Friday, July 17, 2009

साहित्य की तरफ एक कदम है ब्लॉग।

हाल फिलहाल में कई बार इस पर चर्चा होती आई है कि ब्लॉग आखिर है क्या? अपनी बात कहने का एक मंच, अपनी बात को अपने अंदाज में रखने का एक मंच मतलब अपने अनुभव या फिर अपनी निजी डायरी। अपनी कुंठा निकालने का एक मंच या उन लोगों की एक संगठित जगह जिन्हें लिखने की अभिलाषा है पर कहीं लिख नहीं पाते तो यहां पर हाथ साफ करते हैं या फिर ये एक ऐसा मंच है जो कि हमें साहित्य की तरफ ले जाने का एक जरिया बन रहा है। अभी ये पढ़ने को मिला कि कुछ चुनिंदा लोग तो इसे किसी भी तरह का मंच नहीं मानते। वो कहते हैं कि ये ना तो साहित्यिक मंच है और ना ही निजी डायरी। पर हां, इसके विपरीत अधिकतर लोग ये मानते हैं कि ये एक मंच जरूर है। जहां तक खुद की बात करूं तो मैंने यहां पर ऐसे-ऐसे आर्टिकल पढ़े जो कि बाहर की दुनिया की किताबों में भी नहीं पढ़े। तो आखिर ये ब्लॉग है क्या?

बात कहने का एक मंच या फिर अपने अंदाज को रखने का एक मंच मतलब अनुभव


ब्लॉग लिखने वालों में कई ऐसे हैं जो कि इसे अखबार कि तरह मानते हैं। जो ब्लॉग पर नियमित हैं और हर प्रकार की ख़बरों को अपने ब्लॉग पर छापते हैं और साथ ही उनका विश्लेषण भी करते हैं। कई इसे सिर्फ अपनी बात को कहने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। याने की अपनी बात बस कह दी और कुछ नहीं।

कई हैं अपने अनुभवों को दूसरे के सामने रखते हैं अपने ही अंदाज में जो कि सबसे जुदा और सबसे अलग होता है। थोड़ा रोचक अंदाज में अपने अनुभव या फिर अपनी सोच। उन ब्लॉगर में आते हैं समीर लाल, डॉ अनुराग, शिवकुमार और ज्ञानदत्त, जितेंद्र भगत, अब अनिल कांत और भी बहुत हैं, सबका एक साथ ध्यान नहीं आ रहा।

निजी डायरी या ट्रैबल गाइड


क्या ब्लॉग एक निजी डायरी का रूप ले सकता है? यदि कोई राज भाटिया या फिर प्रीती बड़थ्वाल की वो सीरीज पढ़े तो शायद ये कहने में कोई संकोच नहीं होगा कि ब्लॉग एक निजी डायरी हो सकता है। जो कि आप अपने निजी और बहुत ही संवेदनशील और पर्सनल अनुभवों को पन्ने पर उड़ेल देते हैं जो कि आप किसी को भी बता सकते हैं। साथ ही कई बार ये बात भी सामने आई कि ब्लॉग पर ये अच्छा नहीं कि आप अपनी पर्सनल बातें शेयर करें।

यहां पर ये भी कहना चाहूंगा कि मैं अमिताभ बच्चन के ब्लॉग को इसी श्रेणी में रखता हूं।

अभी तक सबसे अच्छा इस्तेमाल यदि ब्लॉग का हुआ है तो वो ट्रेबल गाइड के रूप में। लोगों को घर बैठे-बैठे उन जगहों की जानकारी मिल जाती है जहां वो जाना चाहते हैं। कई ब्लॉग ने तो पिछले दिनों इतने अच्छे ढंग से किसी जगह का ब्यौरा और जानकारी दी कि कोई भी उस जानकारियों का इस्तेमाल करके उस जगह पर जा सकता। जितेंद्र, महेंद्र और ममता (...और भी हैं) ने कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश की थी। यदि अंग्रेजी ब्लॉग की बात करें तो आप जिस जगह के बारे में सर्च करेंगे तो कई बार गूगल आपकी सर्च को ब्लॉग तक ले जाता है।

