Sunday, June 13, 2010

ये हुई ना बात


कल पूरा दिन बहुत उतार-चढाव के साथ बीता। पूरे दिन में सिर्फ एक बार, ऐसा वक्त आया जब एक सवाल ने कुछ राहत दी या यूं कहूं कि खुश किया। मेरे जाननेवाले और अधिकतर मेरे दोस्त जब भी कहीं फंसते हैं खासकर खेल के मामले में तो मुझ से पूछ ही लेते हैं।

शाम मेरे एक मित्र का फोन आया, हाल-चाल जानने के बाद सीधे उसने काम का सवाल दाग दिया। यार, एक बात बता, आज भारत का भी मैच है? मैंने भी चुटकी ली, क्या मियां, सटिया गए हो, जो कि फीफा में भारत की बात कर रहे हो?
अरे नहीं यार, टी-20 मैच है आज भारत का?

दिल को बहुत खुशी हुई। मेरा वो दोस्त और उसकी क्रिकेट मंडली दीवानी है क्रिकेट की। अब सोचो की क्रिकेट के दीवानों को ही नहीं पता कि टी-20 में भारत का मुकाबला है। जिन्हें खाना याद नहीं रहा करता था उन्हें अब क्रिकेट याद नहीं था। मैंने उनको स्कोर बताया और गुड न्यूज दी, भारत 6 विकेट से जिंबाब्वे से जीत गया। उन्होंने बताया कि वो उस समय पब में बैठकर अर्जेंटीना का मैच देखने की तैयारी कर रहे थे। तो उन पर चढ़ा था फुटबॉल फीवर।

अर्जेंटीना ने निराश किया।

सबसे ज्यादा इंतजार था अर्जेंटीना के पहल मैच का पर अर्जेंटीना ने मैच तो जीता मगर दिल नहीं। एक मात्र गोल हैंज ने किया जो कि डिफेंडर के रूप में खेलते हैं। मैसी ने कई मूव बनाए पर उससे ज्यादा उसने गंवाए। मैसी पूरी तरह अपने लिए ही खेलते नजर आए। एक शख्स जिसकी लोकप्रियता इतनी ज्यादा हो तो उससे वैसी ही परफॉर्मेंस की उम्मीद दुनिया करती है। पर कल दो-तीन बार तो ऐसे मौके मैसी ने गंवाए गर कोई और खिलाड़ी होता तो वो शायद गोल कर देता। साथ ही तारीफ करनी होगी नाइजीरियन गोलकीपर की। जितनी बार मैसी गोलपोस्ट तक पहुंचे हर वार को उसने विफल कर दिया। अब आगे देखना होगा कि अर्जेंटीना आगे कैसा खेलती है।
वहीं दूसरी तरफ अमेरिका के खिलाफ इंग्लैंड ने भी निराश किया। यूएसए ने इंग्लैंड को बराबरी पर रोक दिया। जहां नाइजीरिया के गोलकीपर ने कमाल किया वहीं यहां पर इंग्लैंड के गोलकीपर ने हाथ में आती गेंद को गोलपोस्ट में फेंक दिया। वैसे, इंग्लैंड और अर्जेंटीना को साफ समझ लेना चाहिए कि ये राह आसान नहीं है।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, June 11, 2010

अब जोश और रोमांच के साथ जागो पूरी रात


बचपन से ही आदत रही देर रात तक जग कर पढ़ने की। वहीं दूसरी तरफ घर में किसी को भी देर रात जगने की आदत नहीं थी। सब के सब जल्द सो जाते थे। वहां वो सोते यहां पर मेरा जगना और लगभग कई बार तो सुबह तक पढ़ना जारी रहता था। याद है वो रातें जब मैं पढ़ा करता था।

