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Friday, January 1, 2010

नव वर्ष मुबारक हो, नए साल पर वापसी


29 सितंबर के बाद से कुछ यूं व्यस्त हुआ कि ब्लॉग पर तब से वापसी संभव ही नहीं हो सकी। काफी दिन से सोच रहा था कि कुछ लिखूं पर लिख नहीं पा रहा था, ना जाने क्यों? सोचता था कि काफी बातें हैं जहन में जिनका वक्ता आ चुका है बिखर कर छप जाने का। तो, चलो वापसी की जाए और फिर से ये संवाद शुरू किया जाए।

आज के दिन से बेहतर और कोई दिन वापसी के लिए लगा नहीं या यूं कहूं कि हो नहीं सका। तो, नए साल के अवसर पर ब्लॉगजगत में वापसी कर रहा हूं। पूरे तीन महीने एक दिन के अंतराल के बाद। ठहर क्यों गया था वहां पर या क्यों नहीं लिखा, कुछ इस बारे में ठीक से नहीं कह सकता। व्यस्त था पर कुछ और भी था मन में जो रोकता रहा हाथों को, ये जानता हूं मैं। अब वक्त है जाते हुए साल के साथ-साथ पुरानी बातों को छोड़कर नए साल के साथ कदम से कदम मिलाया जाए। ये ही बेहतर है और ये ही मैं कर रहा हूं।

नव वर्ष के मौके पर सभी को मेरी तरफ से हार्दिक बधाई।

आपका अपना
नीतीश राज 






Wednesday, July 29, 2009

आपके अहम दिन के लिए ‘ये’, समीर लाल जी

‘.....यूँ ही कभी शौकिया लेखन शुरु किया था, आम हल्की फुल्की भाषा में लिखता गया. जब जो मन में आया, लिख दिया. सबने बहुत उत्साहित किया, सम्मानित किया, स्नेह दिया और मैं अपनी ही रौ में बहता लिखता चला गया’। जब मन भर आता है उसका तो उसकी कलम से ऐसे शब्द निकल आते हैं।

जब ब्लॉगिंग की शुरूआत की थी तो एक शख्स हमेशा ही हौसला अफजाई करने के लिए टिप्पणी कर जाता था। ये पता भी नहीं चलता था कि कब-कब में वो टिप्पणी कर जाते थे। यहां आप ने पोस्ट की और वहां आपके ब्लॉग पर टिप्पणी चस्पा हो गई। जब तक ब्लॉगवाणी में आपकी पोस्ट रिफ्लेक्ट होती उतनी देर में आपके खाते में एक टिप्पणी होती। नए ब्लॉगर की दौड़ कुछ जगहों तक ही होती थी तो ब्लॉगवाणी पर देखा करते कि यार इस शख्स की पोस्ट आए तो देखें कि कौन हैं, क्या और कैसा लिखता हैं वगैरा-वगैरा।

धीर-धीरे उनको जानकर या यूं कहें कि पढ़कर बातचीत शुरू हुई। और फिर कई बार कई विष्यों पर उनसे राय लेने लगे। खास तौर पर दो बातें उनके बारे में बनी कि उन्होंने ऊल जुलुल टिप्पणियों से बचने के लिए अपने ब्लॉग पर मोडरेशन ऑन कर रखा है और ये ही सलाह वो हमेशा ही सब को देते हैं। पर बावजूद इसके वो आपकी टिप्पणियां नहीं पढ़ते। उसका शिकार मैं एक नहीं कई बार हो चुका हूं। पहले मैं उनसे टिपिया कर के ही बात किया करता था पर बाद में उन्हें मेल करने लगा।

दूसरी बात, हिंदी ब्लॉगरों में शायद ही किसी को पता चलता हो कि वो शख्स कैसे हर दिन इतनी मशरूफियत के बावजूद इतनी सारी टिप्पणी करता है। गत वर्ष उनको भी कई बार निशाना बनाया गया कि वो बिना पढ़े ही टिप्पणी करते हैं। उस के जवाब में उन्होंने जो लिखा था वो खासकर ब्लॉगवाणी में सबसे ज्यादा पढ़ने और पसंद की जाने वाली पोस्ट बन गई थी। हिंदी ब्लॉगिंग का हर शख्स उस शख्स को मनाने में जुट गया था कि ब्लॉगिंग और टिपियाना बंद मत करो। आलसी काया पर कुतर्कों की रजाई के जरिए मुंह तोड़ जवाब दिया था उन्होंने।

