूसरे पर लगते रहे और बढ़ते भी रहे। जो इन्हें शांत कराने आते वो इनके साथ ही जुड़ते चले गए और लगता नहीं कि इस चुनाव के ख़त्म होने तक ये दौर रुकेगा। सच, ये खेल बच्चों का नहीं है पर बड़ों को ये बात समझते हुए इस खेल को भी बड़ों की तरह ही खेलना चाहिए, ‘छोटों’ की तरह नहीं।

आपका अपना
नीतीश राज

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”