इंतजार की घड़ी खत्म हुई और कांग्रेस इतनी बड़ी जीत के साथ सामने आएगी शायद ही किसी ने सोचा हो। और बीजेपी को ज़ोर का झटका ज़ोर से ही पड़ा। बीजेपी का हाल ये होगा ऐसा भी किसी ने सोचा नहीं होगा। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भी गर सोची जा रही थी तो बीजेपी को १३० सीटों से कम कोई नहीं सोच रहा था। बीजेपी के दिग्गज कह रहे थे कि इस बार तो बीजेपी यूपी में अपना परचम फिर से लहराएगी पर ऐसा हो ना सका। इस बार तो बीजेपी सबसे खराब स्थिति के नंबर को भी नहीं पकड़ पा रही। पीएम इन वेटिंग का वेट और बढ़ गया। नहीं चला आडवाणी जी का जादू और शायद अब वो कभी पीएम नहीं बन पाएंगे। आडवाणी जी का सुनहरा सपना टूट गया। आखिरकार ये साबित हो गया कि देश पर नहीं चला लौह पुरूष जादू। गुजरात को छोड़ दें तो मोदी अपनी साख के मुताबिक कहीं पर भी आंकड़े नहीं बटोर पाए। इस बार के चुनाव के नतीजों के बाद यदि ये सोचा जाए कि बीजेपी को फिर से जुगत लगानी होगी अपना नया पीएम इन वेटिंग ढूंढने में। मोदी का गढ़ है गुजरात पर मोदी देश के नेता नहीं हैं, नतीजे तो ये ही कहते हैं।
कांग्रेस के लिए सबसे खराब स्थिति में भी १४० का आंकड़ा छूने की बात कही जा रही थी। यहां तो कांग्रेस २०० के आंकड़े के पार जा पहुंची। यहां पर सिपाहासलार की भूमिका में सोनिया पर जनता ने विश्वास किया। पीएम मनमोहन सिंह के कामों पर जनता ने मोहर लगाई। लोगों ने राहुल गांधी के जज्बे को पहचाना। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं पर भरोसा किया और जनता को साथ चलने के लिए राजी किया। जब ही तो यूपी में राहुल की मेहनत रंग लाई या यूं कहें देश में उनको पहचान मिली। राहुल के साथ युवा जुड़े और देश को आगे बढ़ाने की राह पर निकल चले। दिल्ली में शीला दीक्षित के काम को लोगों ने ७-० से जीता दिया। दिल्ली और पंजाब में टाइटलर और सज्जन कुमार को हटाना अच्छा रहा। इससे सिखों का वोट मनमोहन सिंह और कांग्रेस को मिला। राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, केरला, आंध्र प्रदेश सभी जगह कांग्रेस ने बढ़त बनाई।
कांग्रेस ने जो दो-तीन गलती पिछली बार की थी उससे उनको सबक लेना होगा। शिवराज पाटील को हटाना फायदेमंद रहा पर ये ध्यान में रखना होगा कि कहीं फैसले लेने में ज्यादा देर ना हो जाए। नटवर सिंह को विदेश मंत्री के पद से हटाना भी सही फैसला था। पर इस बार थोड़ा सोच-समझकर चलना होगा वर्ना जनता सब जानती है।
तीसरे मोर्चे को काफी नुकसान हुआ सीट और पैसे दोनों मामलों में। अब इनकी दादागीरी नहीं चलेगी। पासवान-लालू लोग खरीद-फरोख्त का धंधा नहीं कर सकेंगे, सौदेबाजी नहीं कर सकेंगे। ये अच्छा हुआ कि नीतीश कुमार के काम को लोगों ने पहचाना और वोट दिया और उनकी पार्टी को जीता दिया। पर नीतीश कुमार को अभी फैसला करना होगा कि वो किस करवट बैठेंगे।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
jai ho kaam kar gaya..
ReplyDeleteअडवानी को भावी प्रधानमंत्री तय करना ही गलत फैसला था, ऐसे में कैसे बनती भाजपा की सरकार।
ReplyDeleteएक नजर इधर भी देखें
मनमोहन का अर्थशास्त्र आया काम-अडवानी का नहीं भाया नाम
शुभ हुआ जो भी हुआ!
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