अपनी कुंठा निकालने का मंच या लिखने की अभिलाषा

मेरे एक साथी को पता चला कि मैं भी उसी की तरह ब्लॉग लिखता हूं और शायद मुझे ब्लॉग लिखने का सबसे ज्यादा दुख सिर्फ इसी बात का हुआ था कि उसे पता चला। क्यों? उसके पीछे का कारण भी है। उसने कहा था कि अपनी कुंठा को निकालने का सबसे बढ़िया जरिया यदि है तो ये ही है। साथ ही जो बात सबसे बुरी लगी वो ये थी कि उसने मुस्कुराते हुए कहा था, कि यार ये जो ब्लॉग है ना वो है अपने हाथ ज...., जब चाहो जितना चाहो करो। वो आज भी ब्लॉग लिखता है।

....या साहित्यिक मंच


काफी लोगों की तरफ से आया कि अमिताभ बच्चन का ब्लॉग साहित्य की सीमा में आता है। मैं पूछना चाहता हूं कैसे आप उसे साहित्य मान सकते हैं। सवाल के ऊपर सवाल ना दागिए जवाब दीजिए। हो सकता है कि कल वो पढ़ा जाएगा तो सिर्फ इसी कारण से आप उसे साहित्य मानेंगे।

मैं जानता हूं कि बहुत लोगों ने कुरु कुरु स्वाहा, गोली, कसप, अवारा मसीहा पढ़ी होगी, मेरे को उसी श्रेणी में कई ब्लॉगर की लेखनी लगती है। इसमें मैं लिखना चाहूंगा कि क्या किसी ने मौदगिल साहब की कविता, नीरज जी की रचनाओं को पढ़ा है। यदि पढ़ा है तो इन रचनाकारों पर कोई मेरे से प्रश्न नहीं पूछेगा। रंजना भाटिया, मीत की गजलें, प्रीती बड़थ्वाल की कविता पढ़ी हैं(चंद नाम दे रहा हूं यहां)। रंजना जी की यहीं पर कविता कि पुस्तक छपी, योगेंद्र जी तो अपने में ही नायाब हैं। क्या इनके द्वारा लिखी गई रचनाएं साहित्य की तरफ हमको नहीं लेजाती। मैं तो ये मानता हूं कि लेजाती हैं।

कल किसने देखा है पर ये एक पहल है आज जैसे हम पिछले पन्नों को पलट कर देखते हैं उसी तरह ब्लॉग के कुछ चुनिंदा पन्ने यदि ब्लॉग बचा रहता है तो जरूर देखे जाएंगे। पर अभी बड़ी कठिन है डगर पनघट की.......।

आपका अपना
नीतीश राज

8 comments:

  1. सत्यता को उजागर करता एक स्तरीय लेख।
    बधाई!

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  2. अपनी अपनी पसन्द के हिसाब से लोग ब्लाग लिखते और पढ़ते हैं। वैसे भी किसी भी रचनाकार की ख्वाहिश होती है कि अधिक से अधिक लोगों तक उनकी बात पहुँचे और ब्लाग लेखन एवं पाठन इस ख्वाहिश को पूरा करने में मददगार साबित हो रहा है। साहित्य की कई परिभाषाओं में से एक यह है कि -"वैयक्तिक अनुभवों की निर्वैयक्तिक प्रस्तुति साहित्य है"। इस लिहाज से भी लोग अपनी अपनी अनुभूतियों की निर्वैयक्तिक प्रस्तुति करते हैं और उस रचना को पसन्द करनेवाले की भी कमी नहीं है, तभी तो हर प्रकार की रचनाओं पर टिप्पणीयाँ आतीं रहतीं हैं।

    आपके सार्थक लेखन के लिए बधाई।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. इस विषय पर बहुत उम्दा लिखा आपने.

    रामराम.

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  4. बहुत ही सुन्दर

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  5. भाई यह ब्लांग क्या है हमे इस बहस मै नही पढना, हमारे मन मै जो आया लिख दिया,जेसा लिखना आया वेसा ही लिख दिया, हमे ना इनाम चाहिये ओर ना ही कोई खिताब, मस्त मोला है हम

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  6. कम से कम साहित्य तो नहीं है। साहित्य को इस तरह की भड़ासवाजी से बचाये रखिए।

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”