Tuesday, September 29, 2009

भारत में पाकिस्तान से ज्यादा पाकिस्तानी रहते हैं।



बहुत सोचने के बाद तकरीबन दो दिन सोचने के बाद मैंने ये फैसला किया कि इस बात को सब के साथ शेयर करूं।

हमारे देश की किस्मत ही है कि यहां रहने वाले ही उसकी पीठ में खंजर भोंकते हैं। ये हमारे देश में रहने वाले कुछ लोगों की फितरत है कि जिस थाली में खाते हैं वो उसी थाली में छेद करते हैं।

याद आता है कुछ साल पहले तक जब भारत-पाकिस्तान का मैच हुआ करता था तो सड़कें खाली हो जाया करती थीं। लोग घरों में टीवी, रेडियो से चिपककर बैठ जाया करते थे कि भारत-पाक का मैच आ रहा है। सब दिल, जज्बे और ना जाने क्या-क्या दांव पर लगा देते थे। पर इमरान खान की टीम कपिल देव और सुनील गावस्कर की टीम पर अधिकतर भारी पड़ती थी। हमारी हार होती थी तो लोगों के घरों में खाना नहीं बनता था, टीवी फोड़ दिए जाते थे, कुछ को दिल का दौरा पड़ जाया करता था, कोई खुदकुशी कर लेता था। ये सारी घटनाएं तो मैंने देखी और सुनी हैं।

याद आता है कि जब भारत की हार होती थी तो दूर-दूर तक सन्नाटा छा जाता था। कॉलोनियां-बस्तियां-गांव सब चुप हो जाते थे। पर तब भी कुछ जगह पर कुछ ऐसे लोग होते थे जिनके कदम से हर एक भारतीय आगबबूला हो जाता था।

यहां भारत हारी और कुछ इलाकों से जहां पर भी उनकी बहुलता होती थी वहां से पटाखे फोड़ने की आवाज़ें आती थी। जीत को मनाने और सब को बताने का साधन पटाखों से बेहतर कुछ नहीं होता। पर ये क्या भारत में रहकर भी कुछ लोग हैं जो कि पाकिस्तान की तरफ हैं और भारत की हार पर जश्न मना रहे हैं।

26 को भारत-पाक का मैच हुआ। मैच को पाकिस्तान की तरफ से जंग की तरह ही खेला गया और जिस बात का दावा पाक टीम के कप्तान ने किया वो कर भी दिया। अपनी गलती हो या फिर जज्बे की कमी हो जो भी मानें पर हम हार गए। मैदान में किसी एक टीम की हार और जीत तो होगी ही। कभी हम कभी वो ये सिलसिला तो बदस्तूर चलता ही रहेगा। 26 को जब भारत पाक से मैच हारा तो हमारे घर के पास ही कुछ लोगों ने जमकर पटाखे फोड़े और अपनी खुशी का इजहार किया। जिससे मैं हैरान-परेशान हूं।



क्या हर एक भारतीय को उस पाकिस्तानी की ललकार का जवाब देने के लिए नहीं खड़ा होना चाहिए। यदि मुट्ठी में कोई भी उंगली कम बंद हो तो वो मुट्ठी मजबूत नहीं रह जाती। वैसे ही गर एक भी भारतीय पाकिस्तानियों की तरह सोचता है तो मुट्ठी बंध ही नहीं पाएगी। और अगर कोई सोचता है तो बेहतर है कि वो भारत को घुन की तरह ना खाए जाकर पाकिस्तान में ही बसे अपने भाइयों के बीच



हर बार मुस्लिम होने पर परीक्षा क्यों देनी होगी? बहुत लोग ये सवाल पूछते हैं। हम तो कभी उनको पराया नहीं समझते, हम हर उस शख्स को पराया समझते हैं जो कि हमारे देश के खिलाफ हो फिर चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हो, अंग्रेज हो, ईसाई हो, सिख हो। क्यों कुछ लोग ऐसे हैं जो कि भारत की हार पर खुश होते हैं? तो उन खुश होने वाले लोगों पर तो प्रश्नचिन्ह बिल्कुल जायज है।

ऐसे लोग मेरे देश मे गर हैं तो बेहतर है कि वो निकल जाएं और गर नहीं जा सकते तो बेहतरी इसी में है कि दशहरे के मौके पर रावण के साथ अपने दुर्भाव जला दें। यदि नहीं जला सकते तो रावण के साथ खुद जल जाएं। क्योंकि कोई भी भारतीय भारत की हार पर पटाखे बर्दाश्त नहीं कर सकता।

आपका अपना
नीतीश राज



8 comments:

  1. आपकी हर बात से सहमत हूँ शुभकामनायँ

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  2. मैं आपकी बात से बिल्कुत सहमत हूँ. अगर आप इस सरजमीं और मिट्टी से प्यार नहीं कर सकते तो बेहतर है पाकिस्तान में जाकर बसे.

    इसी सन्दर्भ में २० सितम्बर २००९ को लखनऊ में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक ने सभी धर्मों के नागरिकों से यह आह्वान किया है कि भारत उनकी मातृभूमि है अतः उन्हें न सिर्फ इससे प्रेम करना चाहिए और इसकी इज्जत करनी चाहिए बल्कि इसके लिए अपनी जान भी कुर्बान करने को हर घडी तैयार रहना चाहिए. जिनकी आस्थाएं कहीं और है उनके लिए इस मुल्क में कोई जगह नहीं है इसलिए -"LOVE IT OR LEAVE IT" (अपना समझकर प्रेम करो या दफा हो जाओ).

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  3. थोड़े से नालायक लोगो के कारण एक कौम बदनाम है, क्योंकि इस कौम की सहानुभूति इन चन्द बेकार लोगो के प्रति है. वरना भारत सबका है, सब भारत के है. खूदा इन्हे समझने की सक्षमता प्रदान करें...

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  4. जी हाँ!
    खाते यहाँ का हैं,
    गाते वहाँ का हैं।

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  5. नीतीश भाई... मुबारक हो... कम से कम इस पर कलम चलाने की किसी ने तो हिम्मत की.. एक बार मैं भी लिखना चाह रहा था, लेकिन लगा कि लोग कहीं ये न कहें, कि इसने हीरो बनने के लिए लिखा है। बहुत शानदार लिखा है आपने... ये मुल्क सबका है... कुछ सिरफिरे लोग पूरी कौम के ठेकेदार नहीं हो सकते और न ही वो मुसलमानो के रहबर हो सकते हैं... हिंदुस्तान में रहना है..तो यहां की ज़ुबान तो बोलना ही होगी... लेकिन फिक्र मत करिए... ये सब पुरानी पीढ़ी में होता था... नई पीढ़ी बदल रही है... बस थोड़ा सा वक्त लगेगा...

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  6. सच करवा होता है पर यही सच है ... बहुत ही अच्छा लिखा है साधुवाद

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  7. jus' wanna say...aap bahut achha likhte hain...
    nishchit hi hum bharat k hain aur bharat bhi isme rehne walon ka hi h...jisme desh-drohiyon k liye koi jagah nahi honi chahiye...

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  8. सर ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है जो आप दो दिन तक सोचने पर मजबूर कर दे.
    सर लोगो को छेत्र. धरम. जाती. के नाम पर बाटना बहुत आसान होता है क्यों की लोगो की भावनाएं इससे जुडी होती है.

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”