Tuesday, September 1, 2009

चलो देख के अच्छा लगा कि मेरे देश में भी लोग फुटबॉल के दीवाने हैं। विलेन बना हीरो।

भारत में भी लोग फुटबॉल के दीवाने हैं ऐसा लगता नहीं था पर आज लगा। ऑफिस में अधिकतर लोग टीवी से चिपके हुए थे। लग रहा था कि ये फुटबॉल का नहीं बल्कि भारत बनाम पाकिस्तान के बीच कोई क्रिकेट का मुकाबला चल रहा हो।


दिल्ली में हो रहे नेहरू कप को देखने के लिए हजारों फुटबॉल प्रेमी अंबेडकर स्टेडियम पहुंचे। खचाखच भरे स्टेडियम में पिछली बार के चैंपियन भारत का मुकाबला पिछली ही बार की रनर अप सीरीया से था। 29 अगस्त, 2007 को भारत ने सीरीया को 1-0 से हराकर पहली बार नेहरू कप अपने नाम किया था। 31 अगस्त, 2009 को भारत ने फिर से सीरीया को हराकर दूसरी बार लगातार नेहरू कप पर कब्जा जमाया।


सीरीया की रैंकिंग पर यदि गौर करें तो वो भारत से 61 पायदान ऊपर है। जहां भारत की रैंकिंग श्रीलंका के बराबर 156 है वहीं सीरीया की रैंकिंग 95 है। नेहरू कप से पहले भारत के कप्तान और स्ट्राइकर बाइचंग भूटिया ने कप को फिर से अपने कब्जे में करने की बात कही थी और वो कर दिखाया।


लीग मैचों में सीरीया ने एक भी मैच नहीं गंवाया। वहीं भारत शुरूआती मुकाबला लेबनान से और लीगा का अंतिम मैच सीरीया से हारा। माना कि सीरीया के खिलाफ लीग मैच के दौरान भारत के चार स्टार खिलाड़ी नहीं खेल रहे थे। फाइनल में शुरूआत से ही दोनों टीमें एक दूसरे को टक्कर दे रही थी। सीरीया के लंबे कद काठी के खिलाड़ियों से पूरी तरह से कोच हॉटन की टीम टक्कर ले रही थी। 90 मिनट के बाद तक दोनों टीमें एक दूसरे पर गोल नहीं दाग सकी। इस 90 मिनटों में भारत के हाफ में बॉल ज्यादा रही पर फिर भी भारत के डिफेंडरों ने जान लगाकर बॉल को गोल के अंदर नहीं पहुंचने दिया। वहीं भारत की तरफ से गोल में ज्यादा बार निशाना साधा गया।


फिर मिला 30 मिनट के एक्स्ट्रा टाइम। अंतिम दस मिनटों के खेल में गर्मागर्मी भी कई बार हुई। भूटिया को गेंद लेजाते समय सीरीया के एक खिलाड़ी ने पीछे से जानबूझकर गिरा दिया। 114वें मिनट में भारत की तरफ से 8 नंबर की जर्सी पहने रेनेडी सिंह ने फ्री हिट ली। दाईं की तरफ से गेंद घूमी और फिर 5 खिलाड़ी की दीवार को झांसा देते हुए बाएं की तरफ घूमते हुए फुटबॉल गोलपोस्ट के अंदर समा गई। इस शानदार शॉट ने मुझे वर्ल्ड कप में बेखम की शॉट की याद दिला दी। भारत को बढ़त मिल चुकी थी। पर मैच की सीटी बजने से ठीक पहले सीरीया के ड्याब ने हेडर से गोल उतार दिया और एक्स्ट्रा टाइम के बाद स्कोर था 1-1। अब फैसला पेनेल्टी शूटआउट से होना था।


अब दारोमदार था भारत के गोलकीपर के ऊपर। उस गोलकीपर के ऊपर जिसे कभी कोलकाता का कोई भी क्रिकेट क्लब लेने से मना कर देता था क्योंकि इस शख्स के ऊपर कई बार इल्जाम भी लगे थे। उन इल्जामों के बारे में आज भी सुब्रतो पाल बात नहीं करते। जहां तक मुझे याद आता है 5 दिसंबर, 2004 को सुब्रतो पाल शायद वो ही गोलकीपर थे जिससे टक्कर लगने के बाद विपक्षी टीम के एक खिलाड़ी की मौत हो गई थी। उस खिलाड़ी का नाम था क्रिस्टियानो जूनियर। पाल को दो महीने के लिए सस्पेंड कर दिया गया था। आज वो ही विलेन हीरो बन गया।