पर हर चार साल बाद वो वक्त जरूर आता जब कि मैं रात को नहीं पढ़ता था चाहे फिर परीक्षा ही क्यों ना हो। लगभग पूरी रात टीवी के सामने बैठा रहता। याद आता है घर में सिर्फ टीवी चलता रहता था और वो भी ना के बराबर आवाज़ में। ड्रॉइंग रूम में रोशनी हुआ करती थी सिर्फ टीवी की। बिना पलक झपकाए निरंतर टीवी पर नजरें गड़ाए पूरे 90 मिनट दम साधे देखना। ये आदत बनी रही और आज भी कायम है। आज से फिर शुरू हो रहा है फुटबॉल का जादू जिसका कोई भी मुकाबला नहीं।

ऐसा नहीं है कि हमारे देश में फुटबॉल के दीवाने नहीं हैं। हैं...और बहुत तादाद में हैं। पर फुटबॉल को बैकफुट पर रखा गया है। कभी भी खेल मंत्रालय और मीडिया की तरफ से फुटबॉल और हॉकी को ठीक से आगे बढ़ाया ही नहीं गया। हमारे देश में किसी से भी पूछ लीजिए कि रोनॉल्डो, मैसी, काका, बेकहम कौन है तो बहुत लोग शायद बता दें पर उन्हीं से पूछ लीजिए कि भरत छेत्री कौन है तो शायद वो नहीं बता पाएं। भूटिया का नाम बता दिया जाएगा पर और किसी का....?? अंग्रेजी चैनल तो बेहरहाल थोड़ा वक्त देंगे कि फुटबॉल के ग्राउंड में क्या हो रहा है पर हिंदी चैनलों में से किसी के पास इतनी हिम्मत नहीं है कि वो राखी सावंत या गंगू बाई के ऊपर फुटबॉल को रख लें।

बेहरहाल, बचपन से ही मैं अर्जेंटीना का दीवाना रहा हूं। गैब्रियल बतिस्तुता, डिएगो माराडोना, अमैरिको गैलिगो, डैनियल पासारेला, रोबर्टो अयाला मैदान में कमाल करते थे। कुछ का मानना है कि बतिस्तुता में माराडोना से ज्यादा काबलियत थी, बतिस्तुता ने अर्जेंटीना की तरफ से अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा 56 गोल किए हैं। वहीं क्रेस्पो के 36 गोल के बाद माराडोना तीसरे नंबर पर 34 गोलों के साथ हैं।

1986 का वर्ल्ड कप याद ही होगा। क्वार्टर फाइनल में इंग्लैंड से अर्जेंटीना की भिड़ंत। माराडोना के दो गोल की बदौलत इंग्लैड को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। अधिकतर लोगों को ये याद है कि माराडोना ने हाथ की मदद से एक गोल किया था और उस गोल को हैंड ऑफ गॉड के नाम से जाना जाता है। अधिकतर लोग इस गोल की ही चर्चा करते हैं। लेकिन इसी मैच के दूसरे गोल को द गोल ऑफ सेंचुरी दिया गया। 60 मीटर की लंबी दौड साथ ही इंग्लैंड के 6 खिलाड़ियों को छक्काते हुए माराडोना ने सदी का गोल किया था। वो मैच दागदार और यादगार दोनों रहा।

इस बार फिर उम्मीद की जा रही है कि कोच माराडोना, मैसी, तेवेज, सरजिओ, डिएगो मिलिटो, वॉल्टर सेम्यूल, गैब्रियल हैंज, वेरोन की मदद से टीम जीत दर्ज करेगी। पर अर्जेंटीना की मिडफील्ड कमजोर है इस जगह पर ही सतर्क रहना होगा टीम को।

हम तो उम्मीद करेंगे की अर्जेंटीना जीते पर ये बात तो साफ है कि 12 जुलाई तक हर रात उस माहौल और मैदान के नाम रहेगी जिसके लिए फुटबॉल जानी जाती है।
पहले भी सुबह देर से उठते थे अब भी देर से उठेंगे। जिंदगी में अंतर कुछ नहीं पड़ता।

आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, June 10, 2010

हमारे अंदर का सबसे बड़ा जानवर ‘कौन’?


