मेरे जाननेवाले एक बिल्डर की कंपनी में काम करते हैं। हर दिन सौ से ज्यादा लोगों से मिलना होता है। काफी दिन से सेंट्रो को चला रहे थे। एक दिन कहीं पर जाना था साथ में उनके बॉस भी थे, बॉस की गाड़ी में कुछ खराबी आगई थी। उस ड्राइव के बाद बॉस ने कहा कि बेहतर है कि दूसरी गाड़ी ले लो। बातों-बातों में बात निकली और तय होगया कि नई गाड़ी ली जाए। उनको पसंद थी होंडा सिटी।
कैसे ना कैसे करके 10 दिन के अंदर ही होंडा सिटी घर की पार्किंग में खड़ी थी। घर वाले काफी खुश थे। दोस्तों को पार्टी भी दी गई वो सब अलग। कहीं पर भी जाना होता तो होंडा सिटी से ही जाते। बेचारी सेंट्रो अपनी बारी आने की राह तकने लगी।
बहरहाल, गाड़ी खरीदने के एक महीने के बाद ही एक हादसा हो गया। एक महीने के बाद गाड़ी सर्विसिंग के लिए जाती है वैसे ही उनकी भी गई। सर्विसिग के दो-तीन दिन के बाद ही एक दिन जब वो ऑफिस जाने के लिए घर से उतरे तो देखा कि गाड़ी पार्किंग में मौजूद नहीं है। काटो तो खून नहीं जैसी स्थिति हो गई। उनके हाथ में गाड़ी की चाबी थी फिर गाड़ी गई तो गई कहां और कैसे?
तुरंत उन्होंने घर जाकर सबको बताया कि गाड़ी नहीं है पार्किंग में। कार साफ करने वाले से पूछा गया। उसने बताया कि गाड़ी आज उसने साफ की थी लगभग सुबह 7.45 के करीब। फिर जिस गार्ड की पार्किंग में ड्यूटी थी उस गार्ड से पूछा गया उसने भी बताया कि गाड़ी को खुद उसने सफाई होने के बाद चैक किया था। तुरंत दोस्तों को कॉल करके बुलाया गया कुछ ऑफिस जा रहे थे या कुछ रास्ते में थे सब वापिस सोसायटी आगए। सभी को बताया गया तो सब हैरान क्योंकि होंडा सिटी का दावा है कि उसकी डुप्लीकेट चाबी कोई बना नहीं सकता और बिना चाबी के वो खुल ही नहीं सकती। तो फिर गाड़ी कहां गई?
शाम तक ये साफ हो गया कि गाड़ी चोरी हो गई है। हम लोगों के प्रेशर के बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली। पुलिस की शुरूआती तफ्तीश में एक ऐसी बात सामने आई कि जिसके कारण पैरों तले जमीन खिसक गई। पुलिस ने दूसरी चाबी की डिमांड की, तुरंत पेश की गई। और यहीं था सबसे बड़ा पेंच। दूसरी चाबी यानी की डुप्लीकेट चाबी जो कि आपको गाड़ी खरीदते वक्त दी जाती है वो इस होंडा सिटी की नहीं थी उस चाबी में फर्क था।
पुलिस को शक हुआ डीलर के ऊपर और तुरंत उन लोगों को पकड़ा गया जिन्होंने डिलीवरी की थी गाड़ी की। डीलर के दो लोगों को पुलिस ने डिटेन किया। पर कुछ पता नहीं चला और फिर कई दिन तफ्तीश में निकलते चले गए। हम लोग यहां भागदौड़ कर रहे थे।
एक दिन दिल्ली पुलिस के हरिनगर थाने से कॉल आया कि मेरे जानने वाले को कि गाड़ी मिल गई है। सभी पुलिस स्टेशन पहुंचे तो एक शख्स को पकड़ रखा था और गाड़ी को असम से रिकवर किया गया। गाड़ी के फर्जी कागजात यहां दिल्ली में ही बन रहे थे, तभी पुलिस ने इस शख्स को धर दबोचा।
उस गाड़ी चोर ने खुलासा किया कि 6 साल के अंदर अब तक 71 गाड़ियां चुरा चुका है। गाड़ियों को नॉर्थ इस्ट, उत्तराखंड जैसी जगहों पर ले जाकर बेच दिया जाता हैं। इस काम में पूरा गिरोह सक्रिय है और अधिकतर उन गाड़ियों को निशाना बनाया जाता हैं जो कि नई होती है क्योंकि उनमें एक भी पैसा नहीं लगता, सिर्फ कागजात बनवाने का खर्च आता है।
पर होंडा सिटी की चाबी कहां से मिली?