एक बार मुझे उनके तर्कों से इत्तेफाक नहीं था। फिल्म गुलाल उन्हें अच्छी नहीं लगी साथ ही उसके गाने भी। वहीं मेरे को वो फिल्म पसंद आई थी और साथ ही उस फिल्म के गाने भी। तब उनको संबोधित करके मैं आपसे इत्तेफाक नहीं रखता समीर जी’ एक पोस्ट लिखी थी और उस पर उनकी टिप्पणी काफी संयम भरी थी और जो बात उन्होंने लिखी थी उसको कई टिप्पणीकारों ने सराहया भी था। बहुत-बहुत धन्यवाद हमारा हौसला अफजाई करने का और कामना ये ही है कि आप यूं ही टिपियाते रहें।

आज उन्हीं समीर लाल उड़न तश्तरी वाले समरी लाल जी का जन्मदिन है। हार्दिक बधाई के साथ ये पोस्ट उन्हीं को समर्पित क्योंकि ब्लॉगिंग के अध्याय के रूप में मैंने उनसे काफी कुछ सीखा है।

जन्मदिन मुबारक!!!!!!!

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, July 17, 2009

साहित्य की तरफ एक कदम है ब्लॉग।

हाल फिलहाल में कई बार इस पर चर्चा होती आई है कि ब्लॉग आखिर है क्या? अपनी बात कहने का एक मंच, अपनी बात को अपने अंदाज में रखने का एक मंच मतलब अपने अनुभव या फिर अपनी निजी डायरी। अपनी कुंठा निकालने का एक मंच या उन लोगों की एक संगठित जगह जिन्हें लिखने की अभिलाषा है पर कहीं लिख नहीं पाते तो यहां पर हाथ साफ करते हैं या फिर ये एक ऐसा मंच है जो कि हमें साहित्य की तरफ ले जाने का एक जरिया बन रहा है। अभी ये पढ़ने को मिला कि कुछ चुनिंदा लोग तो इसे किसी भी तरह का मंच नहीं मानते। वो कहते हैं कि ये ना तो साहित्यिक मंच है और ना ही निजी डायरी। पर हां, इसके विपरीत अधिकतर लोग ये मानते हैं कि ये एक मंच जरूर है। जहां तक खुद की बात करूं तो मैंने यहां पर ऐसे-ऐसे आर्टिकल पढ़े जो कि बाहर की दुनिया की किताबों में भी नहीं पढ़े। तो आखिर ये ब्लॉग है क्या?

बात कहने का एक मंच या फिर अपने अंदाज को रखने का एक मंच मतलब अनुभव


ब्लॉग लिखने वालों में कई ऐसे हैं जो कि इसे अखबार कि तरह मानते हैं। जो ब्लॉग पर नियमित हैं और हर प्रकार की ख़बरों को अपने ब्लॉग पर छापते हैं और साथ ही उनका विश्लेषण भी करते हैं। कई इसे सिर्फ अपनी बात को कहने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। याने की अपनी बात बस कह दी और कुछ नहीं।

कई हैं अपने अनुभवों को दूसरे के सामने रखते हैं अपने ही अंदाज में जो कि सबसे जुदा और सबसे अलग होता है। थोड़ा रोचक अंदाज में अपने अनुभव या फिर अपनी सोच। उन ब्लॉगर में आते हैं समीर लाल, डॉ अनुराग, शिवकुमार और ज्ञानदत्त, जितेंद्र भगत, अब अनिल कांत और भी बहुत हैं, सबका एक साथ ध्यान नहीं आ रहा।