जितने मनुष्य उतनी शख्सियत, उतने चेहरे। सबका रहन-सहन अलग, नजरिया अलग, पहचान अलग। रोज ना जाने कितनी शख्सियत आंखों के आगे से गुजर जाती हैं। हर दिन हमें तरह-तरह के लोग रास्ते में टकराते हैं। जितने तरह के लोग उतने ही तरह के व्यक्तित्व। सभी की अपनी एक अलग पहचान, अपना एक अलग सोचने का ढंग और साथ ही अपनी-अपनी खूबियां और खामियां।

कई बार इंसानों के बारे में सोचता हूं तो एक सवाल मेरे मन को बार-बार कुरेदता है। हम सब की जिंदगी में ऐसे मुकाम बहुत बार आते हैं जब कि हम अपने अंदर के जानवर से दो-चार होते हों। तब हमें पता चलता है कि हमारे अंदर भी एक जानवर है और उस जानवर की वो काली छाया कितनी ताकतवर है। कई मौकों पर हम अपने अंदर के उस जानवर से लड़ के जीत जाते हैं और कई बार वो हमें शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देता है।

कई मौके आते हैं जब हम अपने अंदर के जानवर से दो-चार होते हैं। मनुष्य के अंदर का जानवर खुद को तो परेशान करता ही है साथ ही दूसरों को भी तकलीफ पहुंचाता है। हमारे अंदर का जानवर क्या है? किन-किन कारणों से जानवर, शरीर के अंदर का जानवर जाग उठता है? और वो कौन-कौन से कारक होते हैं जो हमें जानवर बना देते हैं?

मैंने थोड़ी कोशिश की कुछ कारकों को टटोलने की जो कि हमें इंसान बने रहने नहीं देते और कई बार इंसानियत खोकर जानवर बनने पर मजबूर कर देते हैं।

हमारे अंदर का जानवर है क्या? ये बता पाना तो बहुत ही मुश्किल है। इस पर बहुत सोचने पर मैंने पाया कि हमारे अंदर की वो इच्छा, कल्पना या बात जिसे हर कीमत पर नैतिक-अनैतिक ढंग से पूरा करने की जिद। उस जिद में किसी और को नुकसान, क्षति हो तो भी कोई गुरेज नहीं।

अब बात करते हैं कारकों की। मैंने इन्हें 3 भागों में विभाजित किया है जो इंसान को इंसानियत छोड़ कर वैहशीपन अपनाने पर मजबूर करते हैं।

क्रोध (गुस्सा), हवस, घमंड। इन में से कौन सा वो कारक है जो कि सबसे खतरनाक होता है।

वैसे तो तीनों कारक ही एक दूसरे से मिलते जुलते लगते हैं। मजबूरी हो या फिर कोई और वजह, कई बार गुस्सा आता है, और पागल बना देता है। पागल मतलब जिसका अपने पर काबू नहीं, जो कुछ भी कर सकता है। आपके अंदर के जानवर को जगा देता है गुस्सा।

हवस, हमेशा नहीं जागती पर जब भी जागती है तो पाप होना स्वाभाविक सा ही है। वैहशी बना देती है हवस। फिर मनुष्य ये सोचने के काबिल नहीं रह जाता कि वो जिस को अपना शिकार बना रहा है वो कौन है।

पर सबसे बड़ा कारक है जो कि यदि एक बार आपके अंदर आ जाए तो आप को हमेशा के लिए जानवर बना दे, वो है घमंड। गुस्सा हमेशा नहीं बना रह सकता, हवस हमेशा नहीं रह सकती पर घमंड आपके साथ-साथ चलता है हमेशा। घमंड के कारण गुस्सा और हवस का जन्म हो सकता है पर हवस और गुस्से के कारण घमंड का जन्म नहीं हो सकता।

एक इंसान को जानवर बनाने का सबसे बड़ा कारक मुझे घमंड लगता है। घमंड को हमेशा अपने से दूर रखना चाहिए।

आपका अपना
नीतीश राज

Monday, June 7, 2010

क्या लोगों ने ‘उसे’ ठीक पीटा?


