भारत में 90 फीसदी मुस्लिम छात्र दसवीं तक पहुंचने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। शहरों में सिर्फ 1 फीसदी महिलाएं और 3.4 फीसदी मर्द स्नातक हैं। गांवों में मात्र 0.7 फीसदी पुरुष स्नातक हैं और महिलाएं ना के बराबर हैं।
आए दिन कोई ना कोई फतवा। कभी इस बात पर फतवा कभी उस बात पर फतवा। खुद का दिमाग खराब है और साथ ही वो हमारा भी दिमाग खराब कर रहे हैं। अरे आज से कुछ दशक पहले फतवे का खौफ था। जब भी किसी के खिलाफ फतवा जारी हो जाए तो समझो उस शख्स की शामत आगई। पर अब तो ये आलू-प्याज की तरफ दिए जा रहे हैं कभी-कभी तो लगता है कि प्याज का दाम ज्यादा है इन फतवों से।
आए दिन कोई ना कोई फतवा। कभी इस बात पर फतवा कभी उस बात पर फतवा। खुद का दिमाग खराब है और साथ ही वो हमारा भी दिमाग खराब कर रहे हैं। अरे आज से कुछ दशक पहले फतवे का खौफ था। जब भी किसी के खिलाफ फतवा जारी हो जाए तो समझो उस शख्स की शामत आगई। पर अब तो ये आलू-प्याज की तरफ दिए जा रहे हैं कभी-कभी तो लगता है कि प्याज का दाम ज्यादा है इन फतवों से।
फतवे ही फतवे
बालों में डाई नहीं लगा सकते सिर्फ मेहंदी लगाएं, वंदेमातरम् नहीं गाएंगे, महिलाओं के मॉडलिंग के खिलाफ फतवा, बॉडी स्कैनर के खिलाफ फतवा, पैसों को बैंक में ना रखें, ब्याज पर पैसे को रखना, औरतें मर्दों के साथ काम नहीं करें, फेसबुक के खिलाफ पतवा...और पता नहीं क्या-क्या। यदि इन लोगों का बस चले तो ये झौंक दें देश को 100 साल पहले के समाज में। अरे, कुछ तो सोचो कि यार क्या फतवा दे रहे हो। फतवा कोई कानून तो है नहीं, ये तो सिर्फ एक राय है पर वो राय तो सोच समझ के दी ही जा सकती हैं।
फेसबुक पर फतवा क्योंकि मिस्र में कुछ जोड़ों का तलाक फेसबुक की वजह से हुआ। गलतियां कोई करे और उठाकर जो मन में आए सुना दो फतवा।
औरतें मर्दों के साथ काम नहीं कर सकती। इस पर बाद में मशविरा का नाम देकर कन्नी काट ली गई पर ऐसी राय भी क्यों दी गई कि सभ्यतापूर्ण कपड़े पहनकर महिलाएं काम पर जाएं। किसी की निजी जिंदगी पर कमेंट करना या फिर बेफालतू की राय देने की ही क्या जरूरत है।
बस ये ही एक आस
ये मत करो, ये मत करो, ये मत करो पर अब पहली बार कोई पॉजिटिव फतवा सामने आया है। महिलाओं को जरूरी है शिक्षा। औरतों की तालीम पर जोर दिया गया है। सभी जानते हैं कि इस्लाम में कहा गया है कि बांदी तक को शिक्षित करो। इस तरह के फतवे जारी करो तो बेहतर है।
भारत में 90 फीसदी मुस्लिम छात्र दसवीं तक पहुंचने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं। शहरों में सिर्फ 1 फीसदी महिलाएं और 3.4 फीसदी मर्द स्नातक हैं। गांवों में मात्र 0.7 फीसदी पुरुष स्नातक हैं और महिलाएं ना के बराबर हैं। अभी हाल ही में जारी प्लानिंग कमीशन की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। ये आंकड़ें अपने में सारी बात कहते हैं।
हर जगह भद पिटने के बाद फतवादारों ने अब तालीम पर जोर दिया है। जिस काम को सबसे पहले अंजाम तक पहुंचाना चाहिए था वो अब पहुंचाया जा रहा है। तालीम पर फतवा उस समय में जारी किया गया है जब कि लोगों का फतवों से विश्वास उठ रहा है।
इस बार ये एक आस जगी है कि यदि ये फतवा कामयाब हुआ तो जरूर ही भारत देश के रूप में तरक्की करेगा और साथ ही अशिक्षित लोग दूसरों के बहलावे में आकर देश का नुकसान नहीं करेंगे। चलो अच्छा है कि देर से ही पर जागे तो।
आपका अपना
नीतीश राज
अपना दूकान चमकाने में लगे है लोग . अपनी उपस्थिती समय समय पर दर्ज करा ही देते है , फतवा हमेशा कौम को पीछे ली जाने वाला ही होता है
ReplyDeleteआमीन!
ReplyDeleteकय बात है जी, इन फ़तवो की, क्या यह फ़तवा देने वाले बहुत ज्यादा पढे लिखे है, जो आज के युग को इतना अच्छी तरह से जानते है?
ReplyDeleteअशिक्षा ही नहीं होती तो इन फतवों को मानता कौन
ReplyDeleteराज केवल दो लोगों के ऊपर किया जा सकता है -
१- अनपढ़ २-कमजोर
इसीलिए इस देश से गरीबी दूर नहीं की जाती
जिस काम को सबसे पहले अंजाम तक पहुंचाना चाहिए था वो अब पहुंचाया जा रहा है। तालीम पर फतवा उस समय में जारी किया गया है जब कि लोगों का फतवों से विश्वास उठ रहा है।
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