Monday, April 6, 2009

गर बचा सको, तो बचा लो यारों।

ऐ...ऐ...ऐ भाई....ऐ भाई, क्या सोच रहे हो, यदि यहां पर रुके तो बेकार का दिमाग खराब होगा अपनी कमियों के बार में सोचना होगा, हां, यदि यहां की राह की तो सोचना होगा। जरूर सोचना होगा कि हम क्या कर रहे हैं, दिन-ब-दिन गुजर रहे हैं और हम क्या दे रहे हैं समाज को। हम आखिर दे क्या रहे हैं, अपनी आने वाली पीढ़ी को। कहने को तो रहते हैं हम एक सभ्य, पढ़े लिखे समाज में पर कई बार तो लगता है कि ये बड़े लोगों का समाज हमेशा सोता ही क्यों रहता है।
यहां हर कोई आता है एक अरमान लेकर। एक अरमान, कुछ करने का, कुछ बनने का, और यहां के खोखले आदर्शों में दिवालिया हो जाता है और फिर यहां कि तेज रोशनी तो है ही उसे गर्क में डुबोने के लिए। यहां पर कानून सोता है, ऐसा नहीं कि ये सिर्फ रात में सोता है ये तो दिन से ही उबासियां लेने लग जाता है। दिन से ही हर कोने में कभी किसी की पर्ची तो कभी किसी की जेब कटती रहती है। दिन में दस रुपये और रात में कौड़ियों के भाव बिकता है कानून। विश्वास ना हो तो जाकर देख लो।
घूस के लिए सब राजी। मैं राजी, तुम राजी, तुम लेने के लिए, मैं देने के लिए, बस काम हो जाए, यानी घूस के लिए हम सब राजी। थोड़ा मैं नीचे गिरूंगा, पर काम तो हो जाएगा ना, थोड़ा ज्यादा तुम नीचे गिरोगे, पर क्या करें लोग इतना कहते हैं तो ये सब तो करना पड़ता ही है। शाबाश, हमाम में सभी नंगे हैं एक नंगा दूसरे को क्या नंगा करेगा।
नहीं..नहीं, ये डिपार्टमेंट मैं नहीं देखता आप उनसे मिल लो, नहीं ये मैं नहीं देखता, आप उनसे पूछ लो....अरे क्या भई, ये काम तो आपको उस फलां ऑफिस से करा कर लाना होगा। वहां जाओ तो पता चलता है अरे इतनी छोटी बात के लिए यहां भेजा, नहीं...नहीं ये तो वहीं होता है इस तल पर। कभी यहां भटको, कभी वहां? कह किसी से सकते नहीं, हमारे हाथ हैं ही इतने कमजोर कि करा हमसे कुछ जाता नहीं। हर तरफ कामचोरी, करेला वो भी नीम चढ़ा, सरकारी दफ्तर तो अव्वल हैं, कोई नहीं चाहता काम करना, रिएक्ट तो कर ही नहीं सकते, रिएक्शन पावर जैसे खत्म हो चुकी हो। रोड़ पर गाड़ी चलाते वक्त लड़की भी देखेंगे, मोबाइल पर बीवी से बात भी करेंगे और यदि गाड़ी कहीं भिड़ गई तो लड़ने में देर नहीं करेंगे, सारी एनर्जी, एक्शन, रिएक्शन पावर वहां ही लगाएंगे।
हर तरफ भ्रष्ट्राचार, जालसाजी, कामचोरी, घूसखोरी, नाफरमानी, आरामपसंदगी, मारपीट, खून खराबा, नियम कायदे कानून की गैरफरमानी हम लोगों की रगों में बस चुकी है। कैसे निकाले हम क्या है इसका आपके पास कोई जवाब? यदि है तो बताओ, नहीं तो यहां से ही वापस लौट जाओ पूरा पढ़ो ही मत?

अब तो संभल जाओ मेरे प्यारों,
जैसी है अभी हमारी दुनिया,
इससे अच्छी ना कर सको तो भी,
जैसी है उसे उस हाल में बचा लो,
गर बचा सको तो यारों।


हर दिन का सूरज नई आशा लेकर आता है, बस हमें प्रयास करने हैं और हो सके तो आंख खोलकर, कान खोलकर, अपना दिमाग चलाना है, तो इंतजार किस बात का, चलिए कोशिश अभी से शुरू कर लेते हैं, क्योंकि कोशिश तो सिर्फ आपको-हमको ही करनी होगी।

आपका अपना
नीतीश राज

2 comments:

  1. सच कहा-कम से कम जैसी है उस हाल को ही बचा लें तो बेहतर. दुर्गति की गति को विराम देना आवश्यक है.

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  2. "अब तो संभल जाओ मेरे प्यारों,
    जैसी है अभी हमारी दुनिया,
    इससे अच्छी ना कर सको तो भी,
    जैसी है उसे उस हाल में बचा लो,
    गर बचा सको तो यारों।"
    आपका लेख सार्थक है।
    बधाई।

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”