अरे भई, तुम ने देखा नहीं था क्या? यार, देख तो लेते कि क्या जा रहा है ऑन एयर? देखो उसका चेहरा तक छिप गया लॉन्ग शॉट में। थोड़ा तो देखना चाहिए था। वैसे तो अपने आप को सच्चा प्रोफेशनल कहते हो फिर भी ये गलती तुम से कैसे होगई। पूरे शॉट में टैक्सट पढ़ा ही नहीं जा रहा था। वो तो छोड़ों क्या ऑडियो चैक नहीं किया गया था? ऑडियो तो यार प्रोग्राम से पहले ही चैक होता है ना यार। चलो कैमरा फ्रेम तो प्रोग्राम शुरु होने से पहले बनते हैं पर ऑडियो, जान रहे हो ना क्या कह रहा हूं कि ऑडियो, तुम ये तो अच्छे तरीके से समझते होगे, पहले चैक होना चाहिए था कि नहीं। लोगों को ऑडियो नहीं सुनाई दे रहा, क्या खाक वो हमारे प्रोग्राम को सुन पाए होंगे। कभी ऑडियो आता था कभी ऑडियो नदारद, क्या कर रहे थे लोकेशन पर सुबह से आकर...हूं...हूं... मस्ती कर रहे होंगे सब...कूड़ा कर दिया ना प्रोग्राम का? बताओ, तुम बताओ, जवाबदेही तो तुम्हारी ही हुई ना कूड़े की।
ये सारे सवाल हैं एक आउटडोर प्रोग्राम के बाद बॉस और सीनियर्स के। सवाल उस से पूछे जा रहे हैं जो कि इस प्रोग्राम का प्रोड्यूसर है। एक शख्स और इतने सवाल, कैसे जवाब दे? चलो एक रास्ता निकाला उस प्रोड्यूसर ने।
सवालों के जवाब के सिलसिले को यूं शुरू करते हैं। तो सबसे पहले सवाल का जवाब उसने कुछ यूं दिया।
जिस लॉन्ग शॉट में गेस्ट का चेहरा छुप गया था उस कैमरे पर सबसे सीनियर कैमरामैन थे। उन्हें उस प्रोड्यूसर ने दो चार बार, बार-बार इस बाबत याद दिलाया था कि हो सके तो थोड़ा फ्रेम खोल दीजिए पर वो उसके सहयोगी के सामने उसका मजाक उड़ा कर चले गए। सहयोगी उसके ऊपर हंसता हुआ उनकी पूंछ बनकर उनके पीछे-पीछे दुम हिलाने लगा। ये वो सहयोगी था जो कि वहां पर भेजा ही इसलिए गया था कि उस प्रोड्यूसर के काम पर नज़र मार ले पर वो तो अवसर हाथ से निकलने के कारण उस प्रोड्यूसर का कूड़ा ही चाहता था। पर ये बात बॉस क्यों समझें?
दूसरी बात, जब ऑफिस में प्रोग्राम से पहले सभी कैमरा फ्रेम चैक कराए जा रहे थे तो उस समय वहां पर खड़े महारथी (एक और सीनियर प्रोड्यूसर) ने इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया। उस प्रोड्यूसर का दोष तो है ही पर क्या जो-जो ऑफिस में खड़े होकर एक-एक फ्रेम में नुस्क निकाल रहे थे, क्यो वो सब बता नहीं सकते थे। जो कि बाद में उस प्रोग्राम को गिरवाने की बात भी करने लगे। क्या ऑफिस में कैमरा फ्रेम इसलिए चैक हो रहे थे की सभी कैमरे पर काला भरा हुआ है कि नहीं। वो अंधा हो गया था, कैमरामैन अंधे हो गए थे पर क्या ऑफिस में भी सभी अंधे हो गए थे।
जहां तक प्रोग्राम के नाम की बात है जो नहीं पढ़ा जा रहा था वो लाइट की प्रोब्लम थी जिसे की सभी ने हल करने की कोशिश की थी पर हो नहीं सकी थी। जहां तक ऑडियो की बात है वो सभी पहले से ही चैक किए गए थे एक नहीं दो-दो बार चैक हुए थे उसकी ऑखों के सामने, पर वो गलती गई थी सैकेंड भर के लिए। हां, स्पीकर के ऑडियो में क्या प्रोब्लम हुई थी पता नहीं पर वो अंत तक ठीक नहीं हो सकी थी।
प्रोग्राम शुरू होने से पहले ऑडियो वाला कहता है सब ठीक है, कैमरामैन कहता है सब ठीक है, लाइटमैन कहता है सब ठीक है, एंकर कहता है सब ठीक है। पर फिर भी कुछ गलती हो जाए तो क्या करे प्रोड्यूसर। जिम्मेदारी ले, जवाब देता फिरे।
पीठ पीछे कुछ लोग हमेशा से ही बात का बतंगड़ बना देते हैं। ऑफिस में मौजूद एक शख्स बार-बार सीनियर्स के कान में आग उगलता रहा और वो आग सीनियर्स कब तक अपने कान में रखते तो उन्होंने वो आग उस प्रोड्यूसर के कान में भी उगल दी जो कि दोगुनी थी। उस सीनियर शख्स ने तो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी प्रोग्राम को ऑन एयर ना करवाने में, पर होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है। उस चाटूखोर को काम छोड़कर सभी काम मजे से आते हैं। उसने एक प्रोग्राम की खूब रेड पीटी थी और वहां पर मौजूद सीनियर्स से गालियां भी खूब खाईं थी।
चलो बॉस ने उस प्रोड्यूसर को कुछ नहीं कहा पर हां एक बात जरूर है कि जिन्होंने भी उसे कुछ भी कहा वो उस पद के नहीं थे जिस से उसे कोई भी हानी होती। पर कान के कच्चों से बाजी कभी भी पलट सकती है।
कुछ चाटूखोरों को छोड़कर उस प्रोग्राम को सबने गलत तो नहीं कहा। पर हां, कुछ गलतियां जरूर थी पर गलतियों से ही तो सीखता है आदमी। और, इस गलती ने तो उस प्रोड्यूसर को दोहरी सीख दी।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
चुगलखोर हर दफ़्तर मे होते है और सबका एक ही काम होता है।ये बात ज़रूर है कि चुगलखोर काफ़ी दिनो तक़ चुगली-चकारी के भरोसे ऐश कर लेते है लेकिन एक न एक दिन उनकी पोल खुलती ही है।एक बेहद कडवी सच्चाई पूरी दमदारी और ईमानदारी से सामने रखने के लिये भी कलेजा चाहिये। आपने जो हिम्मत दिखाई है उसकी दाद देनी ही पड़ेगी।
ReplyDeleteसही लिखा नीतिश भाई।
ReplyDeleteबेहद कड़वी सटीक सच्चाई उकेरी है आपने . आभार.
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