उस समय मेरे मुंह से सिर्फ ये ही शब्द निकले....ओह माई गॉड। उसे बुरी तरह से पीट रहे थे लोग। हर आता-जाता दो-चार तो कम से कम लगा ही देता, जहां दिल चाहता वहां मारता। कोई-कोई तो मन भरकर मारता और कुछ तो तब तक मारते जब तक कि खुद के हाथ-पैर दुखने ना लग जाएं। सुना था पर आज देख रहा था भीड़ का कानून।

कब-कौन-कहां से निकल कर उस लड़के के सामने आता और अपनी पूरी भड़ास उस पर निकाल देता, पता ही नहीं चल रहा था। हल्की दाढ़ी से भरे, लाल हो चुके गाल पर रसीद कर दिए जाते और यदि चेहरा छुपाने की कोशिश गर वो करता तो उसके कान तक आ चुके लंबे बाल उसके चेहरे को पीछे खींचने के लिए काफी होते। और फिर चेहरे पर तीन-चार....। कुछ तो उसे बॉक्सिंग पैड समझ कर सिर्फ पेट पर ही गुस्सा निकालते।

कुछ को तो मैंने देखा कि वो राहगीर थे उनको पता नहीं था कि मसला क्या है पर बाइक रोकी उतरे और चार लगाए बाइक शुरू की और चल दिए। कुछ सिर्फ वहां से गुजर रहे थे, देखा, लड़के को अपने दम के मुताबिक पीटा और चल दिए। कइयों को देख कर के ऐसा लग रहा था कि जैसे कहीं की खुंदक कहीं पर निकाल रहे हों।

मुझे फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस याद आई। जब सुनील दत्त एक चोर से बोलते हैं कि यदि मैंने तुम को यहां पब्लिक के आगे छोड़ दिया तो सोचो कि तुम्हारा क्या होगा। कोई घर से लड़ कर आया है, कोई बीबी से परेशान है, किसी को बॉस की टेंशन है, ऑफिस का झमेला, किसी की तुम जैसे जेब कतरे ने जेब काटी है सोचो जब इतने सब लोगों के बीच में तुम होगे तो क्या होगा? उस चोर की हवाइयां उड़ने लग गई। यहां पर भी मुझे वही परेशान लोग नजर आ रहे थे।

वहीं, पिटने वाला लगभग 18-19 साल का युवक होगा। बाल लंबे, कद लंबा, छरेरा शरीर पर अब सब कुछ धुमिल हो चुका लग रहा था। जगह-जगह से खून निकल रहा था, मुंह तो लहु-लुहान हो रहा था। कपड़े कई जगह से फट चुके थे। उस लड़के को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो क्या करे क्योंकि जब तक संभलता तब तक फिर वो अपने आप को संभालने में जुट जाता।

जैसा वो चोर इस दुर्दशा के बाद सोच रहा होगा कि इस से तो बेहतर होता कि पुलिस के हत्थे चढ़ता। हुआ भी ऐसा ही ये सारा वाक्या होने के लगभग 5 मिनट के अंदर ही पुलिस मौके पर पहुंच कर उस लड़के में दो-चार लगाकर अपने साथ लेकर चलते बनी। कई बार तो शक भी होता है कि कहीं ये लोग भी तो नहीं मिले रहते इनसे?

लेकिन यहां के लोग झपट्टामार चोरों से परेशान हो चुके हैं। यहां कि लड़कियों,महिलाओं का तो दिन में सड़क पर निकलना दूभर हो गया है। सड़क पर मोबाइल पर बात कर ही नहीं सकते पता नहीं कब-कौन-कहां से आकर आपका कीमती सामान झपट जाए। कई बार तो लगता है कि उस लड़के के साथ अच्छा हुआ और पीटना चाहिए था पर कई बार सोचता हूं कि इतना नहीं मारना चाहिए था। मैं भी इंसान हूं क्या करूं!

कल एक जगह खबर पढ़ी थी कि लोगों ने झपट्टामार चोर को पकड़ा और इतना मारा कि वो मर गया। वो था इन चोरों से परेशान और पुलिस की नाकामियत पर भीड़ का कानून

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”