तब जो पता चला उसने हमारे होश ही उड़ा दिए। डीलर के यहां निचले तबके पर इनके गिरोह के लोग काम करते हैं। जब गाड़ी की डिलीवरी करनी होती है तब गाड़ी लाने के लिए उन लोगों से ही कहा जाता है। यही वो वक्त होता है जब वो खेल जाते हैं सबसे बड़ा खेल। तब वो एक्सीडेंटल गाड़ियों की चाबी के साथ उस नई नवेली गाड़ी की चाबी को बदल देते हैं और खुशी से लबरेज ग्राहक दोनों चाबियों को चैक करके नहीं देखते। अधिकतर लोग उस चाबी से ही ओपरेट करते हैं जिसमें कि रिमोट इन बिल्ट होता है और दूसरी चाबी को यूं ही बिना चैक किए जेब के हवाले कर देते हैं। जब उनकी गाड़ी सर्विसिंग के लिए आती है तो वहां पर भी गिरोह के लोग होते हैं। अधिकतर गाड़ी घर पर ही डिलीवर की जाती है तो एड्रेस(घर का) का पता चल जाता है। गर डिलीवरी घर पर नहीं होनी है तब गिरोह का दूसरा साथी सर्विस सेंटर के बाहर मौजूद होता है। जैसे ही गाड़ी मालिक गाड़ी लेकर जाता है तो बाहर खड़ा शख्स गाड़ी का पीछा करके घर तक पहुंच जाता है। फिर दो-तीन दिन तक लगातार गाड़ी के मालिक पर नजर रखकर किसी दिन भी हाथ साफ कर दिया जाता है। शान से बिना आवाज़ किए काम हो जाता है और ड्राइवर की सीट पर बैठकर चोर गाड़ी उड़ा ले जाता है।
तो ये है आज के हाईटेक चोरों की हकीकत। तो संभल जाइए कहीं आप अपने हाथ से ही चोरों को अपनी गाड़ी की चाबी तो नहीं दे कर आ रहे। कहीं आप गाड़ी खरीदने जा रहे हों तो आप तो वो गलती नहीं कर रहे। जब भी कोई भी चाबी लें तो सभी चाबियों को चैक जरूर करें और संतुष्ट होने के बाद ही वहां से हटें। तब थोड़ा वक्त गर आप लगा देंगे तो बाद में बहुत सा वक्त और आपकी गाड़ी बच जाएगी।
आपका अपना
नीतीश राज
अपराध के इस बहुत ही अलग किस्म के तरीके से बचने के लिये जानकारी देने के लिये धन्यवाद। अब हो सकता है कि लोग थोडा और सचेत हो जांय।
ReplyDeleteअरे गुरु जी, आज ही अपनी duplicate चाभी को try कर के देखता हूँ. जब से ये नई गाडी खरीदी है, duplicate चाभी की तरफ देखा भी नहीं.
ReplyDeleteनीतीश जी!
ReplyDeleteइस पोस्ट को लगाने के लिए आभार!
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।
अच्छी जानकारी दी आपने।अक्सर देखने मे आता है कि डुप्लिकेट चाबी धूल खाती ही पड़ी रहती है उस्का शातिर लोग ऐसा इस्तेमाल कर सकते है कोई सोच भी नही सकता।
ReplyDeleteनीतीश जी।
ReplyDeleteसावधान करने के लिये शुक्रिया।
पहला काम चाबी चेकिंग।
अरे बाप रे । फौरन चेक करते हैं ।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी
ReplyDeleteसमयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : ये चिठ्ठी शानदार तो नहीं है पर सबको साथ लेकर चलने वाली है .
ओहो इन चोरों के होंसले तो देखिये...
ReplyDeleteमेने भी चेक करली है मेरे पास तो दोनों चाभियाँ एक सी है
ReplyDeleteअभी तो फोर व्हीलर है नहीं, जब ले लेंगे तो आपकी बात याद रखेंगें :)
ReplyDeleteवीनस केसरी
सलाह के लिये धन्यवाद लेकिन हम तो गाडी मे चाबी लगी भी छॊड जाते है कोई कंबख्त लेक्रर ही नही जाता . दिखने मे भी बिलकुल नई दिखती है हमारी सन छियासी की फ़ियेट
ReplyDeletevery informative post ! i must say that the author has displayed an exemplary civic sense . had it been in my jurisdiction , i would have recommended this post for an award.
ReplyDeleteकमाल है! ये चोर भी न जाने कहाँ से ऎसे आयडिया निकाल लाते हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।
ReplyDeleteBahut hi upyogi sujhaav.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
धन्यवाद कि आप सभी ने सुझाव माना और मुनीष जी आप का बहुत बहुत शुक्रिया।
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