Wednesday, April 22, 2009

अब बोल दिया सो बोल दिया, अब क्यों डर रहे हो आडवाणी जी। बिलो द बेल्ट तो आपने हिट किया ही था।

अब बोल दिया सो बोल दिया, अब डरना क्यों? ये तो नहीं लग रहा कि कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं बोल दिया। कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे कि चुनाव के समय में इतने नीचे नहीं गिरना चाहिए था। बार-बार पीएम को कमजोर नहीं कहना चाहिए था। अब भई बार-बार किसी को फटकारते रहेंगे तो कभी ना कभी तो दूसरा फट ही पड़ेगा। जब दूसरा फट ही पड़ा है तो अब आप क्यों घबरा रहे हैं। क्यों? हर दिन कभी किसी चैनल पर तो कभी किसी अखबार में पीएम के बारे में आपको सफाई देते सुना जा सकता है।
मैंने तो सिर्फ मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहा था। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि मनमोहन सिंह ने पीएम के पद के स्तर को कम किया है। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि वो सारे निर्णय सोनिया गांधी से पूछ कर लेते हैं। मैंने तो सिर्फ ये कहा था कि अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री यदि कोई हुआ है तो वो सिर्फ मनमोहन सिंह हैं। अब आडवाणी जी किसी को आप बार-बार ये सब कहते रहेंगे तो कौन चुप रहेगा। अब जब आपकी पोल पट्टी खुलने लगी तो नाराज़ बैठे हुए हैं और लगे हैं सभी से पूछने कि भई, क्या मैंने बिलो द बेल्ट हिट किया था?
जब आडवाणी जी चुप नहीं हुए और अपनी सभी रैलियों में उनका टेपरिकॉर्डर बजने लगा तो फिर कांग्रेस ने आडवाणी पर चौतरफा हमला करना शुरू कर दिया। अब ढाल के रूप में कोई सामने तो आया नहीं, तो लगे हैं रोने। आपकी एक के बाद एक गलतियां गिनाई जाने लगी तो लगा कि कहां पंगा ले लिया, मेरा गिरेबान तो ज्यादा मैला है। इस देश के हिंदुओं को तो छोड़िए, मुसलमानों के लिए भी जिन्ना किसी विलेन से कम नहीं था। आप पाकिस्तान जाते हैं तो लग जाते हैं उनकी तारीफ के गुणगान करने। तो जब भी इस मुद्दे पर आपको घेरा जाएगा तो संघ आपके साथ नहीं खड़ा होगा। बाबरी मस्जिद विध्वंश में आपकी भूमिका सब जानते हैं पर यहां पर दो धड़े हैं। हिंदु आपके साथ हो सकते हैं पर मुसलमानों के लिए तो आप विलेन ही हैं। तो जब-जब ये वाक्या सामने आएगा आपके वोट बैंक पर असर तो पड़ना ही है। कांधार मामले पर आपने अपना पल्ला झाड़ लिया पर उसमें भी आप फंस गए। उस समय आप गृहमंत्री थे और आपको इस बारे में जानकारी ही नहीं दी गई ये कोई पचा ही नहीं पा रहा है और यदि सच में नहीं दी गई तो आपकी पार्टी ही आप पर विश्वास नहीं करती। तो हर तरफ से आप फंस गए।
बेहतर तो ये है कि आप जब भी दूसरे पर हमला करें तो ये साथ में ध्यान रखें कि आप कितने पानी में हैं। अफजल गुरु के मामले में आप भी कठघरे में आते हैं जिसका जिक्र मैंने अपनी पिछली पोस्ट में किया है। १९९९ से लेकर २००४ तक आपने किसी भी राष्ट्रपति के पास पड़े माफीनामे पर कार्रवाई नहीं की उसके पीछे की वजह ये थी कि पहली बार ही यदि कुछ फैसले ले लेते तो हमेशा किसी वोट बैंक से आपको हाथ धोना पड़ता।

आपका अपना
नीतीश राज

2 comments:

  1. जी आपने बिल्कुल सही कहा, दूसरों पर कीचड उछालने के पहले अपना घर देख लेना चाहिये. आखिर वो भी तो दूध के धुले नही हैं.

    रामराम.

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  2. जिसे देखो वही अपनी कमीज सफेद बता रहा।
    पर उसके पीछे लगा दाग क्यों नही दिखा रहा।

    ये सब तर्क से खिलते और अपनी कमीज सफेद बताते है।

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”