निजी डायरी या ट्रैबल गाइड


क्या ब्लॉग एक निजी डायरी का रूप ले सकता है? यदि कोई राज भाटिया या फिर प्रीती बड़थ्वाल की वो सीरीज पढ़े तो शायद ये कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि ब्लॉग एक निजी डायरी हो सकता है। जो कि आप अपने निजी और बहुत ही संवेदनशील और पर्सनल अनुभवों को पन्ने पर उड़ेल देते हैं जो कि आप किसी को भी बता सकते हैं। साथ ही कई बार ये बात भी सामने आई कि ब्लॉग पर ये अच्छा नहीं कि आप अपनी पर्सनल बातें शेयर करें।

यहां पर ये भी कहना चाहूंगा कि मैं अमिताभ बच्चन के ब्लॉग को इसी श्रेणी में रखता हूं।

अभी तक सबसे अच्छा इस्तेमाल यदि ब्लॉग का हुआ है तो वो ट्रेबल गाइड के रूप में। लोगों को घर बैठे-बैठे उन जगहों की जानकारी मिल जाती है जहां वो जाना चाहते हैं। कई ब्लॉग ने तो पिछले दिनों इतने अच्छे ढंग से किसी जगह का ब्यौरा और जानकारी दी कि कोई भी उस जानकारियों का इस्तेमाल करके उस जगह पर जा सकता। जितेंद्र, महेंद्र और ममता (...और भी हैं) ने कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश की थी। यदि अंग्रेजी ब्लॉग की बात करें तो आप जिस जगह के बारे में सर्च करेंगे तो कई बार गूगल आपकी सर्च को ब्लॉग तक ले जाता है।

अपनी कुंठा निकालने का मंच या लिखने की अभिलाषा

मेरे एक साथी को पता चला कि मैं भी उसी की तरह ब्लॉग लिखता हूं और शायद मुझे ब्लॉग लिखने का सबसे ज्यादा दुख सिर्फ इसी बात का हुआ था कि उसे पता चला। क्यों? उसके पीछे का कारण भी है। उसने कहा था कि अपनी कुंठा को निकालने का सबसे बढ़िया जरिया यदि है तो ये ही है। साथ ही जो बात सबसे बुरी लगी वो ये थी कि उसने मुस्कुराते हुए कहा था, कि यार ये जो ब्लॉग है ना वो है अपने हाथ ज...., जब चाहो जितना चाहो करो। वो आज भी ब्लॉग लिखता है।

....या साहित्यिक मंच


काफी लोगों की तरफ से आया कि अमिताभ बच्चन का ब्लॉग साहित्य की सीमा में आता है। मैं पूछना चाहता हूं कैसे आप उसे साहित्य मान सकते हैं। सवाल के ऊपर सवाल ना दागिए जवाब दीजिए। हो सकता है कि कल वो पढ़ा जाएगा तो सिर्फ इसी कारण से आप उसे साहित्य मानेंगे।

मैं जानता हूं कि बहुत लोगों ने कुरु कुरु स्वाहा, गोली, कसप, अवारा मसीहा पढ़ी होगी, मेरे को उसी श्रेणी में कई ब्लॉगर की लेखनी लगती है। इसमें मैं लिखना चाहूंगा कि क्या किसी ने मौदगिल साहब की कविता, नीरज जी की रचनाओं को पढ़ा है। यदि पढ़ा है तो इन रचनाकारों पर कोई मेरे से प्रश्न नहीं पूछेगा। रंजना भाटिया, मीत की गजलें, प्रीती बड़थ्वाल की कविता पढ़ी हैं(चंद नाम दे रहा हूं यहां)। रंजना जी की यहीं पर कविता कि पुस्तक छपी, योगेंद्र जी तो अपने में ही नायाब हैं। क्या इनके द्वारा लिखी गई रचनाएं साहित्य की तरफ हमको नहीं लेजाती। मैं तो ये मानता हूं कि लेजाती हैं।

कल किसने देखा है पर ये एक पहल है आज जैसे हम पिछले पन्नों को पलट कर देखते हैं उसी तरह ब्लॉग के कुछ चुनिंदा पन्ने यदि ब्लॉग बचा रहता है तो जरूर देखे जाएंगे। पर अभी बड़ी कठिन है डगर पनघट की.......।

आपका अपना
नीतीश राज

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”