अब आगे...
.....कहते हैं कि वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता, और उसके लिए वक्त बदल भी गया। मेरे लिए तो वक्त अभी था पर उसका वक्त भी तो मेरा हो चुका था जो मुझसे मेरी ही चुगली कर रहा था और बता रहा था मुझे कि अब मेरे पास भी वक्त नहीं रह गया है। मेरे वक्त ने तो कसम खा रखी थी कि मेरा साथ नहीं देगा। उसका वक्त, उसका साथ छोड़ते हुए भी उसके साथ था।
आज भी मेरी किस्मत के तार उस खिड़की के साथ जुड़े हैं जिस खिड़की से मैं नीलम को देखा करता था। कई बार यूं ही हाथ अचानक बिना किसी आवाज़ के ही उठ जाता है और चुपचाप कहता है कि ’आ रहा हूं’। उस हाथ की आवाज़ अब किसी को समझ में नहीं आती है। वो चारपाई जिस पर हम साथ वक्त गुजारा करते थे वो अब भी चर-चर करती है और अचानक उसकी चर-चर आज भी हंसा जाती है। छज्जे पर पड़ी वो सीढ़ी गंदी हो चुकी है पर आज भी उस धूल की परतों के नीचे हम दोनों के पैर की छाप देखी जा सकती है। एक पांव में पड़ी उसकी पायल आज भी कभी-कभी दिमाग में छम-छम कर जाती है। हर एक छम के साथ ही पूरे शरीर में एक लहर सी दौड़ जाती है।
चाय की चुस्की लेते हुए उस खिड़की से बाहर देखते हुए मैं अक्सर सोचता हूं कि वक्त कब और कैसे करवट बदलता है पता ही नहीं चलता। ग्रेजुएशन करने के बाद इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन और फिर बीएड के बाद 4 गांवों के एक स्कूल में मास्टर बन गया। दूर तलक कई गांवों में ऐसा स्कूल नहीं है आमदनी अच्छी-खासी हो जाती है। गांव से थोड़ा बाहर जाना पड़ता है थोड़ी दूर है पर फिर भी इस कमरे में वापस आते ही सारी थकान गायब हो जाती है।
दो साल का वो वक्त कितना आसान था जिंदगी जीना का मन करता था। पर वक्त बदला और मेरी दुनिया भी। उस एक वक्त ने मेरी दुनिया बदल दी और तब से आजतक मेरी दुनिया बदली हुई है। अब कोई भी इस पुरानी खिड़की की तरफ कंकड नहीं उछालता। ना ही नीलम और ना ही शंभू। ना शंभू कभी नीलम से मिला था और ना ही नीलम कभी शंभू से मिली थी पर भगवान ने दोनों की जोड़ी लिखी थी। शंभू की मां की तबीयत बिगड़ी जल्दबाजी में लड़के की शादी की बात चली और जब तक कोई समझता दूल्हे संग 5 बाराती लड़की वालों के घर पर थे उनमें से दूल्हे संग मैं था।
नीतीश राज
अब कोई भी इस पुरानी खिड़की की तरफ कंकड नहीं उछालता
ReplyDelete-ओह!
मन की गहराइयों से निकली अभिव्यक्ति / नितीश राज जी आपका शुक्रिया हमारे मुहीम से जुड़ने के लिए आशा है आप अपनी तरफ से प्रभावी प्रयास और तहकीकात जरूर करेंगे /
ReplyDeleteचाय की चुस्की लेते हुए उस खिड़की से बाहर देखते हुए मैं अक्सर सोचता हूं कि वक्त कब और कैसे करवट बदलता है
ReplyDeletemain bhi yahi socha karta hoon kabhi kabhi