भारत की तरफ से पहली पेनेल्टी में क्लाइमेक्स ने गोल दाग दिया। सीरीया के राजा राफे ने गोल बराबर कर दिया। पर भारत की तरफ से फील्ड में एकमात्र गोल करने वाले रेनेडी सिंह की बॉल गोलपोस्ट पर जा लगी और मिस हो गई। पर सुब्रतो पाल ने सीरीया के अयान की गेंद को रोक कर मामला फिर से पटरी पर ला दिया।


दिल्ली के छेत्री ने भारत को लीड दिला दी वहीं सीरीया के अहमद हज की गेंद को कमाल की गोलकीपरिंग का नमूना दिखाते हुए उसे बाएं हाथ से रोक दिया। और फिर भारत के डयास ने कोई गलती नहीं की बढ़त को और आगे बढ़ाने में।


यदि ये गोल सीरीया नहीं कर पाता तो वो मैच हार जाता। इस बार गोलकीपर कप्तान बलहउस ने हिट ली और गोल। भारत के मेहराजुद्दीन अब जीत का गोल दागने गए पर चूक गए। वहीं सीरीया के अब्दुल फतह ने गोल दाग दिया और स्कोर बराबर होगया।


अब बारी थी स्डन डैथ की। भारत की तरफ से अनवर ने गोल दाग दिया और जोश की लहर पूरे स्टेडियम में गूंज गई। निडर और कूल लग रहे भारत के गोलकीपर ने जाकर गोलपोस्ट संभाला और सीरीया के अलाटोउनी ने किक ली और उस ऊपर उठती बॉल को सुब्रतो पाल ने गोलपोस्ट के ऊपर से बाहर का रास्ता दिखा दिया। और भारत जीत गया।


मैन ऑफ द मैच के अवॉर्ड से भारत के गोलकीपर सुब्रतो पाल को नवाजा गया और मैन ऑफ द टूर्नामेंट बाइचंग भूटिया को दिया गया।


दिल्ली के खचाखच भरे अंबेडकर स्टेडियम में चक दे गूंज उठा। देख कर अच्छा लगा कि चलो भारतीय फुटबॉल के भी चाहने वाले हैं वो अभी मरी नहीं है यानी अभी इसे आगे बढ़ना है।

आपका अपना

नीतीश राज

6 comments:

  1. sahi kaha aapne...bhale hi football ko wo samarthan nahi mila jo milna chahiye tha par phir bhi hamari team ka pradarshan bahut achha tha

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  2. बहुत अच्छा लगा नीतिश जी क्रिकेट को ही खेल मानने वाले इस देश में फुटबाल का नाम भी समाचार पत्रों के खेल पृष्ठ पर नज़र आया वहीँ टी.वी वालों ने भी इसकी सुध ली...भाईचुंग की टीम बधाई की पात्र है...आपका वर्णन बहुत ही रोचकता लिए हुए है..
    नीरज

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  3. नीतिशजी, सही नब्ज़ पकड़ी आपने, वरना इस देश में क्रिकेट ने और सभी खेलों को फुटबाल ही तो बना कर रखा हुआ है

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  4. इस रोचक वर्णन के लिये धन्यवाद चलो कहीं तो क्रिकेट के इलावा भी किसी खेल का वर्णन सुर्खियों मे आया बधाई

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  5. नीतीश जी
    भारत के लोग फूटबाल से अधिक जीत के दीवाने हैं
    अंतर राष्ट्रीय कूटनीति में बार बार मुह की खाते ,खेलों में अव्यवस्था और राजनीती के चलते तमगों से वंचित देश के लोग हर छोटी से छोटी जीत के पीछे पागलों की तरह भागने लगते है आखिर हर किसी को अपने भारतीय होने पर गर्व करने का एक अवसर मिलता है
    पोस्ट का प्रस्तुतीकरण शानदार है

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